Thursday, 10 July 2025

cheen ke dus din 15

 जैसा कि हर देश में पर्यटकों के साथ होता है कुछ शापिंग स्थान बसों के निश्चित होते हैं वहाँ पर जाकर रुकते हैं लेकिन बस एक अन्य विशाल जैड शोरूम के अहाते में रुकी  एक विशाल एम्पोरियम कहिये या पूरा मॉल आभूषण जैड मूर्ति पेंटिंग आदि का था। वहाँ जैड की कलाकृतियाँ बन रही थी। रत्नों की कटिंग आदि का काम व पेटिंग बनने का काम चल रहा था।जैड के बड़े छोटे पत्थर के टुकड़े ऐसे लग रहे थे मानो तरह तरह के हल्के रंगों की वर्फ की सिलें रखी हैं लाइन से मशीनों से कटिंग हो रही थी  वहीं कलाकार मूर्तियों को आकार दे रहे थे अर्थात् वह कारखाना भी था और शोरूम भी था।जैड की वहाँ बड़ी बड़ी प्रतिमाएँ थीं दर्शनीय कलाकारी थी। एक चित्रकार पेन्टिंग बना रहा था बड़े बड़े कैनवास पर वहॉं की कला संस्कृति चित्रित थी ।प्रवेश द्वार के सामने ही जैड पत्थर से प्राकृतिक दृश्य बनाया हुआ था। चीनी कारीगरी का अद्भुत नमूना थे सब यद्यपि हम सब में एक भी व्यक्ति खरीदार नहीं था क्योंकि एक एक कलाकृति हजारों डालर की थी लेकिन कला देखने का भी अपना मूल्य होता है हमने अद्भुत देखा एक बार तो घुसने में उलझन लगी थी क्योंकि हम शापिंग आदि में समय खराब न कर पर्यटन स्थलों पर अधिक समय बिताना चाहते थे । जैसा कि महिलाओं की कमजोरी मानी जाती है भूख लगते हुए भी वहाँ पर आभूषण देखने में सबने बहुत समय लगाया कुछ ने अपनी जेब भी हल्की की।

अगला पड़ाव लंच का था । एक चाइनीज रैस्ट्रॉं डाउजिन  में इस बार दोपहर का हमारा लंच था। रैस्ट्रां था तो बड़ा लेकिन गोलाकार मेज बहुत पास.पास लगी थीं। करीब.करीब सब मेजें घिरी थीं।  एक किनारे से बीच  में एक स्टेज बना था। सब मेज पर चीनी लोग ही थे। एक अजीब तीखी गंध से रैस्ट्रां भरा था किसी से भी गंध सहन नहीं हो रही थी। हमारे सामने जो खाना आया वह था नूडल उबली मूंगफलीए कटा प्याज सादा चावल आदि । पूरी मेज भर गई पर समझ में नहीं आ रहा था क्या खाए कि तृप्ति पाई जाये। वहाँ हरी पत्ती की चाय खाने से पूर्व पी जाती है। केतली में पतली  कम से कम चार फुट लंबी नली पिचकारी जैसी होती है उससे छोटे.छोटे प्यालों में सूण्ण्ण्ण्करने की आवाज करते.भरते हैं। यद्यपि हलके रंग का सुगंधित पानी ही देखने में लगता है  प्याले में  तो लग रहा था एकदम गरम होगा लेकिन मुॅंह लगाया तो गुनगुना सा था। उसे पीकर थकान एकदम गायब हो जाती है ऊर्जा मिलती है।

वहीं स्टेज पर चीनी बालाओं ने वहाँ के पारम्परिक परिधान पहनकर लोकनृत्य व नाटक प्रस्तुत किया।काबुकी के समान पुरानी कथाएँए कविता में और गीतों में प्रस्तुत किये। खाने से भले ही मन नहीं भरा हो पर वहाँ असली चीनी संस्कृति से परिचय हुए। एक तरफ जारों में कई प्रकार के पदार्थ रखे थे उनके साथ ही सॉप छोटा अजगरए केंकड़ा आदि भी रखे थे। दीपक जी ने कई चीनी व्यंजनों के बनाने की विधि बताई एक प्लेट में झींगे रखे थे। सॉप के व्यंजन व झींगों के व्यजंन चीनी बहुत स्वाद से खाते हैं। हर देश की अपनी सभ्यता अपनी संस्कृति अपना खान.पान होता है वह उन्हें अच्छा लगता है किसी के खान.पान को देखकर हम यदि चेहरे पर अरूचिकर भाव लायंे इससे अच्छा है उधर देखे ही नहीं । हमारे पास की एक मेज पर एक व्यक्ति ने पहले वन के एक टुकड़े पर टमाटर रखा फिर कटा पत्तागोभी रखा फिर संभवतः मेढक ही था जिसकी खाल उतरी हुई थी क्योंकि बन से टांग लटकती देखी उस पर कुछ छिड़का दूसरे टुकड़ा वन का रखा उसके साथ ही मैंने आँख हटा ली। दूसरी मेज पर चीनी खाने की प्रसि; प्रक्रिया देखी दो स्टिक से एक.एक चावल तेजी से खा रहा था।

उसकी तर्ज पर अपने हाथ में स्टिक लेकर चावल खाने का प्रयत्न किया कोशिश में दस चावल तो मुँह में चले ही गये। रास्ते

े में दीपक जी ने हमें बंदर पकाने कीए बतख पकाने की प्रक्रिया बताई। संभवतः उनका वर्णन करना मेरे लिये आसान नहीं होगा । 

अगला लक्ष्य टिन हैन या थ्येन थान और अपनी भारतीय भाषा में कहे तो स्वर्ग मंदिर था। स्वर्ग मंदिर में चीनी सम्राट वर्ष में एक बार जाकर अच्छी फसल के लिये प्रार्थना किया करते थे। इस मंदिर का निर्माण मिंग वंश के शासकों ने 1419 ईस्वीं में किया था। सन् 1751 ईस्वी में भापू शासकों ने इसका पुर्न निर्माण कराया। 1889 ईण् में इसके एक भाग को फिर से मरम्मत कराई गई थ्येन चीनी भाषा में स्वर्ग के लिये प्रयुक्त होता है और थान मंदिर के लिए। 

मंदिर के ऊपर चीनी भाषा में लिखा है ष्अच्छे वर्ष के लिये प्रार्थना करो।ष्

स्वर्ग मंदिर बीजिंग के दक्षिण की ओर जाने वाली सड़क युंग्टिंगमेग के पूर्व में स्थित है।टैम्पल ऑफ हैवन बीजिंग का एक सुप्रसि; मुख्य स्थल है यह एक तरह से बीजिंग की पहचान है वहाँ के पर्यटन स्थलों में इसे प्रमुख स्थान मिला हुआ है। यह करीब 200 हैक्टेयर में फैला है।  

स्वर्ग मंदिर का मुख्य द्वार सांची स्तूप के द्वार से मिलता है। यह लाल रंग का बहुत बड़ा बना है। इधर.उधर दो उससे छोटे द्वार है। बीच के द्वार से राजपरिवार प्रवेश पाता था और इधर.उधर के दरवाजे से राज्य कर्मचारी प्रवेश पाते थे। अब आम जनता हर दरवाजे से प्रवेश कर सकती है। एक तरफ प्रवेश का टिकिट हाल बना था उसमें कई खिड़कियाँ बनी थी। विदेशी और स्थानीय के लिए अलग.अलग खिड़की थी। चीन में हर स्थान को देखने के लिये टिकिट लगता है। विदेशी और चीनी नागरिकों के लिये टिकिट का मूल्य अलग.अलग है अधिकतर पाँच युआन का टिकिट लगता रहा था। कहीं.कहीं अधिक भी लगता था। टिकिट लाने का काम हर स्थान पर अरस्तू प्रभाकर व ओशो ही करते रहे। यहाँ हर द्वार पर लोहे की बैरीकेटिंग कर दी गई थी। एक.एक कर प्रवेश दिया जा रहा था। 

चारों ओर साइप्रस के वृक्षों से घिरे चार मुख्य हाल है जो एक दूसरे के सीध में बने है ओर दीवार के साथ.साथ एक दूसरे से मिले है। मंदिर के मुख्य भाग में आवाज चारों ओर से प्रतिध्वनित होती है।सब अपनी आवाज सुनने का प्रयास कर रहे थे ई आ ऊ का शोर मचा था स्वर्ग मंदिर के मुख्य स्तूप की दीवारों को  थपथपाने पर उस में से भी आवाज आ रही थी 

स्वर्ग मंदिर तीन हिस्सों में बंटा है उसमें प्रवेश के लिये लंबा गलियारा पार करना पड़ता है। इसका पहले भाग को ह्नान ह्यू कहते है दूसरे भाग को हान फंुग ही । वहीं एक चबूतरा बना है। उसे चारों ओर जंजीरों से घेरा है जिससे उस पर कोई पैर न रख सके। इस चबूतरे की चाओ चेन कहा जाता है। एक हाल में सम्राट के उपयोग की वस्तुएँ रखी हैं। बीच.बीच में 

धूप जलाने के लिये विशाल आधार बने हैं। अंदर हाल में एक तिमंजला वेदी के चारों ओर नौ बड़े.बड़े घेरे बने थे।

मुख्य द्वार की छत गुंबद के आकार की है उस पर सोने की पच्चीकारी हो रही है। छत पर गहरे नीले रंग की टाइललगी है।बीच में एक ऊँचे चबूतरे पर एक विशाल सिंहासन रखा था। उसके चारों ओर पोर्सलीन की गायें बनी थी। वह स्थान भी जंजीरों से घिरा था। मंदिर के चारों ओर बहुत बड़े.बड़े बाग थे जिनमें तरह.तरह के वृक्ष लगे हुए थे बाहर की तरफ

एक पंक्ति से बहुत सी  दुकानें थी यहाँ मुख्यतः पेटिंग का सामान मिल रहा था चित्र लेखा जी व सरोज जी ने पेटिंग का बहुत सामान खरीदा कुछ.कुछ हमने भी खरीदा। पैंसिलए बु्रश आदि बहुत अच्छे माने जाते हैं। तरह.तरह के हाथ के बने चित्र भी मिल रहे थे पास ही पेटिंग का कारखाना था।स्वर्ग मंदिर को देखकर चीनियों की  स्थापत्य कला में निपुणता का लोहा मानना पड़ेगा। नक्षत्र विद्याए भौतिक शास्त्रए गणितीय विद्या और कला क्षेत्र में बहुत उन्नत थे।

स्वर्ग मंदिर के बाद बस फिर एक विशाल मॉल के बाहर रूकी। हम सभी उतरने के लिये मना करने लगे। सैफरीना से कहा भी हमें ऐसे स्थानों पर मत रुकाओ हम खरीदारी में समय खराब नहीं करना चाहते लेकिन फिर भी कुछ लोग उतर गये तो सबने उतरकर वह मॉल देखा।यद्यपि उलझन लग रही थी पर अंदर घुसते ही लगा वास्तव में देखने योग्य कलाकृतियॉं हैं । शो रूम के प्रवेश द्वार पर सामने ही जैड पत्थर से ही प्राकृतिक दृश्य बनाया हुआ था ।उसमें झरना भी था परी  भी  थी अलग अलग रंग के जैड पत्थरों को काटकर उन्हें वही रंग देकर वास्तविकता लाने का प्रयास किया था । ये कृतियॉं चीनी कलाकारी का अदभुत् नमूना थी  आदमकद और उससे भी बड़ी बड़ी कलाकृतियॉं लगी हुई थी यद्यपि हम में से कोई भी खरीदार नहीं था क्योंकि हजारों डालर की एकएक कलाकृति थी लेकिन भारत के हिसाब से बहुत सस्ती थीं। कला देखने की तृप्ति का ऐहसास था । एक बार घुसने में उलझन तो लगी थी कि समय खराब हो रही है। पर्यटन स्थल तो देखने ही चाहिये लेकिन वह भी पर्यटन का एक अंग है वैसी कृतियॉं भारत में देखना असंभव है बड़ी प्रर्दशनियों में कभी कभी बड़ी कलाकृतियॉं आ जाती हैं पर उतनी बड़ी विशाल और सुंदर नहीं ।  लौटते में एक इंडियन रैस्टोरेंट में रुके वहाँ पर डिनर लिया और होटल पहुँच गये। प्रातः हमें जल्दी होटल छोड़ना था। डॉ॰ राजकुमारी शर्मा के पैरों में बहुत दर्द था। परंतु उनकी हिम्मत उनकी आत्मशक्ति देखकर बहुत अच्छा लग रहा था। रात में बार.बार उठकर दवाखाना व सिकाई का उनका क्रम चल रहा था। दिन में बराबर सबके साथ चल रही थी यद्यपि घुटनों में बहुत सूजन थी।


Wednesday, 9 July 2025

cheen ke ve das din 14

 एक ग्रीन पार्क बनाया गया है जहाँ तरह-तरह की कलाकृतियाँ लगाई गई है। एक तरह से संग्रहालय का रूप दिया गया। ओलंम्पिक मशाल लिये लड़कियों की आकृतियाँ तारों से बनाई गई । ओलंम्पिक प्रतीक चिन्ह को नाचता हुआ दिखाया गया । इसे नाम दिया गया है चाइनीज सील डांसिग बीजिंग’

इसमें चीन की पारंपरिक मुहर के साथ एक खिलाड़ी की नाचती व खुशी मनाती लाल रंग की आकृति है। यह आकृति चीनी चरित्र जिंग की है। यह प्रतीक चार संदेश देता है। 

1. चीन की संस्कृति

2. चीन का लाल रंग    

 3.  बीजिंग सम्पूर्ण विश्व से आये लोगो का सम्मान करता है।

4.     चीन ओलंम्पिक के मुख्य उद्देश्य.  सिटअस एल्टीयस फोर्टियस का पालन करता है जिसका अर्थ है तेज, ऊँचा और     मजबूत।

एक मीनार पर गोलाकार निर्माण किया गया है। जहाँ से राष्टाªध्यक्ष ने ओलंम्पिक मशाल का उद्घाटन किया।

करीब 60 किलोमीटर की यात्रा के बाद हमारे सामने विश्व का सातवां आश्चर्य था। मंचूरिया और मंगोलिया की जन जातियों के लगातार बर्बर आक्रमण से बचाव के लिये चीन की विशाल दीवार पिन इन छांग छांग ;लंबा किलाद्ध का निर्माण किया गया चीन की दीवार को चाइनीज में चेंगचेंग कहा जाता है यह 2000 साल पहले क्विन के राज्यकाल ;221-207 ईसा पूर्वद्ध प्रारम्भ हुई उस समय सम्राट किन हुआंग का शासन था।इसे ईसा से पूर्व तीसरी शताब्दी के मध्य में सम्राट श्री हुआगटी ने बनवाया था। इन्होंने ही चीन के प्रथम साम्राज्य की स्थापना की थी।लिंआनिंग में हुशान से प्रारम्भ और पश्चिम में जिआंग गुआन दर्रे पर समाप्त हुई करीब 20 राज्य साम्राटो के शासन काल में बनी इसकी लंबाई 8,851.8 किलोमीटर है। मिंग के समय तक बनी। अलग अलग राज्यों ने अपनी अलग अलग दीवार बनाई और बाद में जोड़ी गई।सम्राट क्विन शिनहुन उन दीवारों को आपस में जोड़ने में सफल हुए यद्यपि इतनी विशाल दीवार तातारों के आक्रमण से बचाव के लिये बनाई गई लेकिन चंगेज खान का कहना था कि यह रक्षा के लिए काफी नहीं है। रक्षक खरीदे जा सकते हैं।अधिकतर दीवार तीन स्थानों से पर्यटन रूप से विकसित की गई है। बादलिंग सिमाताई और जिनशैनलिंग हम लोग बादलिंग की तरफ से चढ़े थे अब वहाँ  कार व मिनी टेªेन से भी यात्रा की जाती है।

प्रथम व्यक्ति विलियम एडगर गेलने 1908 में इसे नापा था इसकी तुलना विशाल डैªगन से की जाती है जो जंगल में पसरा पड़ा है। यह दीवर उत्तर पूर्व में शानहाई ग्वान से पश्चिम में लोपमूर तक 6400 किलोमीटर लंबी है और इसे बनाने में लगभग 20 से 30 लाख चीनी मारे गये।विशाल चीन की दीवार कुछ ऊँचाई पर चढ़कर प्रारम्भ होती है। अलग-अलग स्थान से पहाड़ों की ऊँचाई अलग-अलग थी।देखने में किसी भारतीय किले की दीवार की तरह है इसकी मुख्य विशेषता है इसकी लंबाई ,यह दीवार 6 हजार किलोमीटर लंबी 6“ इस 4.2 एक बार में 2 ट्रक दौड़ सकते है ।  कहा जाता है इसके निर्माण में दस लाख मजदूर काल कलवित हुए। उन्हें उसी दीवार में चिनवा दिया गया था।काल कलवित मजदूर इसलिये भी दबाये गये एक तो हड्डियों से दीवार मजबूत हुई पौधों की जड़े गहराई में गई तथा जलाने का खर्च बचा। 

एक तरफ छोटे-छोटे स्टाल लगे थे छोटी-छोटी बेंच पड़ी थी उनसे चीन का पहाड़ी नजारा अद्भुत लग रहा था। लहराती बलखाती कहीं ऊँची कहीं नीची दीवार दीख रही थी। जगह-जगह दीवार  पर बुर्जियाँ बनी थी। कहीं 40 फुट ऊँचाई पर कहीं साठ फुट ऊँची तो कहीं सैनिकों के खड़े होने के लिये छोटी-छोटी तिवारियाँ बनी थी। दीवार की ऊँचाई ,सीढ़ियाँ ,फिर सादा सीढ़ी तक तो हम चढ़ गये डॉ॰ चित्रलेखा, वंदनी, नंदनी आदि काफी ऊँचाई तक चढ़ गई थीं।सीढ़ियॉं चढ़कर प्राकृतिक संपदा से ळभरपूर चीन को ऊॅंचाई से देखकर प्रसन्न हो रही थीं  और हम जो जरा सी सीढ़ियॉं चढ़कर और चढ़ने का साहस नहीं जुटा पा रहे थे दीवाल को कम  उन सब को अधिक देख रहे थे । शैल बाला ने वहाँ की रानियों की पारम्परिक पोशाक पहन कर फोटो खिंचाई ।यह भी एक यादगार है क्योंकि उस स्थान में रम जाना उसके जैसा महसूस करने का प्रयास भी एक यायावरी का अंग है । वहाँ पर तरह-तरह की कलाकृतियाँ विशेष रूप से चीन की दीवार की प्रतिकृतियाँ मिल रही थी। छोटे-छोटे पैकेट में तरह-तरह के नमकीन आदि मिल रहे थे वे खरीद कर चखे। दीवार के दोनों  ओर हरियाली थी। कहीं भी पहाड़ खाली नहीं दिख रहे थे। लौटते समय रास्ता दूसरा था। बहुत सुरम्य आडू चैरी के लदे 

पेड़ों के बाग देखे।चैरी के लाल लाल पके फल गुच्छे में लटक रहे थे।एकदम पूरा बगीचा चैरी का था उन्हें छूने को तोड़ने को मन कर रहा था पर बस निकलती चली गई।


Tuesday, 8 July 2025

cheen ke ve das din 13

 एक के बाद एक कमरे गैलरी से पार करते जा रहे थे वे खत्म ही नहीं हो रहे थे चलते-चलते थकने लगे और समयभी हो गया था लौटने का ,इसलिये लौट आये। कई इमारतें 1150 सन् तक की है 1924 से इसकी देखभाल का जिम्मा वहाँ के स्थानीय निकाय ने संभाल लिया है।

हमारे कुछ साथी झील के किनारे बनी संगमरमर की चौकियों पर बैठकर झील का आनंद लेने लगे झील में विशाल राजसी वोट दिखाई दे रही थी। कुछ दूर पर ही एक लामा टेंपल था लेकिन वहाँ तक जाने की हिम्मत नहीं हुई।पहाड़ी पर पैगोडा था जिसमें बुð की विशाल मूर्ति थी। आधे रास्ते तक तो हम चढ़े लेकिन समय और हिम्मत चाहिये थी इसलिये लौट आये  अंधेरा झुकने लगा था इसलिये चल दिये।

बाहर पंक्तिबद्ध दुकाने थीं वहाँ पर कपड़े खिलौने कलात्मक वस्तुऐं मिल रही थी। सामान सब अच्छा था।  बस वाला शोर मचा रहा था जल्दी करिये-जल्दी करिये फिर भी सबने कुछ-कुछ लिया।और एक के बाद एक दुकान देखी जा रही थी बार बार  पुरातत्व समय की वस्तुऐं और ब्ल्डििंग देखते देखते सब बोर तो हो ही रहे थे एक सा देखते देखते मन  दूसरी ओर मुड़ जाता है । सबको सामान खरीदने में मजा आने लगा जो थकी हुई थीं वो नीचे नहीं उतर रहीं थीं हॉं बस से ही सबसे चींजें मंगा कर ले रही थीं उस समय अंधेरे की परवाह  नहीं थी हॉं बस वाला असहज हो उठा वे बस ड्राइवर की ओर देखती और फिर किसी न किसी वस्तु की ओर भाग कर बढ़ देतीं,ःअरे बहुत अच्छी है, बहुत रीजनेबुल ,सुनकर अधिकांश ने झांक झांक कर देखना प्रारम्भ कर दिया। बस वाले ने धमकी दी फिर आगे कुछ नहीं दिखाउँगा क्योंकि स्मारक बंद हो जायेगा तब सब छोड़ छाड़ कर भागकर बस में चढ़ गईं, वहाँ से हम सब सुप्रसि( चैंगलिग म्यूजियम गये।

बस के पास एक विकलांग लड़की को एक वयोवृ( महिला व्हील चेयर  लिये खड़ी थी। उसने हमसे खाली बोतलंे मांगी संभवतः उन्हें बेचकर वह जीवन-यापन करती थी लड़की व महिला दोनों ही साफ कपड़े पहने ठीक से थीं कहीं 

भी भिखारिन जैसी नहीं दिख रही थी।यद्यपि यह भी भीख का तरीका था लेकिन आत्म सम्मान भी था ।

  सैफरीना ने  बस एक जैड आर्ट गैलरी के सामने रोकी सामने ही ग्रीन जैड व हल्के दूधिया रंग के जैड पत्थर से पूरी सीनरी सी बनी थी। बड़े-बड़े कलात्मक शो पीस रखे थे। यहाँ भारत में बड़े-बड़े माल में जहाँ क्रिस्टल का या ज्वेलरी का शोरूम होता है दो फुट तक ज्यादा से ज्यादा जैड की कलात्मक कृतियाँ दिखती हैं लेकिन वहाँ तो दस-दस फुट ऊँचे तक  अम्बर लाल, हरे काले रंगों में थी, महीन कारीगरी देखने लायक थी।

एक अन्य जैड फैक्टरी गये वहाँ पर जैड की कटिंग होती, घिसाई और बनाना सब दिखा रहे थे वहीं पर हीरे आदि की घिसाई कटिंग आदि की बड़ी फैक्टरी थी। चाइना ने नकली हीरा भी बेहद चमकीला और आभा वाला बना लिया है उसमें औेर असली हीरे में जौहरी ही पहचान कर सकते हैं।कहा जाता है भारतीय जौहरी हीरे के हर सैट में कुछ हीरे चाइना के जरूर लगाते हैं ।

धीरे-धीरे झुकती शाम में बीजिंग का अपना सौंदर्य था।लेकिन ईश्वर ने पेट एक एसा अंग बनाया है वह सब को पीछे छोड़ देता  जब वह कुलबुलाता है  तो केवल वही नजर आता है । अब फिक्र हुई खाना कहॉं खाया जाये जिससे कुछ  अच्छी सी जान पड़े।बस वाले की शरण ही गये । उसने बताया चीन मंें भी जगह-जगह भारतीय रेस्टोरंेट उपलब्ध हैं। उस ने कहा कि  आपको गंगेज होटल ले चलता हूॅं  , गंगेज रैस्टोरंेट जा रहे थे कि एक स्थान पर पार्क में काफी युवक-युवती नृत्य करते दिखाई दिये वे उनके काम के बाद मौज-मस्ती के कुछ क्षण थे। वहीं पर कुछ स्टाल लगे थे वे खा-पी रहे थे। बैंड बज रहा था म्यूजिक चल रहा था। संभवतः मध्यम वर्गीय लोगों के लिये एक मनोरंजन का साधन था। हमें बताया गया इस प्रकार के ओपन रेस्ट्रा बहुत चलते हैं।बस में सब चुप चुप से थे क्योंकि थकान ने अब बोलना शुरू कर दिया था पर देख सब पूरी उत्सुकता से रहे थे ।शैलबाला भाभी की कलम बराबर चल रही थी इतनी हिलती बस में कैसे लिख रही हैं । मनोरमाजी बहुत चुप चुप सी थीं अच्छा नहीं लग रहा था । 

गंगेज रैस्ट्रोरेंट में शु( भारतीय खाना मिला। चाइनीज लड़कियाँ सलवार सूट में थी तथा हिंदी बोल रही थी। यद्यपि रैस्ट्रोरेंट छोटा सा ओपन रैस्ट्रोरंेट था इतना छोटा कि चार चार कुर्सी की पॉंच मेज पड़ी थीे। ऊपर ही एक कमरे में परिवार रहता था उस परिवार की दोनों लड़कियाँ वेट्रेस का काम कर रही थी। होटल में माहदाल, नॉन, रोटी, चावल, सब्जी, रायता सब गर्मागम मिला तो बहुत अच्छा सा लगा।पतली सीढ़ी चढ़कर आठ फुट लंबे चौड़े कमरे में पूरा परिवार रह रहा था । हम  ऊपर जाकर उनका घर देख आये,एक आम घर एक कमरे में जो संभव हो सकता था सामान था एक कोने में गैस रखी थी कुछ 

डिब्बे डिब्बियॉं कुछ बर्तन ,पर्दा लगा कर आलमारियों में कपड़े रखे थे । उन्हीं लड़कियों ने बताया कि भारतीय खाना खाने हर देश के लोग आते हैं और पसंद करते हैं । उन लड़कियों की आंखों को भारतीय कर दें तो हम भारत के ही किसी सड़क किनारे के रैस्टोरैंट में अपने को पायेंगे ।अहा ! असीम तृप्ति । पेट भरा तो जग हंसा , बस चलता तो  वहीं पसर जाते वहॉं से कोई उठना ही नहीं चाह रहा था   खाना खाकर भी वहीं  कुटुक कुटुक कर रहे थे । चाह रहे थे कि और कोई ग्राहक न आये पर उठना तो था ही । बाकी होटल तक यात्रा तो स्वाभाविक थी ऊॅघते  ही जाती ।

दूसरे दिन प्रातः हम चीन की सुप्रसि( दीवार, संसार का सातवां आश्चर्य देखने के लिये निकलना था। चीन की दीवार के लिये कहा जाता है कि यही एक मात्र पृथ्वी का निर्माण है जो अन्तरिक्ष से दिखता है लेकिन नवीनतम अंतरिक्ष यात्रा से यह धारणा भ्रामक सि( हुई है क्योकि अंतरिक्ष से चीन की दीवार पृथ्वी के रंग में घुलमिल जाती है।ग्रेटवाल अंतरिक्ष से बिलकुल नहीं दिखती वह केवल 65,617 फिट तक की ऊँचाई से दिखती है और 196,850 फुट की ऊँचाई से दिखना असंभव है यह उसके समान है कि 2688 मीटर ऊँचाई से हम एक बाल ढूँढ़े। जो चीज वास्तव में दिखती है वह है ब्रह्मपुत्र नदी,और चीन में उसका 67 प्रतिशत भाग बहता है भारत में वह 33 प्रतिशत है वहाँ यह सांगपो के नाम से जानी जाती है विश्व में चीनी राष्ट्रपिता सुनयात सेन के द्वारा चीन के विकास हेतु नक्शे बनवाये गये जिसमें सांगपो नदी के जल को उत्तरी चीनमें लेे जाना भी शामिल था। ;तब ही ब्रह्मपुत्र के उद्गम स्त्रोत का पता चला कि यह मानसरोवर झील से 2400 किलो मीटर की यात्रा करती है और चीन ने वह कर दिखाया।


Sunday, 6 July 2025

cheen ke ve das din 12

 ☺एक के बाद एक कमरे गैलरी से पार करते जा रहे थे वे खत्म ही नहीं हो रहे थे चलते-चलते थकने लगे और समय

भी हो गया था लौटने का ,इसलिये लौट आये। कई इमारतें 1150 सन् तक की है 1924 से इसकी देखभाल का जिम्मा वहाँ के स्थानीय निकाय ने संभाल लिया है।

हमारे कुछ साथी झील के किनारे बनी संगमरमर की चौकियों पर बैठकर झील का आनंद लेने लगे झील में विशाल राजसी वोट दिखाई दे रही थी। कुछ दूर पर ही एक लामा टेंपल था लेकिन वहाँ तक जाने की हिम्मत नहीं हुई।पहाड़ी पर पैगोडा था जिसमें बुð की विशाल मूर्ति थी। आधे रास्ते तक तो हम चढ़े लेकिन समय और हिम्मत चाहिये थी इसलिये लौट आये  अंधेरा झुकने लगा था इसलिये चल दिये।

बाहर पंक्तिब( दुकाने थीं वहाँ पर कपड़े खिलौने कलात्मक वस्तुऐं मिल रही थी। सामान सब अच्छा था।  बस वाला शोर मचा रहा था जल्दी करिये-जल्दी करिये फिर भी सबने कुछ-कुछ लिया।और एक के बाद एक दुकान देखी जा रही थी बार बार  पुरातत्व समय की वस्तुऐं और ब्ल्डििंग देखते देखते सब बोर तो हो ही रहे थे एक सा देखते देखते मन  दूसरी ओर मुड़ जाता है । सबको सामान खरीदने में मजा आने लगा जो थकी हुई थीं वो नीचे नहीं उतर रहीं थीं हॉं बस से ही सबसे चींजें मंगा कर ले रही थीं उस समय अंधेरे की परवाह  नहीं थी हॉं बस वाला असहज हो उठा वे बस ड्राइवर की ओर देखती और फिर किसी न किसी वस्तु की ओर भाग कर बढ़ देतीं,ःअरे बहुत अच्छी है, बहुत रीजनेबुल ,सुनकर अधिकांश ने झांक झांक कर देखना प्रारम्भ कर दिया। बस वाले ने धमकी दी फिर आगे कुछ नहीं दिखाउँगा क्योंकि स्मारक बंद हो जायेगा तब सब छोड़ छाड़ कर भागकर बस में चढ़ गईं, वहाँ से हम सब सुप्रसि( चैंगलिग म्यूजियम गये।

बस के पास एक विकलांग लड़की को एक वयोवृ( महिला व्हील चेयर  लिये खड़ी थी। उसने हमसे खाली बोतलंे मांगी संभवतः उन्हें बेचकर वह जीवन-यापन करती थी लड़की व महिला दोनों ही साफ कपड़े पहने ठीक से थीं कहीं 

भी भिखारिन जैसी नहीं दिख रही थी।यद्यपि यह भी भीख का तरीका था लेकिन आत्म सम्मान भी था ।

  सैफरीना ने  बस एक जैड आर्ट गैलरी के सामने रोकी सामने ही ग्रीन जैड व हल्के दूधिया रंग के जैड पत्थर से पूरी सीनरी सी बनी थी। बड़े-बड़े कलात्मक शो पीस रखे थे। यहाँ भारत में बड़े-बड़े माल में जहाँ क्रिस्टल का या ज्वेलरी का शोरूम होता है दो फुट तक ज्यादा से ज्यादा जैड की कलात्मक कृतियाँ दिखती हैं लेकिन वहाँ तो दस-दस फुट ऊँचे तक  अम्बर लाल, हरे काले रंगों में थी, महीन कारीगरी देखने लायक थी।

एक अन्य जैड फैक्टरी गये वहाँ पर जैड की कटिंग होती, घिसाई और बनाना सब दिखा रहे थे वहीं पर हीरे आदि की घिसाई कटिंग आदि की बड़ी फैक्टरी थी। चाइना ने नकली हीरा भी बेहद चमकीला और आभा वाला बना लिया है उसमें औेर असली हीरे में जौहरी ही पहचान कर सकते हैं।कहा जाता है भारतीय जौहरी हीरे के हर सैट में कुछ हीरे चाइना के जरूर लगाते हैं ।

धीरे-धीरे झुकती शाम में बीजिंग का अपना सौंदर्य था।लेकिन ईश्वर ने पेट एक एसा अंग बनाया है वह सब को पीछे छोड़ देता  जब वह कुलबुलाता है  तो केवल वही नजर आता है । अब फिक्र हुई खाना कहॉं खाया जाये जिससे कुछ  अच्छी सी जान पड़े।बस वाले की शरण ही गये । उसने बताया चीन मंें भी जगह-जगह भारतीय रेस्टोरंेट उपलब्ध हैं। उस ने कहा कि  आपको गंगेज होटल ले चलता हूॅं  , गंगेज रैस्टोरंेट जा रहे थे कि एक स्थान पर पार्क में काफी युवक-युवती नृत्य करते दिखाई दिये वे उनके काम के बाद मौज-मस्ती के कुछ क्षण थे। वहीं पर कुछ स्टाल लगे थे वे खा-पी रहे थे। बैंड बज रहा था म्यूजिक चल रहा था। संभवतः मध्यम वर्गीय लोगों के लिये एक मनोरंजन का साधन था। हमें बताया गया इस प्रकार के ओपन रेस्ट्रा बहुत चलते हैं।बस में सब चुप चुप से थे क्योंकि थकान ने अब बोलना शुरू कर दिया था पर देख सब पूरी उत्सुकता से रहे थे ।शैलबाला भाभी की कलम बराबर चल रही थी इतनी हिलती बस में कैसे लिख रही हैं । मनोरमाजी बहुत चुप चुप सी थीं अच्छा नहीं लग रहा था । 

गंगेज रैस्ट्रोरेंट में शु( भारतीय खाना मिला। चाइनीज लड़कियाँ सलवार सूट में थी तथा हिंदी बोल रही थी। यद्यपि रैस्ट्रोरेंट छोटा सा ओपन रैस्ट्रोरंेट था इतना छोटा कि चार चार कुर्सी की पॉंच मेज पड़ी थीे। ऊपर ही एक कमरे में परिवार रहता था उस परिवार की दोनों लड़कियाँ वेट्रेस का काम कर रही थी। होटल में माहदाल, नॉन, रोटी, चावल, सब्जी, रायता सब गर्मागम मिला तो बहुत अच्छा सा लगा।पतली सीढ़ी चढ़कर आठ फुट लंबे चौड़े कमरे में पूरा परिवार रह रहा था । हम  ऊपर जाकर उनका घर देख आये,एक आम घर एक कमरे में जो संभव हो सकता था सामान था एक कोने में गैस रखी थी कुछ 


डिब्बे डिब्बियॉं कुछ बर्तन ,पर्दा लगा कर आलमारियों में कपड़े रखे थे । उन्हीं लड़कियों ने बताया कि भारतीय खाना खाने हर देश के लोग आते हैं और पसंद करते हैं । उन लड़कियों की आंखों को भारतीय कर दें तो हम भारत के ही किसी सड़क किनारे के रैस्टोरैंट में अपने को पायेंगे ।अहा ! असीम तृप्ति । पेट भरा तो जग हंसा , बस चलता तो  वहीं पसर जाते वहॉं से कोई उठना ही नहीं चाह रहा था   खाना खाकर भी वहीं  कुटुक कुटुक कर रहे थे । चाह रहे थे कि और कोई ग्राहक न आये पर उठना तो था ही । बाकी होटल तक यात्रा तो स्वाभाविक थी ऊॅघते  ही जाती ।

दूसरे दिन प्रातः हम चीन की सुप्रसि( दीवार, संसार का सातवां आश्चर्य देखने के लिये निकलना था। चीन की दीवार के लिये कहा जाता है कि यही एक मात्र पृथ्वी का निर्माण है जो अन्तरिक्ष से दिखता है लेकिन नवीनतम अंतरिक्ष यात्रा से यह धारणा भ्रामक सि( हुई है क्योकि अंतरिक्ष से चीन की दीवार पृथ्वी के रंग में घुलमिल जाती है।ग्रेटवाल अंतरिक्ष से बिलकुल नहीं दिखती वह केवल 65,617 फिट तक की ऊँचाई से दिखती है और 196,850 फुट की ऊँचाई से दिखना असंभव है यह उसके समान है कि 2688 मीटर ऊँचाई से हम एक बाल ढूँढ़े। जो चीज वास्तव में दिखती है वह है ब्रह्मपुत्र नदी,और चीन में उसका 67 प्रतिशत भाग बहता है भारत में वह 33 प्रतिशत है वहाँ यह सांगपो के नाम से जानी जाती है विश्व में चीनी राष्ट्रपिता सुनयात सेन के द्वारा चीन के विकास हेतु नक्शे बनवाये गये जिसमें सांगपो नदी के जल को उत्तरी चीन

में लेे जाना भी शामिल था। ;तब ही ब्रह्मपुत्र के उद्गम स्त्रोत का पता चला कि यह मानसरोवर झील से 2400 किलो मीटर की यात्रा करती हैद्ध और चीन ने वह कर दिखाया।

प्रातः सात बजे हम सब नीचे रैस्टोरेंट में नाश्ता लेने पहुँचे। हर होटल में नाश्ता करीब-करीब एक ही प्रकार का रहता था। बड़े-बड़े बोल में फल, सेव, अंगूर, सरदा, खरबूजा, तरबूजा, काफी आदि। अनेकों प्रकार की बर्गर पेस्टरीज आदि 

तरह-तरह के चोको कार्नफ्लक्स आदि एक तरफ रात्रि का बचा डिनर भी लगा रहता था जिसमें नूडल्स आदि रहते थे एक तरफ नॉन वैज लगा रहता था। पेय पदार्थ में चाय-काफी तरह-तरह के जूस रहते थे। हम लोगों का नाश्ता अधिकतर फल चोको आदि रहता था  केक पेस्ट्री पर भी कुछ भरोसा नहीं था। हम कुछ यात्री तो नूडल्स आदि खा लेते थे लेकिन कुछ लोग जैसे मनोरमा दीदी शैल भाभी आदि बिलकुल प्याज भी नहीं खाती थी उन्हें बहुत दिक्कत थी।

बीजिंग यात्रा के दिन अद्भुत थे क्योंकि बीजिंग ओलम्पिक 2008 की तैयारी में था। महिने भर बाद वहाँ ओलम्पिक होने थे और चीन अपने आपको दुनिया में सर्वश्रेष्ठ सि( करना चाहता था।हमारी बस बीजिंग के उस स्थान के पास से गुजरी जहाँ यु( स्तर पर ओलंम्पिक की तैयारी हो रही थी। इसके लिये चीन ने करीब 43 अरब डालर खर्च किये थे। कुछ विशेष इंतजाम किये थे और जनता को हिदायत दी गई की कि कोई सड़क पर न थूकेगा न कागज आदि फंेकेगा यदि ऐसी हरकत करेगा तो उसे 7 डालर जुर्माना देना पड़ेगा।

ओलंम्पिक स्टेडियम के पास ही पर्यावरण शु( रखने के लिये विशाल जंगल विकसित किये गये सभी वृक्षों की ऊँचाई समान थी, करीब आठ फुट इसलिये लग रहा था कि कोई पुराना वृक्ष नहीं है नव विकसित जंगल है।

मुख्य स्टेडियम से 100 कि. मी. तक की सभी फैक्टरियाँ बन्द कर दी गई थी। चीन केा ओलंम्पिक अधिकार 2001 में मिले थे और तभी से बीजिंग को इसके लिये तैयार किया जाने लगा था। चीनी अंग्रेजी सीखने में प्रयासरत हो गये। 90,000 टैक्सी ड्राइवरों को विशेष टेªनिंग इंगलिश की दी गई। प्रतियोगियों को विभिन्न राष्ट्रों से आये प्रतिनिधियों का स्वागत करना सिखाया गया। 

बीजिंग ओलंम्पिक के लिये कई-कई बिल्डिंग बनाई गईं जिनमें सबसे पहले बीजिंग एअरपोर्ट को नया रूप देने का था। 3.6 अरब डालर की लागत से यह एअरपोर्ट दस लाख वर्ग मीटर मे बना, यह दुनिया का सबसे बड़ा एअरपोर्ट है। इससे पूर्व 8.4 करोड़ यात्री क्षमता वाला एअरपोर्ट टर्मिनल को दुनिया का सबसे बड़ा एअरपोर्ट टर्मिनल कहा जाता था। लेकिन अब वह दूसरे स्थान पर है।तीन भागों में बंटे बीजिंग के 120 द्वार वाले इस एअरपोर्ट टर्मिनल में 73 एअरक्राफ्ट पर पार्किगं स्पाट है इसकी क्षमता 9 करोड़ यात्रियों की है। ब्रिटिश आर्कीटेक्ट नारमन फास्टर ने चीनी ड्रैगन की आकृति में इसका डिजाइन तैयार किया है। इसका निर्माण 50,000 कर्मचारियों ने चार वर्ष में किया।  एअरपोर्ट पर जगह जगह अतिथियों के स्वागत के लिये शुभंकर फुब्वा लगाया गया था। 

ओलंम्पिक स्थान पर चाइना सैन्ट्रल टेलीविजन का मुख्यालय बनाया गया । ये दो भागों में है ऐसा लगता है जैसे दो दोस्त गले लग रहे हो। इसमें 49 मंजिल है 36 वीं मंजिल से दोनों टावरों को जोड़ दिया गया है। यह बिल्डिंग देखने में खिलौना सी लगी। लेकिन 44 एकड़ जमीन पर बनी यह बिल्डिंग वास्तव में इजीनियरिंग का कमाल है। 

ओलंम्पिक स्थल के बिलकुल बीच में टाइटेनियम का एक झिलमिलाता अंडाकार गुम्बद दिख रहा था। इसे ‘द एग’ का नाम दिया गया था। हल्के ग्रे और हल्के नीले रंग के इस स्टेडियम को फ्रेंच आर्टींटेक्ट पाल एन्ड्रस ने तैयार किया है।

91,000 सीटों वाले मुख्य ओलंम्पिक स्टेडियम बर्डनेस्ट उलझे हुए स्टील के तारों का जाल था। इसका निर्माण स्विस हेरजांग एण्ड डी म्यूरान ’ कम्पनी ने किया है। बर्डनेस्ट से थोड़ी दूर पर वाटर क्यूब है। यह ओलंम्पिक तैराकी केन्द्र नीले रंग के पैनल से ढका है ये पैनल ऐसे लगते है जैसे पानी में बुलबुले उठ रहे हो। रात में इसकी छटा अनोखी नीली रोशनी में जगमग करने लगती है।


Saturday, 5 July 2025

cheen ke ve das din 11

दरवाजा के पार बड़ा-सा खुला स्थान था। इसमें गर्मियों में पानी भरा जाता था। जिससे महल ठंडा रहे  उसे पार करके काफी सीढ़ियाँ चढ़कर मुख्य महल था। यह थाई ह्त्येन या दीवाने आम कहा जाता है। महल के अहाते में बड़े-बडे़ नगाड़े रखे रहते थे जब सम्राट महल में प्रवेश करते थे तब उनचास बार आघात किये जाते और बाहर जाते तब 27 बार आघात किये जाते थे। सीढ़ियों के दोनों तरफ विशाल तांबे के बरतन रखे थे इनमें  पानी भरा जाता था। इसके बाद मुख्य महल आते हैं जो अलग-अलग रानी-महारानियों के आवास हैं। हर महल के द्वार के नाम भी अद्भुत हैं जैसे भूमध्य रेखादार। यह मुख्य प्रवेश द्वार है और 18 मीटर ऊँचा है। महल भिन्न-भिन्न शैली में बने थे तथा उनके नाम भी अलग थे। कहीं कलात्मक बेलबूटे बने थे तो कहीं लोक छाया का चित्रण था। छतें मेहराबदार व ढलान वाली गोल खपरैल की थीं। छतों पर रंग नारंगी व पीला था उस समय सम्राट के अलावा किसी को भी पीला रंग प्रयोग करना निषि( था।आम जनता के लिये हरा रंग था केवल वेनऐयू पुस्तकालय की छत काले रंग से रंगी है कहा जाता है काला रंग पानी का द्योतक है और आग बुझा सकता है। हर महल के बाहर संगमरमर के बरामदे फब्वारे बाग झरने आदि थे।निषि( नगरी के पाँच पुल कन्फ्यूशियस के पाँच सि(ान्त है मानवता, कर्मठता, बु(ि, विश्वास, उल्लास। मुख्य महल के सामने विशाल अहाता था यहाँ नववर्ष समारोह मनाया जाता था।चीनी नामों का अबर हम हिंदीकरएा करें तो  न जाने कैसे अर्थ बैठते हैं जो हमारी मानसिकता में फिट बैठते हैं । हॉं जो कुछ भी आन बान शान उा ामस की दिखाई दे रही थी उसको  कल्पना के साथ जोडऋ कर चले तो अपने कदम भी उसी प्रकार  उठने लगे । न जाने कितने वैभव शाली सम्राट यहाँ रहे और यही दफन होकर मिट्टी हो गये। निषिð नगरी के सिंहासन पर महल पर उनके राजसी पद चिन्हों के अलावा भी कुछ ऐसे पद चिन्ह पड़े थे जिन्होंने इस शहर के महल में उत्पात् मचाया,लूटपाट कर और सिंहासन पर बैठकर शाही तस्वीरें खिचवा कर शासकों से बदला लिया।ये थे 1900 में ईसाई विरोधी बक्सर विद्रोह केा दबाने के लिये गये ब्रिटिश सेना और ब्रिटिश सेना में भरती भारतीय सैनिक । 48 किलोमीटर लंबा विशाल नगर राजाओं की कब्रगाह बन कर रह गया। सौंदर्य कला, क्रूरता, उत्पीड़न का विरोधाभास समेटे नजर आता है।

उन्हीं का वंशज छिंग वंश का अंतिम सम्राट आर्यासन गैरा फू-ई अपना कुछ समय ही काट पाये बाकी समय कारावास में गुजारा था। इस सम्राट की कथा को लेकर ही सप्रसि( फिल्म ‘लास्ट एम्परर’ बनी थी। चीन की 1911 की क्रांति में डा. सुनयात सेन ने छिंग वंश का पतन किया और आयसिन गैरो फू-ई को कारावास में डाल दिया। अंतिम सम्राट फू ई की मृत्यु 1987 में बहुत गरीबी में हुई।

निषि( नगरी के द्वार पर एक विशाल पिशू बना था यह चीन का प्रमुख चिन्ह है।पिशू चार जानवरों के सम्मिश्रण से बना है इसका मुँह दस फिट चौड़ा डेªगन का है, धड़ घोड़े का और पैर शैर के ,पूँछ अजदहे की है। पेट विशाल होता है यह

खजाने का प्रतीक माना जाता है।विशाल कछुआ बड़ी उम्र का द्योतक है।

निषि( नगरी में ही एक महल को चंेगलिंग म्यूजियम का रूप दे दिया गया था। बीच में मिंग राजा विशाल सिंहासन

पर बैठे थे। सिंहासन के चारों ओर विभिन्न पक्षी, मोर, सारस आदि रखे थे हॉल के तीनों ओर शीशे में उस समय के राजा-महाराजाओं के रत्न, आभूषण, वस्त्र, मुद्राएंे, सोने, चाँदी, तांबे के पत्र, मुकुट आदि तथा सभी दैनिक उपयोग की वस्तुएँ रखी थी।म्यूजियम में पाँच हजार वर्ष पुराने मिट्टी के बर्तन, तीन हजार  वर्ष पुराने तांबे के बर्तन, पन्द्रह सौ वर्ष पुराने पालिश और चित्रकारी की गये चीनी मिट्टी के बर्तन थे। तेरह सौ वर्ष पुराने लकड़ी पर नक्काशी के चित्र थे। देखने मंे लग ही नहीं रहे थे कि ये लकड़ी के बने है पाटरी अधिकतर नीले रंग की या लाल रंग की महीन कारीगरी की थी।नषि( नगरी का यह हॉल ऑफ हारमनी सबसे ऊँचा हॉल है, यह विशिष्ट उत्सव में काम आता था सम्राट का जन्मदिन, ताजपोशी आदि।यह लकड़ी से निर्मित विश्व का सबसे बड़ा निर्माण है बाहर सूर्य घड़ी थी जो उस समय 2 बजा रही थी।

इस हॉल के पीछे एक कमरा था जो बंद था लेकिन उसमें रोशनी थी वहॉं दरारों में लोग ऑंख लगा रहे थे तो हम सब भी एक एक झिरी से झांकने लगे।दूसरा क्या देख रहा है यह उत्सुकता स्वाभाविक है और उस वजह से नया भी देख लिया जाता है । उस झिरी के पीछे सम्रट का शयन कक्ष था । विशाल लकड़ी का पलंग था उस पर लाल पीली जरी की चादर बिछी थी।पूरे कक्ष में पच्चीकारी हो रही थी पर अधिक दिख नहीं रही था ।यह कक्ष बंद ही रखा जाता है ।

निषि( नगरी में ही जिगशान गार्डन था। बगीचे का रास्ता छोटी-छोटी कलात्मक पटरियों से बना था। जिन पर तरह-तरह की कारीगरी थी।कहते हैं यह एक पत्थर से बना है। तरह-तरह के फल-फूल के वृक्ष थे। नक्काशीदार तेारण बने थे वहीं पर एक कृत्रिम पहाड़ी बनी थी पहाड़ी से झरना बह रहा था। वहाँ पर बैठने के लिए स्थान बना था नीचे गुफा थी उस पर दो शब्द लिखे थे ‘जिंग शान’। पहाड़ी पर लिखा था ‘हिल ऑफ एक्यूमुलेटेड एलीगेंस’।

दोनों तरफ सीढ़ियाँ थी आधे रास्ते पर गुफा थी। गुफा मेहराबदार तथा ड्रैगन के आकार में थी। आधे रास्ते से पहाड़ी पर तांबे का प्रयोग किया गया था,वहॉ तांबे से एक हॉद बनाया गया था।  उसमें पानी एकत्रित किया जाता था और यह पानी ड्रैगन के सिर से गिरता रहता था। यहाँ पर तीन महल थे। यहाँ का मुख्य वृक्ष स्कालर वृक्ष कहलाता था यह साइप्रस वृक्ष बहुत प्राचीन है उसे बचाने के लिये निरंतर प्रयास किये जा रहे हैं उसे तीन बड़े लोहे के पाइपों से बांध कर सहारा दिया गया है। यहाँ तो प्राचीन स्कॉलर वृक्ष को बांधा गया था। लेकिन रास्ते में मिले वृक्षों को सीधा रखने के लिए बांधा गया था। जिससे कि वे आगे-पीछे टेढ़े-मेढ़े न बढ़ें। सभी वृक्ष सीधे ही बढ़ रहे थे।

वहीं से हम आगे गये समर पैलेस के लिये। समर पैलेस छिंग डाइनेस्टी के समय निर्मित किया था। 1193 में सम्राट  ह्नांगच्यांग ने इस महल का निर्माण कराया इसका नाम चिन श्वेई यान अर्थात् सुनहरे पानी का बाग रखा लेकिन 

धीरे-धीरे नाम बदलकर ‘गार्डन ऑफ हारमनी’ हो गया। कन्प्यूशियस ने इसको ‘लॉंगेविटी ऑफ लाइफ ’ अर्थात् दीर्घजीवन बाग नाम दिया था इन में पश्चिमी हिस्सा यियान कहलाता था अर्थात् पुस्तकों का संग्रह ।1750 में सम्राट क्विऑन लॉंग के राज्य में पूर्व और पश्चिम दो भाग बनाये पूर्व को नाम दिया था, मैथेड कीपिंग रूम; पुस्तक लेखा कक्ष द्धऔर पश्चिम का नाम पुस्तक दीर्घा । सामने ही विशाल ड्रैगन पसरा हुआ था।ड्रैगन दीर्घायु का प्रतीक है फिनीक्स की मूर्तियॉं हैं ।फिनीक्स सुख सम्पत्ति का प्रतीक है। बड़े हॉल के दोनों ओर दोे पंख और पॉंच बांहें हैं । छिंग वंश के चौथे सम्राट ने इस बाग को बड़ा रूप दिया। सन् 1860 में अर्थात् यु( के समय ऐंग्लो ¦फ्रेंच  सैनिकों द्वारा यह बाग आग की भंेट चढ़ा दिया गया। इसका पुर्न निर्माण एम्प्रेस ने 1888 में मनोविनोद के लिये  किया लेकिन 1900 में एक बार फिर यह महल नष्ट हो गया था। साम्राज्ञी डाउजर ने तीन साल में इसका पुर्न निर्माण कराया। बार-बार मनोविनोद के लिये तैयार किये गये इस महल पर हुए खर्च को वसूला जनता से गया जिससे लोगों में विद्रोह की भावना घर करती गई ।10 अक्टूबर 1911 को सुनयात सेन के नेतृत्व में क्रांति हुई राजवंश का खात्मा हुआ।

समर पैलेस झील के किनारे है विशाल झील और उसके किनारे-किनारे बाग जिसमें तरह-तरह के वृक्ष, जड़ी-बूटियों के पौधे पुष्प आदि है समान चौड़ी सीढ़ियाँ कई भाग में थी उनके बीच की सीढ़ी से पहले झरने छोटे-छोटे पुल पार करने थे उसके बाद चौड़ी सीढ़ियाँ जो कई भागों में विभक्त थी बीच का रास्ता छोड़ कर दोनों इधर-उधर की सीढ़ियों पर क्रम से फूलों के छोटे-छोटे गमले सजे थे फूलों की जैसे चादर हो। लंबा लकड़ी का कारीडोर पार करके विशाल झील और मैदान एक विशाल बैल बैठी मुद्रा में था।बैल के लिये कहा जाता है वह बाढ़ को नियंत्रित करता है। लेक के पास ऐक लड़का ब्रश से दोनों हाथों से पट्टी पर चाइनीज लिख रहा था एक साथ दोनों हाथ तीव्र गति से चल रहे थे उसकी कला देख आश्चर्य हो रहा था यह भी नहीं कि एक से शब्द लिख रहा था यद्यपि हमारे लिये  चीनी लिपि चीलबिलाऊ बनाना ही थी लेकिन अलग अलग शब्द हैं यह तो समझ आ रहा था ।

 झीलके पास अनेकों छोटे-छोटे महल थे, शायद हर सम्राट के अपने समय के। चारों ओर कमरे बीच में अंागन ,हर मुख्य महल में और गैलरी में उस समय के सम्राट की यादगार वस्तुएँ रखी थी। पॉटरी, वस्त्र अन्य सजावटी सामान, खाने के बर्तन ताम्रपत्र आदि रखे थे। सब आलमारियों में सजे हुए थे। ।


Friday, 4 July 2025

cheen ke ve dus din 10

 चौक पार करके माओ त्से तुंग का स्मारक था विशाल लकड़ी का लाल रंग का द्वार था। उस पर बैंगनी और सुनहरे रंग से चित्रकारी थी । एक बड़ा बैनर उस स्मारक पर लगा था।उस पर लिखा था चेअरमैन माओ स्मृति हॉल’   उस पर माओ का चित्र था।माओ के चित्र के एक तरफ लिखा है ‘लांगलिव प्यूपिल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना’ और दूसरी तरफ लिखा है ‘लॉग लिव द ग्रेट यूनिटी ऑफ द वर्ल्डस प्यूपिल’ बड़े कक्ष के बीच में माओत्से तुंग की ममी संगमरमर के चबूतरे पर क्रिस्टल केस में रखी है। चारों ओर मोटी जंजीरों से जनता से दूरी बनाई हुई है।

इसका निर्माण माओ की मृत्यु ;दिसम्बर 1976द्ध के तुरंत बाद प्रारम्भ हो गया था। और 1 मई 1978 को इसे जनता के लिये खोल दिया गया। माओ का शव उनके चिरपिरचित वस्त्रों में था विशेष रसायन से चेहरे को जीवंत बनाया गया था लेकिन उस पर गुलाबी तैलीय आभा झलक रही थी। वहीं अन्य बड़े कक्षों में क्यू शाओ छी, चू , चाओ एन लाई और माओत्से तंुग की मूर्तिया लगी थी। दीवारों पर सूक्ति वाक्य लिखे थे जो हमारे लिये महज चित्रकारी थी।

एक विशाल हाल में समय-समय पर चीन द्वारा किये गये यु( उसके नायकों-शहीदों का इतिहास अंकित था तथा उसकी वीडिया क्लिपिंग लगातार चल रही थी।

यह स्थान निषि( नगरी ;फॉरबिडिन सिटीद्ध का ही दक्षिणी हिस्सा है यहाँ से निषि( नगरी के लिये जाने का मार्ग बंद कर दिया गया है। यह दरवाजा थ्येन आन मान गेट या शांति द्वार कहलाता है इस दरवाजे के ऊपर बनी छतरी पर ही से थ्येन आन मान चौक में एकत्रिक भीड़ को संबोधित कर लोकतांत्रिक चीन की घोषणा की गई थी।स्मृति हॉल के बाहर 5 पुल है बीच में बड़ा पुल सम्राट और साम्राज्ञी के लिये और छोटे पुल से सभी अधिकारी और मंत्रीगण के लिये, पुल से पहले द्वार पर दो विशाल शेर पहरा देते हुए हैं दो पुल के पास हैं। चाइनीज विश्वास करते हैं कि शेर बुरी आत्माओं से बचाता है।जिसे यह पता नगता यह पुल सम्राट साम्राज्ञी के लिये था तो उसी पुल से  पार जाना चाहा ,अब तो सब अपने राजा हैं अपने देश में होता तो उस पर  लिखा होता मंत्रियों के लिये केवल।

निषि( नगरी शहर का दिल है यह बीजिंग के केन्द्र में स्थित है इसे चाइनीज गू गौंग कहते हैं। क्योंकि कभी यह मिंग और ंिछंग वंश के सम्राटांे का निवास स्थान था।अब यह महलों का अजायबघर कहलाता है यह टिनामैन स्क्वायर के उत्तर में स्थित है यह विश्व का सबसे बड़ा महल समूह है। इसके चारों ओर छः मीटर गहरी खाई है और 10 मीटर ऊँचा परकोटा है इसमें 9,999 कमरे हैं। एक के बाद एक कई परकोटों से घिरे इन महलों में आम जनता का प्रवेश निषि( था। यह करीब सात लाख बीस हजार वर्गमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ था। इसके निर्माण में चौदह साल लगे थे। उससे पूर्व राजधानी नानचिंग थी इसके निर्माण के बाद राजधानी यहाँ बनी । 

तृतीय सम्राट युंग ले के समय इसका निर्माण सन् 1407 में प्रारम्भ हुआ। इसकी छतें टाइल्स की व फर्श संगमरमर के बने हैं।चारों कोनो पर चार मीनारें है। एक लाख कारीगरों, दस लाख मजदूरों के 14 वर्ष के अथक श्रम के बाद 1420 में इनका निर्माण पूरा हुआ।यांग वंश की पांचवी पीढ़ी का समय था। कहा जाता है पत्थर फैंगशान से लाया गया है हर पचास मीटर के बाद सड़क किनारे एक कुँआ खोदा गया था। जिससे सड़क पर वर्फ पर पानी डालकर उस पर पत्थर सरकाया जा सके। निषि( नगरी कारीगरी का अद्भुत नमूना है। इसकी बाहरी दीवाल नीचे 8.6 मीटर है और ऊपर 6.66 मीटर चौड़ी है। इसका तिरछा आकार चढ़ने वाले के लिये बेहद थकाने वाला है। इसकी ईंटे सफेद चूने और चावल के माड़ से बनी है। सीमेंट, चावल के माड़ और अंडे की सफेदी , इन अद्भुत सामानों ने दीवार को अभेद्य बना दिया।चारों कोनों पर चार मीनारें हैं ।  

इस महल में सर्वप्रथम मिंग सम्राट च्यांग चू ने सन् 1420 में रहना प्रारम्भ किया। इन महलों में 419 सालों तक एक के बाद एक कर चौबीस सम्राटों ने निवास किया।तब तक जब आखिरी सम्राट को भीतरी दरबार से खींच कर निकाला गया 


था।

इसके चारों ओर खाई बनी हुई है। इसके अंदर आठ सौ महल बने हैं और नौ हजार कमरे हैं। चारों ओर चार दरवाजे हैं। हर प्रवेश द्वार पर पीशू की बैठी मूर्तियाँ बनी हैं। चारों दरवाजों के नाम हैं।दरवाजों के ऊपर खूबसूरत बुर्जियाँ बनी हैं जिनसे शहर और महलों को देखा जा सकता है।

1. थ्येन आनमन ;दक्षिणी द्वार शान्ति द्वारद्ध

2. शान वूमन ;उत्तर द्वार स्वर्गदारद्ध

3. तुंग-हा-मन ;पूर्वी दरवाजाद्ध

4. शी हा मन ;पश्चिमी दरवाजाद्ध

तिरस्कृत महलों और बाग बगीचों का विशाल परिसर कभी शाही परिवार और उसकी सेवा करने वाले हिजड़ों के लिये आरक्षित क्षेत्र था नाम इसका फॉरबिडिन अवश्य है परन्तु यह आश्चर्यजनक रूप से देश की संस्कृति का चरमोत्कर्ष दिखाता लाोकप्रिय पर्यटन स्थल है इसका कारण इसकी भव्यता और सुंदरता है । इसकी कलात्मकता और शिल्प सौंदर्य अदभुत् है ।निषि( नगरी दो भाग में विभक्त है दक्षिणी हिस्सा जहाँ से सम्राट राज्य कार्य किया करते थे। भीतरी हिस्सा जहाँ वे रानियों के साथ रहा करते थे। यह हमेशा रहस्यों के घेरे में और खजाने से भरपूर था। 


Wednesday, 2 July 2025

cheen ke ve das din 9

 

डिनर के डिब्बे रास्ते में एक इंडियन होटल से पैक कराये थे हमें मिल गये पर खाना इतना अधिक था कि पूरा खाया नहीं गया। पूरे पूरे डिब्बे नीचे सरका दिये । नींद आंखो से कोसों दूर थी । मन कर राि था बाहर देखा जाये पर जैसा ए सी रेल गाड़ियों में होता है चीन भी अलग नहीं है महंगा टिकिट लेकर आदमी अपने को कोटर में बंद कर लेता है ।प्रातः 7.30 पर ट्रेन बीजिंग स्टेशन पर पहुँच गई। वहाँ हमारा स्वागत सैफरीना नामक लड़की ने किया आगे बीजिंग यात्रा की गाइड यही सैफरीना थी। 

रेलवे स्टेशन से बाहर आये। बाहर आते ही लगा जैसे फूलों की नगरी में आ गये हों।   सौंदर्य का अदभुत उदाहरण दिख रहा था। देखकर आश्चर्य लग रहा था। पूरा बीजिंग फूलों के गमलों से पटा पड़ा था। उनमें पानी देने की व्यवस्था हर सड़क पर थी सड़क के किनारे-किनारे पाइप जा रहे थे। बीच-बीच में नीचे ही नल थे वहाँ पाइप लगा कर गमलों में पानी पहुँचाया जा रहा था। मालियांे की डेªस पीले   रंग की थी उस पर बैंगनी पट्टी थी।सूखे पत्ते उठाने के लिये डंडे में खुलने वाला डिब्बा लगा था उसमें पंजे जैसे यंत्र से कूड़ा उठाते जाते थे। वे बराबर काम में लगे हुए थे।पूरा रास्ता कलात्मक ढंग से सजे हुए फूलों से पूर्ण था। जैसे फूलों की दुनिया में आ गये हैं। जो अनेक रूप लेकर सामने था।  कहीं भी पौधों में सूखा-मुरझाया फूल पत्ती नहीं दिख रहे थे। ये फूल छः इंच के छोटे-छोटे गमलों मेें थे पता नहीं एक माह बाद भी उनका वही रूप रहा होगा। इनकी दोनों ओर चादर सी बनाई गई थी बीच में डिवाइडर के दोनों तरफ पन्द्रह इंच के गमलों में बड़े संुदर फूल वाले पौधे लगाये गये थे।सड़क पर एक तरफ फूलों से संुदर चित्रकारी की गई थी। चित्रकारी से मतलब फूलों के छोटे-छोटे गमलों को सड़क के किनारे कलात्मक अलग-अलग आकृति से सजाये थे जैसे परी, झरना, थाल कमल, का फूल, गुलाब के फूल उनके आकार के सांचों में छोटे-छोटे गमलों को सैट किया गया था देखने पर लग ही नहीं रहा था कि छोटे गमले सैट कियेे गये हैं लग रहा था उसी ढंग से फूल उगाये गये हैं।इसके लिये चीन ने चार करोड़ पौधे आयातित किये थे, आयात करना अलग है उनका उपयोग दूसरी बात है। डिवाइडर के दोनों ओर पतले लोहे के पाइप लगे थे उनके द्वारा रबर पाइप लगाकर रात्रि में सड़कें धुलती हैं। फूलों की यह व्यवस्था हर जगह मिली चाहे स्वर्ण मंदिर हो या निषि( नगर या पूरा शहर। यहाँ तक कि सीढ़ियों को या शहर के किनारे को रंग बिरंगे फूलों से सजाकर भित्ति चित्र का सा आभास दिया गया था।

चीन में सौंदर्यबोध हर जगह दिखाई देता है यहाँ तक कि ट्रांसफारमर तक ऐसा लग रहा था कोई मीनार खड़ी है। अगर खाली दीवार है तो उस पर तैल चित्र बने हुए है। संभवतः आने वाले ओलम्पिक की तैयारी में बीजिंग दुल्हन सा सजा तैयार था।

होटल कम्युनिकेशन पहुँच कर वहाँ हम फ्रैश हुए  बीजिंग दर्शन के लिए फिर बस में सवार होकर निकल पड़े और थ्येन आन मान चौक पहुँचे। यह चौक बहुत बड़ा था। यहाँ पर सम्राट यु( में जाने के लिये तैयार सैनिकों को उत्साहित करने के लिये भाषण देते थे लेकिन अब वह सभा आदि के काम आता है। पूरा चौक छोटी-छोटी ग्लेज्ड टाइल्स से बना हुआ था। उसे जंजीरों से घेरा हुआ था कभी इसे लाल चौक के नाम से भी जाना जाता था।  चीन की लोक सभा भी वहीं थी। एक तरफ रिवोल्यूशनरी संग्रहालय बना था। इसकी दीवार पर लिखा था ‘ए मोर ओपन चाइना वेट्स टु थाउजैंड ओलम्पिक्स’ दीवारों पर हर तरफ किसी न किसी जानवर का चेहरा बना हुआ था। यहीं से 1 अक्टूबर 1949 को माओत्से तुंग ने चीन में लोकतंत्र की घोषणा की थी।यह करीब 50 हेक्टेयर जमीन में फैला हुआ है।जूते-चप्पल एक तरफ उतार कर वहाँ जा सकते थे। हजारों आदमी दिन भर वहाँ घूमता होगा लेकिन टाइल्स एक दम चमक रही थी।इसके सभी स्मारक और संग्रहालयों पर देशप्रेम झलकता है।साम्राज्य विरोधी संघर्षों का प्रभाव है ।1989 का संघर्ष स्कवायर में विशाल रैलियों के साथ पहुॅंचा और

नजदीकी सड़कों पर विद्यार्थियों और मजदूरों के जन संहार के साथ खत्म हुआ, ये युवा सरकार विरोधी संघर्ष कर रहे थे ।

थ्येन आन मन स्वर्गिक शांति द्वार, आवाम के चीन का प्रतीक, राष्ट्र का हृदय कहा जाता है, इसके चौक के इर्द-गिर्द चीन की संसद, चीन का संग्रहालय चीनी क्रांति का संग्रहालय है।पहले टिनहैन मैन केवल सम्राट के लिये था इस को स्वर्गिक शांति द्वार कहा जाता था टिनहैन मान तीन शब्दों का समूह है टिन हैवन ;स्वर्गद्ध हैन पीस ;शांतिद्ध मान गेट ;द्वारद्ध द गेट ऑफ हेवनली पीस।1987 में आम जनता इस चौक पर पैर रख पाई थी।

       ‘हम घेरते रहे घेरते रहे जब तक कि हमारे लोहे के जूते टूट नहीं गये और तब बिना देखे हमें वह मिल गया जिसे चाह रहे थे’                                                                                   वाटर मारीजन मिंग डायनेस्टी उपन्यास

वहीं पर ग्रेट हाल आफ चीन था यह थ्येन मान चौक या टिनहैनमान स्क्वायर के पश्चिम में है ग्रेट हॉल का निर्माण केवल दस माह में अक्टूबर 1958 और सितम्बर 1959 में हो गया था इस भवन का एरिया 171,800 स्क्वायर मीटर है अर्थात् निषि( नगरी से भी बड़ा यह विश्व का सबसे बड़ा हाल है और दस विशाल निर्माण में से एक है।चौक पर ही पर लांग मार्च 


के शहीदों का स्मारक मध्य में बना है। शहीद स्तम्भ 1 अगस्त 1952 को बनना प्रारम्भ हुआ और अप्रैल 1958 को तैयार हुआ इसमें 1700 ग्रेनाइट की टाइल लगी हैं। यह स्तम्भ सफेद संगमरमर से बना है। 3794 मीटर लंबा है 50.44 मीटर चौड़ी पूर्व से पश्चिम ओर 61.59 मीटर लंबी उत्तर से दक्षिण है यह चीन का सबसे ऊँचा मोनूमेंट है यहाँ पर शहीदों को सुबह-शाम गार्ड आफ आनर दिया जाता है।उस पर लिखा है चाउएन लाई उद्गार ,‘यह उन शहीदों की स्मृति में है जिन्होंने स्वतन्त्रता के लिये यु( में अपनी जान निछावर की।’

उसके दोनों ओर दो स्मारक स्तम्भ बने हैं। ये उन हजारों छात्रों ओैर नागरिकांे की स्मृति में बने हैं जिनकी हत्या 4 जून 1989 को थ्येन आन मान चौक में आंदोलन के दौरान हुई। 1966 में जो दमन का महादौर चला और महान सांस्कृतिक क्रांति में बदला उसकी परिणति थी आंदोलन।