जैसा कि हर देश में पर्यटकों के साथ होता है कुछ शापिंग स्थान बसों के निश्चित होते हैं वहाँ पर जाकर रुकते हैं लेकिन बस एक अन्य विशाल जैड शोरूम के अहाते में रुकी एक विशाल एम्पोरियम कहिये या पूरा मॉल आभूषण जैड मूर्ति पेंटिंग आदि का था। वहाँ जैड की कलाकृतियाँ बन रही थी। रत्नों की कटिंग आदि का काम व पेटिंग बनने का काम चल रहा था।जैड के बड़े छोटे पत्थर के टुकड़े ऐसे लग रहे थे मानो तरह तरह के हल्के रंगों की वर्फ की सिलें रखी हैं लाइन से मशीनों से कटिंग हो रही थी वहीं कलाकार मूर्तियों को आकार दे रहे थे अर्थात् वह कारखाना भी था और शोरूम भी था।जैड की वहाँ बड़ी बड़ी प्रतिमाएँ थीं दर्शनीय कलाकारी थी। एक चित्रकार पेन्टिंग बना रहा था बड़े बड़े कैनवास पर वहॉं की कला संस्कृति चित्रित थी ।प्रवेश द्वार के सामने ही जैड पत्थर से प्राकृतिक दृश्य बनाया हुआ था। चीनी कारीगरी का अद्भुत नमूना थे सब यद्यपि हम सब में एक भी व्यक्ति खरीदार नहीं था क्योंकि एक एक कलाकृति हजारों डालर की थी लेकिन कला देखने का भी अपना मूल्य होता है हमने अद्भुत देखा एक बार तो घुसने में उलझन लगी थी क्योंकि हम शापिंग आदि में समय खराब न कर पर्यटन स्थलों पर अधिक समय बिताना चाहते थे । जैसा कि महिलाओं की कमजोरी मानी जाती है भूख लगते हुए भी वहाँ पर आभूषण देखने में सबने बहुत समय लगाया कुछ ने अपनी जेब भी हल्की की।
अगला पड़ाव लंच का था । एक चाइनीज रैस्ट्रॉं डाउजिन में इस बार दोपहर का हमारा लंच था। रैस्ट्रां था तो बड़ा लेकिन गोलाकार मेज बहुत पास.पास लगी थीं। करीब.करीब सब मेजें घिरी थीं। एक किनारे से बीच में एक स्टेज बना था। सब मेज पर चीनी लोग ही थे। एक अजीब तीखी गंध से रैस्ट्रां भरा था किसी से भी गंध सहन नहीं हो रही थी। हमारे सामने जो खाना आया वह था नूडल उबली मूंगफलीए कटा प्याज सादा चावल आदि । पूरी मेज भर गई पर समझ में नहीं आ रहा था क्या खाए कि तृप्ति पाई जाये। वहाँ हरी पत्ती की चाय खाने से पूर्व पी जाती है। केतली में पतली कम से कम चार फुट लंबी नली पिचकारी जैसी होती है उससे छोटे.छोटे प्यालों में सूण्ण्ण्ण्करने की आवाज करते.भरते हैं। यद्यपि हलके रंग का सुगंधित पानी ही देखने में लगता है प्याले में तो लग रहा था एकदम गरम होगा लेकिन मुॅंह लगाया तो गुनगुना सा था। उसे पीकर थकान एकदम गायब हो जाती है ऊर्जा मिलती है।
वहीं स्टेज पर चीनी बालाओं ने वहाँ के पारम्परिक परिधान पहनकर लोकनृत्य व नाटक प्रस्तुत किया।काबुकी के समान पुरानी कथाएँए कविता में और गीतों में प्रस्तुत किये। खाने से भले ही मन नहीं भरा हो पर वहाँ असली चीनी संस्कृति से परिचय हुए। एक तरफ जारों में कई प्रकार के पदार्थ रखे थे उनके साथ ही सॉप छोटा अजगरए केंकड़ा आदि भी रखे थे। दीपक जी ने कई चीनी व्यंजनों के बनाने की विधि बताई एक प्लेट में झींगे रखे थे। सॉप के व्यंजन व झींगों के व्यजंन चीनी बहुत स्वाद से खाते हैं। हर देश की अपनी सभ्यता अपनी संस्कृति अपना खान.पान होता है वह उन्हें अच्छा लगता है किसी के खान.पान को देखकर हम यदि चेहरे पर अरूचिकर भाव लायंे इससे अच्छा है उधर देखे ही नहीं । हमारे पास की एक मेज पर एक व्यक्ति ने पहले वन के एक टुकड़े पर टमाटर रखा फिर कटा पत्तागोभी रखा फिर संभवतः मेढक ही था जिसकी खाल उतरी हुई थी क्योंकि बन से टांग लटकती देखी उस पर कुछ छिड़का दूसरे टुकड़ा वन का रखा उसके साथ ही मैंने आँख हटा ली। दूसरी मेज पर चीनी खाने की प्रसि; प्रक्रिया देखी दो स्टिक से एक.एक चावल तेजी से खा रहा था।
उसकी तर्ज पर अपने हाथ में स्टिक लेकर चावल खाने का प्रयत्न किया कोशिश में दस चावल तो मुँह में चले ही गये। रास्ते
े में दीपक जी ने हमें बंदर पकाने कीए बतख पकाने की प्रक्रिया बताई। संभवतः उनका वर्णन करना मेरे लिये आसान नहीं होगा ।
अगला लक्ष्य टिन हैन या थ्येन थान और अपनी भारतीय भाषा में कहे तो स्वर्ग मंदिर था। स्वर्ग मंदिर में चीनी सम्राट वर्ष में एक बार जाकर अच्छी फसल के लिये प्रार्थना किया करते थे। इस मंदिर का निर्माण मिंग वंश के शासकों ने 1419 ईस्वीं में किया था। सन् 1751 ईस्वी में भापू शासकों ने इसका पुर्न निर्माण कराया। 1889 ईण् में इसके एक भाग को फिर से मरम्मत कराई गई थ्येन चीनी भाषा में स्वर्ग के लिये प्रयुक्त होता है और थान मंदिर के लिए।
मंदिर के ऊपर चीनी भाषा में लिखा है ष्अच्छे वर्ष के लिये प्रार्थना करो।ष्
स्वर्ग मंदिर बीजिंग के दक्षिण की ओर जाने वाली सड़क युंग्टिंगमेग के पूर्व में स्थित है।टैम्पल ऑफ हैवन बीजिंग का एक सुप्रसि; मुख्य स्थल है यह एक तरह से बीजिंग की पहचान है वहाँ के पर्यटन स्थलों में इसे प्रमुख स्थान मिला हुआ है। यह करीब 200 हैक्टेयर में फैला है।
स्वर्ग मंदिर का मुख्य द्वार सांची स्तूप के द्वार से मिलता है। यह लाल रंग का बहुत बड़ा बना है। इधर.उधर दो उससे छोटे द्वार है। बीच के द्वार से राजपरिवार प्रवेश पाता था और इधर.उधर के दरवाजे से राज्य कर्मचारी प्रवेश पाते थे। अब आम जनता हर दरवाजे से प्रवेश कर सकती है। एक तरफ प्रवेश का टिकिट हाल बना था उसमें कई खिड़कियाँ बनी थी। विदेशी और स्थानीय के लिए अलग.अलग खिड़की थी। चीन में हर स्थान को देखने के लिये टिकिट लगता है। विदेशी और चीनी नागरिकों के लिये टिकिट का मूल्य अलग.अलग है अधिकतर पाँच युआन का टिकिट लगता रहा था। कहीं.कहीं अधिक भी लगता था। टिकिट लाने का काम हर स्थान पर अरस्तू प्रभाकर व ओशो ही करते रहे। यहाँ हर द्वार पर लोहे की बैरीकेटिंग कर दी गई थी। एक.एक कर प्रवेश दिया जा रहा था।
चारों ओर साइप्रस के वृक्षों से घिरे चार मुख्य हाल है जो एक दूसरे के सीध में बने है ओर दीवार के साथ.साथ एक दूसरे से मिले है। मंदिर के मुख्य भाग में आवाज चारों ओर से प्रतिध्वनित होती है।सब अपनी आवाज सुनने का प्रयास कर रहे थे ई आ ऊ का शोर मचा था स्वर्ग मंदिर के मुख्य स्तूप की दीवारों को थपथपाने पर उस में से भी आवाज आ रही थी
स्वर्ग मंदिर तीन हिस्सों में बंटा है उसमें प्रवेश के लिये लंबा गलियारा पार करना पड़ता है। इसका पहले भाग को ह्नान ह्यू कहते है दूसरे भाग को हान फंुग ही । वहीं एक चबूतरा बना है। उसे चारों ओर जंजीरों से घेरा है जिससे उस पर कोई पैर न रख सके। इस चबूतरे की चाओ चेन कहा जाता है। एक हाल में सम्राट के उपयोग की वस्तुएँ रखी हैं। बीच.बीच में
धूप जलाने के लिये विशाल आधार बने हैं। अंदर हाल में एक तिमंजला वेदी के चारों ओर नौ बड़े.बड़े घेरे बने थे।
मुख्य द्वार की छत गुंबद के आकार की है उस पर सोने की पच्चीकारी हो रही है। छत पर गहरे नीले रंग की टाइललगी है।बीच में एक ऊँचे चबूतरे पर एक विशाल सिंहासन रखा था। उसके चारों ओर पोर्सलीन की गायें बनी थी। वह स्थान भी जंजीरों से घिरा था। मंदिर के चारों ओर बहुत बड़े.बड़े बाग थे जिनमें तरह.तरह के वृक्ष लगे हुए थे बाहर की तरफ
एक पंक्ति से बहुत सी दुकानें थी यहाँ मुख्यतः पेटिंग का सामान मिल रहा था चित्र लेखा जी व सरोज जी ने पेटिंग का बहुत सामान खरीदा कुछ.कुछ हमने भी खरीदा। पैंसिलए बु्रश आदि बहुत अच्छे माने जाते हैं। तरह.तरह के हाथ के बने चित्र भी मिल रहे थे पास ही पेटिंग का कारखाना था।स्वर्ग मंदिर को देखकर चीनियों की स्थापत्य कला में निपुणता का लोहा मानना पड़ेगा। नक्षत्र विद्याए भौतिक शास्त्रए गणितीय विद्या और कला क्षेत्र में बहुत उन्नत थे।
स्वर्ग मंदिर के बाद बस फिर एक विशाल मॉल के बाहर रूकी। हम सभी उतरने के लिये मना करने लगे। सैफरीना से कहा भी हमें ऐसे स्थानों पर मत रुकाओ हम खरीदारी में समय खराब नहीं करना चाहते लेकिन फिर भी कुछ लोग उतर गये तो सबने उतरकर वह मॉल देखा।यद्यपि उलझन लग रही थी पर अंदर घुसते ही लगा वास्तव में देखने योग्य कलाकृतियॉं हैं । शो रूम के प्रवेश द्वार पर सामने ही जैड पत्थर से ही प्राकृतिक दृश्य बनाया हुआ था ।उसमें झरना भी था परी भी थी अलग अलग रंग के जैड पत्थरों को काटकर उन्हें वही रंग देकर वास्तविकता लाने का प्रयास किया था । ये कृतियॉं चीनी कलाकारी का अदभुत् नमूना थी आदमकद और उससे भी बड़ी बड़ी कलाकृतियॉं लगी हुई थी यद्यपि हम में से कोई भी खरीदार नहीं था क्योंकि हजारों डालर की एकएक कलाकृति थी लेकिन भारत के हिसाब से बहुत सस्ती थीं। कला देखने की तृप्ति का ऐहसास था । एक बार घुसने में उलझन तो लगी थी कि समय खराब हो रही है। पर्यटन स्थल तो देखने ही चाहिये लेकिन वह भी पर्यटन का एक अंग है वैसी कृतियॉं भारत में देखना असंभव है बड़ी प्रर्दशनियों में कभी कभी बड़ी कलाकृतियॉं आ जाती हैं पर उतनी बड़ी विशाल और सुंदर नहीं । लौटते में एक इंडियन रैस्टोरेंट में रुके वहाँ पर डिनर लिया और होटल पहुँच गये। प्रातः हमें जल्दी होटल छोड़ना था। डॉ॰ राजकुमारी शर्मा के पैरों में बहुत दर्द था। परंतु उनकी हिम्मत उनकी आत्मशक्ति देखकर बहुत अच्छा लग रहा था। रात में बार.बार उठकर दवाखाना व सिकाई का उनका क्रम चल रहा था। दिन में बराबर सबके साथ चल रही थी यद्यपि घुटनों में बहुत सूजन थी।