Friday, 1 August 2025

kailash mansarover yatra 17

 सागा में चीन का वर्चस्व है तिब्बती नहीं दिखाई दिये । होटल में भी सभी लड़कियॉं व पुरुष चीनी ही थे । बाजार में चीनी सामान की अनेक दुकानें सजी थीं  वहॉं पर  सामान में क्वालिटी से ज्यादा सुंदरता पर अधिक बल दिया जाता है हमें बताया गया उत्तम क्वालिटी का सामान भी उपलब्ध है पर बहुत मंहगा है  जो सस्ती होती है सुंदर होती है पर टिकाऊ नहीं होती । हर वस्तु की पैकिंग बहुत सुंदर थी । लड़कियों का पहनावा मुख्यतः पैन्ट ष्शर्ट कोट या स्कर्ट कोट ही दिखा । पुरुष भी कोट पैन्ट या स्वेटर और ढीले ढीले पाजामा में दिखे । होर्डिंग बैनर सभी पर केवल चीनी भाषा का  ही प्रयोग था कहीं कहीं  हिंदी लिखी देखकर आष्चर्य ही हुआ । रात्रि में कमरे में  तीन तीन लोगों की व्यवस्था थी हमारे कमरे का तीसरा  साथी  गाइड अवतार था पर वह रात में  वहीं बाहर ही सोता रहा । हमने कहा कि जिस कमरे में चुष हैं उस कमरे में चले जाओ या हम एक कमरे में महिलाऐं और एक कमरे में पुरुष सो जायेंगे ।

    प्रतिदिन की दिनचर्या के अनुसार प्रातः आठ बजे प्रयांग के लिये प्रस्थान करना था जल्दी जल्दी सब  समय से  तैयार थे । खाना बनाने वाले ष्शेरपा इतने मुस्तैद रहते थे कि आष्चर्य होता था। हर प्रदेष का खाना खिला रहे थे  छोटे छोटे उत्तपम, बड़ा सांभर अर्थात् दक्षिण भारतीय खाना तैयार था श्रीमती विजय लक्ष्मी गुप्ता एकदम प्रसन्न हो उठीं कि आज तो उनका मन पसंद खाना मिल रहा था । पूरे रास्ते ष्शेरपाओं ने इटैलियन पास्ता , उत्तर भारतीय पूड़ी बेड़वीं,राजस्थानी दाल वाटी, बिहार का लिट्टा चोखा आदि बनाया ।  पेय पदार्थ भी  सब प्रकार के रहते थे । सूप चाय कॉफी ,दूध बॉर्नविटा ष्शहद नीबू  आदि ।

         सागा से प्रयांग की दूरी 160 किलोमीटर तक है । अब कुछ उतरना था । प्रयांग 14750 फुट समुद्र तल से ऊॅंचाई पर स्थित है। प्रयांग का रास्ता भी  सूना है केवल कहीं कहीं चरागाह  दिख जाते हैं । प्रयांग में कहीं कहीं घोडे़ नजर आने लगे थे सड़क बन रही थी केवल दो तीन मजदूर दिखाई दिये वे निष्ठा से काम कर रहे थे ।  सागा से प्रयांग  के रास्ते में कई किलोमीटर तक हनुमान लेक चलती गई । इस लेक का जल देखने में सुनहरा लगता है कहा जाता है वहॉं के वासी हनुमान जी कभी कभी भक्तों को  अपनी उपस्थ्तिि का एहसास कराते हैं । हमसे पहले  आये ग्रुप के प्रमोद बाबू व ममता बंसल ने बताया था कि उन्होंने एक विषाल साये को  बराबर चलते और फिर झील में विलुप्त होते  देखा था  सुनकर एक  श्रध्दा का एहसास हुआ था परंतु हमें ऐसा कोई  अनुभव नहीं हुआ । जल बेहद शंात था । ढलते सूर्य ने  जैसे  उस पर स्वर्ण बिखरा दिया हो  । कहीं कहीं छोटे पक्षी तैरते नजर आये । लेक पूरे रास्ते हमारे साथ साथ चलती रही । इस रास्ते पर भी एक नदी  पार करनी पड़ी नदी  कुछ उफान पर थी तथा वेग भी तेज था ड्राइवर सभी इन परिस्थितियों के लिये तैयार थे  हमें रोमांच हो रहा था लग रहा था पानी गाड़ी में भर जायेगा मछलियॉं टकरा रही थीं । एक दो गाड़ियॉं जरा अटकीं पर सब निकल गई ।मनोहारी दृष्य था आगे चौडा़ रेतीला मैदान सब उतर कर  प्रकृति का आनंद लेने लगे ,ठंडे बहते पानी मेंपैर डालकर खड़ा होना नीचे से धरती सरकती महसूस होना,म नही नहीं कर रहा था वह स्थान छोड़ने का  लेकिन आगे की यात्रा जारी रखनी थी ‘ जल्दी करो के स्वर के साथ ही सब चढ़ कर चल दिये  


Thursday, 31 July 2025

kailash mansarover yatra 16

 अगला पड़ाव सागा था रास्ते में कहीं कहीं जरा देर के लिये  ऐसे स्थानों पर यात्रा दल रुकता था जहॉं पर तिब्बतियों की चार पॉंच  तम्बू नुमा दुकानें  होती थीं जिनमें  यात्रा के उपयोग की वस्तुऐं रहती थीं। वहॉं भी तिब्बती महिलाऐं सामान बेच रही थीं । तरह तरह के नमकीन बिस्कुट टॉफी मनके मालाऐं रजाई पिन आदि साथ ही कोल्ड ड्रिंक आदि भी  रख रखे थे । उन तिब्बती बालाओं का श्रंगार देखने योग्य था । कान में बालियॉं या  झुमके। कई कई  मनकों की मालाऐं। केषों मेंतरह के पिन सजावटी कंघी आदि लगी हुई थी । वहॉं तिब्बती परिधान भी दिख रहे थे ै कुछ यात्रियों ने फोटो खींचना चाहा तो  वे एकदम छिटक कर बोली ,फोटो नइं , फोटो खंचना है तो पैसे दो ,उन्होंने सौ युआन तक मांगे ।

     सागा के रास्ते में एक  विषाल झील हमारे साथ साथ थी । कई किलो मीटर लम्बी इसे  तिब्बती पिगुत्सी लेक कहते हैं बेहद सुंदर स्वच्छ जल । सागा 16800 फुट की ऊॅंचाई पर है । यहॉं पर आक्सीजन 66प्रतिषत है । कुछ लोगों को यहॉं पर सॉंस लेने में असुविधा होने लगी। मुबई की ज्योति रतनपॉल पेषे से वकील थीं अकेली आईं थीं । उम्र पेंतीस के आसपास थी अविवाहित थी ं उनको सॉस लेने में परेषानी होने लगी कुछ दवाऐं सबके पास थीं कुछ डाक्टरी दवाऐं यात्रादल के साथ चल रहीं थी । छोटे छोटे सिलेंडर सबके साथ थे ही लेकिन उन्हें बेहद ठंड लग रही थी सॉंस की भी षिकायत हो ही गई थी । उनके कार के सहयात्री और ष्शेरपा पेम्बा ने उनकी देखभाल का जिम्मा उठाया । आगे की यात्रा  कर पायेंगी कि नहीं  भाई को खबर की जाय तो उन्होंने सिरे से नकार दिया ‘नहीं भाई ने बहुत मना किया था अकेली मत जाओ अब यदि पता चलेगा कि मेरी तबियत खराब हो गई तो बहुत गुस्सा होगें, मैं ठीक हो जाउॅंगी चिंता मत करो ’।

           ष्शाम होते होते हम सागा पहुॅंच गये । सागा पहुॅंचकर ज्योति को कई वस्त्र ओढ़ाकर लेटा दिया गया। चिकित्सा अधिकारी ने उन्हें दवा देदी। चिकित्सक का कहना था उन्हें अस्पताल में भरती करा दिया जाये लेकिन उनके साथ किसी को रुकना पड़ सकता था अपनी यात्रा बीच में छोड़ने के लिये किससे कहा जाता फिर लौट कर आने तक दस दिन का समय  बहुत परेषानी वाला होता। निष्चय यह रहा, देख रेख होती रहेगी आगे की यात्रा जारी रहेगी । रात तक कुछ बेहतर महसूस करने लगी ।

         सागा का होटल बहुत अच्छा था । तीन मंजिल  वाले होटल में सभी सुविधाऐं उपलब्ध थीं  लिफ्ट नहीं थी और हमें तीसरी मंजिल ही ठहरने के लिये मिली थी । एक कमरे में तीन  लोगों का  ठहरने का इंतजाम था। कमरे में पहुॅंचकर सबसे पहले नहाने  का प्रबन्ध देखा , दो दिन से स्नान नहीं हुआ था सोचा कैसे भी नहाया जाये । होटल सभी सुख सुविधाओंसे पूर्ण था लेकिन चीन में पानी की बहुत कमी है । अभी तक की यात्रा जैसे धर्म स्थलों के स्थान होते हैं वैसी थी लेकिन सागा के पॉंच सितारा होटल ने उसे लक्जरी में पहुॅंचा दिया । हर कमरे में कॉफी के पाउच ,चाय के पैकेट व गर्म पानी

 रखा था ही  काफी पी गई । पता लगा पानी आठ बजे आयेगा और केवल दो घंटे के लिये आयेगा  और एक ही समय पानी आयेगा ।अर्थात् इस समय नहाना  और सुवह के लिये भरकर रखना इस समय नहाकर  भी सुवह नहाकर ही चलना  चाहते थे क्योंकि  पता था  आगे प्रयांग में और दारचेन में नहाने की सुविधा नहीं है ।

        होटल के पीछे सैन्य छावनी थी होटल के कमरे में निर्देष था उधर की  तरफ देखना या फोटो खींचना निशिध्द है ।   नित्य नई तकनीक  विकसित हो रही हैं । उस तरफ दीवार ष्शीषे की थीं  यदि किसी के मन में गलत हो तो वह आराम से फोटो  खींच सकता था । । लेकिन हमने निर्देष का पूरा पूरा पालन किया लेकिन यह तो मानवीय प्रकृति है जिस वस्तु का निषेध होता है उसके लिये उत्सुकता भी होती है जरा सा पर्दे के पीछे से ही झांक कर देखा  अवष्य कि क्या है  परन्तु ऐसा कुछ नहीं था वहॉं सैनिकों की ड्रिल हो रही थी हम हट गये हमें बस इतनी उत्सुकता थी । हर देष का सैनिक अपनी मातृष्भूमि का रक्षक है हमारी उनके प्रति पूरी पूरी श्रध्दा है हमें उनसे कुछ लेना देना था नहीं  पर हॅंसी अवष्य आई कि जिस होटल में देष विदेष का हर नागरिक रुकता है वह ऐसे स्थान पर क्या सोच कर बनाया है । संभवतः कोई अधिक  महत्वपूर्ण  छावनी नहीं होगी ।

      नहाने के लिये होटल वालों से  बाल्टी मग  का प्रबन्ध करने के लिये कहा । एक बाल्टी मिली । नहाकर मग ,पानी के गिलास यहॉं तक कि डस्टबिन तक पानी से भरकर रख लिया सोचकर कि  आधी आधी बाल्टी से नहा लेंगे डस्टबिन के पानी  को अन्य प्रयोग में ले आयेंगे गिलास खाली बोतलों के पानी को  ब्रष आदि  के उपयोग के लिये रख लिया । सिर रात्रि को ही धेा लिया । एक बार लगा रात्रि में इतनी ठंड में सिर धेाकर बीमार न पड़ जायें लेकिन एक तो गर्म पानी का लोभ क्योकि सुबह तो रात का भरा सीमित मात्रा में ठंडा पानी ही मिलना था ऊपर से ऊबड़ खाबड़ धूल भरे रास्ते में बहुत ही ऊंचा नीचा होता रहा था एकाएक बीस डिग्री तक का  फर्क आ जाता था । कभी ठंडी हवाऐं तो कभी असह्य गर्मी। धूल ही धूल की वजह से ष्शीषा जरा भी नहीं खोला जा पा रहा था और बंद गाड़ी में ऊनी कपड़ों के साथ बहुत गर्मी लगती थी । बार बार ऊनी कपड़े पहनना और  उतारना यही  नाटक चलता रहता था । मंकी कैप जरा भी नहीं उतारने दी जाती थी हम महिलाओं को तो  सुविधा थी हम ष्शॉल औढ़ और उतार लेते थे । वहॉं यात्रा में इसी प्रकार के वस्त्रों का चयन करना पड़ता है कि आसानी से उन्हें पहना या उतारा जा सके । पैरों में सूती और पतले मोजे पहने थे ज्यादा ठंड लगने पर उसी पर दूसरा मोजा  आसानी से चढ़ जाता था ।


Tuesday, 29 July 2025

Kailash mansarover yatra 15

 होटल पर सभी यात्री वापस आ चुके थे खाना भी तैयार था खाने में इटैनियन पास्ता आदि था  । खाने के बाद कुछ देर सबने अपनी थकान मिटाई । कुछ बाजार निकल गये और हॉल में मिलने का समय रखा गया सात बजे  जहॉं  आगे का कार्यक्रम के विषय में बताया जायेगा । 

     निलायम् प्राकृतिक रूप से  बहुत खूबसूरत है स्वयं होटल ऊॅचाई पर स्थित था । बादल जैसे हम से हाथ मिलाने को आतुर थे । सात बजे हम हॉंल में पहुॅंचे  । प्राचीन ष्शैली का बना लकड़ी का  हॉल । बड़ी बड़ी लकड़ी की मंजूषाऐं रखी थीं  वे मंजषाऐं जो राज धरानों में होती थी महीन पच्चीकारी का काम था । प्राचीन भारत की याद तरोताजा करतीं लकड़ी की आलमारियॉं । पुराना कालीन यद्यपि रंगत खो चुका था पर अपने वैभव  की कहानी कह रहा था कि कभी यह भी ईरानी सौदागर लाये होंगे और इन पर न जाने किन किन हस्तियों के पद चिन्ह पडे़ होगे । बेहद सुंदर चित्रकारी थी कालीन की पैरों ने उस सुंदरता को रौंदने से पहले  एक बार सराहा जरूर होगा । चारों ओर खस्ता हॉल सोफा था गद्दियों में गर्द इतनी जमा हो गई थी कि जम कर पथरीली हो गई थी । सवा सात तक आठ यात्री ही एकत्रित हुए गणपति वंदना के साथ भजन प्रारम्भ हुए अधिकांष भजन षिव पर आधारित थे । आठ बजे तक बीनू भाई  व अन्य कुछ लोग आ गये  दूसरे दिन सागा जाना था ।

     सागा  की यात्रा 230 किलो मीटर है और ऊॅचाई अठारह हजार फुट समुद्रतल से है । यह यात्रा का सबसे कठिन मार्ग है । सारा रास्ता बेहद ऊबड़ खाबड़ है कभी सीधी खड़ी चढ़ाई दसपन्द्रह फुट की है तो  फिर एकदम  गहरी उतराई । गाड़ी हिचकोले लेती बढ़ रही थी । जगह जगह छोटी छोटी नदियॉं । दूर दूर तक लगता इंसान या जीव नाम की कोई चीज ही यहॉं नहीं है किसी प्रकार के चिड़िया या जानवर भी नहीं दिखाई दिये हॉं कभी कभी याक और बकरियॉं दिख जाती थीं । याक बड़े बड़े झबरीले बालों वाला भैंस से कुछ छोटा जानवर है । पहाड़ दूर पर थे  लेकिन रास्ता पथरीला पहाड़ी था

 बीच बीच में छोटी छोटी नदियॉं थीं । एक स्थान पर  चौड़ी पहाड़ी नदी पार करनी थी उस समय नदी में पानी कुछ ज्यादा आ गया था एक  निष्चित स्थान से नदी पार कर रहे थे हमारा ड्राइवर एकदम  एक्सपर्ट था उसने एक बार में नदी पार करली पानी दरवाजे तक आ गया था । कुछ देर रुके  उस चंद्राकार नदी के कलकल नाद को  सुना देखते देखते नदी में कुछ पानी और बढ़ गया ।उफ बस कुछ क्षण ही थे नही ंतो नदी पार करना मुश्किल होता, नदी पूरी नवयौवना लगने लगी ।

       सारी यात्रा में  रसोई पकाने वाले शेरपा दोपहर का भोजन सुबह ही पका कर बड़े बड़े स्टील के कैसे रोल में भरकर चलते थे ।  खाने के लिये रुकते और घड़ घड़ करके  कैसरोल लेकर शेरपा पंक्तिबध्द बैठ जाते  कागज या थर्माकोल की प्लेटों में खाना देते जाते । जैसे जैसे ऊचाई पर जाते जा रहे थे  खाने से अरुचि होती जा रही थी । प्रातः ही सबके लिये दो दो बोतल गर्म पानी दे दिया जाता  सब अपनी अपनी बोतलें भरकर साथ रखते थे । ठोस आहार से अरुचि हो रही थी लेकिन पेय पदार्थ या फल बहुत अच्छे लग रहे थे । और कुछ मुॅह में चल ही नहीं पारहा था संभवतः प्रकृति ने इसीलिये पहाड़ों पर तीर्थों पर साधु संतों का भोजन अन्न के स्थान पर फल कंदमूल आदि रखा इसका यही कारण होगा । भोजन के साथ फल जूस आदि भी उपलब्ध कराये जाते थे । बीनू भाई कई बार यात्रा कर चुके थे और जानते थे यात्रियों के लिये क्या अच्छा है क्या बुरा इसलिये जोर देकर  खाना खिलाते थे  सबकी तष्तरियों पर नजर रखते थे  यात्रा पूरी 

करनी है तो खाना अवष्य है कैसे खाया जाये ,कुछ समझ नहीं आता था किसी प्रकार कुछ गस्से  सटके जाते थे ।

पहाड़ों से बहते झरने तो दिखते थे लेकिन हरियाली कहीं नजर नहीं आती थी। हरियाली के नाम पर कहीं कहीं जरा जरा सी गोलाकार वनस्पति उगी हुई थी एकदम कड़ी कड़ी सी इसकी वहॉं पर सब्जी बनाकर खाई जाती है उसमें गुलाबी या  बैंगनी रंग के छोटे छोटे  फूल खिले थे , इसे वहां पहाड़ी प्याज कह रहे थे । स्थानीय लोगों ने बताया वे  सूखने के बाद भी वैसे ही रहते हैं 


Monday, 28 July 2025

Kailash mansarover yatra 14

 दस बाई दस के कमरे में चार पलंग पड़े थे । चढ़ने के लिये भी पलंग पर चढ़कर दूसरे पलंग पर जाना पड़ता था । बाथरूम दो थे कॉमन थे कमरे में पहुॅंचते सामान जमाते  चार बज गये । एक ग्रुप इंदौर का ठहरा हुआ था हम लोगों का आगमन और उन लोगों का यात्रा प्रवास साथ साथ हुआ। इंदौर के सभी व्यक्ति एक दूसरे के परिचित थे । दैनिक क्रियाओं से निवृत होकर बिस्तर आदि बिछाकर लेटे ही थे कि भोर ने खिड़कियॉंे को थपथपाना प्रारम्भ कर दिया और साथ ही चाय गरम की आवाजें प्रारम्भ हो गई । टूर वालों का नियम था प्रातः छः बजे चाय आपके दरवाजे पर हाजिर होगी आपने आलस किया तो फिर ढॅंूढते रहिये चाय कहॉं है’ जल्दी जल्दी ब्रष करके चाय ली । नहाने का कोई स्थान नहीं था । पास पास  वॉषवेसिन लगे थे और दो ईट की दीवार की आड़ एक वाष वेसिन के पास थी वहीं आड़ में खड़े खडे दो मग बर्फीलापानी ष्शरीर पर डाला किसी प्रकार कपड़े बदले और कपड़ों को धोकर खिड़की से नीचे बाधॅंकर लटका दिया । अधिकांष ने स्नान नहीं किया ।

   निलायम् कैसा है देखने को मिला। कभी पास ही बादल दिखते तो कभी सूरज । दोनों आकाष में लुका छिपी का खेल खेल रहे थे । एक दूसरे को पकड़ने में बादल को कभी कभी पसीना आ जाता ,फिर खेलने लगते ।

    ग्यारह बजे ट्रैकिंग पर जाना था अभी तक सभी यात्री कह रहे थे परिक्रमा जरूर जायेंगे जिस में  स्वयं मैं भी थी । यह ट्रैकिंग हमारी परीक्षा थी कि हम परिक्रमा लगा पायेंगे या नहीं । नाष्ते में गर्म गर्म इडली पोहा आदि था । अभी तक खानापीना सहज था हमें विषेष हिदायत थी कि पेय पदार्थें का अधिक सेवन करें । बड़ी शान से स्कार्फ जूते  साथ में लैमनड्रप आदि जेब में डालकर ट्रैकिंग के लिये होटल के  पीछे के छोटे गेट से निकले ।

निलायम् में चीनी तिब्बती मिली जुली संस्कृति थी लेकिन सब स्थानों पर केवल चीनी भाषा में बोर्ड थे । जिस समय हम ट्रैकिंग पर सदल निकले हम शहर का नाम जानते थे कि हम निलायम् में हैं  लेकिन कहॉं ठहरे हैं यह ज्ञात नहीं था पीछे के छोटे गेट से निकले तो वहॉं नाम भी नहीं था। रात्रि में अंधेरे में  घुसे थे  बिजली की चमक में होटल के स्वरूप की झलक अवष्य देखी थी । 

  छोटी सी गली  के सहारे एक विषाल बौध्द मठ था मठ के बाहर लाइन से बड़े बड़े पीतल के मनी मंत्र लगे थे  उन्हें औरों की देखा देखी घुमाते हुए चल दिये ।मनीमंत्र  हलके से हिलाते ही गोल गोल घूमते थे । उनके अंदर ‘¬ मनि पदम् हुम् ’ कागज पर लिखकर डाला जाता है । यह हमारी संस्कृति के राम नाम बैंक जेैसा  ही है  कुछ सीढ़ियॉं चढ़े फिर कुछदूर सड़क और फिर चढ़ाई का स्थान एक किलो मीटर चढ़ते चढ़ते जैसे हौसले पस्त हो गये । सॉंस कितनी भी गहरी ली लेकिन दो कदम चढ़ते ही  हॉंफना ष्शुरू हो जाता । गोयल साहब का सहारा लेकर चढ़ने का प्रयास किया । हमें कहा गया था  कि यदि सॉंस फूले तो उल्टे होकर खड़े हो जॉंय पर मुझे उससे भी कोई फायदा नहीं हुआ । आधे रास्ते पर ही मैंने हिम्मत हार दी ।

‘नहीं चढ़ पाउंगी, आप चढ़कर वापस आ जाइये  ’ मुझे पकड़ कर चढ़ाने पर  गोयल साहब पर दुगना दबाव पड़ रहा था । मेरे जैसे यात्री दल के कई लोग एक एक कर बैठते जा रहे थे  पर कुछ आराम से चढ़ रहे थे  । मन कुछ उदास हो गया , अपने पर क्रोध था कि क्यो अपना षरीर इतना खराब कर लिया । जितनी भोले षंकर कृपा कर सकते थे करदी अब वे भी कहॉं तक सहायता करेंगे । वयोवृध्द व्यक्ति को  सबने रोक दिया कि  मत चढ़िये यहीं बैठिये । मन में एक डर सा समाया कहीं यात्रा अधूरी न रह जाय ।

बार बार सुन रहे थे पिछले साल एक महिला यात्री की  हार्ट अटैक से मृत्यु हो गई ।  पिछले ग्रुप में एक महिला यात्री की तबियत बिगड़ गई उसे इंदौर हैलीकॉप्टर से भेजा गया । एक यात्री दल में एक पुरुष यात्री की  हार्ट अटैक से तबियत गड़बड़ा गई उन्हें बचाया नहीं जा सका अंत में उनके बच्चों को आना पड़ा और वे लेकर गये ।

एकदम चिन्ता हो गई  कि अब क्या किया जाये आगे की यात्रा कैसे होगी अभी तो   हम ग्यारह हजार  चारसौ फिट की ऊॅचाई पर हैं  चढ़ना  अठारह हजार  तक की ऊॅचाई पर है । फिर सोचा  जो होगा देखा जायेगा अगर कुछ होगा तो मोक्ष मिल जायेगा  जिसकी सब कामना करते हैं । 

           गोयल साहब ने भी आगे ट्रैकिंग पर जाने से मना कर दिया । वे बोले ‘मैं तो चढ़ लूॅंगा पर बेकार  चलो  हम यहॉं निलायम् घूम लेते हैं  । हम उतर कर तो उसी रास्ते से आये  लेकिन एक मोड़ गलत मुड़ गये  और सीधे बाजार में पहंॅच गये । अब इधर उधर देखा कि होटल कैसे पहुॅंचे ? चारों ओर कोई भी भारतीय यात्री नहीं दिखा  न हमें होटल का नाम मालुम था एक दो से जानना चाहा कि  मान सरोवर यात्री कहॉं ठहरते हैं पर  भाषा  कोई समझ रहा नहीं था  मोबाइल तो किसी के पास था ही नहीं क्योकि चीन सीमा में घुसते ही  मोबाइल बंद हो जाते हैं  अलग कनैक्षन लेना पड़ता है पर पूर्वानुभवियों ने बताया था कि  कनैक्षन ले लो पर कुछ काम नहीं करता है । उससे अच्छा है वहीं  पीसीओ से बात कर ली जाय । रास्ता ढूंढते थकान होने लगी थी । बाजार में चीनी सामान भरा पड़ा था लेकिन छोटे छोटे रैंस्ट्रॅंा  ज्यादा थे  । 

इक्का दुक्का डेली नीडस की दुकानें थीं । नेपाल तिब्बत चीन में महिलाओं को अधिक सक्रिय देखा । दुकानों पर  अधिकतर महिलाएॅं ही बैठी थीं ।

अंदर ही अंदर अपने ऊपर खीझ होने लगी इतनी बड़ी नादानी कैसे  कर दी कि बिना जानकारी के कैसे  ऐसे चल दिये  वोभी अकेले  हम दो । कहीं बैठने की जगह नहीं थी  हिम्मत कर आगे बढ़ते गये  एक मोड़ कुछ पहचाना सा लगा उस पर निलायम् अंग्रेजी में लिखा था । एक मात्र वही बोर्ड अंग्रेजी में दिखा । यही तो अंधेरे में बिजली की चमक में दिखा था हम समझ रहे थे निलायम् स्थान का बोर्ड पर होटल का नाम  भी निलायम  ही है । एक दम पैरों में जान आ गई साथ ही यह षिक्षा  भी ली कि  दल से अलग न चले   कम से कम  ऐसे प्रदेष में और फिर  बिना जानकारी के  वह तो कभी नहीं 


Sunday, 27 July 2025

kailashmansarover yatra 13

 पतली सड़क एक तरफ पहाड़ जिनसे मोटी धार बहकर आ रही थी दूसरी तरफ नीचे से नदी की घोर गर्जना जैसे बहुत क्रोधित हो,कभी कइसके अलावा और कुछ नहीं । हम भी चुप थे । श्रीमती महेन्द्र कभी कभी झोंका ले लेती उनका सिर मेरे कंधे पर लुढकता फिर सीधी हो जातीं और इधर उधर देखने का प्रयास करतीं ।कभी किसी पक्षी या जानवर की चीत्कार सुनाई पड़ जाती। 

अभी प्रार्थना ठीक से पूरी भी नहीं हुई थी कि लगा विंड स्क्रीन पर पानी एकदम कम कम आ रहा है  नन्हीं नन्हीं फुुहारों के रूप में फिर वह भी एक दम बंद हो गया । यह कैसा चमत्कार इधर मन ने सोचा उधर पानी बंद ।‘अरे तब तो बाबा ने ही बुलाया है तब काहे की चिंता । सब रास्त्ेा सहज किये हैं तो यह भी अच्छी तरह कट जायेगा ’’ जैसे सारा भय छू मंतर हो गया।ऑंख अंधेरे को चीर कर देखने का प्रयास करने लगी । कभी कभी गाड़ी की छत पर एकदम पहाड़ का पानी गिरता और गाड़ी के चारों ओर झरना सा बन जाता या गाड़ी के प्रकाष में हरियाली चमक जाती ।

    करीब आधा रास्ता पार करने  पर गाडी  एक तरफ रुक गई । आगे भी गाड़ियॉं रुकी हुई थीं । क्यों रुकीं ? यह कैसे ज्ञात हो? ड्राइवर और गाड़ी में बैठा रहाष्शेरपा तुरंत उतर कर  अन्य ड्राइवरों से बात करने  लगे बस यह ज्ञात हुआ कुछ हो गया है ।

‘ हे षिव जी महाराज जो कुछ भी हुआ हो सब सकुषल हों ’ मन ही मन  हरपल  षिव जी याद आ रहे थे । इन्सान कितना स्वार्थी होता है यह उस समय के विचारों से ज्ञात हो सकता है एक तरफ सब सकुषल हों  सर्वहित भावना थी  पर साथ ही कहीं दबी दबी भावना यह थी कम से कम हमारे दल के किसी को कुछ न हो अर्न्तनिहित भावना हमारी यात्रा में विघ्न न पड़े ।षेरपा और ड्राइवर की भाषा मिली जुली तिब्बती हिन्दी थी और समझने में परेषानी नहीं थी । वे आपस में बात कर रहे थे  ‘कल यहीं तो हादसा हुआ था पर कुछ ही देर में चलो चलो का ष्शोर मच गया। एक गाड़ी जरा गरम हो गई थी  ठीक करली काफिला चल दिया। रात्रि दो बजे के आस पास हम निलायम् पहुॅंचे  गाड़ियॉं अंधेरे में खड़ी हो गईं बिजली थी नहीं  टार्च की रोषनीमें एक एक कर कमरे बुक होने लगे । सब कमरों को देख रहे थे अच्छे से अच्छा कमरा बुक कराने में लगे थे । हमारी यात्रा स्वतन्त्र थी हम चारों की बुकिंग नेपाल के प्रेमप्रकाष जी ने सीधे रिचा ट्रेवल्स से कराई थी इसलिये हमारे लिये आगे बढ़कर देखने वाला कोई था नहीं सबसे बाद में बचा हुआ कमरा पूरी यात्रा में हमारे हिस्से आता रहा इस पर कहीं कहीं बुराभी लगता रहा । घर से सोच कर चले थे अनजान प्रदेष में अनजान लोगों के बीच जा रहे हैं स्वयं परम पिता ने बुलाया है तो ध्यान भी वे ही रखेंगे । बदमजगी करके यात्रा  का मजा खराब और सहयात्रियों के साथ किसी प्रकार की असहजता महसूस नहीं करना चाहते थे । उस समय मन में षिव थे मॉं पार्वती थीं  तब ये सब बातें बहुत छोटी लग रही थीं । यात्रा का अपना आनंद होता है जहॉं विष्वास और श्रध्दा है वहॉं इन बातों की उपेक्षा करनी ही पड़ती है ।  


Saturday, 26 July 2025

kailash mansarover 12

 12दोनों ओर रास्ते में चीनी सामान  की दुकानें लगी थी विषेष रूप से कंबल बहुत थे ।       दूसरे चैकपोस्ट पर हम मूलचंद भाई का इंतजार करने लगे । यहॉं से हमें चार चार के ग्रुप में लैंडक्रूजर गाड़ियों से आगे की यात्रा प्रारम्भ करनी थी । उस समय हमारी घड़ियों में दो बजे थे और चाइना की घड़ियॉं चार बजा रही थीं हमने चीन की घड़ियों से समय मिलाया किसी प्रकार मूलचंद भाई को  लाया गया यहॉं  बीनू भाई और अवतार गाइड की 

 पुरानी पहचान और अनुभव काम आया । हमारे पासपोर्ट आदि एक बार फिर चैक हुए और चार चार  के दल को एक एक गाड़ी का नंबर दे दिया गया । लैंडक्रूजर गाड़ी पर्वतीय क्षेत्र के लिये  विषेषरूप से बनाई गई है यह चारों पहिये पर चलती है तथा इसमें ट्रक के पहिये लगे होते हैं । मैत्री पुल के बाद चैक पोस्ट से हमें बाहर निकाला गया वह स्थान झांग  मू था 

होटल पास ही था वहॉं पहुॅचने तक शाम के 6ः बज चुके थे । झांग मू यद्यपि तिब्बत का अंग है लेकिन तिब्बत अब चीन के अधीन है । वहॉं सरकार एवरेस्ट तक सड़क बना रही है । दिन में पहाड़ काटे जाते हैं इसलिये बम ब्लास्ट किये जाते हैं सड़क ऊबड़खाबड़ व संकरी  होने की वजह से एक तरफीय मार्ग चलता है। हमारा अगला पड़ाव निलायम् था जिसके लिये हमें वही मार्ग पार करना था हमें बारह बजे रात्रि यात्रा प्रारम्भ करनी थी  तबतक रुकने का हमारा प्रबंध तिमंजिला होटल में था वह भी ऊचाई पर था । तीन मंजिल की चढ़ाई बैग तो साथ था ही लगा यहीं पर्वत चढ़ रहे हैं । पर उत्साह तोथा ही मजे मजे से चढ़ गये । एक बड़ा सा हॉल उसमें कुछ पलंग पड़े थे एक एक पलंग पर दो दो जन  आराम करने लगे । चाय का मन कर रहा था पर समान के ट्रक ने अभी मैत्री पुल नहीं पार किया था उसे हरी झंडी नहीं मिली थी आता ही होगा उम्मीद पर दुनिया कायम है और खबर मिल गई कि आ गया आगया । फुर्ती से ट्रक के साथ आये ष्शेरपाओं ने चाय तैयार की ।

  जबतक चाय तैयार हो रही थी बीनू भाई ने आगे की यात्रा के विषय में बताना प्रारम्भ किया । अगला पड़ाव निलायम् था जहॉं रात्रि दो बजे के आस पास पहुॅंचना था । वैसे तो यात्रा बारह बजे प्ररम्भ होनी थी लेकिन दस बजे तक लाइन में लग जाना था क्योकि एक निष्चित समय के लिये यात्रा खुलती थी  सड़क अधिकारी निष्चित समय पर निष्चित मात्रा मेंगाड़ियॉं पार कराते हैं । सब यात्रियों का परिचय हुआ । अभी तक दो बसों में अलग अलग यात्रा की थी तथा कमरे भी अलग अलग थे । अलग अलग कमरे होने से व्यक्तिगत आराम और सुविधा तो रहती है लेकिन दल का सा एहसास नहीं हो पाता है ।

चाय के साथ जैसे  जोष आ गया और एक  के बाद एक भजन गाये जाने लगे । दूसरे दल की कुछ महिलाऐं भी अपने को रोक नहीं सकीं और अपनी किताबें लेकर आ गई और भजन गाने लगीं । दिल्ली की श्रीमती विजय लक्ष्मी गुप्ता  चेन्नई की थीं  उन्होंने  संस्कृत में षिव स्तुति प्रस्तुत कर मुग्ध कर दिया । एक भक्तिमयी संगीतमयी संध्या ने जैसे  रंग बिखरा दिये हों सुनने  लिये बादल भी  नीचे आकर कमरे में आने का प्रयास करने लगे । बादल एक दूसरे से टकरा गये रिमझिम वारिष ने जैसे  ताल देना  प्रारम्भ कर दिया । लगा  देव लोक में आ गये ।

तभी ष्शेरपा अपना बड़ा सा कैसरोल लेकर आ गये ‘ ‘ सूप ,सूप’ हम सब एक दूसरे का मुॅंह देखने लगे । इतनी जल्दी खाना अभी तो चाय पी है । बाहर बादल होने के बावजूद सूर्य का उजाला था । वहॉं आठ बीस का समय अवष्य था पर हमें छः का  सा ही समय लग रहा था । गर्म गर्म टमाटर का सूप मिला साथ ही खट खट  तीन कैसरोल और आ गये ,‘ आज तो खिचड़ी ही बन पाई है’ प्रमुख शेरपा बोला । लेकिन गरम गरम खिचड़ी पापड़ अचार उस समय बहुत अच्छे लगे ।साथ ही निर्देष मिला आगे की यात्रा के लिये तैयार हो जायें । घड़ी नौ बजा रही थी  आसमान लाल हो रहा था सूर्य को  विदा  भी दे रहे थे । अपना अपना बैग समेट सब गाड़ी के लिये उतर आये। हल्की हल्की वारिष हो रही थी गाड़ियॉं तो खड़ी थी  हाथ में नंबर  लेकर अपनी अपनी  गाड़ी ढूंढने लगे । गाड़ी तो मिल गई पर ड्राइवर नदारद था । एक बंद  दुकान के सामने बैठ गये  हमारी गाड़ी के सहयात्री  महेन्द्र भाईसाहब व शोभा भाभी थे ।

कुछ देर बाद सभी गाड़ियों के ड्राइवर दिखने लगे हमारी गाड़ी का ड्राइवर एक बाईस चौबीस साल का चीनी जवान था । संभवतः झांग मू की लड़कियों में बहुत लोकप्रिय क्योंकि दस बजे के आसपास  हमने यात्रा प्रारम्भ की झांग मू के बाजार से निकल कर पहाड़ी सड़क तक के रास्ते अनेकों लड़कियों से वह  हंसता बोलता गया । लगा बहुत हंसमुख लड़का है ।

परंतु उस स्थान से बाहर होते ही जैसे वह दूसरा व्यक्ति बन गया । चुप गुस्सैल बात बात में झल्लाने वाला । हम लोगों कोबता दिया गया था कि  चीनी अपने वतन के  खिलाफ या उसकी व्यवस्था के खिलाफ कोई बात नहीं सुन सकते हैं  वे बहुत वतन परस्त होते हैं उनसे किसी प्रकार से काम की बात के अलावा कोई भी बात करने की कोषिष न करें । यह न समझें कि ये हिन्दी या अंग्रेजी नहीं जानते  होंगे पर ये आपसे केवल चीनी में ही बात करेंगें । वे अपना कर्तव्य करेंगे पर आप किसी प्रकार की सहानुभूति की अपेक्षा न करें । गाड़ी में बैठते ही उसने चीनी  लोक धुनों की कैसेट चला दी और उस पर थिरकता सा गुनगुनाता चल दिया । वास्तव में धुनें बहुत  कर्णप्रिय थी । बहुत पूछने पर बताया कि फसल पकने पर खेतों में नाचते  हुए फसल काटत हुए गा रहे हैं । लेकिन वैसे  पूरी यात्रा में हम लोंगों के साथ उसने  एक भी ष्शब्द नहीं बोला उसकी भृ-कुटि हमेषा टेढ़ी ही रही यहॉं तक कि  यदि कोई दैनिक आवष्यकता हेतु भी गाड़ी रोकने के लिये  कहता तो झल्लाता । यह यात्रा के प्ररम्भ में ही  ज्ञात हो गया था ।

जहॉं से एक तरफा मार्ग पार करना था वहॉं  पैट्रोल भरवाने के लिये गाड़ी रोकी गोयल साहब ने लघुषंका जाने के लिये गाड़ी  से उतरना चाहा तो जोर से घुड़का परंतु गोयल साहब ने कहा मजबूरी है । वारिष झमाझम बरसने लगी थी आगे संकरा रास्ता था जोर देकर उतर कर हल्के हो आये  पर वह गुस्सा करता ही रहा ।  उधर मान सरोवर जाने वालों की गाड़ियॉं पंक्तिबध्द होने लगी बार बार ड्राइवर की ठेढ़ी भृकुटि देख रहे थे  अगर ऐसे यात्रा करनी पड़ी तो कैसे करेंगे अगर अपने यहां का ड्राइवर होता तो उसी समय छुट्टी हो जाती । लग रहा था बताओ एक ड्राइवर से भी डरना पड़ रहा है ,परंतु मजबूरी थी ,बहुत कुछ सुन रखा था ,यदि उक बार अंदर तो बाहर का सूरज तो क्या दोबारा सांस लेना भी भूल जाओगे ।। यह तो  बता ही दिया गया था कि पतला  संकरा पहाड़ी रास्ता है ऊपर से ऊबड़ खाबड़ । वारिष ने पूरा वेग पकड़ लिया था पराया देष जहॉ  पर जरा सी गलती की सजा केवल जेल है । चुपचाप रास्ता पार हो जाये  यही सोचकर चुप्पी लग गई । चीनी ड्राइवर संगीत के बहुत ष्शौकीन होते हैं  चीन में राजकपूर की फिल्मों के गाने बहुत पसंद किये जाते हैं हमसे  बताया गया था कि दो चार  राजकपूर की फिल्मों के  कैस्ेाट इन्हें भेंट कर देना  ये  खुष हो जायेंगे  लेकिन हमें याद नहीं रहा था

अब अंदर ही अंदर अफसोस हुआ। यह तो अच्छी तरह से पता चल गया था कि वह हिन्दी जानता है क्योंकि अन्य ष्शेरपाओं से वह  टूटी फूटी हिन्दी ही में बात कर रहा था। यात्रा में हमारे साथ नौ गाड़ी और दो ट्रक थे । हर गाड़ी में एक एक ष्शेरपा बैठता था और ट्रकों में रसोइया आदि ।  कुछ ष्शेरपाओं के नाम थे  पेम्बा , प्रेम , दादा कामी , नीमर , नेम्बा आदि । इनमें प्रेम बहुत अच्छा गाता था और बहुत हॅंसमुख था । बहुत ही कर्णप्रिय धुन में  पेम्बा ने एक  लोक गीत सुनाया

तेगू छे माटी पेगू छे  गुंदो

ते माथा आसा छे

तीमती रैसा आर के रोबड़ी

ते मते आसा से 

(; मानेस्टरी के पार गुम्फा, आपका पड़ोसी आपका प्रेमी हो जायेगा )

अभी तो प्रकृति का भयंकर रूप देखने को मिल रहा था । बाहर घोर अंधकार केवल दूर दूर तक गाड़ियों की रोषनी के बीच दिखती पहाड़ी झलक ,मिट्टी गाद से भरी सड़क एक तरफ से रिसती पहाड़ियॉ दूसरी तरफ से कभी नदी की घेार गर्जना तो कभी एकदम ष्शांति । पानी की आवाज से और गाड़ी की रोषनी  से लगता न जाने कितनी गहरी खाई है ।   

 गाड़ियॉं चल पड़ी लेकिन अनहोनी न हो इस आषंका के साथ । गाड़ी का ष्श्ीषा खोल नहीं सकते थे क्योंकि तेज बौछारें थी वैसे भी तीखी हवा चल रही थी । नीरवता मन में उतर चुकी थी लेकिन बाहर नटराज का नृत्य चल रहा था। स्वतः मन ही मन ओम नमः षिवाय का जाप चलने लगा । सभी सवारियॉं बीच बीच में नींद का झोंका ले लेतीं । वारिष ने भयंकर रूप ले लिया था गाड़ी पर पानी मोटी धार के रूप में पड़ रहा था । गाड़ी जरा भी रुकती तो आषंकित बाहर झांकने का प्रयास । अपने अपने ष्शॉल पैरों पर डाल लिये । मन ही मन भोले बाबा से प्रार्थना की ,‘ हे बाबा कुछ भी हो अपने दर्षन 

अवष्य देना ,मौसम ठीक करदो बाबा जिससे यात्रा का आनंद ले सकें ।


Friday, 25 July 2025

Kailash mansarover yatra 11

  पूरी यात्रा में गर्मागर्म  बिभिन्न सूप लोकप्रिय रहे क्योंकि जैसे जैसे  ऊॅंचाई पर चढ़ते गये  भोजन से अरुचि होती गई हॉं पीने के लिये  जो कुछ भी मिलता बहुत अच्छा लगता । सूप से ऊर्जा बनी रहती  । चौदह दिन की यात्रा में सबका वजन पॉच पॉच छः छः किलो घट गया । ऊपर चढ़कर ज्ञात हुआ कि बीनू भाई का यह कहना कि  पानी बहुत पीना है क्यों  आवष्यक था क्योंकि पानी ष्शरीर का संतुलन बनाये हुए था । पानी गरम पीना था हर समय गरम पानी का थर्मस साथ रहता । प्रातः यात्रा प्रारम्भ होते ही दो थर्मस और दो दो लीटर पानी की बोतल साथ रख लेते थे। नाष्ते के साथ ही बड़ी टंकी में एक व्यक्ति हर एक को पानी भर भर कर देता जाता था आगे जब बोतल का पानी ठंडा हो जाता तो उसमें गर्म पानी मिला लेते थे ।

 कोदारी तक की बस यात्रा में पॉंच घंटे लगे । बारह बजे तक हम कोदारी पहुॅंचे  । कोदारी तक का  सफर बेहद सुरम्य और सुंदर है। ऊचाई से गिरते झरने  गहराई में और एकदम समीप कूदती  दौड़ती खिलखिलाती कोषी नदी। जगह जगह छोटे छोटे मंदिर पिकनिक स्पॉट आदि बने हैं । नेपाल से कोदारी तक का पर्वतीय क्षेत्र हरे भरे वृक्षों से भरा है यहॉं धरती मॉं हरी ओढ़नी ओढ़ कर नृत्य सा करती प्रतीत होती है ।

   बस के रुकते ही पचासियों महिलाऐॅं बच्चे बस को घेरकर खड़े हो गये ‘हम हम’ अरे भाई किसलिये हम हम कर रहे हैंपता लगा मैत्री पुल के लिये करीब एक किलो मीटर पैदल चलना पड़ेगा । डफल बैग तो सामान के लिये चलने वाले ट्रक में जायेगा पर हैंडबैग साथ रखना होगा हमारे पास दो हैंडबैग एक एक छोटा बैग पानी का थर्मस बोतल आदि सामान था ऐसा ही करीब करीब सबके पास था । एक किषोर झट से  मेरे पास आकर मेरा सामान थाम कर खड़ा हो गया मैडमजी आप नहीं चल पायेंगी मैडम जी इसे लेकर नहीं चल पायेंगी । 

      चारो ओर रुपये को युआन में बदलने के लिये दलाल खड़े थे लेकिन हमें अगाह कर दिया गया था रजिस्टर्ड व्यक्ति से ही बदला कराया जाये जिससे वापस करने में आसानी हो और नकली नोटों के चक्कर से बच जायेंगे । एक युआन पॉंच  रुपयों के बराबर था ।

      आधा किलोमीटर पर हमारे लिये होटल में कच्ची रसोई की व्यवस्था थी होटल यात्रियों से भरा हुआ था। एक हमारे आगे जाने वाला दल और दो  लौट कर आने वाले दल सभी को जल्दी। एक तरह से लपक लपक कर ही खाना खाया । खाना खाने के बाद आगे की यात्रा प्रारम्भ हुई अब हमें चीन की सीमा में प्रवेष करना था इसके लिये मैत्री पुल पार करना था नाम मैत्री पुल अवष्य था पर प्रवेष के समय एक असहजता का भाव था । मैत्री पुल से पहले जब हम बीजा की लाइन में अपने अपने नंबर  पासपोर्ट पहचान पत्र लेकर खड़े थे हमें विषेष रूप से निर्देष दिया गया था कि कोई भी मैत्री पुल की फोटो न खींचे । हमें बताया गया था कि पूर्व में चंडीगढ़ के किसी डाक्टर ने मैत्री पुल की फोटो खींच ली थी उन्हें तुरंत गिरफ्तार कर लिया गया था उन्हें यात्रा तो स्थगित करनी ही पड़ी  छुटकारा भी बहुत मुष्किल से मिला था ।

            चैकपोस्ट पर सपाट और सख्त चेहरे वाले कहीं जरा सा भी मुस्कान न आ जाय ऐसे कई व्यक्ति खड़े थे । एक पासपोर्ट चैक कर रहा था एक ने माथे पर पिस्टल सी लगाकर क्लिक किया और आगे बढ़ा दिया ज्ञात हुआ वह तापमान नापने का लेजर यंत्र था कहीं बुखार आदि तो नहीं है विषेश हिदायत थी कोई बीमार व्यक्ति नहीं जा पायेगा ।

     हमारे साथ अहमदाबाद के मूलचंद भाई को रात में हल्का सा  बुखार आ गया था यद्यपि गुजराती भाई कह रहे थे कि जिन्दगी में आजतक उन्हें बुखार नहीं आया पर पता नहीं उस रात कैसे हरारत हो गई थी । उन्हें रोक लिया गया । उन्हें लाने के प्रयास बीनू भाई कर रहे थे तबतक हमें अगले चैक पोस्ट की ओर बढ़ने के लिये कहा गया। 11


Thursday, 24 July 2025

KailashMansarover 10

 10वहॉं से हम बूढ़ा नीलकंठ गये । यहॉं पर भी बस करीब आधाकिलो मीटर पहले ही रोक दी गई दोनों ओर बाजार के बीच होकर एक खुले स्थान पर  बने ऊॅंचे चबूतरे पर पहुॅचे। बीच में चौकोर कुॅड बनाथा उसमें ष्शेषषायी विष्णु की विषाल प्रतिमा लेटी थी। इस प्रतिमा को छः माह षिव का रूप दिया जाता है और छः माह विष्णु का रूप दिया जाता है प्रतिमा तक पहुॅंचने के लिये तलाव में छोटा सा रास्ता बना दिया गया है जिससे श्रध्दालु चरण स्पर्ष कर पाता है ।विषाल  होते हुए भी यह प्रतिमा पानी पर तैरती रहती है । उसे रस्से से किनारे की तरफ बांधा हुआ है जैसे नाव का लंगर बना देते हैं ।

उस दिन बस इन दो ही स्थानों के दर्षन कर  पाये । दो बजे हम  होटल पहुॅंचे और दोपहर का भोजन किया । भोजन बुफे के रूप में लगा था उसमें सूप जूस तीन सब्जियॉं रोटी नॉन पूरी कढ़ी चावल आदि सब था ।

          ष्शाम के चार बजे कैलाष मानसरोवर यात्रा के विषय में हमें सविस्तार समझाया जाना था कि हमें क्या क्या औरकिसप्रकार से करना है जिससे हम उस वातावरण को बिना किसी बाधा के पार कर सके कौन कौन सी आवष्यक वस्तुएॅंहैं जो हमें साथ रखनी हैं चार बजे ठीक हम हॉल में पहुॅंच गये यह पूर्व राजा का दरबार हॉल था । रिचा ट्रेवल्स के प्रतिनिधि के रूप में तीन चार व्यक्ति उपस्थित थे । लाबी में मिले तिलकधारी अहमदाबाद से आये थे उनका उन्होंने अपना परिचय बीनू भाई पटेल नाम से दिया । अहमदाबाद से अपने साथ सोलह यात्रियों का दल लेकर आये थे अन्य अठारह व्यक्ति अन्य प्रदेषों  से थे । उत्तर प्रदेष से हम चार  थे , दिल्ली से श्रीमती विजयलक्ष्मी एवम् कु.उमा,अंकलेष्वर से  श्री सुरेष नाहर व कमला नाहर श्री नाथू भाई डोरेक श्रीमती कमला बेन डोरिक आये थे । कु0सुधामुंषी श्री मूलचंद सबला दम्पति,कु0ज्योति रतनपाल मुबई से आये थे कु0ज्योति व कु. सुधा मुंषी अकेली ही आई थीं । श्री विनोद, श्रीमती ष्शकुन्तला पटेल श्रीमती रमा जडेजा ये तीनों अमेरिका से आये थे । । अमेरिका से ही श्री बर्मन अकेले आये थे वे अपने  बड़े भाई की पुत्री के विवाह में अमेरिका से आये थे उन्होंने इस प्रकार कार्यक्रम बनाया था कि वे  मानसरोवर व चारधाम की यात्रा 

कर सकें। अमेरिका में रह कर देवस्थलों के प्रति श्रध्दा देखकर अपनी भारतीयता पर गर्व होता है । भारतीय संस्कृति की जड़ें कितनी गहरी हैं यह इन लोगों को देखकर लग रहा था ।

‘ आप अकेले कैसे यात्रा कर रहे हैं ,धर्मपत्नी साथ नहीं आईं ’ बर्मन साहब कोई बहुत बुजुर्ग नहीं  हॉं प्रौढ़ता की ओर अग्रसर अवष्य थे ।

‘मेरी पल्नी को तीर्थ वीर्थ में अधिक विष्वास नहीं है । पर मैं भारत का कोना कोना झांकना चाहता हॅूं ’ उनके हृदय में भारत बसा था ।

             दुबई से युवा दम्पत्ति श्री निवासन व दिव्या आये थे । वे संतान की कामना से षिव के दरबार में आये थे । इन सबसे ऊपर मुंबई के ही  82 वर्षीय बुजुर्ग अकेले आये थे । सबसे अधिक उत्साहित वे ही थे  वे एक बार पहले भी मानसरोवर की यात्रा कर आये थे । उन्हें देखकर विष्वास हो गया कि हम यात्रा कर सकेंगे । इस प्रकार हमारा अपने सहयोगियों से  परिचय हुआ ।

   बीनू भाई व अवतार गाइड हमारे मार्गदर्षक थे । बीनू भाई कई बार यात्री दल लेकर मान सरोवर यात्रा पर जा चुके थे ।

बीनू भाई बुजुर्ग  थे लेकिन योग आदि से अपनी कदकाठी मजबूत बनाये हुए थे । अवतार की उम्र अधिक नहीं थी  बीस बाइस वर्ष का युवक होगा उसे देखकर नहीं लगता था कि वह इतने बड़े दल को ले जा सकने में सक्षम होगा ।

रिचा ट्रेवल्स के  प्रतिनिधि,बीनू भाई व अवतार गाइड तीनों ने एक एक बार यात्रा का विवरण प्रस्तुत किया । हमें किस किस वस्तु की आवष्यकता पडेगी क्या क्या तकलीफ हो सकती है यह बताया । दिल का मरीज, सॉस का मरीज , गठिया ,उच्च रक्तचाप आदि के मरीजों के लिये यह यात्रा नहीं है । विषेष रूप से पेट सम्बघी रोग परेषान करते हैं । वह तो हर पर्वतीय क्षेत्र की यात्रा में ध्यान रखा जाता है । वहॉं पर पानी भारी होता है इसलिये पानी पर विषेष ध्यान दिया जाता है ।

       चोट बुखार आदि की दवाऐं साथ रखनी होती हैं । क्रेप बैन्डेज आदि भी रखनी होती हैं ऊचा नीचा पहाड़ी रास्ता पैर रास्ता भटक सकता है ।

     इनके अलावा कुछ दैनंदिन आवष्यक वस्तुऐं तो रहती हैं टार्च ,छतरी इनर आदि । सामान कम से कम  हो वही अच्छा रहता है। सब वस्तुओं के छोटे पैक रहते हैं तो अच्छा रहता है । यद्यपि खाने पीने का सभी सामान समय समय पर उपलब्ध रहेगा  पर अपनी आवष्यकतानुसार छोटे छोटे पैक नमकीन आदि के रखलेना अच्छा रहता है । कभी क्भी खाना खाने के समय खाना नहीं खा पाते हैं तब अपने पास रहना अच्छा रहता है । निराहार नहीं रहना है खाना अवष्य है  । ज्यों ज्यों ऊपर चढते जायेंगे भूख खत्म होती जायेगी , लेकिन कैसे भी खाना अवष्य है । पानी भी अधिक से अधिक पीना है पानी ही आपको जीवन प्रदान करेगा। इसी प्रकार की छोटी छोटी लेकिन जीवनदायिनी बातों से अवगत कराया। साथ ही डफल बैग , स्लीपिंग बैग व जैकेट प्रदान की गई ।आवष्यक  सामान जो  आगे की यात्रा में साथ ले जाना था वह डफल बैग में डाल कर और जो सामान अबतक काम में ले लिया था या आकर काम में लेना था एक बैग में डालकर होटल के क्लॉक रूम में रख दिया । सनस्क्रीन लोषन हमारे पास नहीं था वहॉं तेज धूप और तीखी हवाओं से  बचाव के लिये 40 प्रतिषत वाला सनस्क्रीन लोषन चाहिये था हाथ के ग्लब्स आदि भी चाहिये थे हम वहॉं का सुप्रसिध्द बाजार विषाल गये हमें ज्ञात हुआ मान सरोवर जल लाने के लिये प्लास्टिक केन भी यहीं से ले जानी पड़ेगी वहॉं नहीं मिलेगी सारा बाजार ,सारी प्लास्टिक की दुकानें देखलीं पर पॉंच लीटर की केन कहीं नहीं दिखी एक दुकान पर बहुत मुष्किल से दो कट्टी मिलीं 80 रु0 की एक । जिन केन को  आगरा में यूॅं ही देदेते हैं उन्हें 80 रु. में खरीदने में बहुत बुरा लगा पर मजबूरी थी ।प्रातः सात बजे  हम 35 यात्री दो बसों में कैलाष मानसरोवर की यात्रा के लिये रवाना हुए । 

      जैसे ही बस ने एक कदम बढ़ाया समवेत् स्वर में भोले बाबा की जय का नारा गॅूंज उठा षिव के न जाने कितने जय कारे हैं  कितने स्वरूप कितने नाम पर उस समय कैसी मनःस्थिति थी कि केवल भोले बाबा की जय का जयकारा ही गॅूंजा जैसे सब प्रदेष और 

संस्कार एक हो गये हों । एक स्वर एक उद्विग्नता,एक श्रध्दा एक विष्वास। उसके बाद दूसरा नाम आया ‘उमापतिमहादेव की जय ’ यद्यपि होटल से हल्का फुल्का नाष्ता लेकर निकले थे लेकिन लोगों के अपने अपने डिब्बे खुलने लगे। अंकलेष्वर के सुरेष भाई,कमलाबेन ने गुजरात के प्रसिध्द थेपले खिलाये । पूरी यात्रा मे हमने हर प्रदेष के व्यंजनों का स्वाद लिया,साथ ही रीति रिवाजों से परिचित हुए । हमारी यात्रा के प्रबंधतंत्र ने हमारे हर प्रकार के भोजन की व्यवस्था बनाई थी 10


Wednesday, 23 July 2025

kailash Mansarover yatra 9

 cl i’kqifrukFk ls djhc vk/kkfdyksehVj nwj #dhA ogkWa cgqr lh nqdkusa #nzk{k]LQfVd ekyk f’kofyax vkfn dh FkhaA i’kqifr eafnj ekxZ  je.kh; Fkk nksuksa rjQ  Qy Qwy  vkfn ds  o`{k Fks  iwjs ekxZ ij nksuksa vksj usikyh  fL=;kWa estksa ij iwtk lkfexzh o  #nzk{k ekyk,sa vkfn fy;s  csp jgh Fkh a pIiysa  izkjEHk esa gh mrkj dj gh izos’k fy;k tkrk gS A

 i’kqifrukFk eafnj ifjlj esa NksVs NksVs eafnj gj nsoh nsork dk cuk gS f’ko ds vU; /kkeksa ds  Hkh eafnj gSa Aeq[; eafnj esa i’kqifr ukFk  Hkxoku~ f’ko dh v"V ewfrZ;ksa esa ;teku ewfrZ ds izrhd gSa A;gkWa i’kqifr ukFk fyax :i esa ugha efg"kh foxzg ds :i esa fojkteku gSaa Aefg"k :i /kkjh f’ko dk ;g f’kjksHkko gS lkeus uanh dh fo’kky izfrek gS eafnj ckS/n ‘'kSyh esa cuk gSA i’kqifrukFk eafnj  esa }kj pkjksa fn’kkvksa esa [kqyrs gSa pkjksa

fn’kkvksa ij pkj iqtkjh  fu;qDr gSa AewfrZ ikWp eq[kh gSA i’kqifrukFk ds bl :i esa lw;Z panzek o vfXu rhuksa dks LFkku feyk gS A f’kofyax ds pkjksa vksj pkWnh dk taxyk gS gj }kj ls f’ko ds fofHkUu Lo:iksa ds n’kZu fd;s tk ldrs gSa A iwtk dbZ izdkj dh gksrh gS ]#nzk{k iwtk Hkksx iwtk n’kZu vkfnA eafnjksa esa c<+rh HkhM+ ns[kdj ,slk yxrk gS euq"ds

vanj vlqj{kk dh Hkkouk fdruh c<+xbZ gS fd gj O;fDr bZ’oj dh iukg esa Hkkxk vkrk gS A csgn HkhM+ pkjksa }kj ij iafDRkc/n [kM+s yksx A ,d }kj ij HkhM+ de fn[kh A gels j{kd us iwNk n’kZu ;k iwtkA geus lkspk iwtk esa nsj yxrh gS n’kZu tYnh gks tk;saxs mldh iafDr tYnh pysxhA j{kd us chp esa [kM+h HkhM+ dh vksj gesa  [kM+k fd;k vkSj gVk fn;k]

ge dqN le> gh ugha ik;s D;ksafd  lkeus bruh HkhM+ Fkh  f’kofyax dgkWa gS fn[kkbZ gh ugha fn;k Fkk]^vjs vHkh rks vius lkeus [kM+s yacs O;fDr ds cky gh ns[ks gSa i’kqifr ukFk ds n’kZu rks gq, gh ugha  ;g D;k ckr jgh \*

^cl ,sls gh gksrs gSa gVks gVks *i’kqifr ukFk ls i’kqvksa ds jsoM+ dh rjg gesa gkWad fn;k x;kA eu gh eu cgqr Øks/k vk;k ij dqN dj Hkh ugha ik jgs Fks A nks ?kaVs dk le; fn;k x;k Fkk cl ij okil igqWapus dk ]vk/kk ls T;knk ?kaVk blh iz;kl esa xqtj x;k vHkh iwjk  ifjlj iM+k Fkk A nwljs }kj ls n’kZu ds fy;s  ?kqls ogkWa ij Hkh ;gh lc A rc  vU; n’kZukfFk;ksa ds gkFk esa nl nl chl chl #i;s ns[ks os iwtk dh iafDr esa Fks  ]rc fnekx esa cYc tyk vkSj gkFk esa ipkl #i;s dk uksV ysdj iwtk dh iafDr esa yx x;s djhc iUnzg O;fDr;ksa ds ckn ge Hkh  }kj rd igqWp x;s A gels igys okys  O;fDr us <kblkS #i;s nsdj Hkksx iwtk djokbZ Fkh A Hkksx iwtk esa dkQh le; yxk Fkky esa dbZ dVksfj;k Fkha ftlesa fofHkUu [kk| inkFkZ Fks [khj  ngh  ehBs pkoy vkfn iqtkjh us gj dVksjh ds O;atu dk  Hkxoku~ dks Hkksx yxk;k rFkk ea=ksPpkj.k ds lkFk ti vkfn fd;k mUgsa i’kqifrukFk dk nqIiêk vkSj #nzk{k dh ekyk  nh A rc rd cgqr vkjke ls ge cxy esa [kM+s ml egkizHkq ds n’kZuksa dk ykHk izkIr djrs jgs A 51 #i;s esa #nzk{k iwtk gksrhgS A gesa 51 #nzk{k dh ekyk  i’kqifrukFk dks iguk dj nh ,oe~ izlkn fn;k A  yxkrkj pkjks iqtkjh e’khu dh rjg iwtk djk jgs Fks  A ge djhc nks ?kaVs eafnj ifjlj esa jgs ogkWa ds vU; eafnjksa ds n’kZu djrs jgs ijUrq eq[; eafnj dh fLFkfr yxkrkj ,slh gh jgh vFkkZr~ fujarj n’kZukFkhZ py jgs Fks A

;gkWa Jh gfj Hkh ioZr :i esa fLFkr gSa A;gkWa iqyg vkSj iqyL; _f"k;ksa dk vkJe FkkAjko.k }kjk izdV dh xbZ ok.kxaxk ds fdukjs ;g eafnj fLFkr gS A bls ckxerh  unh Hkh dgk tkrk gS A ok.kxaxk ds nwljh vksj }kn’k T;ksfrZfyax gSa A

djhc Ms<+lkS lhf<+;kWa Åij p<+dj ekWa vEck dk eafnj gS tks 51 fl/n ihB esa ls ,d gS A ogha ij ‘e’kku gS ftl le; ge eafnj ls fudy dj ckxerh ds rV ij vk;s ogkWa rhu fprk,sa ty jgha Fkha vkSj ogha ikl gh n’kZukFkha ckxerh dh iwtk dj ty dk vkpeu dj jgs Fks dqN yksx fiaMnku dj jgs FksA ojkg iqjk.k ds vuqlkj nsfodk xaMdh vkSj pØk ufn;ksa ds laxe ls ;gkWa f=os.kh cuh A f=/kkjk esa Luku dj yksx ;gkWa firjksa dk riZ.k dj iq.;ykHk djrs gSa Axtxzkg ;q/n Hkh ;gha gqvk Fkk rFkk Jh gfj us xzkg dk eqWg phj dj xtjkt dk m)kj fd;k Fkk A jktf"kZ Hkjr us ;gha  riL;k dh nwljs tUe esa tc dkyatj esa Hk`xq cus  mlle; Hkh viuh ekrk rFkk e`x ;wFk dks NksM+dj e`x ‘'kjhj ls  ;gha jgs A eq[; eafnj dh fLFkfr rks BhdBkd gS ysfdu pkjksa vksj ds eafnj HkXukoLFkk dh vksj c<+ jgs gSa 

Tuesday, 22 July 2025

Kailash mansarover 8

 प्रेमचंद जी ने बताया प्रातः आठ बजे नेपाल दर्षन के लिये गाड़ी आयेगी तैयार होकर हम ठीक आठ बजे लॉबी में आ गये । दो बस तैयार थीं पता लगा ये बस नेपाल दर्षन के लिये जा रही हैं हम उन में सवार होगये  दोनों बसों के यत्रियों की ओर देखा हर उम्र के  यात्री थे । अभी भी हमें अपने सहयात्रियों की जानकारी नहीं थी । सोचा इसमें होटल में ठहरे यात्रीभी होंगे जो नेपाल दर्षन के लिये  साथ चल रहे होंगे । लेकिन एक एक कर ज्ञात हुआ हमारी बस के  सभी यात्री कैलाष मान सरोवर जा रहे हैं । तिलकधारी चढ़े और बोले ,‘ नेपाल दर्षन के बाद  दोपहर को  चार बजे सब  होटल के ,सभाकक्ष में एकत्रित हो जाइयेगा वहॉं आपको  विस्तृत जानकारी दी जायेगी ।’ एक दुबला पतला सा  व्यक्ति गाड़ी में चढ़ा और बोला,‘मैं आपका गाइड हॅूं , नेपाली हॅूं  पर हिन्दी और अंग्रेजी जानता हॅूं मैं हिन्दी में आपको बताउॅंगा’ सबने जोर से ताली बजाई और सबकी निगाहें उसपर जम गईं । बस के चलने के साथ साथ वह भी शुरू हो गया ।

‘काठमांडू पर्वतों से धिरा है यह समुद्र तल से 9008 फुट की ऊचाई पर है अच्छा इसे सातवीं सदी के समुद्रगुप्त ने बसाया अच्छा काठमांडू के उत्तर में षिवपुरी अच्छा  कुछ समझ में आया अच्छा ’ अब उसके वाक्य खतम होने  के साथ ही अच्छा शब्द भुनभुनाने लगता था ।विषिष्ट पर्व दषहरा अच्छा पूर्णमासी अच्छा अष्टमी ।

गाइड एक एक करके हमें जगहों के बारे में बता रहा था। गौषाला मार्ग पर अनेकों धर्मषालाएॅे एवम् विषाल गौषाला है जिनमें गउऐं अब भी पाली जाती हैं । वेद विद्याश्रम गुरूकुल है जहॉं बच्चेां  को संस्कृति और संस्कृत दोनों की षिक्षा दी जाती है। नेपाल को प्रदूषण मुक्त करने का प्रयास किया जा रहा है इसलिये पॉलिथिन के प्रयोग पर रोक है । साल व कृष वृक्षों से घिरा राजप्रसाद ‘ नारायण हिती पैलेस’ बाहर से देखा राजा महेन्द्रप्रताप परिवार हत्याकांड बरबस याद आ गया । मानवता या दानवता किसका पलड़ा भारी है प्रष्नचिन्ह के साथ मन जरा खिन्न हो गया। स्वयं गाइड के भी चेहरे पर दर्द की 

लकीर ख्ंिाच गई न जाने कितनी बार उसने उस स्थान को देखा होगा फिर भी चेहरे पर उदासी छा गई पूर्व राजा को पसंद करता था । नेपाल में बौघ्द धर्म  अधिक  प्रचलित है उसी से सम्बन्धित वस्तुऐं मिलती हैं यद्यपि नेपाल पषुपतिनाथ की वजह से बहुत विख्यात है लेकिन नेपाल में उससे सम्बन्धित चिन्ह कहीं नहीं दिखाई देते  । अगर उत्तराखंड जाय तो अधिकांष बस आदि पर ‘जय बदरी विषाल’ लिखा मिलेगा या बदरीनाथ से सम्बन्धित दुकानों व प्रतिष्ठानों पर लिखा मिल जायेगा । पर नेपाल में अधिकतर प्रचलन  ‘मॉं अम्बा का है ‘श्री दक्षिण वाली माता ’ श्री शैल ष्सुरेष्वरी’ श्री अन्न पूर्णेष्वरी ,श्री चण्डेष्वरी ,श्री अम्बे ’आदि  लिखा मिलता था।

नेपाल में नेपाली वस्त्रविन्यास अब बहुत कम दिखाई देता है ।नई पीढ़ी जीन्स टी शर्ट सलवार सूट या साड़ी में नजर आती है। नेपाली संस्कृति मघ्य वित्तीय वर्ग की वजह से जीवित है। बुजुर्ग महिलाऐं या पुरुष नेपाली परिधान में फिर भी यदा कदा दिखाई दिये । जिस होटल में हम रुके थे श्षाम को वहॉं पर नेपाली विवाह का रात्रिभेाज था पर वहॉं पर सभी स्त्री पुरुष व बच्चे पूरी तरह  भारतीय परिधान या सूट में थे ।

    धान की खेती पट्टियों में या सीढ़ी ष्शैली में की जाती है लगता है धानी हरी साड़ियॉं सूख रही हों । अगर जरा सी भी कहीं कच्ची जगह है तो वहॉं कुछ न कुछ पौघा विषेष मक्का आदि  लगा रखा होता है ।  काठमांडू में कोषी नदी बहती है। पर्वत से  बहते झरने नदी के साथ एकाकार होजाते हैं नदी का पानी नेपाल में गहरा पीला या लालिमा लिए  दिखता है कारण लाल मिट्टी ।


Monday, 21 July 2025

kailash mansarover yatra 7

 ,vjiksVZ ls ckgj vkus dh dk;Zokgh egsUnz HkkbZlkgc vkSj xks;y lkgc dj jgs Fks  A EsakS vkSj ‘'kksHkk HkkHkh  ewfoax cSYV ij vkdj lkeku mrkjus  yxs ,d lwVdsl ugha fn[kkbZ fn;k og fdlh us mrkjk gksxk fQj ,d rjQ j[k fn;k gksxk A geus vius lwVdslksa  vkSj cSxksa ij crkSj fu’kkuh ,d uhyk fjcu ckWa/k fn;k Fkk D;ksafd vf/kdka’kr% dEifu;ksa dk lkeku ,d lk gksrk gS vkSj viuk lkeku igpkuuk eqf’dy gks tkrk gS A og lwVdsl cM+k Fkk geus ogha j[kk jgusfn;k f[kldk;k ugha A xks;y lkgc vkSj caly lkgc dk ge  bartkj djus yxs Vªkyh dgha  fn[k ugha jgh Fkh A

dkBekaMw ,vjiksVZ NksVk lk ,vjiksVZ gSA O;oLFkkvksa dh deh gS A lkeku  ckgj ys tkus okys Vªkyh ckgj gh NksM+ tkrs gSackgj tkus ds fy;s fQj vanj vkus ds fy;s  dkQh pDdj yxkuk iM+rk gS lkFk fudklh ikl dh vko’;drk gksrh gS vHkh ge lksp gh jgs Fks fd D;k fd;k tk; fd ,d ,vjiksVZ dk deZpkjh vk;k vkSj  lwVdsl dks mBkus yxkA gekjs ;g dgus ij fd ;g lwVdsl gekjk gS og ,vjiksVZ dh iphZ ekaxus yxk vkSj gesa ,sls ns[kus yxk tSls ge nwljs dk eky viuk crk jgs gSa vkSj ge  gekjk lwVdsl ikj djus dh dksf’k’k eku dj py jgs FksA tSls rSls lwVdsl mBkus ls jksdk nksuksa dks vkus esa nsjh  ns[kdj eSa izFke ry ij xbZ rks irk pyk  nkuksa gesa <wa< jgs gSa A ckgj vk;s rks cM+h cMh cWwnksa us Lokxr fd;k ckgj dksbZa ‘'ksM ugha Fkk ge vius Vªsoy ,tsaV dks ns[k jgs Fks A cwWanksa us /kkj dk :i ysfy;k rHkh ,d r[rh xks;y lkgc vkxjk dh fn[kkbZ nh geus mls cqyk;k xkM+h nwj [kM+h Fkh A tYnh tYnh xkM+h esa lkeku j[kok;k gYdh BaMd vkSj Åij ls cwWans QqjQqjh gksus yxh AxkM+h esa cSBrs cSBrs rst okfj’k gksus yxhA ,vjiksVZ ls gksVy dk jkLrk iqjkus  bykds ls gksdj Fkk yxk utkus fdruk iqjkuk lk gksVy gksxk  ysfdu /khjs /khjs ftl bykds esa vk;s ,dne ls [kqyk [kqyk Fkk A uofufeZr pkSM+h lM+dsa utj vkus yxha A ‘'kadj gksVy cgqr lqanj dksbZ iqjkuk egy Fkk ftls gksVy esa rCnhy dj fn;k x;k Fkk A gksVy esa lc txg ydM+h dh uDdk’kh Fkh cgqr lh rLohjsa ftl ij ckS/n fp=dkjh Fkh A ykekvksa dh ru[kk fp=dkjh  diM+ksa ij cuh gqbZ Fkh Nr ij eghu csycwVs dh fp=dkjh Fkh A egy esa ydM+h dk dke loZ= utj vk jgk Fkk A

              Jh egs’kizlkn caly ds le/kh Jh izse izdk’k th feyus vk x;s Fks  Lokxr esa mUgksaus gesa #nzk{k dh ekyk]f’kopkyhlk rFkk f’koHktuksa dh iqLrd HksaV dh rFkk gekjs dk;ZØe ds fo"k; esa crk;kA vHkh rd ge ,d ?kqu esa pyjgs Fks  fd gesa dSyk’k ekuljksoj tkuk gS mlds fy;s usiky igqWqpuk gS mlds ckn ge fjpk VªsoYl ds gokys Fks A fjpk VªsoYl gesa gksVy esa NksM+dj xk;c Fks  A dejk fey x;k Fkk vkxs D;k djuk gS ;g irk yxkuk Fkk A lcls igys pk; dh ryc yxh Fkh blfy;s  pk; ds fy;s fjlsSI’ku ij dgk A lkS #i;s dh ,d pk; ml le; etcwjh Fkh  A osVj us crk;k dejs esa ykus ij lkS #i;s yxsaxs ;fn uhps Mkbfuax gkWy esa tkdj fi;saxs rks pk; Ýh gS rFkk ;g Kkr gqvk fd  gksVy esa pk; [kkuk uk’rk lc fjpk VªSoYl okyksa dh vksj ls  Ýh gS A

 Mkbfuax :e esa gesa dbZ O;fDr fn[kkbZ fn;s  ykWch esa ,d Hkxoko+k /kkjh  cSBs ekyk ti jgs Fks  muls iwNk D;k vki dSyk’k ;k=k ij tk jgs gSa A mUgksaus cM+h cMh vkWa[ksa mBkbZa vkSj dgk]^ dksf’k’k dj jgk gWaw vHkh  jftLVªs’ku ugha gqvk gS  vkxs  izHkq bPNkA* var rd os dksf’k’k djrs jgs mudk uacj ugha vk;k A dqrkZ iktkek igus ,d fryd/kkjh Hkh nwljs lksQs ij cSBs dqN fy[k jgs Fks  mudh vksj ns[kk rks ckssys]^ gkWa esa dSyk’k ekuljksoj ;k=k ij tk jgk gWwa * pyksa dksbZ rks feyk rcrd izsepan th ds NksVs lqiq= xkM+h ysdj vkx;s ge muds lkFk usiky ds cktkj vkfn ns[kus ds fy;s py fn;s A ogkWa dk lqizfl/n cktkj HkkV HkVsys  vkSj eq[; cktkj ns[kk  chp chp esa fjef>e Qqgkjsa fHkxks nsrh Fkha A

Sunday, 20 July 2025

Kailash mansarover yatra 6

 बार बार गोयल साहब भी कह रहे थे कि स्वास्थ ठीक रखो  नहीं तो चलना मुष्किल हो जायेगा । वैसे  षिव जी ने ही बुलाया है नहीं तो दो दिन में सब टिकिट मिलना कैसे संम्भव था । सब काम स्वतः ही हो रहे हैं बस घबराना सोचना बंद करो  चल पायंेगे क्यों नहीं चल पायेंगे ।

           नेपाल में रिचा ट्रैवल्स वालों से सुनिष्चित हो ही गया था । वे वहीं हमें काठमांडू ऐअरपोर्ट पर मिलने वाले थे  । कैलाष मानसरोवर यात्रा में कपड़े  एक के ऊपर एक तह के रूप में पहनने पड़ते हैं  क्योंकि एकाएक  सर्दी एकाएक गर्मी का एहसास होता है । श्री प्रमोद बंसल व  श्रीमती ममता बंसल ने बताया  बेहद ठंडा जल था मग से पानी डाला पानी में तो खड़े होने की हिम्मत ही नहीं थी । मग ,इनर स्वेटर आदि सब  रखे । लेकिन कैलाष यात्रा पर जाने  के लिये मौसम का भी ध्यान रखना आवष्यक है हर महिने का मौसम अलग होता है । बंसल दम्पत्ति को  वर्फ मिली जबकि हम पन्द्रह बीस दिन बाद ही गये थे लेकिन हमें कहीं वर्फ नहीं मिली  बस दूर पहाड़ो पर वर्फ चमक रही थी । हमारी आवष्यकताऐं अलग थीं वहॉं के  वातावरण के विषय में अधिक बताया भी नहीं जा सकता क्योंकि अनुभव हर पल अलग था ।

       23 जून को ईष्वर का नाम लेकर प्रातः दिल्ली के लिये प्रस्थान किया। एक बजे की फ्लाइट थी लेकिन  फ्लाइट तीन बजे चली । एअरपोर्ट से जब हम चले तब 45 ं तापमान था । हवाईजहाज  जिस समय 35,000 फुट की ऊॅंचाई पर था स्वतः हल्की हल्की ंठंड लगने लगी । जिस समय दिल्ली एअरपोर्ट छोड़ा आकाष में हल्के हल्के बादल थे  पर धीरे धीरे बादलों के समूह ब़नते गये । नीचे से दिखने वाले बादल और ऊपर आकाष से दिखने वाले बादलों में बहुत अंतर है दोनों का स्वरूप बिलकुल अलग होता है । नीचे बादल लटके हुए तैरते नजर आते हैं तो ऊपर से बादल उठे हुए नजर आते हैं रूप तो नीचे से भी देखने पर बादल अलग प्रकार के बनाते और तैरते चलते हैं लेकिन हवाई जहाज से  नीचे देखने पर बादलों का अपना  संसार है ।

       एक दूसरी दुनिया। कहीं हल्के कहीं गहरे सफेद वर्फ की तरह। कभी गहरे नीले सागर का रूप लेकर उसमें विषाल आकृतियॉं तैरती नजर आयेंगी कहीं हरियाली में वर्फ के बने  वृक्ष नजर आयेंगे।आइसक्रीम का पर्वत वहॉं देखने को मिलता है कहीं कहीं जंगल में श्वेत जानवर नजर आते हैं श्वेत पक्षियों का संसार नजर आता है । सूर्य की रोषनी उन्हें वर्फ की सी ष्श्वेत रोषनी प्रदान करती है । कहीं कहीं लगता है विषाल नीले सागर में बड़े बड़े हिमखंड तैर रहे हैं ।

    1 घटा 35 मिनट की उड़ान में हम एक धंटा बादलों के ऊपर रहे। कभी कभी घने बादलों को हवाई जहाज चीरता तो थरथराने लगता। जैसे जैसे हवाई जहाज नीचे आता गया नेपाल दिखता गया। जैसे मणि कंचन का कटोरा हो। नेपाल चारों ओर से पहाड़ियों से घिरा है जिनकी मिट्टी लाल मॅूगे के रंग की है।बीच बीच में हरे भरे  वृक्ष और तलहटी में बसा नेपाल जिसके अधिकांष मकान लाल हैं। अब नई नई कई मंजिली इमारतें बनने लगी हैं और रंग बिरंगे रंगों ने  प्रवेष लेलिया है इसलिये  कुछ मकान अन्य रंग के दिखने लगे हैं पर पुराने इलाके में तो जैसे मॅंूगा बिखरा पड़ हो । नदी की धारा ऊपर से पीली सुनहरी दिख रही थी उनमें मिट्टी पहाड़ों से बहती आती लाल थी लेकिन आभास गहरे पीले रंग का हो रहा था ।


Saturday, 19 July 2025

kailash mansarover yatra 5

  पर भोले बाबा ने बुलाने की चिट्ठी भेजी थी माध्यम कुछ भी हो । फिरोजाबाद में एक दावत में मित्र मंडली के मध्य विचार हुआ कि कहीं चला जाय। कहॉं और नाम आया मान सरोवर चला  जाय । सोलह युगल में से चार ने  उसी समय मना कर दिया  वे पैरों से  लाचार हैं व सॉँस की भी तकलीफ है वे नहीं जा सकते । उनकी समस्या जायज थी वहीं एक  वकील साहब जो विगतवर्ष होकर आये थे मिल गये सब उन्हे घेर कर बैठ गये । कौन जा सकता है कौन नहीं  क्या क्या समस्याऐं सामने आयेंगी  तीन ने वहॉं के विषय में सुनकर मना कर दिया । दूसरे दिन तीसरे दिन तक एक एक कर अन्य पीछे हटते गये। किसी को समय नहीं सूट कर रहा था किसी के घर में परेषानी आदि आदि  जो उत्सुक थे उन में बचे हम व श्री एवम् श्रीमती महेन्द्र बंसल। हम चारों जाना तो चाह रहे थे पर अन्य  सबके पीछे हट जाने से हिचक रहे थे ।महेन्द्र भाई साहब के समधी श्री प्रेम पकाष जी नेपाल के  सुप्रतिष्ठित व्यवसायी व समाज सेवी हैं । उनसे महेन्द्र भाईसाहब ने बात की तो उन्होंने आष्वस्त किया आप आ जाओ आरक्षण ग्रुप में हम करा देंगे। निष्चय किया कोई नहीं जारहा तो न सही हम चारों चलते हैं एक साथी संबल के लिये बहुत है। तुरंत नेपाल तक के टिकिट दिल्ली से हवाई जहाज के बुक कराये गये। लेकिन मन कहीं कच्चा था महेन्द्र जी सोच रहे थे अन्य मित्रों के न चलने से हम कहीं मना न करदें इसलिये उन्हों ने टिकिट ब्लॉक करा दिये कन्फर्म नहीं कराये  । हमारे पास फोन आया ‘सोच लो और कोई नहीं जा रहा है दुर्गम यात्रा है मन कम हो रहा है ’।

हम निष्चय कर चुके थे हम को भय हुआ ये भी न मना करदें इसलिये फिरोजाबाद जाकर उन्हें आष्वस्त किया कि आप बुकिंग कराओ । सबसे पहले मान सरोवर यात्रा के लिये  रिचा ट्रेवल्स को अग्रिम राषि भेज दो ।

पर सब कुछ सहज नहीं होता ।नेपाल यात्रा के लिये ब्लॉक कराये टिकिट ट्रैवल एजेंट ने बेच दिये। पच्चीस जून को कैलाष मान सरोवर यात्र नेपाल से प्रारम्भ होनी थी । 23 जून तक नेपाल पहुॅचना था बाईस तक किसी भी फ्लाइट में टिकिट नहीं थे । दिल्ली बेटी अल्पना को फोन किया दामाद आदित्यविक्रम ने  ट्रैवल एजेंट से  संपर्क करके बताया कि टिकिट मिल जायेंगे । पर जब तक हाथ में टिकिट न आ जाय तब तक कैसे पूर्ण विष्वास हो नेपाल में भी कैसे आगे कहा जाय । महेन्द्र जी बोले न हो जुलाई में चला जाय पर चलेंगे 23 -24 जुलाई को ही क्योंकि 31 तारीख की पूर्णिमा होगी । जून में भी 30 तारीख की पूर्णिमा थी इसलिये 23 तारीख वाले ग्रुप में जाना चाह रहे थे ।

दिल्ली से बेटी दामाद बराबर आष्वासन दे रहे थे आप निष्चित रहो टिकिट मिल जायेंगे और कहकर बद्रीनाथ की यात्रा पर निकल गये। 19 जून को  हम स्वयं दिल्ली जाकर उनसे टिकिट ले आये । हाथ में टिकिट आते ही महेन्द्र जी को फोन किया आप नेपाल संपर्क कर रुपया भेज वहॉं सीट निष्चित करो ।अग्रिम पैसा  प्रेमप्रकाष जी ने भर दिया वहॉं पर भी जब निष्चित हो गया तब सामान की भागदौड़ हुई।एक एक चीज सूची के हिसाब से देखना और रखना प्रारम्भ हुआ । थरमस  टार्च वहॉं की यात्रा के लिये सर्वाधिक आवष्यक वस्तु हैं। पारिवारिक चिकित्सक डा0 कपूर से  चैकअप आदि करा कर दवाइयों का प्रबंध कर लिया ।

 1 जून को  आगरा के 88 व्यक्ति जो विजय कौषल जी के साथ यात्रा पर गये थे सकुषल वापस आ गये थे । उनमें से श्रीमती ममता बंसल व श्री प्रमोद बंसल से मुलाकात कर वहॉं की आवष्यकताओं के विषय में व उनके अनुभवों के विषय में जाना।‘वे वहॉं की यात्रा से गद्गद् थे। चमत्कारिक अनुभव हुए थे उन्हें । मन ही मन  भोले बाबा को प्रणाम किया कि जिस प्रकार उनकी यात्रा को सफल बनाया हमारी यात्रा भी सफल बनाना ।

    बंसल दम्पत्ति ने वहॉं पर उपयोग में आने वाली वस्तुऐं जो आवष्यक तो समझी जाती हैं पर काम नहीं आ पाईं थीं हमें दीं जैसे आक्सीजन सिलैंडर आदि । उन से मिलकर हमें विष्वास हो गया कि हम भी जा सकते हैं । उनके अनुसार हमें कुछ बातों का ध्यान रखना था । जैसे जैसे चढ़ाई पर जायें मुॅंह में टाफी ,चूरन आदि रहे तो उत्तम है । गाय के दूध का घी उन्होंने दिया और बताया समय समय पर नाक में लगाते रहने से  खुष्की दूर होती रहेगी । छोटी छोटी जिप लॉक थैलियों में एक दिन का  खाने का सामान हमेषा साथ रखें । कहॉं लेजाने योग्य नी कैप  मोजे आदि अच्छे मिलेंगे बताया । धूल भरी हवाओं से बचने के लिये जिस प्रकार डाक्टर ऑपरेषन के समय नाक मुॅह ढक लेते हैं वह रखें ममताजी ने बताया वे तो पल्ला ही मुॅह पर रख लेती थीं । उनके अनुसार सब तैयारी कर  ली थी । इन सबसे ऊपर उन्होंने हमारा मनोबल बढ़ाया  जरा सी हिचकिचाहट थी मन से हट गई ।हमेषा ठीक रहने वाला रक्तचाप  गड़बड़ा गया । कुछ चक्कर से महसूस हुए । चैकअप कराया तो  रक्तचाप बढ़ा हुआ निकला । उच्चरक्तचाप की दवाऐं डाक्टर साहब ने  प्रारम्भ कर दीं साथ ही कहा ‘देख लीजिये  कठिनाई हो सकती है ’चुपचाप सुनती रही फिर बोली ‘चाहे कुछ हो अब तो जाना ही है । मुझे तो आजतक ब्लडप्रैषर की षिकायत  हुई नहीं अब कैसे हुई अब जो भी होगा देखा जायेगा । मुझे तो भोले ष्शंकर ने बुलाया है मै तो जाउॅंगी ।’

         कह तो  बहुत आत्म विष्वास से दिया मैं तो जाउंगी बुलाने वाले परम पिता है वे जो  चाहेगे वही होगा  स्वयं जाने वाली कौन? कहीं वे रोक तो नहीं रहे हैं  नहीं तो उच्च रक्तचाप एकाएक कैसे । सारा कुछ स्वास्थ पर ही तो आधारित है और वही गड़बड़ा रहा है । लेकिन श्रीमती ममता बंसल और श्री प्रमोद बंसल ने बहुत  प्रोत्साहन दिया तो डगमगाता आत्मविष्वास लौट आया ।ममता जी बोली,‘बस भोले बाबा को याद करती रहना बेड़ा पार लग जायेगा । कहीं कोई  परेषानी नहीं होगी देखना यदि कहीं कोई दिक्कत आई भी तो स्वयं भोले बाबा आ जायेंगे । आप एक माला रोज ओम  नमः षिवाय की करना देखना काम  बनेगा । हाथ में जप माला तो नहीं ली हॉं जब भी  मन शांत होता ओम नमः षिवाय का जाप  चलने लगता ।


Friday, 18 July 2025

kailash mansarover yatara 4

 बाबूजी ग्लेषियर , फूलों की घाटी  आदि सभी दुर्गम स्थलों की यात्रा कर आये थे  लेकिन जो सौंदर्य उन्होंने कैलाष यात्रा में पाया वह अन्य कहीं नहीं था । बद्री नाथ ,केदारनाथ ,गंगोत्री ,यमुनोत्री आदि स्थलों से हम बहुत प्रभावित हुए थे लेकिन उन्होंने  कैलाष के आगे उसे बिलकुल नकार दिया । रास्ता तो उसा सा ही है समझ लो  पर  ऊपर तो जो है मैं बता नहीं सकता। चित्रलिखे से हम कल्पना करते एक झुरझुरी सी आती और साथ ही मन में संकल्प  लेते हम भी जायेंगे । अभी समय नहीं है पर जायेंगे जरूर । मालपा कॉंड ने  कुछ समय को आगे बढ़ने पर मजबूर कर दिया । कच्ची गृहस्थी  बच्चों की जिम्मेदारी,अभी   तो बहुत स्थल हैं देखने के लिये  अगर सबसे सुन्दर वस्तु सबसे पहले देख ली तो  बाकी कुछ भी देखने में मजा नहीं आयेगा । उसकी तुलना ही करते रहेंगे । और फिर तीर्थ करने की अभी उम्र भी नहीं है ।

पर कैलाष यात्रा  में यह धारणा कितनी गलत साबित हुई है । वैसे भी जब ऊॅचे ऊॅंचे पहाड़ों पर बैठे  देवी देवता को देखते हैं तो ष्शारीरिक अक्षमता पहले सामने आ जाती है । युवावस्था ही है जब आप इन स्थानों पर बिना किसी परेषानी के जा सकते हैं । ऊॅंची चढ़ाई  खाई खंदक हो कुछ भी हो कूद कर पार कर गये । उम्र बढ़ने के साथ सॉंस की तकलीफ घुटनों की तकलीफ । ऐसे में ऊॅंचाई पर बैठे देवी देवताओं से कहॉं मिल सकते हैं । सभी देवी देवता ऊॅंचे स्थानों पर ही अपना स्थान बनाकर  बैठे हैं या घने जंगलों में बीहड़ों में एकांत स्थानों में इतने भव्य मंदिर क्यों और कैसे बने ? बद्रीनाथ,केदारनाथ ,गोमुख, गंगोत्री ,यमुनोत्री,आदिबद्री ,पंच केदार आदि मंदिरों का निर्माण कैसे हुआ होगा आष्चर्य होता है ।

ग्लोबल वार्मिंग और आधुनिक सुविधाओं के चलते ये तीर्थ अब सहज सुलभ हो गये हैं और लाखों की संख्या में यात्री पहुॅचने लगे हैं लेकिन पूर्व में ऐसे सभी तीर्थ पर जाना बहुत कठिन माना जाता था ।

    मुझे याद आता है अब से पचपन वर्ष पूर्व हमारी दादी चार धाम की यात्रा पर गईं थीं तब पूरा परिवार एकत्रित हुआ था जैसे  उन्हें आखिरी विदा दी गई हो । हमारे पिताजी ताउजी चाचाजी आदि पॉंचो पुत्र उन्हें ऋषिाकेष तक छोड़कर आये  थे । तब चार धाम की यात्राऋषिाकेष से पैदल जाती थी । जबतक यात्री दल ऑंखों से  ओझल नहीं हो गया थे बेटे खड़े  रहे थे  जब पिताजी लौटकर आये थे तब पहली बार हमने पिताजी को  रोते देखा था‘पता नहीं जीजी ;हम सभी दादीजी को  जीजी कहते थे, अब देखने को मिलेगी या नहीं । छः महिने बाद जब यात्री दल के साथ वापस आईं तो जैसे  पुर्नजन्म हुआ हो । विषद भोज और भंडारा करके जष्न मनाया गया था कुछ कुछ वही परिस्थिति कैलाष मानसरोवर की यात्रा पर बाबूजी के साथ थी परन्तु उतनी विषम नहीं थी । तीन साल से यात्री दल सकुषल लौट ही रहे थे इसलिये अधिक आष्वस्ति थी बस यही चिन्ता थी किसी कारण तबियत न बिगड़ जाय या खाई आदि पार करते  कोई अनहोनी न हो जाये । 

 उम्र के पड़ाव कदम बढ़ाते गये  निराषा गहरी उतरती गई कैलाष मानसरोवर यात्रा अब संभव नहीं है। लेकिन जिसदिन काठमांडू से होते हुए लैंडक्रूजर गाड़ी से यात्रा के विषय में ज्ञात हुआ छिपी इच्छा ने सिर उठा लिया ष्शायद यात्रा अब इतनी कठिन नहीं रही अभी जाया जा सकता है।पत्र पत्रिकाओं में यात्रा के रोमांचक वर्णन पढ़ने को मिल रहे थे लेकिन स्थिति स्पष्ट नहीं थी कि हम जा सकते हैं या नहीं किसी अनुभवी से पूछा जाय ।

मॉं वाणी पता नहीं हमारे मुॅंह से कब क्या कहलवाना चाहती है यह उनकी कृपा पर निर्भर है । दैनिक जागरण से प्रियंका का फोन आया‘आंटी ग्रीष्मावकाष में आप कहॉं जा रही हैं । बिना सोचे समझे कह बैठी ‘मान सरोवर ’ । ष्शायद मन की  तहों में छिपी भावना ने सिर उठाया । यद्यपि उन दिनो सबसे अधिक  थाइलैंड, मलेषिया ,सिंगापुर जाने के लिये बात हो रही थी जैसे वहॉं जाने की एक बहार थी वहॉं जाना संभव था पर कैलाष मानसरोवर जाने की कहीं कोई बात नहीं थी ।

अनायास  कही बात ष्शायद मॉं वाणी ने ही कहलाई थी । षिवधाम जाने की अदम्य लालसा थी ही इसीलिये मन की बात होठों तक आ गई ।

कुछ दिन बाद ही दैनिक पत्रों में समाचार पढ़ा  ‘मान सरोवर यात्रा प्रारम्भ ’ पढ़कर  पृष्ठ बदल लिया । फिर एक दिन पढ़ा आगरा के बहुत से गणमान्य व्यक्ति  विजय कौषल जी महाराज के साथ मान सरोवर यात्रा पर जा रहे हैं  जो भी नाम आये वे सभी करीब करीब  हमउम्र और परिचित‘ अरे जब सब ये लोग जा सकते हैं तब हम क्यों नहीं जा  सकते ?’

‘ना बाबा  मेरा सत्संग   भजन आदि में मन नहीं लगेगा मेरा  ऐसा जोड़ नहीं बैठेगा ,हॉं कोई अलग से  टूर जा रहा होगा तो चलेंगे ’ । गोयल साहब ने हाथ खड़े कर दिये

        आर्य समाजी परिवार में सिवाय हवन के कोई अन्य धार्मिक गतिविधियॉं होती नहीं हैं सत्संग भजन आदि से कोई वास्ता नहीं रहता है वास्तव में हर समय ऐसे वातावरण में मन रमना मुष्किल था ही । यद्यपि ईष्वर में पूरी आस्था है और ईष्वरीय संरचना से बेहद प्यार।प्रकृति अदभुत् है उसे अधिक से अधिक ऑंखों में उतार लो यह उत्कट अभिलाषा रहती है ।भूली बिसरी स्मृतियॉं सिर उठाने लगती हैं  । गढ़वाल मंडल के यात्री दल के साथ चार धाम की यात्रा पर गये  उस दल में सभी हम उम्र थे  एक दो को छोड़कर उन सभी की धारणा भी धार्मिक स्थलों  को मात्र धर्म से जोड़कर चलना नहीं थी

 जितने भी धर्म स्थल हैं बेहद खूबसूरत हैं । उन्होने भी मंदिरों में दर्षन लाभ के साथ साथ मार्ग की खूबसूरती का पान किया लेकिन बद्रीनाथ मंदिर में सभी ने गर्भृह में बैठकर अभिषेक कराने की पर्ची कटाई  ज्ञात हुआ  अभिषेक कार्यक्रम पूरे पॉंच घंटे तक चलता है। श्रध्दापूर्वक सभी यात्री  बदरी विषाल के सांगोपांग दर्षन के लिये अंदर चले गये । गर्भगृह से दर्षन की  2100 रु0 की पर्ची कटी थी सब समझे हम इतना खर्च नहीं कर सकते पर क्योकि बस  वापस एक  बजे जानी थी  हम आस पास के दर्षनीय स्थलों को देखने के लिये रुक गये  आधा घंटे का समय  बदरी विषाल के स्नान व श्रंगार के  दर्षन करके  हम आस पास के  पौराणिक स्थलों को देखने निकल गये ।

          हमने वहॉं देष का आखिरी गॉंव माना देखा सरस्वती नदी , भीम पुल ,वसुधारा ,गणैष गुफा,व्यास गुफा (;जहॉ महाभारत की रचना हुई) ष्शेषनाग के नेत्र आदि स्थल देखे । बदरी वृक्ष जहॉं कहते हैं लक्ष्मी जी अब भी आती हैं । साढ़े बारह बजे जब हम बस पर वापस आये ज्ञात हुआ वे पूर्ण अभिषेक प्रक्रिया के दर्षन लाभ कर अभी वापस आये हैं   ईष्वरीय सत्ता के नीचे वे भी थे और हम भी दोनों अपनी अपनी जगह प्रसन्न थे तो साथ ही उन्हें यह दुःख भी था कि वे यहॉं इन स्थलों को नहीं देख पाये 


Wednesday, 16 July 2025

Kailash mansarover 3

 महाकैलाष की भॉंति ही भू कैलाष है लेकिन लघुरूप है । यह धाम भी अनन्त अगोचर है । यह साधारण व्यक्ति के लिये  तो अगम्य है ही लेकिन आजतक इस पर किसी के पैर नहीं पड़े हैं । कैलाष असामान्य पर्वत है । सभी हिम षिखरों से भिन्न और दिव्य ।

           पूरे कैलाष की आकृति एक विराट षिवलिंग जैसी है जो  पर्वतों से बने ष्षोडश दल कमल के मध्य रखा है । इन कमलाकार षिखर वाले पर्वतों की रचना भी ऐसी लगता है वे षिव लिेग को अर्ध्य दे रहे हों । चौदह षिखर तो स्प्षट परिलक्षित होते हैं दो षिखर और आगे झुके प्रतीत होते हैं उनमें से एक गुरला मांधाता जैसे अर्ध्य देने  के बर्तन की नली हो । वहीं से कैलाष  से जल निकलकर गौरी कुॅड में जाता है । कैलाष पर्वत आसपास के सभी षिखरों से ऊॅंचा है । यह कसौटी के  ठोस काले पत्थर का है जब कि और अन्य सभी पर्वत षिखर कच्चे लाल मटमैले पत्थर के हैं । ध्यान से देखने पर कैलाष के षिखर पर चारों कोनों में ऐसी मन्दिराकृति प्राकृतिक रूप से  बनी है जैसे बहुत से मन्दिर षिखरों पर चारों ओर से बनी होती है ।

     सन् 1982 में ष्श्वसुर साहब इस यात्रा पर गये थे  तीन वर्ष पूवै ही यह यात्रा चीन सरकार से  हुए समझौते में चीन की देखरेख में खुली थी  यह यात्रा पैदल व खच्चरों से की जाती थी । कड़े मैडीकल चैकअप के साथ पूर्ण स्वस्थ व्यक्ति को ही इसकी अनुमति मिलती थी तीस दिन की यात्रा में बीस दिन पैदल मार्ग तय करना होता था। सामान खच्चर पर लाद कर ले जाया जाता था लेकिन तब जो सौन्दर्यानुभूति उन्होंने पाई वह हम नेपाल होकर लैंड क्रूजर गाड़ियों से नहीं पा सके । उनका रास्ता  अदभुत था । झरने नदी नाले हरियाली ऊॅंचे नीचे रास्ते ,पगडंडियॉं एक तरफ पर्वत षिखर दसरी तरफ 

खाई उन पर बिलकुल किनारे किनारे चलते खच्चर । उस समय यात्रा अंतिम यात्रा मानी जाती थी एक तरह से घर से विदा ली जाती थी यद्यपि लौट कर सकुषल ही सब आते थे लेकिन बहुत को रास्ते से  तब भी वापस आना पड़ता था ।

ष्श्वसुर जी की यात्रा निर्विघ्न समाप्त हुई और साथ लाये  रोमांचक यात्रा के अनुभवों की पिटारी । तब मात्र तीस यात्रियों का दल पहली बार सरकार ने भेजा। दूसरी बार दो दल तीसरे साल दो दल अर्थात मात्र 120 यात्री ही उस स्थान पर जा पाये थे । बहुत बड़ी उपलब्धि थी । महिनों तक उस यात्रा विवरण को टुकड़ियों में सुना । पिघलती चॉंदी ,बरसता स्वर्ण चॉदनी में इतनी तीव्रता कि धूप का चष्मा लगाना पड़ा था वह भी कोरों से बंद । यद्यपि आर्यसमाजी मत के मानने वाले  लेकिन एकाएक सुन्दर सी छोटी कन्या को देखना  जो देखते ही देखते अदृष्य होगई । मान सरोवर के ऊपर बादलों में ओम की आकृति बनना कुछ चित्र अनुपम थाती के रूप में खींच कर लाये थे तो लगा बाबूजी तो साक्षात षिव से  मॉं जगदम्बा से मिल कर आये हैं  क्या हमकभी  ऐसा सौभाग्य प्राप्त कर सकेंगे 


Tuesday, 15 July 2025

kailash mansarover yatra2

 नगरी में दस हजार योजन ऊॅंचे एक खरब  मूॅंगे के षिखर हैं । उसके बाद पद्यरागमणि के बीस हजार योजन ऊॅंचे दस अरब षिखर हैं । उसके अंदर तीस हजार योजन ऊॅंचे  एक करोड़ वैदूर्यमणि से बने षिखर हैं । षिखर के चारों ओर के स्थान पर घर बाग बावड़ी ,कुॅंआ नद और नदियॉं हैं । बाहर से अंत तक क्रम से उस स्थानों पर परम  मुक्त आत्माओं  का वास है। यह धाम दिव्य धाम है ,उनके लिये दिव्य आनंद की वस्तुएॅं उपलब्ध हैं। अगणित षिव के गण एवमे प्रभावषाली कन्याओं का भी वही वास है । उन षिखरों पर कल्पवृक्ष व कामधेनुएॅं  विचरण करती रहती हैं । इन स्थानों पर जो षिव की आराधना कर षिव की कृपा प्राप्त कर जीवन मरण से मुक्त हैं वही रह सकते हैं ।

         इनके बाद चालीस हजार योजन ऊॅंचे षिखर हैं । ये पुष्पराग मणि के षिखर हैं जिनसे निरंतर प्रभा निसृत होकर चतुर्दषाओं को आलोकित करती हैं । इन पुष्पराग मणि षिखरों पर गन्धर्व ,यक्ष ,किन्नर,गरुड़,नाग आदि रहते हैं । उनके बाद पचास हजार करोड़ योजन ऊॅंचे  एक करोड़ गोमेदक मणि के षिखरों का घेरा है।यहॉं पर पदच्युत इंद्र्रों का वास है । ये यहॉं पर निरंतर षिव की आराधना में लीन रहते हैं ।

      इसके बाद साठ हजार योजन ऊॅंचे दस लाख नीलमणि के षिखरों  का घेरा है । यहॉं चार मुख वाले अनेक ब्रह्मा का वास है । षिवभक्ति में लीन इनका हृदय षिव आराधना  से शांत है । इसके बाद नीलमणि के सत्तर हजार योजन ऊॅचे एक लाख षिखर हैं इसमें अनेकों विष्णु निरंतर षिव आराधना करते हुए रहते हैं । इसके पष्चात अस्सी हजार योजन ऊॅंचे दस हजार एक मुक्तमणि षिखरों का घेरा है इसमें अनेकों महात्मा रुद्रगण षिव अराधना करते षिव कृपा की दीप्ति से दिपदिपाते रहते हैं । इसके बाद नब्बे योजन ऊचे एक हजार स्फटिक षिखरों  का घेरा है । इसमें नन्दी ,महाकाल,

वीरभद्र आदि सभी षिव की अपर मूर्ति हैं रहते हैं । ये  षिव की आज्ञा से करोड़ों ब्रह्माडों को बनाने बिगाड़ने में समर्थ हैं ।इसके  बाद एक सौ हीरक मणि के एक सौ योजन ऊॅंचे षिखर हैं जिनके प्रकाष में षिवधाम आलोकित होता है इसमेंसभी देवी ष्श्क्तियॉं,स्वामी कार्तिकेय,विघ्नेष्वर रहते हैं । यहॉं साधारण देवता नहीं आ सकते । इसके बाद ग्यारह ज्योर्तिमय षिखर है जो  सदा षिव के निज धाम को घेरे खड़े हैं । निज धाम में षिव मॉं जगदम्बा के साथ दिव्य सिंहासन पर विराजमान हैं ।2


Monday, 14 July 2025

kailash Mansarover yatra1

 अदभुत् धाम  कैलाष मान सरोवर


 मया सृष्टि स़्त्रष्टु- राधा वहति

विधि हुत या हवि र्या च होत्री

ये द्वे काले विधितः श्रुति विषय

गुणा या स्थिता व्याप्य विष्वम । 


या माहु सर्व बीजः प्रकृतिरिति

यथा प्राणनिः प्राणवन्तः

प्रत्यक्षामिः प्रपन्नस्तनुमिरवतु

अस्मामिरष्टा - मिरीषः ।।


(; षिव जी उस जल  के रूप में हमें प्रत्यक्ष दिखाई देते हैं जिसे ब्रह्मा ने  सबसे  पहले  बनाया उस अग्नि के रूप में दिखाई देते हैं जो विधि के साथ दी हुई हवन सामिग्री ग्रहण करती है उस होता के रूप में दिखाई देते हैं जिसे यज्ञ करने का काम मिलता है उस चंद्र और सूर्य के रूप में दिखाई देते हैं जिसके कारण सब जीव जी रहे हैं ; इस प्रकार , जल , अग्नि, होता सूर्य ,चन्द्र, आकाष, पृथ्वी और वायु के  इन आठ ; प्रकृति के , प्रत्यक्ष रूपों में भगवान षिव सबको दिखाई देते हैं वे आप सबका कल्याण करें )

         कैलाष षिव का धाम है । माना जाता है मॉं पार्वती के साथ वहॉं षिव निवास करते हैं । षिव के धाम की कल्पना ही की जा सकती है और यदि उस धाम के प्रत्यक्ष दर्षन हो जायें तब उस सौभाग्य का वर्णन करने के लिये मॉं वाणी की सहायता लेनी पड़ेगी। जिस अगम्य अगोचर धाम  का वर्णन मॉं  वाणी कर सकती हैं वह धाम भी अगम्य है । हम  संसारी तो  इसलोक के षिव धाम का वर्णन करने में अक्षम पा रहे हैं । स्वर्ग में जो स्थान बैकुंठ का है पृथ्वी पर वही स्थान कैलाष का है। जो  बैकुंठ है वही कैलाष है।

      पुराणों में ‘काषी केदार महात्म्य’ में कैलाष का वर्णन मिलता है उसके अनुसार कैलाष दो हैं । एक महा कैलाष और एक भू कैलाष। महा कैलाष षिव का निवास है वह अगम्य अगोचर है । ब्रह्मांड के महोदक में एक लाख योजन कनक भूमि है। उस स्थान की ऊॅंचाई भी लाख योजन है वही महाकैलाष है । उस स्वर्ण भूमि के चारो ओर भी पचास हजार योजन विस्तृत रजत भूमि है और बीस योजन तक रजत घेरे से ऊॅंचाई से घिरी है । आठ दिषाओं में आठ मणियों के द्वार हैं। हर द्वार पर महागण नियुक्त हैं। पूर्व द्वार पर महात्मा विघ्नेष,अग्निकोण पर महागण भृं़िगरिष्ट,दक्षिण द्वार के रक्षक महाकाल,नैतृत्य कोण के संरक्षक षिव के अंग से उत्पन्न वीरभद्र हैं । पष्चिम द्वार की रक्षक महाषास्ता हैं । वायव्य कोण की रक्षिका दुर्गा देवी हैं । उत्तर द्वार के द्वारपाल सुब्रह्मण्यम हैं तथा ईषानकोण के द्वार रक्षक ष्शैलादि गणनायक हैं । इन गणनायकों के अनगिनत अनुचर हैं ।


Sunday, 13 July 2025

cheen ke ve das din antim kist

 प्रातः काल चीन यात्रा का अंतिम दिन 15 जून था होटल का चैक इन समय 12 बजे होता है। उस दिन हम लोग ओशन पार्क जा रहे थे। श्रीमती शैल बाला, सरोज गौड़    आदि कुछ लोग वहाँ नहीं जा रहे थे उन लोगों को अभी काफी शापिंग करनी थी। बस तो थी नहीं दो टैक्सी पाँच व्यक्ति प्रति टैक्सी में करके हम लोग ओशन पार्क पहुँचे।

इसलिये सब ने अपना सामान पैक किया और दो डालर प्रति नग के हिसाब से वहाँ लॉकअप रूप में सामान रख दिया

चीनी कलैंडर में 2009 ईयर आफ ऑक्स है इसकी धमक हॉगकॉग में सुनाई दे रही थी खासतौर पर ओशन पार्क में।

ओशन पार्क समुद्र किनारे एक योग पार्क है दुनियाँ भर में प्रसि( यह पार्क हॉगकॉग के सबसे बड़े आकर्षणों में एक है और बच्चों के साथ छुट्टियाँ मनाने की बड़ी खास जगहों में एक है यहाँ शेर और डाल्फिन के करतब देखने के लिये ओशन थियेटर है। स्काई फेयर प्लाजा है केवल बाट किडस् वर्ल्ड है एम्यूजमेंट पार्क और इन सबसे ऊपर मछलियों का अद्भुत संसार है।

ओशन पार्क में घुसते ही सामने जोकर करतब दिखाते मिले। कार्टून चरित्र विशाल रूप में इधर-उधर घूमते बच्चों से हाथ मिला रहे थे। एक घेरे में कुछ जिमानास्टिक करते हुए बच्चे थे गजब का लोच था उनके शरीर में। फूलों से भरे रास्ते में जरा-जरा दूर पर वहाँ पर प्रदर्शित जानवर पक्षियों की आकृतियॉं लगी थीं। ऊँची पहाड़ी रास्ता कारपेट रास्ता था वहाँ से शुरू हुआ चिड़ियाधर । वहाँ पर आस्ट्रेलिया में पाया जाने वाला शर्मीला पांडा थे। गोल-गोल गुथना-सा गोल-गोल आँखों का सफेद काला पांडा बहुत भोले सा चेहरे वाला लग रहा था।जाइंट पांडा यिंग यिंग को उस ओशियन पार्क में आये एक साल हो गया था। अब उसका परिवार हो गया था। दूसरे जाइंट पांडा का नाम कुंगफू पांडा था। तीन अलग अलग स्थान थे पांडा के । उसमें खेलते पांडा को देखने के लिये सब रूक जाते थे। शेर थे, एक विशाल पॉंड में डाल्फिन थी उनका शो तीन बजे होता था। इसलिये केवल उन्हें देखा। कुछ ने स्काई टॉवर पर राइड ली तो किसी ने अन्य राइड ली। ट्रेन पर ऊपर-नीचे की राइड बहुत फास्ट थीं। चित्रलेखा जी, मनोरमा जी, वन्दनी नन्दनी आदि ने  डैªगन राइड ली बहुत तेज गति की राइड थी। 

पतली सी पट्टियों पर तेज गति से ऊपर-नीचे गोलाकार घूमती राइड जिसका आधा हिस्सा समुद्र के ऊपर था रोमांच पैदा कर रहा था।बैलून राइड थी सौ मीटर ऊपर समुद्र के ऊपर आकाश में घूमने का अपना आनंद था।

एक गुफानुमा गैलरी थी उसका टिकिट अलग से लेना था उस में प्रवेश करते ही जैसे दूसरी दुनिया में आ गये गैलरी में अंधेरा था लेकिन ऊपर जैसे अथाह जल राशि हो उस पर मछलियाँ तैर रही थी तरह-तरह की, चौेड़े पंख नुमा गोल रंग बिरंगी बड़ी-छोटी एक करीब पाँच फुट की मछली ऊपर से गुजरी, चौड़ाई तो अधिक नहीं थी दो बालिश्त चौेड़ी पर सफेद तले पर मुँह था दो गोल भंवर सी काली आँख और दो नाक के छिद्र, चंद्राकार मुँह जैसे लाल लिपिस्टिक लगी हो बहुत ही खूबसूरत जलपरी सी। गैलरी पार करके दूसरी गैलरी में प्रवेश किया। एक तरफ विशाल  इलाके को शीशे से घेर कर जल भरा था और उसे समुद्र तल का  सा बनाया था तरह-तरह के जल-जीव वहाँ पर थे साथ ही समुद्री पौधे केकड़ा, आठ भुजाओं वाला आक्टोपस बड़ी-बड़ी मछलियाँ समुद्री जीवों का अपना पूरा संसार था।

 गोलाकार घूमते तीन मंजिल से दिखाया गया था।समुद्रीय पौध, फूलों के घास, मूंगे की चट्टान, समुद्री जीवों के जीवाश्म तक वहाँ थे। बड़े छोटे शंख घोंघे, सीप विशाल तैरते कछुएं, छोटा जीव समुद्री घोड़ा था तो विशाल दरियाई घोड़ा भी समुद्री घोड़ा एक फुट के शीशे में दीवार में दिख रहा था। उन सबसे ऊपर भयानक शार्क मछली ऊपर से भूरी तो नीचे एकदम सफेद करीब पन्द्रह और दस फीट की शार्क थी।जब घूमती पास से निकलती तो स्वतः शीश के पास से पीछे हो जाते लगता कहीं घक्का देकर शीशी न तोड़ दे इतने पास से एक इंच की दूरी से भयंकर जीव को देखना रोमांचकारी अनुभव था।  यद्यपि शीशे और हमारे बीच 3 फीट की दूरी पर रेलिंग थी शीशे को छूने की आज्ञा नहीं थी जरा जरा दूर पर गार्ड निगाह रखे हुए थे। मछलियों के लिये पहाड़ियां भी बनाई थी जिनमें कभी कभी अंदर मछलियाँ चली जाती थी। एक साइड में दीवार पर छोटे-छोटे जीवों को शीशे में दिखाया गया था। वहीं से एक कक्ष में बड़े-बड़े सिलेंड्रिकल आकार के नीले शीशे के करीब दस फुट ऊँचे और पॉच फुट आयताकार के जारों में विविध प्रकार की जैल फिश थी। अलग-अलग जार में अलग प्रकार की जैल फिश थी। लाल, पीली, बसंती, काली, हरी न जाने कितने रंग को जैल फिश रूई के से फाहे में निकलते लंबे-लंबे रेशे देखने में जितनी खूबसूरत लग रही थी। जैल फिश है छोटा जीव पर होता उतना ही खतरनाक है अगर कोई व्यक्ति उनकी चपेट में आ जाता है बेहद सूज जाता है खुजली मचती है और शरीर में जहर फैल जाता है। अंधेरे कक्ष में उन जारों पर हल्की-हल्की रोशनी थी। जैसे सुंदर शोपीस रखे हों।

आगे चलकर एम्यूजमेंट पार्क था।पास पास घेरे में छोटी छोटी दुकानंे जिसमें साथ खाने पीने का सामान पर सभी मांसाहारी था सैन्डविच वगैरह खाना नहीं चाहा क्योंकि सब शाकाहारी मांसाहारी एक साथ रखा था और उन्हीं हाथों से दे रहे थे।हम लोगों ने वहाँ पर भी नमकीन आदि ही लिया कुछ ने नूडल्स आदि लिये कुछ देर रूक कर हमने सबका इंतजार किया, वहाँ तक सब आगे-पीछे हो गये थे। रात्रि 12 बजे की हमारी फ्लाइट थी छः बजे तक होटल पहुँचना था क्योंकि दो घंटे का रास्ता था और दो घंटे पहले जाना पड़ता है सामान आदि निकालना था इसलिये वापसी यात्रा के लिये बाहर आये कुछ देर वहाँ बैठे ।ओशन थियेटर में बच्चों का कार्यक्रम व जादू के खेल आदि चल रहे थे। एक घेरे में तरह-तरह की चिड़ियाएँ थी सारस आदि थे उनका शो चल रहा था चिड़ियाएँ करतब दिखा रही थीं पंख फैला कर नाचना आदि पर यह सब कुछ देर ही देखा। बाहर फब्बारा चल रहा था वहाँ सबने फोटो खिंचाई एक यादगार के रूप में । लौटते में दूसरा मार्ग था। एक विशाल पेड़ पर कृत्रिम दानवीय चेहरा बना था थोड़ी-थोड़ी देर में उसके खुले मुँह से चिड़िया बाहर निकलती चहकती और अंदर चली जाती पूरे रास्ते फूलों के गुच्छे विभिन्न आकृति में सजाये हुए थे फूल भी भिन्न प्रकार के थे संभवतः पहाड़ी इलाके में पाये जाने वाले बड़े मोटे पत्ते और मोटी-मोटी पत्तियों के रंगबिरंगे फूल।

ओशन पार्क देखकर बहुत अच्छा लगा जैसे एक अद्भुत लोक में घूमे हों मन तो वहाँ के डिजनीलैण्ड को देखने का भी था लेकिन डिजनीलैण्ड के लिये दो दिन चाहिये थे। टैक्सियाँ तुरंत ही मिल गई करीब पाँच बजे हम अपने होटल पहुँच गये। सामान आदि निकलवाया । चाय की बहुत तलब लग रही थी लेकिन होटल के कमरे छोड़ चुके थे बैठने का स्थान कहीं भी नहीं था मनोरमा जी ने आग्रह करके होटल वालों से उनकी लॉबी जो बंद थी खुलवाई। चाय के लिये पूछा लेकिन होटल की तरफ से इंकार आ गया। हॉगकॉग के उस बाजार में सब प्रकार की दुकानें थी। लेकिन एक भी चाय की दुकान नहीं थी यद्यपि पानी कोल्डडिंªक आदि जगह-जगह मिल रहा था पानी और कोल्डड्रिंक के एक ही दाम थे।

वंदनी के पास छोटी सी केतली थी जिसमें दो कप पानी उबल जाता था सबके पास सूखा दूध और पत्ती के पाउच तो थे ही ,निकले और दो-दो कर चाय बनी, कप भी नहीं थे किसी प्रकार दो कप और चार-पाँच डिस्पोजेबल गिलास का इंतजाम हुआ और चाय बनाकर पी गई तब तक विदा लेने का समय आ गया बस भी आ गई और एक बार फिर सब हॉगकॉग एअरपोर्ट पर थे। इस बार हमारा लाउंज बत्तीस था। एअर पोर्ट पर सादा बरामदा व वाकिंग एक्सेलेटर दोनों थे कभी सादा पर कभी एक्सेलेटर पर चलकर 32 वें लाउंज पर पहुँचे कुछ देर में हॉगकॉग से विदा ली।चीन को बॉय करने के लिये हवाई जहाज की खिडकी से झांका पर किस हिस्से को बॉय कहते, वही चॉंद मुस्करा रहा था वही सागर था वही पर्वत श्रंखलाएं,हवा बदली नहीं थी,हॉं मकान ओझल हो गये थे,किस दिशा को बॉय करें,सब कुछ एक था दूर दूर तक दिगन्त अपनी एकता पर मुस्करा रहा था ।

11.55 पर हमारी उड़ान थी 2.5 पर हम देहली अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर थे। कई सामान की बैल्ट थी अंत में एक स्थान पर हमें सामान मिलता गया बाहर निकलते 4 बजे गये थे। सरोज भार्गव जी ने टैक्सी का इंतजाम कर रखा था हम सबनेएक-दूसरे से विदा ली। शीघ्र ही फिर मिलने के वायदे के साथ। सबके अपने-अपने इंतजाम था। हम पाँच किरन महाजन, डॉ॰ सरोज भार्गव, मैं श्रीमती शैलबाला एवम् सरोज गौड़ वापस आगरा आये प्रातः सात बजे हम फिर अपने-अपने घर में थे उत्साह से भरे हुए अनुभव का पिटारा लिये जिसे सबको सुनाने की उत्सुकता थीं।

दस दिन में जो कुछ गाइड के साथ मुख्य शहरों की मुख्य सड़कों पर दौड़ते वाहन में या पर्यटन स्थल पर बिना किसी दुभाषिये के घूमने मात्र से हम चीन की असली तस्वीर देख पा सकते थे। चीन का चेहरा क्या है?यह केवल चीनी गाइड ने टूटी-फूटी अटपटी अंग्रेजी में बताया क्या उसे हम सब कुछ मान पायेंगे। चीन की असली तस्वीर वहाँ के गांवो में है। असली जनता प्रमुख शहरों से दूर पुराने चीन में है। हमारा समय वहाँ की यात्रा का तब था जब ओलम्पिक की तैयारी थी। चीन अपना प्रभुत्व अपनी, चमक-दमक अपना स्वच्छ चेहरा विश्व को दिखाना चाहता था। इसलिये चीन की तस्वीर की एक उथली झलक ही हम दे सकते हैं। हाँ यह अवश्य है जो कुछ हमने बचपन में चीन के लिये पढ़ा था सुना था वह चीन अब नहीं है। वहीं अब छोटे पैर रखने के लिये लोहे के जूते पहने नहीं दिखे।

चीनी परम्परागत पोशाकें नहीं है आधुनिक चीन पश्चिमी सभ्यता से प्रभावित चीन है लेकिन मेहनतकश साफ-सुथरा चीन एक कागज का टुकड़ा भी नहीं यद्यपि चीन में पेयजल का संकट है। पीने का पानी मंहगा पेेप्सी, कोला, जूस सस्ते हैं। लेकिन सड़कें रात्रि को धुलती है बड़े-बड़े पाइप और झाडू से।

पुराने चीन की तस्वीर थी हमारी निगाह में अफीम पीते पिनक में झुंड में बैठे लंबे चोगे, लंबी पतली मूँछे और सिर पर तिकोनी टोपी लगाये पीली रंगत वाले ठिगने लोग लेकिन अब वैसा कुछ भी नहीं दिखा। बल्कि दिखते हैंे कर्मठ लंबे पतले सूखसूरत चमकती त्वचा वाले लोग, महिलाओं के चेहरे पर तो मोती की सी आभा दिखाई देती हैं। आँखे अवश्य छोटी है कुछ चीनी व्यक्तियों की नाक भी अब उठी-उठी सी दिख रही थी।

अब लाल रंग में रंगा चीन नहीं है। माओ का प्रभाव कहीं नजर नहीं आया। माओ की बड़ी तस्वीर सिर्फ उनके स्मारक के बाहर दिखाई दी। अब एक से सैनिक वाले कपड़े कहीं नहीं दिखे। रंग-बिरंगे नये फैशन के पैंट-कोट या कमीज पैन्ट दिखाई दी। महिलाएँ व लड़कियाँ स्कर्ट पैन्ट टॉप पहने दिखे। काला रंग अधिक प्रचलन में दिखा।

बीजिंग की व्यस्ततम सड़कों, पुलो और फ्लाई ओवरों पर दौड़ती दुनिया थी। एक से एक कीमती कारें दिखी, सुंदर संुदर छोटी कार, छोटे-बड़े वाहन , मोटर साइकिल या स्कूटर बहुत कम दिखाई देते हैं।

साइकिल आज भी है ,फर्राटा भरती साइकिल ,सड़कों पर सबसे किनारे साइकिल ही चलती है एकदम तेज गति की साइकिलें लेकिन विदेशी-देशी कारें, ट्रक बस बहुतायत से हैं तेज गति अब चीन का मिशन है साथ ही ध्वनि प्रदूषण और

 धुँआ प्रदूषण पर पूरी रोकथाम है उस पर नियन्त्रण है। कार आदि में हार्न है पर अत्यावश्यक होने पर ही बजाया जाता है। एक गति से गाड़ियाँ चलती चली जाती है, हार्न नहीं बजाया जाता है।चीन को प्रकृति ने संपदा भी खुल कर लुटाई है चीन में सर्वाधिक पहाड़ है सबसे बड़ा पठार है खनिज संपदाओं से धरती भरी हुई है। एवरेस्ट जिसे चीन में च्यू म्यू लैग मा फेंग कहते है विश्व की सबसे ऊँची चोटी है और सिकियांग की ‘आइटिंग’ समुद्र सतह से 505 फुट नीची है अतः ऊँचाई करीब 30,000 फुट तक बैठती है चीन की सीमा बारह देशों से मिलती है।

महिलाएँ चुस्त कर्मठ आत्मविश्वास से भरपूर दिखी। आलस्य नशा कहीं नहीं दिखा। बच्चे तो बहुत कम दिखे। एक बच्चे की संस्कृति ने अब जनंसख्या नियन्त्रण में ला दी है। चीन में पहला नाम माँ के द्वारा दिया रखा जाता है उसी को महत्व दिया जाता है।

बच्चों की नौ वर्ष तक की शिक्षा सरकार द्वारा मुफ्त दी जाती है, पाँच हजार युआन तक का खर्च साल में पढ़ाई में आता है बच्चा होस्टल में रहता है। हफ्ते में एक दिन बच्चा घर आता है। पढ़कर आते ही बच्चा जाब ढूँढ़ने लगता है। युवा होते

बच्चों पर संभवतः माँ-बाप का अंकुश या दबाव नहीं है खुले आम गले में बाहंे डालकर घूमते देखे जा सकते हैं।

कहने को एक दशक और कहा जाय मात्र दस साल में चीन का जो कायाकल्प हुआ है वह अकल्पनीय है दस वर्ष पूर्व के चीन और आज के चीन में जमीन आसमान का अन्तर है। पिछले बीस साल से अन्तर प्रारम्भ हुआ और अकथ्य अन्तर आज परिणामस्वरूप है।


Saturday, 12 July 2025

cheen ke ve das din 17

 होटल रीगल इम्पीरियल हॉगकॉग के पुराने बाजार में बना था। यहाँ सामने सब देशों की घड़ियाँ लगी थी। लाउंज में बैठने के लिये मात्र दो बेंच थी और यात्री बहुत थे। हर देश के यात्री थे। वहाँ पर भारतीय भी बहुत दिख रहे थे। काउंटर पर यद्यपि चीनी लड़कियाँ थी पर वे इंगलिश बोल लेती थी। इसलिये वार्ता में अधिक परेशानी नहीं हो रही थी। बस सामान स्वयं ही ढोना था। और लिफ्ट में रखकर चौथी मंजिल पर ले जाना था। वहाँ पूछा क्या वेटर नहीं ले जा सकते तो पता

 लगा प्रति नग दो डालर अर्थात् 70 रु0 लगेंगे तो एक-एक कर सब नग अपने आप ही पहुँचा दिये। उस समय कहीं दूर जाने का तो समय नहीं था। होटल में चाय बनाने की जिम्मेदारी श्रीमती किरन महाजन की थी। सो पी गई। चाय पीकर फ्रैश होकर लाउंज में एकत्र होकर निश्चय किया कि यहाँ आस-पास का बाजार देखा जाये तथा वहाँ इंडियन खाना मिल जायेगा  कि नहीं देखा जाये। हिम्मत करके हम चार यानि मैं शैलबाला किरन महाजन और डा॰ राजकुमारी शर्मा  चल दिये। यह हम लोगों का नियम था कहीं जाते सब कमरों में झांक झांक कर पूछ लेते कि कोई और चलेगा । मनोरमा दीदी  चादर ओड़ कर लेटी थीं‘मेरी तबियत ठीक नहीं है मैं कहीं नहीं जाउंगी।’ हॉंगकांग में भाषा सब तरह की बोल लेते हैं हिंदी भी बोलने वाले और हिन्दुस्तानी बहुतायत में हें इसलिये किसी प्रकार का खतरा नहीं लगा। हर मोड़ और स्थान को ठीक से देखते जा रहे थे। सामने सड़क पार करके पंक्तिबð बाजार था एक आम बाजार जिगजैग आकार में था एक बाजार से घूम कर दूसरे बाजार में जाया जा सकता था। चौड़ी सड़क और वन वे थी । दोनों तरफ हर सामान की दुकान थी। चलते चलते एक विशाल मॉल दिखाई दिया अगर अंदर गये तो समय लग जायेगा नौ बज चुके थे इसलिये रास्ता अच्छ ीतरह देख वापसी का रुख किया । एक होटल देखा जहॉं भारतीय खाना था पंजाब का रहने वाला उसका संचालक था । बढ़िया रहेगा  इस में खाया जायेगा पता लगाया जाये कौन कौन बाहर खाना चाहता है तब आया जायेगा । एक एक चिन्ह देखते होटल आये पर वहॉं सब आराम के मूड में थे रैस्टोरेंट जाने का उत्साह गायब हो गया और अपने अपने सामान में से खाने का सामान निकाल कर चाय के साथ खाया गया।पूरे दिन की समीक्षा तो की ही जाती थी  अरस्तू शशांक  सोने से पहले देख लेते थे कि सब ठिकाने पर हैं या नही,‘ आंटी लोगो  अब सोओ  सुबह नहीं उठना इतने बजे तैयार रहना है ’ । 

दूसरे दिन प्रातः नैन ब्लूइंग पार्क गये पर्ल नदी के किनारे बना पार्क बहुत व्यवस्थित था। तथा फूलों की अनेक प्रजातियाँ थीं कुछ फूल नये भी दिख रहे थे। कुछ आगे चलकर बत्तख आदि थीं। नावें भी थीं जिनमें वोटिंग की जा सकती थी। यहाँ पर भी बूँदों ने स्वागत किया पर सहन करने योग्य थी। वहीं से हम रिपल्शन बीच के लिये गये वहाँ पर सैलानी तैरने के लिये आते हैं एक आम सा बीच था। शार्क का खतरा रहता है इसलिये कुछ हिस्सा पीली जाली से बांध दिया गया है वहीं तक तैराकों को जाने की इजाजत है उससे आगे नहीं। यहाँ पर बूँदों ने घार का रूप ले लिया कुछ के पास बीजिंग में खरीदे छाते थे एक-एक दो-दो साथ-साथ जाकर बस तक वापस आये।

आगे विक्टोरिया पीक गये। इस पीक को तीन नाम से पुकारा जाता है विक्टोरिया पीक, फ्लैग होलिस्टिक पीक व वान चुई पीक। विक्टोरिया पीक पर जाने के लिये वहाँ से सुप्रसि( रोप वे से जाना होता है इसे हिडोलों का मेला भी कहा जाता है क्यांेकि कई-कई ट्रालियाँ मोटे-मोटे तारों पर लटकती चलती रहती है। वहाँ से हॉगकॉग की बिखरी प्राकृतिक संपदा दिखाई दे रही थी। चारों ओर हरियाली के बीच में जैसे सीमेंट के वृक्ष बिल्डिंग के रूप में उगे हो ‘शाम चुन चुन’ नदी का विहंगम दृश्य दिखाई दिया। उसमें व्यापारिक जहाज खड़े थे। पीक को पर्यटन विभाग ने पर्यटन स्थल के रूप में विकसित कर दिया है। खूब खाने-पीने के स्टॉल लगे हुए थे लेकिन सबने चिप्स आदि ही लिये और शेयर करते खाते घूम-घूम कर हॉगकॉग का सौंदर्य निहारा, विश्व का एक सुंदरतम द्वीप समूह, हृदय को स्तब्ध कर देने वाला दृश्य एक तरफ शीशे की बिल्डिंग वाला आधुनिकतम शहर दूसरी तरफ विशाल समुद्र जैसे मैदान है।यह पीक अपनी रंग-रूप दिन में सूर्य की रोशनी के आधार पर बदलती रहती है रास्ते में उस व्यक्ति का मकान दिखा जिसने कार का 8888 नम्बर प्राप्त करने के लिये 20 वर्ष पूर्व 8 मिलियन डालर दिये थे।

वैंडी से हमने आग्रह किया दोपहर के खाने के लिये ऐसे स्थान पर ले चले जहाँ हमें भारतीय खाना मिल जाये साथ ही अपने मतलब की खरीदारी करलें । उसने हमें वहाँ के प्रसि( इंडियन बाजार में छोड़ दिया। बस का सफर हमारे लिये इतना ही निश्चत था। आगे का साधन हमें ही बनाना था। बस हमें यह कहकर छोड़ गई कि वो दूसरे दिन अर्थात् तेरह जून की शाम को 6 बजे हमें लेने आयेगी। 

देखने में पुराने ढंग का बाजार था। बाजार क्या पुरानी कई मंजिला बिल्डिंग मे पास-पास दुकानें थी। जैसे मुंबई के भूलेश्वर का बाजार हो वहीं 3 मंजिल पर ढाबा था हांगकांग के इंडियन बाजार में सम्राट इंडियन ढाबा बताया तो लगा वास्तव में इंडिया का बना खाना मिल जायेगा।लिफ्ट से ऊपर चार-चार व्यक्ति जा रहे थे लंबी लाइन थी पूरी बहुमंजिला इमारत में जितनी भीड़ थी उतनी लिफ्ट नहीं थी। जीने भी थे पतले अंधियारे भरे। उस समय इतने थके हुए थे। कि जीने से जाने की हिम्मत नहीं हुई।  बिल्कुल साधारण कुर्सी मेज वाला फटका मार्का ढाबा था लेकिन सरदार जी ने हमारा बहुत अच्छे से स्वागत किया यद्यपि दोपहर के भोजन के बाद वहाँ भोजन समाप्त हो गया था और चाय का समय प्रारम्भ हो गया था लेकिन सरदार जी ने तुरंत हमारे लिये रोटी माह की दाल, टमाटर आलू की सब्जी व चावल तैयार कराये।उस समय महसूस हुआ कि भारतीय खाने में कैसी तृप्ति है। जिव्हा और पेट और आत्मा सब तृप्त हो जाते हैं नही तो जैसे अधूरेपन का एहसास होता है। मनोरमा जी की तबियत कुछ ढीली हो रही थी। इसलिये उन्होंने कुछ खाया नहीं था। लेकिन हमारे साथ-साथ पूरा बाजार घूमा। सामान सही मिल रहा था। डर भी था कहीं नकली सामान नहीं हो लेकिन सब सामान बहुत ठीक निकला चाहे मेकअप का सामान हो चाहे इलैक्ट्रानिक सामान दाम भी बहुत बाजिब थे।अधिकांश दुकानदार भारतीय थे। पाकिस्तानी, चाइनीज,और तिब्बती भी थे ।कहीं बड़े बड़े डिब्बों में कपड़े रखे थे तो पंक्ति से इलैक्ट्रोनिक सामान की दुकानें थीं।घूमते-घूमते सब अलग-अलग हो गये थे किसी को कहीं कुछ पसंद आ रहा था किसी को कहीं कुछ। निश्चय यही किया कि सब होटल पहुँच जाय।पहले सबने उसी बाजार में शापिंग की उसके बाद उसके सामने बाजार में शापिंग की वहॉं का बाजार बिलकुल सदर बाजार सा था और एक एक वस्तु की एक एक दुकान थी अब लौटने का समय हो रहा था इसलिये शापिंग भी जरूरी हो गई थी।

मैं ,शैलबाला एवम् किरन महाजन होटल के लिये निकले। हमने वहाँ पूछा होटल रीगल कहाँ से जायें तो वहाँ लोगों ने बताया करीब आधा किलोमीटर दूर है आप पैदल जा सकती हैं। बस एक बाजार पार कर मोड़ है वहाँ से सामने ही रीगल है।

हम लोग पैदल चल दिये पूछते-पूछते कई मोड़ निकल गये अंत में बहुत पॉश और खुला स्थान आ गया। लगा चक्करघिन्नी हो जायेंगे क्योंकि हमारा होटल तो पुराने बाजार में था, जैसे चाँदनी चौक के स्थान पर इंडिया गेट पहुँच गये हो वहाँ सामने बताया होटल रीगल है था तो होटल रीगल ही लेकिन वह होटल रीगल इंटरनेशनल था बाहर से ही देखने से समझ गये हम भटक चुके हैं क्या किया जाये पहले तो पता लगाया जाये कि आखिर हम कितनी दूर हैं ।यह हमारा होटल नहीं है होटल इंटरनेशनल सात सितारा होटल था। हमारे होटल की ही शाखा। थक तो रहे थे  होटल के सामने पार्कनुमा स्थान था गोल गोल घास और फूलों के  स्थान से बने थे एस पर बैठ गये  जब जरा सांस आई तो वहाँ हमने अंदर पहुँच कर उनके मैनेजर से बात की और आग्रह किया कि हमें होटल रीगल इम्पीरियल के लिये टैक्सी मंगा दें। उन्होंने हमें आश्वासन दिया और अपने होटल की टैक्सी से हमें होटल रीगल इम्पीरियल भेज दिया। कम से कम पन्द्रह किलोमीटर दूर वह होटल था बाहर से देखते ही शांति मिली चलो ठीक-ठाक पहुँच गये। अपने इस अभियान को चुपचाप दबा गये नहीं तो संभवतः सब चढ़ पड़ते कि बहुत होशियार मत बनो ठीक-ठाक वतन पहुँचो।

चाय पीकर हमने अन्य साथियों को देखा कुछ आकर आराम कर रहे थे कुछ अभी नहीं आये थे। पिछले दिन हमने पास के बाजार में बहुत विशाल आधुनिकतम मॉल देखा था दूसरे दिन वापस भारत के लिये आना था। इसलिए वहॉं पर देखे विशाल मॉल की ओर चल दिये हमारे साथ डॉ॰ राजकुमारी शर्मा भी थी। पाँच मंजिल के मॉल में हर मंजिल पर अलग-अलग सामान मिल रहा था। समय बचत के लिये हमने निश्चय किया  यदि खरीदारी में आगे-पीछे हो जाये तो मेन गेट की सीढ़ियों पर मिलेंगे। यद्यपि मॉल इस ढंग का था ऊपर से देखने पर हर मंजिल का व्यक्ति दिख रहा था। एक स्थान पर हम सब अलग-अलग हो गये और ऊपर-नीचे करते सामान देखते मिलते गये अंत में जब थक गये तब हम तीन तो एक-एक कर सीढ़ियों पर आ गये लेकिन डॉ॰ राजकुमारी शर्मा का कहीं पता नहीं चला हम बार-बार मॉल के अंदर गये जाकर देखकर आते एक जगह वो दिखाई दी हमने आवाज लगाई लेकिन उन्हें नहीं सुनाई दिया जब तक हम उतरकर वहाँ पहुँचें वे गायब हो गई। करीब एक घंटा हमें बैठे हो गया तब हमने सोचा सड़क पर खड़े होकर देखते हैं हम जैसे ही सड़क पर आगे बढ़े डॉ॰ राजकुमारी शर्मा आती दिखाई दीं । एक से दरवाजे होने की वजह से वो दूसरे गेट पर पहुँच गईं थी। खैर ‘अंत भला सो सब भला’ भगवान का धन्यवाद दिया बिछड़े साथी से मिलना उस समय कितना सुखद लगा बयान नहीं किया जा सकता। अंदर जो भय ठहर गया था काफूर हो गया और चुहल करते हुए एक इंडियन होटल में नॉन, सब्जी आदि खाते होटल पहुँचे। भटकने का दिन समाप्त हुआ। तब तक सब साथी आ चुके थे। वंदनी नंदनी, चित्रलेखा जी आदि की कुछ बातें बहुत अक्ल देने वाली थी। कभी भी ऐसे देश में जहाँ हमें लगे खाद्य-पदार्थ आसानी से उपलब्ध नहीं होगें पैक्ड खाना ले जाना चाहिये वे लोग उपमा आदि के पैकेट ले गई थी। एकदम गर्म पानी तो चाइना में पीने के लिये हर होटल में रहता ही था वे उसे डालकर अपना भोजन तैयार कर लेती थी। इसलिये उन्हें अधिक भोजन के लिये नहीं भटकना पड़ा था।


Friday, 11 July 2025

cheen ke ve das din 16

 प्रातः आठ बजे हम हांगकांग जाने के लिये तैयार थे। दोपहर 12.5 की हमारी उड़ान थी। बीजिंग हवाई अड्डा, विश्व का सबसे बड़ा अड्डा देखा।बीजिंग एअरपोर्ट दूर से देखने पर डैªगन आकृति में डिजाइन किया गया है। उस समय उसकी विशेषता ज्ञात नहीं थी नहीं तो आकृति को देखने का प्रयास करते और विशाल आकृति अंदर से नहीं देखी जा सकती यह हवाई जहाज से ही देखी जा सकती थी हवाई जहाज उड़ा तब हमने बीजिंग हवाई अड्डा देखा अवश्य पर इसकी विशेषता पर ध्यान नहीं गया ।दस लाख, वर्ग मीटर क्षेत्र में बना यह एअरपोर्ट दुनिया का सबसे बड़ा एअरपोर्ट टर्मिनल है।  उड़ान 


स्थल के लिये मैट्रो ट्रेन जैसी ट्रेन से ले जाया गया।ट्रेन पन्द्रह मिनट तक तीव्र गति से चलती रही इससे  एअर पोर्ट की लंबाई का अंदाज लगाया जा सकता है । सामान तो हवाई अड्डे पर पहुँचते ही चैक इन हो गया था। हमारे पास बस हमारे हैण्ड बैग थे। ट्रेन बीस मिनट तक पूरी रफ्तार से एअरपोर्ट की टनल में चलती रही, तब जाकर हम गंतव्य तक पहुँच एक्सेलेटर से प्रथम तल पर गये वहाँ पर बड़े-बड़े शोरूम थे। वहीं हैण्डबैग आदि चैक किया गया। विशाल लांउज में कुरसियाँ पड़ी थी यात्रा में अभी समय था बैगों में पड़ी नमकीन आदि निकल कर खिलानी प्रारम्भ हुई। साफ सुथरे फर्श पर नमकीन गिर जाती तो अपने आप ही आत्मग्लानि सी महसूस होती इसलिये बाद में सबने कोशिश की जो गिराई है उसे बीन लें।

चार घंटे की हवाई यात्रा के पश्चात् हम एक बार फिर हांगकांग हवाई अड्डे पर थे पहले दिल्ली से हांगकांग फिर हांगकांग से शंघाई की यात्रा की थी। अब फिर बीजिंग से हांगकांग पहुँचे थे। इस बार हांगकांग एअरपोर्ट अच्छी तरह से देखा हांगकांग हवाई अड्डे पर से निकलते-निकलते एक घंटा लग गया। वहाँ बड़े-बड़े शोरूम थे खाने के शोरूम पर खाना सामने बन रहा था। जो डिश खानी हो वह आपके सामने बनेगी।हर प्रकार का सामान मिल रहा था ।

यहाँ पर हमें गाइड वैंडी को मिलना था। परंतु वह पहुँची नहीं काफी समय उसे देखने में लग गया। नीचे लाउंज में एक ओर हम सब सामान लेकर बैठ गये थे और बार-बार तख्तियाँ देख रहे थे पर हमारे गु्रप के लिये कोई भी तख्ती लिये नहीं दिखी। अरस्तू प्रभाकर व शशांक प्रभाकर बार-बार इधर-उधर देख रहे थे। अंत में जब वैंडी प्रगट हुई तब जान में जान आई। बस जिस पुल को पार कर होटल की ओर रवाना हुई वह नया ही बना था। जैसे एक परीलोक के रास्ते पर चल रहे हो। बड़ी-बड़ी मोटी लोहे की लचीली रस्सियों से बंधा पुल डगमग रोशनी से नहाया अद्भुत लग रहा था।

हांगकांग दो हिस्सों में बंटा है। एक तरफ हांग और दूसरी तरफ कांग है। यह चीन के दक्षिण पठार के दक्षिण चायना सागर तथा पर्ल नदी के डेल्टा के निकट है। यह अपने प्राकृतिक गहरे बंदरगाह के लिये प्रसि( है। यह 1100 कि.मी. के क्षेत्र में फैला है इसकी जनसंख्या 7 करोड़ है। विश्व के अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक केन्द्रांे में अग्रिम है।

मुझे तो बहुत कुछ मुंबई सा ही लगा समुद्र के किनारे-किनारे बसा। हांग कांग में ऊँची ऊँची अट्टालिकाएँ है। लेकिन इनमें चौथी मंजिल कहीं नहीं मिलेगी। एक दो तीन और फिर पाँचवीं मंजिल होगी फ्लैटांे के निर्माण में फेगशुई का बहुत 

ध्यान रखा जाता है। बागुआ दर्पण का प्रयोग किया जाता है। कहा जाता है यहाँ फ्लैट इतने पास-पास है कि खिड़की खोल कर पड़ोसी से हाथ मिला लें जैकी चेन यहीं हांगकांग का निवासी था। यहाँ पर मार्शल आर्ट बहुत लोकप्रिय है बु्रशली, चाउमन फैट एवं यूओन ओ पिंग बहुत लोकप्रिय हैं। यहाँ के हैगहोम शहर की सभी बिल्डिंग लाल ईंटों की बनी है। यहाँ की रातें बहुत खूबसूरत होती है। गोल्डन बाथ बहुत प्रसि( है।

1 जुलाई यहाँ का स्वतंत्रता दिवस है। 1839-1842 के प्रथम अफीम यु( के बाद हांगकांग ब्रिटिश शासन की एक कॉलानी बन गया।1997 के बाद यहाँ आर्थिक मंदी का दौर आया लेकिन चीन की वजह से यह आर्थिक मंदी से उबरा। यहाँ का अधिकतर निर्माण व्हूम पी ग्रुप ने कराया ये मध्य चीन से आये थे इनका शापिंग माल शिप की आकृति का है।

हॉगकॉग द्वीप विक्टोरिया हार्बर के बाद दूसरा सबसे बड़ा द्वीप है। रात्रि को यहाँ लेजर शो होता है। 

हॉगकॉग में अंतरिक्ष म्यूजियम ,आर्ट म्यूजियम बहुत प्रसि( है। ब्रिटिश कॉलानी अलग से है। बहुत से व्यक्ति रोज ट्रेन से शाम को चीन जाते हैं 45 मिनट में ट्रेन पहुँचा देती है। वहाँ मसाज कराकर वापस आ जाते है।कहते हैं यहॉं स्वर्ण के टब में  स्नाान कराया जाता है। सुनकर सबका मन कर रहा था कि यहॉं आकर मसाज का मजा तो लेना चाहिये परंतु फीस 10 हजार डालर । चलो भाई आगे बढ़ो सोचने में कुछ खर्च नहीं होता ।मन ही मन कल्पना करो कि  सोने के टब में सुगंधित पानी में गले तक डूबे हैं नजाने कितने फिल्मी दृश्य ऑंखों के  आगे घूम गये  । 

हांगकांग में 9 साल तक की शिक्षा स्कूल में 3 साल जूनियर स्कूल में फ्री है। उसके बाद बच्चे अपने काम में लग जाते है। इंगलैण्ड की शिक्षा व्यवस्था ही यहाँ लागू है। यहाँ की संस्कृति पूर्व व पश्चिम का मेल है।कहा जाता हैं अक्टूबर में हांगकांग स्वर्ग की तरह हो जाता है। नीला आकाश हवा में तीखापन, सूर्य में चमक ,पहाड़ पर फैली हरीतिमा को नवीनता प्रदान करता नीला बंदरगाह जैसे प्रकृति सारी सुंदरता उड़ेलती खड़ी है।हॉगकॉंग का सबसे बड़ा द्वीप लैण्ड टॉवर है यहाँ का प्रमुख व्यवसाय मछली पालन है।इसमें 18 भौगोलिक जिले है। यहाँ करीब 28 कैसीनो है जिनमें 23 कैसीनो एक ही परिवार के हैं अन्तर्राष्ट्रीय वित्त निगम की बिल्डिंग 88 स्टोरी की है।

हांगकांग में मुख्य रूप से न्यू ईयर डे स्पिं्रग फैस्टीवल क्विंगमैग फैस्टीवल, मिड औटम फेस्टीवल और राष्ट्रीय दिवस मनाये जाते है। स्प्रिंग फैस्टीवल और नेशनल होली डे ये दो सप्ताह सुनहरे सप्ताह के रूप में मनाये जाते है।हॉगकॉग में ड्रैगन वोट रेस बहुत प्रसि( है। प्रति वर्ष अनेक टीम पूरे देश में भाग लेेने आती है। उत्सव के दौरान लोग चावल का बनाया व्यंजन खाते हैं। यहॉं की प्रसिð कहावत है ‘अपने सर्दी के कपड़े तब तक उठाकर न रखें जब तक कि चावल के डम्पलिंग न खा लें अर्थात् गर्मी डैªगन वोट उत्सव के बाद पड़ना प्रारम्भ होती है।

दूर दूर से लोग उत्सव में भाग लेने आते हैं कहा जाता है उत्सव के समय तैरना सौभाग्य और स्वास्थ्य लाता है इसे टयूस्त्र उत्सव भी कहा जाता है इस उत्सव के साथ कथा जुड़ी है

400 ई॰ पूर्व वारिंग साम्राज्य के समय च्यू राज्य के राजा हुर्द के एक मंत्री क्यू युआन केा धोखबाज अधिकारियों ने फंसा दिया राजा ने क्यू युआन को निलंबित कर देश निकाला दे दिया क्यू युआन को बहुत दुःख हुआ और वह माइलो नदी में कूद कर डूब गया। जनता नाव लेकर क्यू युआन को ढूूंढ़ने लगी लेकिन नहीं ढूंढ़ पाई। सारी नदी को चप्पुओं से छान मारा, सारा समय ड्रम बजाते रहे और चावल के गोले बनाकर मछलियों से क्यू युआन को बचाने के लिये नदी में डालते रहे।

अब इसने धीरे धीरे सांस्कृतिक प्रथा का रूप ले लिया और स्थानीय त्यौहार बन गया। यह इतना लोकप्रिय हुआ कि एक अन्तर्राष्ट्रीय वोट रेस प्रतियोगिता का रूप ले लिया और बहुत उत्साह से आयोजित की जाती है।


Thursday, 10 July 2025

cheen ke dus din 15

 जैसा कि हर देश में पर्यटकों के साथ होता है कुछ शापिंग स्थान बसों के निश्चित होते हैं वहाँ पर जाकर रुकते हैं लेकिन बस एक अन्य विशाल जैड शोरूम के अहाते में रुकी  एक विशाल एम्पोरियम कहिये या पूरा मॉल आभूषण जैड मूर्ति पेंटिंग आदि का था। वहाँ जैड की कलाकृतियाँ बन रही थी। रत्नों की कटिंग आदि का काम व पेटिंग बनने का काम चल रहा था।जैड के बड़े छोटे पत्थर के टुकड़े ऐसे लग रहे थे मानो तरह तरह के हल्के रंगों की वर्फ की सिलें रखी हैं लाइन से मशीनों से कटिंग हो रही थी  वहीं कलाकार मूर्तियों को आकार दे रहे थे अर्थात् वह कारखाना भी था और शोरूम भी था।जैड की वहाँ बड़ी बड़ी प्रतिमाएँ थीं दर्शनीय कलाकारी थी। एक चित्रकार पेन्टिंग बना रहा था बड़े बड़े कैनवास पर वहॉं की कला संस्कृति चित्रित थी ।प्रवेश द्वार के सामने ही जैड पत्थर से प्राकृतिक दृश्य बनाया हुआ था। चीनी कारीगरी का अद्भुत नमूना थे सब यद्यपि हम सब में एक भी व्यक्ति खरीदार नहीं था क्योंकि एक एक कलाकृति हजारों डालर की थी लेकिन कला देखने का भी अपना मूल्य होता है हमने अद्भुत देखा एक बार तो घुसने में उलझन लगी थी क्योंकि हम शापिंग आदि में समय खराब न कर पर्यटन स्थलों पर अधिक समय बिताना चाहते थे । जैसा कि महिलाओं की कमजोरी मानी जाती है भूख लगते हुए भी वहाँ पर आभूषण देखने में सबने बहुत समय लगाया कुछ ने अपनी जेब भी हल्की की।

अगला पड़ाव लंच का था । एक चाइनीज रैस्ट्रॉं डाउजिन  में इस बार दोपहर का हमारा लंच था। रैस्ट्रां था तो बड़ा लेकिन गोलाकार मेज बहुत पास.पास लगी थीं। करीब.करीब सब मेजें घिरी थीं।  एक किनारे से बीच  में एक स्टेज बना था। सब मेज पर चीनी लोग ही थे। एक अजीब तीखी गंध से रैस्ट्रां भरा था किसी से भी गंध सहन नहीं हो रही थी। हमारे सामने जो खाना आया वह था नूडल उबली मूंगफलीए कटा प्याज सादा चावल आदि । पूरी मेज भर गई पर समझ में नहीं आ रहा था क्या खाए कि तृप्ति पाई जाये। वहाँ हरी पत्ती की चाय खाने से पूर्व पी जाती है। केतली में पतली  कम से कम चार फुट लंबी नली पिचकारी जैसी होती है उससे छोटे.छोटे प्यालों में सूण्ण्ण्ण्करने की आवाज करते.भरते हैं। यद्यपि हलके रंग का सुगंधित पानी ही देखने में लगता है  प्याले में  तो लग रहा था एकदम गरम होगा लेकिन मुॅंह लगाया तो गुनगुना सा था। उसे पीकर थकान एकदम गायब हो जाती है ऊर्जा मिलती है।

वहीं स्टेज पर चीनी बालाओं ने वहाँ के पारम्परिक परिधान पहनकर लोकनृत्य व नाटक प्रस्तुत किया।काबुकी के समान पुरानी कथाएँए कविता में और गीतों में प्रस्तुत किये। खाने से भले ही मन नहीं भरा हो पर वहाँ असली चीनी संस्कृति से परिचय हुए। एक तरफ जारों में कई प्रकार के पदार्थ रखे थे उनके साथ ही सॉप छोटा अजगरए केंकड़ा आदि भी रखे थे। दीपक जी ने कई चीनी व्यंजनों के बनाने की विधि बताई एक प्लेट में झींगे रखे थे। सॉप के व्यंजन व झींगों के व्यजंन चीनी बहुत स्वाद से खाते हैं। हर देश की अपनी सभ्यता अपनी संस्कृति अपना खान.पान होता है वह उन्हें अच्छा लगता है किसी के खान.पान को देखकर हम यदि चेहरे पर अरूचिकर भाव लायंे इससे अच्छा है उधर देखे ही नहीं । हमारे पास की एक मेज पर एक व्यक्ति ने पहले वन के एक टुकड़े पर टमाटर रखा फिर कटा पत्तागोभी रखा फिर संभवतः मेढक ही था जिसकी खाल उतरी हुई थी क्योंकि बन से टांग लटकती देखी उस पर कुछ छिड़का दूसरे टुकड़ा वन का रखा उसके साथ ही मैंने आँख हटा ली। दूसरी मेज पर चीनी खाने की प्रसि; प्रक्रिया देखी दो स्टिक से एक.एक चावल तेजी से खा रहा था।

उसकी तर्ज पर अपने हाथ में स्टिक लेकर चावल खाने का प्रयत्न किया कोशिश में दस चावल तो मुँह में चले ही गये। रास्ते

े में दीपक जी ने हमें बंदर पकाने कीए बतख पकाने की प्रक्रिया बताई। संभवतः उनका वर्णन करना मेरे लिये आसान नहीं होगा । 

अगला लक्ष्य टिन हैन या थ्येन थान और अपनी भारतीय भाषा में कहे तो स्वर्ग मंदिर था। स्वर्ग मंदिर में चीनी सम्राट वर्ष में एक बार जाकर अच्छी फसल के लिये प्रार्थना किया करते थे। इस मंदिर का निर्माण मिंग वंश के शासकों ने 1419 ईस्वीं में किया था। सन् 1751 ईस्वी में भापू शासकों ने इसका पुर्न निर्माण कराया। 1889 ईण् में इसके एक भाग को फिर से मरम्मत कराई गई थ्येन चीनी भाषा में स्वर्ग के लिये प्रयुक्त होता है और थान मंदिर के लिए। 

मंदिर के ऊपर चीनी भाषा में लिखा है ष्अच्छे वर्ष के लिये प्रार्थना करो।ष्

स्वर्ग मंदिर बीजिंग के दक्षिण की ओर जाने वाली सड़क युंग्टिंगमेग के पूर्व में स्थित है।टैम्पल ऑफ हैवन बीजिंग का एक सुप्रसि; मुख्य स्थल है यह एक तरह से बीजिंग की पहचान है वहाँ के पर्यटन स्थलों में इसे प्रमुख स्थान मिला हुआ है। यह करीब 200 हैक्टेयर में फैला है।  

स्वर्ग मंदिर का मुख्य द्वार सांची स्तूप के द्वार से मिलता है। यह लाल रंग का बहुत बड़ा बना है। इधर.उधर दो उससे छोटे द्वार है। बीच के द्वार से राजपरिवार प्रवेश पाता था और इधर.उधर के दरवाजे से राज्य कर्मचारी प्रवेश पाते थे। अब आम जनता हर दरवाजे से प्रवेश कर सकती है। एक तरफ प्रवेश का टिकिट हाल बना था उसमें कई खिड़कियाँ बनी थी। विदेशी और स्थानीय के लिए अलग.अलग खिड़की थी। चीन में हर स्थान को देखने के लिये टिकिट लगता है। विदेशी और चीनी नागरिकों के लिये टिकिट का मूल्य अलग.अलग है अधिकतर पाँच युआन का टिकिट लगता रहा था। कहीं.कहीं अधिक भी लगता था। टिकिट लाने का काम हर स्थान पर अरस्तू प्रभाकर व ओशो ही करते रहे। यहाँ हर द्वार पर लोहे की बैरीकेटिंग कर दी गई थी। एक.एक कर प्रवेश दिया जा रहा था। 

चारों ओर साइप्रस के वृक्षों से घिरे चार मुख्य हाल है जो एक दूसरे के सीध में बने है ओर दीवार के साथ.साथ एक दूसरे से मिले है। मंदिर के मुख्य भाग में आवाज चारों ओर से प्रतिध्वनित होती है।सब अपनी आवाज सुनने का प्रयास कर रहे थे ई आ ऊ का शोर मचा था स्वर्ग मंदिर के मुख्य स्तूप की दीवारों को  थपथपाने पर उस में से भी आवाज आ रही थी 

स्वर्ग मंदिर तीन हिस्सों में बंटा है उसमें प्रवेश के लिये लंबा गलियारा पार करना पड़ता है। इसका पहले भाग को ह्नान ह्यू कहते है दूसरे भाग को हान फंुग ही । वहीं एक चबूतरा बना है। उसे चारों ओर जंजीरों से घेरा है जिससे उस पर कोई पैर न रख सके। इस चबूतरे की चाओ चेन कहा जाता है। एक हाल में सम्राट के उपयोग की वस्तुएँ रखी हैं। बीच.बीच में 

धूप जलाने के लिये विशाल आधार बने हैं। अंदर हाल में एक तिमंजला वेदी के चारों ओर नौ बड़े.बड़े घेरे बने थे।

मुख्य द्वार की छत गुंबद के आकार की है उस पर सोने की पच्चीकारी हो रही है। छत पर गहरे नीले रंग की टाइललगी है।बीच में एक ऊँचे चबूतरे पर एक विशाल सिंहासन रखा था। उसके चारों ओर पोर्सलीन की गायें बनी थी। वह स्थान भी जंजीरों से घिरा था। मंदिर के चारों ओर बहुत बड़े.बड़े बाग थे जिनमें तरह.तरह के वृक्ष लगे हुए थे बाहर की तरफ

एक पंक्ति से बहुत सी  दुकानें थी यहाँ मुख्यतः पेटिंग का सामान मिल रहा था चित्र लेखा जी व सरोज जी ने पेटिंग का बहुत सामान खरीदा कुछ.कुछ हमने भी खरीदा। पैंसिलए बु्रश आदि बहुत अच्छे माने जाते हैं। तरह.तरह के हाथ के बने चित्र भी मिल रहे थे पास ही पेटिंग का कारखाना था।स्वर्ग मंदिर को देखकर चीनियों की  स्थापत्य कला में निपुणता का लोहा मानना पड़ेगा। नक्षत्र विद्याए भौतिक शास्त्रए गणितीय विद्या और कला क्षेत्र में बहुत उन्नत थे।

स्वर्ग मंदिर के बाद बस फिर एक विशाल मॉल के बाहर रूकी। हम सभी उतरने के लिये मना करने लगे। सैफरीना से कहा भी हमें ऐसे स्थानों पर मत रुकाओ हम खरीदारी में समय खराब नहीं करना चाहते लेकिन फिर भी कुछ लोग उतर गये तो सबने उतरकर वह मॉल देखा।यद्यपि उलझन लग रही थी पर अंदर घुसते ही लगा वास्तव में देखने योग्य कलाकृतियॉं हैं । शो रूम के प्रवेश द्वार पर सामने ही जैड पत्थर से ही प्राकृतिक दृश्य बनाया हुआ था ।उसमें झरना भी था परी  भी  थी अलग अलग रंग के जैड पत्थरों को काटकर उन्हें वही रंग देकर वास्तविकता लाने का प्रयास किया था । ये कृतियॉं चीनी कलाकारी का अदभुत् नमूना थी  आदमकद और उससे भी बड़ी बड़ी कलाकृतियॉं लगी हुई थी यद्यपि हम में से कोई भी खरीदार नहीं था क्योंकि हजारों डालर की एकएक कलाकृति थी लेकिन भारत के हिसाब से बहुत सस्ती थीं। कला देखने की तृप्ति का ऐहसास था । एक बार घुसने में उलझन तो लगी थी कि समय खराब हो रही है। पर्यटन स्थल तो देखने ही चाहिये लेकिन वह भी पर्यटन का एक अंग है वैसी कृतियॉं भारत में देखना असंभव है बड़ी प्रर्दशनियों में कभी कभी बड़ी कलाकृतियॉं आ जाती हैं पर उतनी बड़ी विशाल और सुंदर नहीं ।  लौटते में एक इंडियन रैस्टोरेंट में रुके वहाँ पर डिनर लिया और होटल पहुँच गये। प्रातः हमें जल्दी होटल छोड़ना था। डॉ॰ राजकुमारी शर्मा के पैरों में बहुत दर्द था। परंतु उनकी हिम्मत उनकी आत्मशक्ति देखकर बहुत अच्छा लग रहा था। रात में बार.बार उठकर दवाखाना व सिकाई का उनका क्रम चल रहा था। दिन में बराबर सबके साथ चल रही थी यद्यपि घुटनों में बहुत सूजन थी।