Friday, 11 July 2025

cheen ke ve das din 16

 प्रातः आठ बजे हम हांगकांग जाने के लिये तैयार थे। दोपहर 12.5 की हमारी उड़ान थी। बीजिंग हवाई अड्डा, विश्व का सबसे बड़ा अड्डा देखा।बीजिंग एअरपोर्ट दूर से देखने पर डैªगन आकृति में डिजाइन किया गया है। उस समय उसकी विशेषता ज्ञात नहीं थी नहीं तो आकृति को देखने का प्रयास करते और विशाल आकृति अंदर से नहीं देखी जा सकती यह हवाई जहाज से ही देखी जा सकती थी हवाई जहाज उड़ा तब हमने बीजिंग हवाई अड्डा देखा अवश्य पर इसकी विशेषता पर ध्यान नहीं गया ।दस लाख, वर्ग मीटर क्षेत्र में बना यह एअरपोर्ट दुनिया का सबसे बड़ा एअरपोर्ट टर्मिनल है।  उड़ान 


स्थल के लिये मैट्रो ट्रेन जैसी ट्रेन से ले जाया गया।ट्रेन पन्द्रह मिनट तक तीव्र गति से चलती रही इससे  एअर पोर्ट की लंबाई का अंदाज लगाया जा सकता है । सामान तो हवाई अड्डे पर पहुँचते ही चैक इन हो गया था। हमारे पास बस हमारे हैण्ड बैग थे। ट्रेन बीस मिनट तक पूरी रफ्तार से एअरपोर्ट की टनल में चलती रही, तब जाकर हम गंतव्य तक पहुँच एक्सेलेटर से प्रथम तल पर गये वहाँ पर बड़े-बड़े शोरूम थे। वहीं हैण्डबैग आदि चैक किया गया। विशाल लांउज में कुरसियाँ पड़ी थी यात्रा में अभी समय था बैगों में पड़ी नमकीन आदि निकल कर खिलानी प्रारम्भ हुई। साफ सुथरे फर्श पर नमकीन गिर जाती तो अपने आप ही आत्मग्लानि सी महसूस होती इसलिये बाद में सबने कोशिश की जो गिराई है उसे बीन लें।

चार घंटे की हवाई यात्रा के पश्चात् हम एक बार फिर हांगकांग हवाई अड्डे पर थे पहले दिल्ली से हांगकांग फिर हांगकांग से शंघाई की यात्रा की थी। अब फिर बीजिंग से हांगकांग पहुँचे थे। इस बार हांगकांग एअरपोर्ट अच्छी तरह से देखा हांगकांग हवाई अड्डे पर से निकलते-निकलते एक घंटा लग गया। वहाँ बड़े-बड़े शोरूम थे खाने के शोरूम पर खाना सामने बन रहा था। जो डिश खानी हो वह आपके सामने बनेगी।हर प्रकार का सामान मिल रहा था ।

यहाँ पर हमें गाइड वैंडी को मिलना था। परंतु वह पहुँची नहीं काफी समय उसे देखने में लग गया। नीचे लाउंज में एक ओर हम सब सामान लेकर बैठ गये थे और बार-बार तख्तियाँ देख रहे थे पर हमारे गु्रप के लिये कोई भी तख्ती लिये नहीं दिखी। अरस्तू प्रभाकर व शशांक प्रभाकर बार-बार इधर-उधर देख रहे थे। अंत में जब वैंडी प्रगट हुई तब जान में जान आई। बस जिस पुल को पार कर होटल की ओर रवाना हुई वह नया ही बना था। जैसे एक परीलोक के रास्ते पर चल रहे हो। बड़ी-बड़ी मोटी लोहे की लचीली रस्सियों से बंधा पुल डगमग रोशनी से नहाया अद्भुत लग रहा था।

हांगकांग दो हिस्सों में बंटा है। एक तरफ हांग और दूसरी तरफ कांग है। यह चीन के दक्षिण पठार के दक्षिण चायना सागर तथा पर्ल नदी के डेल्टा के निकट है। यह अपने प्राकृतिक गहरे बंदरगाह के लिये प्रसि( है। यह 1100 कि.मी. के क्षेत्र में फैला है इसकी जनसंख्या 7 करोड़ है। विश्व के अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक केन्द्रांे में अग्रिम है।

मुझे तो बहुत कुछ मुंबई सा ही लगा समुद्र के किनारे-किनारे बसा। हांग कांग में ऊँची ऊँची अट्टालिकाएँ है। लेकिन इनमें चौथी मंजिल कहीं नहीं मिलेगी। एक दो तीन और फिर पाँचवीं मंजिल होगी फ्लैटांे के निर्माण में फेगशुई का बहुत 

ध्यान रखा जाता है। बागुआ दर्पण का प्रयोग किया जाता है। कहा जाता है यहाँ फ्लैट इतने पास-पास है कि खिड़की खोल कर पड़ोसी से हाथ मिला लें जैकी चेन यहीं हांगकांग का निवासी था। यहाँ पर मार्शल आर्ट बहुत लोकप्रिय है बु्रशली, चाउमन फैट एवं यूओन ओ पिंग बहुत लोकप्रिय हैं। यहाँ के हैगहोम शहर की सभी बिल्डिंग लाल ईंटों की बनी है। यहाँ की रातें बहुत खूबसूरत होती है। गोल्डन बाथ बहुत प्रसि( है।

1 जुलाई यहाँ का स्वतंत्रता दिवस है। 1839-1842 के प्रथम अफीम यु( के बाद हांगकांग ब्रिटिश शासन की एक कॉलानी बन गया।1997 के बाद यहाँ आर्थिक मंदी का दौर आया लेकिन चीन की वजह से यह आर्थिक मंदी से उबरा। यहाँ का अधिकतर निर्माण व्हूम पी ग्रुप ने कराया ये मध्य चीन से आये थे इनका शापिंग माल शिप की आकृति का है।

हॉगकॉग द्वीप विक्टोरिया हार्बर के बाद दूसरा सबसे बड़ा द्वीप है। रात्रि को यहाँ लेजर शो होता है। 

हॉगकॉग में अंतरिक्ष म्यूजियम ,आर्ट म्यूजियम बहुत प्रसि( है। ब्रिटिश कॉलानी अलग से है। बहुत से व्यक्ति रोज ट्रेन से शाम को चीन जाते हैं 45 मिनट में ट्रेन पहुँचा देती है। वहाँ मसाज कराकर वापस आ जाते है।कहते हैं यहॉं स्वर्ण के टब में  स्नाान कराया जाता है। सुनकर सबका मन कर रहा था कि यहॉं आकर मसाज का मजा तो लेना चाहिये परंतु फीस 10 हजार डालर । चलो भाई आगे बढ़ो सोचने में कुछ खर्च नहीं होता ।मन ही मन कल्पना करो कि  सोने के टब में सुगंधित पानी में गले तक डूबे हैं नजाने कितने फिल्मी दृश्य ऑंखों के  आगे घूम गये  । 

हांगकांग में 9 साल तक की शिक्षा स्कूल में 3 साल जूनियर स्कूल में फ्री है। उसके बाद बच्चे अपने काम में लग जाते है। इंगलैण्ड की शिक्षा व्यवस्था ही यहाँ लागू है। यहाँ की संस्कृति पूर्व व पश्चिम का मेल है।कहा जाता हैं अक्टूबर में हांगकांग स्वर्ग की तरह हो जाता है। नीला आकाश हवा में तीखापन, सूर्य में चमक ,पहाड़ पर फैली हरीतिमा को नवीनता प्रदान करता नीला बंदरगाह जैसे प्रकृति सारी सुंदरता उड़ेलती खड़ी है।हॉगकॉंग का सबसे बड़ा द्वीप लैण्ड टॉवर है यहाँ का प्रमुख व्यवसाय मछली पालन है।इसमें 18 भौगोलिक जिले है। यहाँ करीब 28 कैसीनो है जिनमें 23 कैसीनो एक ही परिवार के हैं अन्तर्राष्ट्रीय वित्त निगम की बिल्डिंग 88 स्टोरी की है।

हांगकांग में मुख्य रूप से न्यू ईयर डे स्पिं्रग फैस्टीवल क्विंगमैग फैस्टीवल, मिड औटम फेस्टीवल और राष्ट्रीय दिवस मनाये जाते है। स्प्रिंग फैस्टीवल और नेशनल होली डे ये दो सप्ताह सुनहरे सप्ताह के रूप में मनाये जाते है।हॉगकॉग में ड्रैगन वोट रेस बहुत प्रसि( है। प्रति वर्ष अनेक टीम पूरे देश में भाग लेेने आती है। उत्सव के दौरान लोग चावल का बनाया व्यंजन खाते हैं। यहॉं की प्रसिð कहावत है ‘अपने सर्दी के कपड़े तब तक उठाकर न रखें जब तक कि चावल के डम्पलिंग न खा लें अर्थात् गर्मी डैªगन वोट उत्सव के बाद पड़ना प्रारम्भ होती है।

दूर दूर से लोग उत्सव में भाग लेने आते हैं कहा जाता है उत्सव के समय तैरना सौभाग्य और स्वास्थ्य लाता है इसे टयूस्त्र उत्सव भी कहा जाता है इस उत्सव के साथ कथा जुड़ी है

400 ई॰ पूर्व वारिंग साम्राज्य के समय च्यू राज्य के राजा हुर्द के एक मंत्री क्यू युआन केा धोखबाज अधिकारियों ने फंसा दिया राजा ने क्यू युआन को निलंबित कर देश निकाला दे दिया क्यू युआन को बहुत दुःख हुआ और वह माइलो नदी में कूद कर डूब गया। जनता नाव लेकर क्यू युआन को ढूूंढ़ने लगी लेकिन नहीं ढूंढ़ पाई। सारी नदी को चप्पुओं से छान मारा, सारा समय ड्रम बजाते रहे और चावल के गोले बनाकर मछलियों से क्यू युआन को बचाने के लिये नदी में डालते रहे।

अब इसने धीरे धीरे सांस्कृतिक प्रथा का रूप ले लिया और स्थानीय त्यौहार बन गया। यह इतना लोकप्रिय हुआ कि एक अन्तर्राष्ट्रीय वोट रेस प्रतियोगिता का रूप ले लिया और बहुत उत्साह से आयोजित की जाती है।


Thursday, 10 July 2025

cheen ke dus din 15

 जैसा कि हर देश में पर्यटकों के साथ होता है कुछ शापिंग स्थान बसों के निश्चित होते हैं वहाँ पर जाकर रुकते हैं लेकिन बस एक अन्य विशाल जैड शोरूम के अहाते में रुकी  एक विशाल एम्पोरियम कहिये या पूरा मॉल आभूषण जैड मूर्ति पेंटिंग आदि का था। वहाँ जैड की कलाकृतियाँ बन रही थी। रत्नों की कटिंग आदि का काम व पेटिंग बनने का काम चल रहा था।जैड के बड़े छोटे पत्थर के टुकड़े ऐसे लग रहे थे मानो तरह तरह के हल्के रंगों की वर्फ की सिलें रखी हैं लाइन से मशीनों से कटिंग हो रही थी  वहीं कलाकार मूर्तियों को आकार दे रहे थे अर्थात् वह कारखाना भी था और शोरूम भी था।जैड की वहाँ बड़ी बड़ी प्रतिमाएँ थीं दर्शनीय कलाकारी थी। एक चित्रकार पेन्टिंग बना रहा था बड़े बड़े कैनवास पर वहॉं की कला संस्कृति चित्रित थी ।प्रवेश द्वार के सामने ही जैड पत्थर से प्राकृतिक दृश्य बनाया हुआ था। चीनी कारीगरी का अद्भुत नमूना थे सब यद्यपि हम सब में एक भी व्यक्ति खरीदार नहीं था क्योंकि एक एक कलाकृति हजारों डालर की थी लेकिन कला देखने का भी अपना मूल्य होता है हमने अद्भुत देखा एक बार तो घुसने में उलझन लगी थी क्योंकि हम शापिंग आदि में समय खराब न कर पर्यटन स्थलों पर अधिक समय बिताना चाहते थे । जैसा कि महिलाओं की कमजोरी मानी जाती है भूख लगते हुए भी वहाँ पर आभूषण देखने में सबने बहुत समय लगाया कुछ ने अपनी जेब भी हल्की की।

अगला पड़ाव लंच का था । एक चाइनीज रैस्ट्रॉं डाउजिन  में इस बार दोपहर का हमारा लंच था। रैस्ट्रां था तो बड़ा लेकिन गोलाकार मेज बहुत पास.पास लगी थीं। करीब.करीब सब मेजें घिरी थीं।  एक किनारे से बीच  में एक स्टेज बना था। सब मेज पर चीनी लोग ही थे। एक अजीब तीखी गंध से रैस्ट्रां भरा था किसी से भी गंध सहन नहीं हो रही थी। हमारे सामने जो खाना आया वह था नूडल उबली मूंगफलीए कटा प्याज सादा चावल आदि । पूरी मेज भर गई पर समझ में नहीं आ रहा था क्या खाए कि तृप्ति पाई जाये। वहाँ हरी पत्ती की चाय खाने से पूर्व पी जाती है। केतली में पतली  कम से कम चार फुट लंबी नली पिचकारी जैसी होती है उससे छोटे.छोटे प्यालों में सूण्ण्ण्ण्करने की आवाज करते.भरते हैं। यद्यपि हलके रंग का सुगंधित पानी ही देखने में लगता है  प्याले में  तो लग रहा था एकदम गरम होगा लेकिन मुॅंह लगाया तो गुनगुना सा था। उसे पीकर थकान एकदम गायब हो जाती है ऊर्जा मिलती है।

वहीं स्टेज पर चीनी बालाओं ने वहाँ के पारम्परिक परिधान पहनकर लोकनृत्य व नाटक प्रस्तुत किया।काबुकी के समान पुरानी कथाएँए कविता में और गीतों में प्रस्तुत किये। खाने से भले ही मन नहीं भरा हो पर वहाँ असली चीनी संस्कृति से परिचय हुए। एक तरफ जारों में कई प्रकार के पदार्थ रखे थे उनके साथ ही सॉप छोटा अजगरए केंकड़ा आदि भी रखे थे। दीपक जी ने कई चीनी व्यंजनों के बनाने की विधि बताई एक प्लेट में झींगे रखे थे। सॉप के व्यंजन व झींगों के व्यजंन चीनी बहुत स्वाद से खाते हैं। हर देश की अपनी सभ्यता अपनी संस्कृति अपना खान.पान होता है वह उन्हें अच्छा लगता है किसी के खान.पान को देखकर हम यदि चेहरे पर अरूचिकर भाव लायंे इससे अच्छा है उधर देखे ही नहीं । हमारे पास की एक मेज पर एक व्यक्ति ने पहले वन के एक टुकड़े पर टमाटर रखा फिर कटा पत्तागोभी रखा फिर संभवतः मेढक ही था जिसकी खाल उतरी हुई थी क्योंकि बन से टांग लटकती देखी उस पर कुछ छिड़का दूसरे टुकड़ा वन का रखा उसके साथ ही मैंने आँख हटा ली। दूसरी मेज पर चीनी खाने की प्रसि; प्रक्रिया देखी दो स्टिक से एक.एक चावल तेजी से खा रहा था।

उसकी तर्ज पर अपने हाथ में स्टिक लेकर चावल खाने का प्रयत्न किया कोशिश में दस चावल तो मुँह में चले ही गये। रास्ते

े में दीपक जी ने हमें बंदर पकाने कीए बतख पकाने की प्रक्रिया बताई। संभवतः उनका वर्णन करना मेरे लिये आसान नहीं होगा । 

अगला लक्ष्य टिन हैन या थ्येन थान और अपनी भारतीय भाषा में कहे तो स्वर्ग मंदिर था। स्वर्ग मंदिर में चीनी सम्राट वर्ष में एक बार जाकर अच्छी फसल के लिये प्रार्थना किया करते थे। इस मंदिर का निर्माण मिंग वंश के शासकों ने 1419 ईस्वीं में किया था। सन् 1751 ईस्वी में भापू शासकों ने इसका पुर्न निर्माण कराया। 1889 ईण् में इसके एक भाग को फिर से मरम्मत कराई गई थ्येन चीनी भाषा में स्वर्ग के लिये प्रयुक्त होता है और थान मंदिर के लिए। 

मंदिर के ऊपर चीनी भाषा में लिखा है ष्अच्छे वर्ष के लिये प्रार्थना करो।ष्

स्वर्ग मंदिर बीजिंग के दक्षिण की ओर जाने वाली सड़क युंग्टिंगमेग के पूर्व में स्थित है।टैम्पल ऑफ हैवन बीजिंग का एक सुप्रसि; मुख्य स्थल है यह एक तरह से बीजिंग की पहचान है वहाँ के पर्यटन स्थलों में इसे प्रमुख स्थान मिला हुआ है। यह करीब 200 हैक्टेयर में फैला है।  

स्वर्ग मंदिर का मुख्य द्वार सांची स्तूप के द्वार से मिलता है। यह लाल रंग का बहुत बड़ा बना है। इधर.उधर दो उससे छोटे द्वार है। बीच के द्वार से राजपरिवार प्रवेश पाता था और इधर.उधर के दरवाजे से राज्य कर्मचारी प्रवेश पाते थे। अब आम जनता हर दरवाजे से प्रवेश कर सकती है। एक तरफ प्रवेश का टिकिट हाल बना था उसमें कई खिड़कियाँ बनी थी। विदेशी और स्थानीय के लिए अलग.अलग खिड़की थी। चीन में हर स्थान को देखने के लिये टिकिट लगता है। विदेशी और चीनी नागरिकों के लिये टिकिट का मूल्य अलग.अलग है अधिकतर पाँच युआन का टिकिट लगता रहा था। कहीं.कहीं अधिक भी लगता था। टिकिट लाने का काम हर स्थान पर अरस्तू प्रभाकर व ओशो ही करते रहे। यहाँ हर द्वार पर लोहे की बैरीकेटिंग कर दी गई थी। एक.एक कर प्रवेश दिया जा रहा था। 

चारों ओर साइप्रस के वृक्षों से घिरे चार मुख्य हाल है जो एक दूसरे के सीध में बने है ओर दीवार के साथ.साथ एक दूसरे से मिले है। मंदिर के मुख्य भाग में आवाज चारों ओर से प्रतिध्वनित होती है।सब अपनी आवाज सुनने का प्रयास कर रहे थे ई आ ऊ का शोर मचा था स्वर्ग मंदिर के मुख्य स्तूप की दीवारों को  थपथपाने पर उस में से भी आवाज आ रही थी 

स्वर्ग मंदिर तीन हिस्सों में बंटा है उसमें प्रवेश के लिये लंबा गलियारा पार करना पड़ता है। इसका पहले भाग को ह्नान ह्यू कहते है दूसरे भाग को हान फंुग ही । वहीं एक चबूतरा बना है। उसे चारों ओर जंजीरों से घेरा है जिससे उस पर कोई पैर न रख सके। इस चबूतरे की चाओ चेन कहा जाता है। एक हाल में सम्राट के उपयोग की वस्तुएँ रखी हैं। बीच.बीच में 

धूप जलाने के लिये विशाल आधार बने हैं। अंदर हाल में एक तिमंजला वेदी के चारों ओर नौ बड़े.बड़े घेरे बने थे।

मुख्य द्वार की छत गुंबद के आकार की है उस पर सोने की पच्चीकारी हो रही है। छत पर गहरे नीले रंग की टाइललगी है।बीच में एक ऊँचे चबूतरे पर एक विशाल सिंहासन रखा था। उसके चारों ओर पोर्सलीन की गायें बनी थी। वह स्थान भी जंजीरों से घिरा था। मंदिर के चारों ओर बहुत बड़े.बड़े बाग थे जिनमें तरह.तरह के वृक्ष लगे हुए थे बाहर की तरफ

एक पंक्ति से बहुत सी  दुकानें थी यहाँ मुख्यतः पेटिंग का सामान मिल रहा था चित्र लेखा जी व सरोज जी ने पेटिंग का बहुत सामान खरीदा कुछ.कुछ हमने भी खरीदा। पैंसिलए बु्रश आदि बहुत अच्छे माने जाते हैं। तरह.तरह के हाथ के बने चित्र भी मिल रहे थे पास ही पेटिंग का कारखाना था।स्वर्ग मंदिर को देखकर चीनियों की  स्थापत्य कला में निपुणता का लोहा मानना पड़ेगा। नक्षत्र विद्याए भौतिक शास्त्रए गणितीय विद्या और कला क्षेत्र में बहुत उन्नत थे।

स्वर्ग मंदिर के बाद बस फिर एक विशाल मॉल के बाहर रूकी। हम सभी उतरने के लिये मना करने लगे। सैफरीना से कहा भी हमें ऐसे स्थानों पर मत रुकाओ हम खरीदारी में समय खराब नहीं करना चाहते लेकिन फिर भी कुछ लोग उतर गये तो सबने उतरकर वह मॉल देखा।यद्यपि उलझन लग रही थी पर अंदर घुसते ही लगा वास्तव में देखने योग्य कलाकृतियॉं हैं । शो रूम के प्रवेश द्वार पर सामने ही जैड पत्थर से ही प्राकृतिक दृश्य बनाया हुआ था ।उसमें झरना भी था परी  भी  थी अलग अलग रंग के जैड पत्थरों को काटकर उन्हें वही रंग देकर वास्तविकता लाने का प्रयास किया था । ये कृतियॉं चीनी कलाकारी का अदभुत् नमूना थी  आदमकद और उससे भी बड़ी बड़ी कलाकृतियॉं लगी हुई थी यद्यपि हम में से कोई भी खरीदार नहीं था क्योंकि हजारों डालर की एकएक कलाकृति थी लेकिन भारत के हिसाब से बहुत सस्ती थीं। कला देखने की तृप्ति का ऐहसास था । एक बार घुसने में उलझन तो लगी थी कि समय खराब हो रही है। पर्यटन स्थल तो देखने ही चाहिये लेकिन वह भी पर्यटन का एक अंग है वैसी कृतियॉं भारत में देखना असंभव है बड़ी प्रर्दशनियों में कभी कभी बड़ी कलाकृतियॉं आ जाती हैं पर उतनी बड़ी विशाल और सुंदर नहीं ।  लौटते में एक इंडियन रैस्टोरेंट में रुके वहाँ पर डिनर लिया और होटल पहुँच गये। प्रातः हमें जल्दी होटल छोड़ना था। डॉ॰ राजकुमारी शर्मा के पैरों में बहुत दर्द था। परंतु उनकी हिम्मत उनकी आत्मशक्ति देखकर बहुत अच्छा लग रहा था। रात में बार.बार उठकर दवाखाना व सिकाई का उनका क्रम चल रहा था। दिन में बराबर सबके साथ चल रही थी यद्यपि घुटनों में बहुत सूजन थी।


Wednesday, 9 July 2025

cheen ke ve das din 14

 एक ग्रीन पार्क बनाया गया है जहाँ तरह-तरह की कलाकृतियाँ लगाई गई है। एक तरह से संग्रहालय का रूप दिया गया। ओलंम्पिक मशाल लिये लड़कियों की आकृतियाँ तारों से बनाई गई । ओलंम्पिक प्रतीक चिन्ह को नाचता हुआ दिखाया गया । इसे नाम दिया गया है चाइनीज सील डांसिग बीजिंग’

इसमें चीन की पारंपरिक मुहर के साथ एक खिलाड़ी की नाचती व खुशी मनाती लाल रंग की आकृति है। यह आकृति चीनी चरित्र जिंग की है। यह प्रतीक चार संदेश देता है। 

1. चीन की संस्कृति

2. चीन का लाल रंग    

 3.  बीजिंग सम्पूर्ण विश्व से आये लोगो का सम्मान करता है।

4.     चीन ओलंम्पिक के मुख्य उद्देश्य.  सिटअस एल्टीयस फोर्टियस का पालन करता है जिसका अर्थ है तेज, ऊँचा और     मजबूत।

एक मीनार पर गोलाकार निर्माण किया गया है। जहाँ से राष्टाªध्यक्ष ने ओलंम्पिक मशाल का उद्घाटन किया।

करीब 60 किलोमीटर की यात्रा के बाद हमारे सामने विश्व का सातवां आश्चर्य था। मंचूरिया और मंगोलिया की जन जातियों के लगातार बर्बर आक्रमण से बचाव के लिये चीन की विशाल दीवार पिन इन छांग छांग ;लंबा किलाद्ध का निर्माण किया गया चीन की दीवार को चाइनीज में चेंगचेंग कहा जाता है यह 2000 साल पहले क्विन के राज्यकाल ;221-207 ईसा पूर्वद्ध प्रारम्भ हुई उस समय सम्राट किन हुआंग का शासन था।इसे ईसा से पूर्व तीसरी शताब्दी के मध्य में सम्राट श्री हुआगटी ने बनवाया था। इन्होंने ही चीन के प्रथम साम्राज्य की स्थापना की थी।लिंआनिंग में हुशान से प्रारम्भ और पश्चिम में जिआंग गुआन दर्रे पर समाप्त हुई करीब 20 राज्य साम्राटो के शासन काल में बनी इसकी लंबाई 8,851.8 किलोमीटर है। मिंग के समय तक बनी। अलग अलग राज्यों ने अपनी अलग अलग दीवार बनाई और बाद में जोड़ी गई।सम्राट क्विन शिनहुन उन दीवारों को आपस में जोड़ने में सफल हुए यद्यपि इतनी विशाल दीवार तातारों के आक्रमण से बचाव के लिये बनाई गई लेकिन चंगेज खान का कहना था कि यह रक्षा के लिए काफी नहीं है। रक्षक खरीदे जा सकते हैं।अधिकतर दीवार तीन स्थानों से पर्यटन रूप से विकसित की गई है। बादलिंग सिमाताई और जिनशैनलिंग हम लोग बादलिंग की तरफ से चढ़े थे अब वहाँ  कार व मिनी टेªेन से भी यात्रा की जाती है।

प्रथम व्यक्ति विलियम एडगर गेलने 1908 में इसे नापा था इसकी तुलना विशाल डैªगन से की जाती है जो जंगल में पसरा पड़ा है। यह दीवर उत्तर पूर्व में शानहाई ग्वान से पश्चिम में लोपमूर तक 6400 किलोमीटर लंबी है और इसे बनाने में लगभग 20 से 30 लाख चीनी मारे गये।विशाल चीन की दीवार कुछ ऊँचाई पर चढ़कर प्रारम्भ होती है। अलग-अलग स्थान से पहाड़ों की ऊँचाई अलग-अलग थी।देखने में किसी भारतीय किले की दीवार की तरह है इसकी मुख्य विशेषता है इसकी लंबाई ,यह दीवार 6 हजार किलोमीटर लंबी 6“ इस 4.2 एक बार में 2 ट्रक दौड़ सकते है ।  कहा जाता है इसके निर्माण में दस लाख मजदूर काल कलवित हुए। उन्हें उसी दीवार में चिनवा दिया गया था।काल कलवित मजदूर इसलिये भी दबाये गये एक तो हड्डियों से दीवार मजबूत हुई पौधों की जड़े गहराई में गई तथा जलाने का खर्च बचा। 

एक तरफ छोटे-छोटे स्टाल लगे थे छोटी-छोटी बेंच पड़ी थी उनसे चीन का पहाड़ी नजारा अद्भुत लग रहा था। लहराती बलखाती कहीं ऊँची कहीं नीची दीवार दीख रही थी। जगह-जगह दीवार  पर बुर्जियाँ बनी थी। कहीं 40 फुट ऊँचाई पर कहीं साठ फुट ऊँची तो कहीं सैनिकों के खड़े होने के लिये छोटी-छोटी तिवारियाँ बनी थी। दीवार की ऊँचाई ,सीढ़ियाँ ,फिर सादा सीढ़ी तक तो हम चढ़ गये डॉ॰ चित्रलेखा, वंदनी, नंदनी आदि काफी ऊँचाई तक चढ़ गई थीं।सीढ़ियॉं चढ़कर प्राकृतिक संपदा से ळभरपूर चीन को ऊॅंचाई से देखकर प्रसन्न हो रही थीं  और हम जो जरा सी सीढ़ियॉं चढ़कर और चढ़ने का साहस नहीं जुटा पा रहे थे दीवाल को कम  उन सब को अधिक देख रहे थे । शैल बाला ने वहाँ की रानियों की पारम्परिक पोशाक पहन कर फोटो खिंचाई ।यह भी एक यादगार है क्योंकि उस स्थान में रम जाना उसके जैसा महसूस करने का प्रयास भी एक यायावरी का अंग है । वहाँ पर तरह-तरह की कलाकृतियाँ विशेष रूप से चीन की दीवार की प्रतिकृतियाँ मिल रही थी। छोटे-छोटे पैकेट में तरह-तरह के नमकीन आदि मिल रहे थे वे खरीद कर चखे। दीवार के दोनों  ओर हरियाली थी। कहीं भी पहाड़ खाली नहीं दिख रहे थे। लौटते समय रास्ता दूसरा था। बहुत सुरम्य आडू चैरी के लदे 

पेड़ों के बाग देखे।चैरी के लाल लाल पके फल गुच्छे में लटक रहे थे।एकदम पूरा बगीचा चैरी का था उन्हें छूने को तोड़ने को मन कर रहा था पर बस निकलती चली गई।


Tuesday, 8 July 2025

cheen ke ve das din 13

 एक के बाद एक कमरे गैलरी से पार करते जा रहे थे वे खत्म ही नहीं हो रहे थे चलते-चलते थकने लगे और समयभी हो गया था लौटने का ,इसलिये लौट आये। कई इमारतें 1150 सन् तक की है 1924 से इसकी देखभाल का जिम्मा वहाँ के स्थानीय निकाय ने संभाल लिया है।

हमारे कुछ साथी झील के किनारे बनी संगमरमर की चौकियों पर बैठकर झील का आनंद लेने लगे झील में विशाल राजसी वोट दिखाई दे रही थी। कुछ दूर पर ही एक लामा टेंपल था लेकिन वहाँ तक जाने की हिम्मत नहीं हुई।पहाड़ी पर पैगोडा था जिसमें बुð की विशाल मूर्ति थी। आधे रास्ते तक तो हम चढ़े लेकिन समय और हिम्मत चाहिये थी इसलिये लौट आये  अंधेरा झुकने लगा था इसलिये चल दिये।

बाहर पंक्तिबद्ध दुकाने थीं वहाँ पर कपड़े खिलौने कलात्मक वस्तुऐं मिल रही थी। सामान सब अच्छा था।  बस वाला शोर मचा रहा था जल्दी करिये-जल्दी करिये फिर भी सबने कुछ-कुछ लिया।और एक के बाद एक दुकान देखी जा रही थी बार बार  पुरातत्व समय की वस्तुऐं और ब्ल्डििंग देखते देखते सब बोर तो हो ही रहे थे एक सा देखते देखते मन  दूसरी ओर मुड़ जाता है । सबको सामान खरीदने में मजा आने लगा जो थकी हुई थीं वो नीचे नहीं उतर रहीं थीं हॉं बस से ही सबसे चींजें मंगा कर ले रही थीं उस समय अंधेरे की परवाह  नहीं थी हॉं बस वाला असहज हो उठा वे बस ड्राइवर की ओर देखती और फिर किसी न किसी वस्तु की ओर भाग कर बढ़ देतीं,ःअरे बहुत अच्छी है, बहुत रीजनेबुल ,सुनकर अधिकांश ने झांक झांक कर देखना प्रारम्भ कर दिया। बस वाले ने धमकी दी फिर आगे कुछ नहीं दिखाउँगा क्योंकि स्मारक बंद हो जायेगा तब सब छोड़ छाड़ कर भागकर बस में चढ़ गईं, वहाँ से हम सब सुप्रसि( चैंगलिग म्यूजियम गये।

बस के पास एक विकलांग लड़की को एक वयोवृ( महिला व्हील चेयर  लिये खड़ी थी। उसने हमसे खाली बोतलंे मांगी संभवतः उन्हें बेचकर वह जीवन-यापन करती थी लड़की व महिला दोनों ही साफ कपड़े पहने ठीक से थीं कहीं 

भी भिखारिन जैसी नहीं दिख रही थी।यद्यपि यह भी भीख का तरीका था लेकिन आत्म सम्मान भी था ।

  सैफरीना ने  बस एक जैड आर्ट गैलरी के सामने रोकी सामने ही ग्रीन जैड व हल्के दूधिया रंग के जैड पत्थर से पूरी सीनरी सी बनी थी। बड़े-बड़े कलात्मक शो पीस रखे थे। यहाँ भारत में बड़े-बड़े माल में जहाँ क्रिस्टल का या ज्वेलरी का शोरूम होता है दो फुट तक ज्यादा से ज्यादा जैड की कलात्मक कृतियाँ दिखती हैं लेकिन वहाँ तो दस-दस फुट ऊँचे तक  अम्बर लाल, हरे काले रंगों में थी, महीन कारीगरी देखने लायक थी।

एक अन्य जैड फैक्टरी गये वहाँ पर जैड की कटिंग होती, घिसाई और बनाना सब दिखा रहे थे वहीं पर हीरे आदि की घिसाई कटिंग आदि की बड़ी फैक्टरी थी। चाइना ने नकली हीरा भी बेहद चमकीला और आभा वाला बना लिया है उसमें औेर असली हीरे में जौहरी ही पहचान कर सकते हैं।कहा जाता है भारतीय जौहरी हीरे के हर सैट में कुछ हीरे चाइना के जरूर लगाते हैं ।

धीरे-धीरे झुकती शाम में बीजिंग का अपना सौंदर्य था।लेकिन ईश्वर ने पेट एक एसा अंग बनाया है वह सब को पीछे छोड़ देता  जब वह कुलबुलाता है  तो केवल वही नजर आता है । अब फिक्र हुई खाना कहॉं खाया जाये जिससे कुछ  अच्छी सी जान पड़े।बस वाले की शरण ही गये । उसने बताया चीन मंें भी जगह-जगह भारतीय रेस्टोरंेट उपलब्ध हैं। उस ने कहा कि  आपको गंगेज होटल ले चलता हूॅं  , गंगेज रैस्टोरंेट जा रहे थे कि एक स्थान पर पार्क में काफी युवक-युवती नृत्य करते दिखाई दिये वे उनके काम के बाद मौज-मस्ती के कुछ क्षण थे। वहीं पर कुछ स्टाल लगे थे वे खा-पी रहे थे। बैंड बज रहा था म्यूजिक चल रहा था। संभवतः मध्यम वर्गीय लोगों के लिये एक मनोरंजन का साधन था। हमें बताया गया इस प्रकार के ओपन रेस्ट्रा बहुत चलते हैं।बस में सब चुप चुप से थे क्योंकि थकान ने अब बोलना शुरू कर दिया था पर देख सब पूरी उत्सुकता से रहे थे ।शैलबाला भाभी की कलम बराबर चल रही थी इतनी हिलती बस में कैसे लिख रही हैं । मनोरमाजी बहुत चुप चुप सी थीं अच्छा नहीं लग रहा था । 

गंगेज रैस्ट्रोरेंट में शु( भारतीय खाना मिला। चाइनीज लड़कियाँ सलवार सूट में थी तथा हिंदी बोल रही थी। यद्यपि रैस्ट्रोरेंट छोटा सा ओपन रैस्ट्रोरंेट था इतना छोटा कि चार चार कुर्सी की पॉंच मेज पड़ी थीे। ऊपर ही एक कमरे में परिवार रहता था उस परिवार की दोनों लड़कियाँ वेट्रेस का काम कर रही थी। होटल में माहदाल, नॉन, रोटी, चावल, सब्जी, रायता सब गर्मागम मिला तो बहुत अच्छा सा लगा।पतली सीढ़ी चढ़कर आठ फुट लंबे चौड़े कमरे में पूरा परिवार रह रहा था । हम  ऊपर जाकर उनका घर देख आये,एक आम घर एक कमरे में जो संभव हो सकता था सामान था एक कोने में गैस रखी थी कुछ 

डिब्बे डिब्बियॉं कुछ बर्तन ,पर्दा लगा कर आलमारियों में कपड़े रखे थे । उन्हीं लड़कियों ने बताया कि भारतीय खाना खाने हर देश के लोग आते हैं और पसंद करते हैं । उन लड़कियों की आंखों को भारतीय कर दें तो हम भारत के ही किसी सड़क किनारे के रैस्टोरैंट में अपने को पायेंगे ।अहा ! असीम तृप्ति । पेट भरा तो जग हंसा , बस चलता तो  वहीं पसर जाते वहॉं से कोई उठना ही नहीं चाह रहा था   खाना खाकर भी वहीं  कुटुक कुटुक कर रहे थे । चाह रहे थे कि और कोई ग्राहक न आये पर उठना तो था ही । बाकी होटल तक यात्रा तो स्वाभाविक थी ऊॅघते  ही जाती ।

दूसरे दिन प्रातः हम चीन की सुप्रसि( दीवार, संसार का सातवां आश्चर्य देखने के लिये निकलना था। चीन की दीवार के लिये कहा जाता है कि यही एक मात्र पृथ्वी का निर्माण है जो अन्तरिक्ष से दिखता है लेकिन नवीनतम अंतरिक्ष यात्रा से यह धारणा भ्रामक सि( हुई है क्योकि अंतरिक्ष से चीन की दीवार पृथ्वी के रंग में घुलमिल जाती है।ग्रेटवाल अंतरिक्ष से बिलकुल नहीं दिखती वह केवल 65,617 फिट तक की ऊँचाई से दिखती है और 196,850 फुट की ऊँचाई से दिखना असंभव है यह उसके समान है कि 2688 मीटर ऊँचाई से हम एक बाल ढूँढ़े। जो चीज वास्तव में दिखती है वह है ब्रह्मपुत्र नदी,और चीन में उसका 67 प्रतिशत भाग बहता है भारत में वह 33 प्रतिशत है वहाँ यह सांगपो के नाम से जानी जाती है विश्व में चीनी राष्ट्रपिता सुनयात सेन के द्वारा चीन के विकास हेतु नक्शे बनवाये गये जिसमें सांगपो नदी के जल को उत्तरी चीनमें लेे जाना भी शामिल था। ;तब ही ब्रह्मपुत्र के उद्गम स्त्रोत का पता चला कि यह मानसरोवर झील से 2400 किलो मीटर की यात्रा करती है और चीन ने वह कर दिखाया।


Sunday, 6 July 2025

cheen ke ve das din 12

 ☺एक के बाद एक कमरे गैलरी से पार करते जा रहे थे वे खत्म ही नहीं हो रहे थे चलते-चलते थकने लगे और समय

भी हो गया था लौटने का ,इसलिये लौट आये। कई इमारतें 1150 सन् तक की है 1924 से इसकी देखभाल का जिम्मा वहाँ के स्थानीय निकाय ने संभाल लिया है।

हमारे कुछ साथी झील के किनारे बनी संगमरमर की चौकियों पर बैठकर झील का आनंद लेने लगे झील में विशाल राजसी वोट दिखाई दे रही थी। कुछ दूर पर ही एक लामा टेंपल था लेकिन वहाँ तक जाने की हिम्मत नहीं हुई।पहाड़ी पर पैगोडा था जिसमें बुð की विशाल मूर्ति थी। आधे रास्ते तक तो हम चढ़े लेकिन समय और हिम्मत चाहिये थी इसलिये लौट आये  अंधेरा झुकने लगा था इसलिये चल दिये।

बाहर पंक्तिब( दुकाने थीं वहाँ पर कपड़े खिलौने कलात्मक वस्तुऐं मिल रही थी। सामान सब अच्छा था।  बस वाला शोर मचा रहा था जल्दी करिये-जल्दी करिये फिर भी सबने कुछ-कुछ लिया।और एक के बाद एक दुकान देखी जा रही थी बार बार  पुरातत्व समय की वस्तुऐं और ब्ल्डििंग देखते देखते सब बोर तो हो ही रहे थे एक सा देखते देखते मन  दूसरी ओर मुड़ जाता है । सबको सामान खरीदने में मजा आने लगा जो थकी हुई थीं वो नीचे नहीं उतर रहीं थीं हॉं बस से ही सबसे चींजें मंगा कर ले रही थीं उस समय अंधेरे की परवाह  नहीं थी हॉं बस वाला असहज हो उठा वे बस ड्राइवर की ओर देखती और फिर किसी न किसी वस्तु की ओर भाग कर बढ़ देतीं,ःअरे बहुत अच्छी है, बहुत रीजनेबुल ,सुनकर अधिकांश ने झांक झांक कर देखना प्रारम्भ कर दिया। बस वाले ने धमकी दी फिर आगे कुछ नहीं दिखाउँगा क्योंकि स्मारक बंद हो जायेगा तब सब छोड़ छाड़ कर भागकर बस में चढ़ गईं, वहाँ से हम सब सुप्रसि( चैंगलिग म्यूजियम गये।

बस के पास एक विकलांग लड़की को एक वयोवृ( महिला व्हील चेयर  लिये खड़ी थी। उसने हमसे खाली बोतलंे मांगी संभवतः उन्हें बेचकर वह जीवन-यापन करती थी लड़की व महिला दोनों ही साफ कपड़े पहने ठीक से थीं कहीं 

भी भिखारिन जैसी नहीं दिख रही थी।यद्यपि यह भी भीख का तरीका था लेकिन आत्म सम्मान भी था ।

  सैफरीना ने  बस एक जैड आर्ट गैलरी के सामने रोकी सामने ही ग्रीन जैड व हल्के दूधिया रंग के जैड पत्थर से पूरी सीनरी सी बनी थी। बड़े-बड़े कलात्मक शो पीस रखे थे। यहाँ भारत में बड़े-बड़े माल में जहाँ क्रिस्टल का या ज्वेलरी का शोरूम होता है दो फुट तक ज्यादा से ज्यादा जैड की कलात्मक कृतियाँ दिखती हैं लेकिन वहाँ तो दस-दस फुट ऊँचे तक  अम्बर लाल, हरे काले रंगों में थी, महीन कारीगरी देखने लायक थी।

एक अन्य जैड फैक्टरी गये वहाँ पर जैड की कटिंग होती, घिसाई और बनाना सब दिखा रहे थे वहीं पर हीरे आदि की घिसाई कटिंग आदि की बड़ी फैक्टरी थी। चाइना ने नकली हीरा भी बेहद चमकीला और आभा वाला बना लिया है उसमें औेर असली हीरे में जौहरी ही पहचान कर सकते हैं।कहा जाता है भारतीय जौहरी हीरे के हर सैट में कुछ हीरे चाइना के जरूर लगाते हैं ।

धीरे-धीरे झुकती शाम में बीजिंग का अपना सौंदर्य था।लेकिन ईश्वर ने पेट एक एसा अंग बनाया है वह सब को पीछे छोड़ देता  जब वह कुलबुलाता है  तो केवल वही नजर आता है । अब फिक्र हुई खाना कहॉं खाया जाये जिससे कुछ  अच्छी सी जान पड़े।बस वाले की शरण ही गये । उसने बताया चीन मंें भी जगह-जगह भारतीय रेस्टोरंेट उपलब्ध हैं। उस ने कहा कि  आपको गंगेज होटल ले चलता हूॅं  , गंगेज रैस्टोरंेट जा रहे थे कि एक स्थान पर पार्क में काफी युवक-युवती नृत्य करते दिखाई दिये वे उनके काम के बाद मौज-मस्ती के कुछ क्षण थे। वहीं पर कुछ स्टाल लगे थे वे खा-पी रहे थे। बैंड बज रहा था म्यूजिक चल रहा था। संभवतः मध्यम वर्गीय लोगों के लिये एक मनोरंजन का साधन था। हमें बताया गया इस प्रकार के ओपन रेस्ट्रा बहुत चलते हैं।बस में सब चुप चुप से थे क्योंकि थकान ने अब बोलना शुरू कर दिया था पर देख सब पूरी उत्सुकता से रहे थे ।शैलबाला भाभी की कलम बराबर चल रही थी इतनी हिलती बस में कैसे लिख रही हैं । मनोरमाजी बहुत चुप चुप सी थीं अच्छा नहीं लग रहा था । 

गंगेज रैस्ट्रोरेंट में शु( भारतीय खाना मिला। चाइनीज लड़कियाँ सलवार सूट में थी तथा हिंदी बोल रही थी। यद्यपि रैस्ट्रोरेंट छोटा सा ओपन रैस्ट्रोरंेट था इतना छोटा कि चार चार कुर्सी की पॉंच मेज पड़ी थीे। ऊपर ही एक कमरे में परिवार रहता था उस परिवार की दोनों लड़कियाँ वेट्रेस का काम कर रही थी। होटल में माहदाल, नॉन, रोटी, चावल, सब्जी, रायता सब गर्मागम मिला तो बहुत अच्छा सा लगा।पतली सीढ़ी चढ़कर आठ फुट लंबे चौड़े कमरे में पूरा परिवार रह रहा था । हम  ऊपर जाकर उनका घर देख आये,एक आम घर एक कमरे में जो संभव हो सकता था सामान था एक कोने में गैस रखी थी कुछ 


डिब्बे डिब्बियॉं कुछ बर्तन ,पर्दा लगा कर आलमारियों में कपड़े रखे थे । उन्हीं लड़कियों ने बताया कि भारतीय खाना खाने हर देश के लोग आते हैं और पसंद करते हैं । उन लड़कियों की आंखों को भारतीय कर दें तो हम भारत के ही किसी सड़क किनारे के रैस्टोरैंट में अपने को पायेंगे ।अहा ! असीम तृप्ति । पेट भरा तो जग हंसा , बस चलता तो  वहीं पसर जाते वहॉं से कोई उठना ही नहीं चाह रहा था   खाना खाकर भी वहीं  कुटुक कुटुक कर रहे थे । चाह रहे थे कि और कोई ग्राहक न आये पर उठना तो था ही । बाकी होटल तक यात्रा तो स्वाभाविक थी ऊॅघते  ही जाती ।

दूसरे दिन प्रातः हम चीन की सुप्रसि( दीवार, संसार का सातवां आश्चर्य देखने के लिये निकलना था। चीन की दीवार के लिये कहा जाता है कि यही एक मात्र पृथ्वी का निर्माण है जो अन्तरिक्ष से दिखता है लेकिन नवीनतम अंतरिक्ष यात्रा से यह धारणा भ्रामक सि( हुई है क्योकि अंतरिक्ष से चीन की दीवार पृथ्वी के रंग में घुलमिल जाती है।ग्रेटवाल अंतरिक्ष से बिलकुल नहीं दिखती वह केवल 65,617 फिट तक की ऊँचाई से दिखती है और 196,850 फुट की ऊँचाई से दिखना असंभव है यह उसके समान है कि 2688 मीटर ऊँचाई से हम एक बाल ढूँढ़े। जो चीज वास्तव में दिखती है वह है ब्रह्मपुत्र नदी,और चीन में उसका 67 प्रतिशत भाग बहता है भारत में वह 33 प्रतिशत है वहाँ यह सांगपो के नाम से जानी जाती है विश्व में चीनी राष्ट्रपिता सुनयात सेन के द्वारा चीन के विकास हेतु नक्शे बनवाये गये जिसमें सांगपो नदी के जल को उत्तरी चीन

में लेे जाना भी शामिल था। ;तब ही ब्रह्मपुत्र के उद्गम स्त्रोत का पता चला कि यह मानसरोवर झील से 2400 किलो मीटर की यात्रा करती हैद्ध और चीन ने वह कर दिखाया।

प्रातः सात बजे हम सब नीचे रैस्टोरेंट में नाश्ता लेने पहुँचे। हर होटल में नाश्ता करीब-करीब एक ही प्रकार का रहता था। बड़े-बड़े बोल में फल, सेव, अंगूर, सरदा, खरबूजा, तरबूजा, काफी आदि। अनेकों प्रकार की बर्गर पेस्टरीज आदि 

तरह-तरह के चोको कार्नफ्लक्स आदि एक तरफ रात्रि का बचा डिनर भी लगा रहता था जिसमें नूडल्स आदि रहते थे एक तरफ नॉन वैज लगा रहता था। पेय पदार्थ में चाय-काफी तरह-तरह के जूस रहते थे। हम लोगों का नाश्ता अधिकतर फल चोको आदि रहता था  केक पेस्ट्री पर भी कुछ भरोसा नहीं था। हम कुछ यात्री तो नूडल्स आदि खा लेते थे लेकिन कुछ लोग जैसे मनोरमा दीदी शैल भाभी आदि बिलकुल प्याज भी नहीं खाती थी उन्हें बहुत दिक्कत थी।

बीजिंग यात्रा के दिन अद्भुत थे क्योंकि बीजिंग ओलम्पिक 2008 की तैयारी में था। महिने भर बाद वहाँ ओलम्पिक होने थे और चीन अपने आपको दुनिया में सर्वश्रेष्ठ सि( करना चाहता था।हमारी बस बीजिंग के उस स्थान के पास से गुजरी जहाँ यु( स्तर पर ओलंम्पिक की तैयारी हो रही थी। इसके लिये चीन ने करीब 43 अरब डालर खर्च किये थे। कुछ विशेष इंतजाम किये थे और जनता को हिदायत दी गई की कि कोई सड़क पर न थूकेगा न कागज आदि फंेकेगा यदि ऐसी हरकत करेगा तो उसे 7 डालर जुर्माना देना पड़ेगा।

ओलंम्पिक स्टेडियम के पास ही पर्यावरण शु( रखने के लिये विशाल जंगल विकसित किये गये सभी वृक्षों की ऊँचाई समान थी, करीब आठ फुट इसलिये लग रहा था कि कोई पुराना वृक्ष नहीं है नव विकसित जंगल है।

मुख्य स्टेडियम से 100 कि. मी. तक की सभी फैक्टरियाँ बन्द कर दी गई थी। चीन केा ओलंम्पिक अधिकार 2001 में मिले थे और तभी से बीजिंग को इसके लिये तैयार किया जाने लगा था। चीनी अंग्रेजी सीखने में प्रयासरत हो गये। 90,000 टैक्सी ड्राइवरों को विशेष टेªनिंग इंगलिश की दी गई। प्रतियोगियों को विभिन्न राष्ट्रों से आये प्रतिनिधियों का स्वागत करना सिखाया गया। 

बीजिंग ओलंम्पिक के लिये कई-कई बिल्डिंग बनाई गईं जिनमें सबसे पहले बीजिंग एअरपोर्ट को नया रूप देने का था। 3.6 अरब डालर की लागत से यह एअरपोर्ट दस लाख वर्ग मीटर मे बना, यह दुनिया का सबसे बड़ा एअरपोर्ट है। इससे पूर्व 8.4 करोड़ यात्री क्षमता वाला एअरपोर्ट टर्मिनल को दुनिया का सबसे बड़ा एअरपोर्ट टर्मिनल कहा जाता था। लेकिन अब वह दूसरे स्थान पर है।तीन भागों में बंटे बीजिंग के 120 द्वार वाले इस एअरपोर्ट टर्मिनल में 73 एअरक्राफ्ट पर पार्किगं स्पाट है इसकी क्षमता 9 करोड़ यात्रियों की है। ब्रिटिश आर्कीटेक्ट नारमन फास्टर ने चीनी ड्रैगन की आकृति में इसका डिजाइन तैयार किया है। इसका निर्माण 50,000 कर्मचारियों ने चार वर्ष में किया।  एअरपोर्ट पर जगह जगह अतिथियों के स्वागत के लिये शुभंकर फुब्वा लगाया गया था। 

ओलंम्पिक स्थान पर चाइना सैन्ट्रल टेलीविजन का मुख्यालय बनाया गया । ये दो भागों में है ऐसा लगता है जैसे दो दोस्त गले लग रहे हो। इसमें 49 मंजिल है 36 वीं मंजिल से दोनों टावरों को जोड़ दिया गया है। यह बिल्डिंग देखने में खिलौना सी लगी। लेकिन 44 एकड़ जमीन पर बनी यह बिल्डिंग वास्तव में इजीनियरिंग का कमाल है। 

ओलंम्पिक स्थल के बिलकुल बीच में टाइटेनियम का एक झिलमिलाता अंडाकार गुम्बद दिख रहा था। इसे ‘द एग’ का नाम दिया गया था। हल्के ग्रे और हल्के नीले रंग के इस स्टेडियम को फ्रेंच आर्टींटेक्ट पाल एन्ड्रस ने तैयार किया है।

91,000 सीटों वाले मुख्य ओलंम्पिक स्टेडियम बर्डनेस्ट उलझे हुए स्टील के तारों का जाल था। इसका निर्माण स्विस हेरजांग एण्ड डी म्यूरान ’ कम्पनी ने किया है। बर्डनेस्ट से थोड़ी दूर पर वाटर क्यूब है। यह ओलंम्पिक तैराकी केन्द्र नीले रंग के पैनल से ढका है ये पैनल ऐसे लगते है जैसे पानी में बुलबुले उठ रहे हो। रात में इसकी छटा अनोखी नीली रोशनी में जगमग करने लगती है।


Saturday, 5 July 2025

cheen ke ve das din 11

दरवाजा के पार बड़ा-सा खुला स्थान था। इसमें गर्मियों में पानी भरा जाता था। जिससे महल ठंडा रहे  उसे पार करके काफी सीढ़ियाँ चढ़कर मुख्य महल था। यह थाई ह्त्येन या दीवाने आम कहा जाता है। महल के अहाते में बड़े-बडे़ नगाड़े रखे रहते थे जब सम्राट महल में प्रवेश करते थे तब उनचास बार आघात किये जाते और बाहर जाते तब 27 बार आघात किये जाते थे। सीढ़ियों के दोनों तरफ विशाल तांबे के बरतन रखे थे इनमें  पानी भरा जाता था। इसके बाद मुख्य महल आते हैं जो अलग-अलग रानी-महारानियों के आवास हैं। हर महल के द्वार के नाम भी अद्भुत हैं जैसे भूमध्य रेखादार। यह मुख्य प्रवेश द्वार है और 18 मीटर ऊँचा है। महल भिन्न-भिन्न शैली में बने थे तथा उनके नाम भी अलग थे। कहीं कलात्मक बेलबूटे बने थे तो कहीं लोक छाया का चित्रण था। छतें मेहराबदार व ढलान वाली गोल खपरैल की थीं। छतों पर रंग नारंगी व पीला था उस समय सम्राट के अलावा किसी को भी पीला रंग प्रयोग करना निषि( था।आम जनता के लिये हरा रंग था केवल वेनऐयू पुस्तकालय की छत काले रंग से रंगी है कहा जाता है काला रंग पानी का द्योतक है और आग बुझा सकता है। हर महल के बाहर संगमरमर के बरामदे फब्वारे बाग झरने आदि थे।निषि( नगरी के पाँच पुल कन्फ्यूशियस के पाँच सि(ान्त है मानवता, कर्मठता, बु(ि, विश्वास, उल्लास। मुख्य महल के सामने विशाल अहाता था यहाँ नववर्ष समारोह मनाया जाता था।चीनी नामों का अबर हम हिंदीकरएा करें तो  न जाने कैसे अर्थ बैठते हैं जो हमारी मानसिकता में फिट बैठते हैं । हॉं जो कुछ भी आन बान शान उा ामस की दिखाई दे रही थी उसको  कल्पना के साथ जोडऋ कर चले तो अपने कदम भी उसी प्रकार  उठने लगे । न जाने कितने वैभव शाली सम्राट यहाँ रहे और यही दफन होकर मिट्टी हो गये। निषिð नगरी के सिंहासन पर महल पर उनके राजसी पद चिन्हों के अलावा भी कुछ ऐसे पद चिन्ह पड़े थे जिन्होंने इस शहर के महल में उत्पात् मचाया,लूटपाट कर और सिंहासन पर बैठकर शाही तस्वीरें खिचवा कर शासकों से बदला लिया।ये थे 1900 में ईसाई विरोधी बक्सर विद्रोह केा दबाने के लिये गये ब्रिटिश सेना और ब्रिटिश सेना में भरती भारतीय सैनिक । 48 किलोमीटर लंबा विशाल नगर राजाओं की कब्रगाह बन कर रह गया। सौंदर्य कला, क्रूरता, उत्पीड़न का विरोधाभास समेटे नजर आता है।

उन्हीं का वंशज छिंग वंश का अंतिम सम्राट आर्यासन गैरा फू-ई अपना कुछ समय ही काट पाये बाकी समय कारावास में गुजारा था। इस सम्राट की कथा को लेकर ही सप्रसि( फिल्म ‘लास्ट एम्परर’ बनी थी। चीन की 1911 की क्रांति में डा. सुनयात सेन ने छिंग वंश का पतन किया और आयसिन गैरो फू-ई को कारावास में डाल दिया। अंतिम सम्राट फू ई की मृत्यु 1987 में बहुत गरीबी में हुई।

निषि( नगरी के द्वार पर एक विशाल पिशू बना था यह चीन का प्रमुख चिन्ह है।पिशू चार जानवरों के सम्मिश्रण से बना है इसका मुँह दस फिट चौड़ा डेªगन का है, धड़ घोड़े का और पैर शैर के ,पूँछ अजदहे की है। पेट विशाल होता है यह

खजाने का प्रतीक माना जाता है।विशाल कछुआ बड़ी उम्र का द्योतक है।

निषि( नगरी में ही एक महल को चंेगलिंग म्यूजियम का रूप दे दिया गया था। बीच में मिंग राजा विशाल सिंहासन

पर बैठे थे। सिंहासन के चारों ओर विभिन्न पक्षी, मोर, सारस आदि रखे थे हॉल के तीनों ओर शीशे में उस समय के राजा-महाराजाओं के रत्न, आभूषण, वस्त्र, मुद्राएंे, सोने, चाँदी, तांबे के पत्र, मुकुट आदि तथा सभी दैनिक उपयोग की वस्तुएँ रखी थी।म्यूजियम में पाँच हजार वर्ष पुराने मिट्टी के बर्तन, तीन हजार  वर्ष पुराने तांबे के बर्तन, पन्द्रह सौ वर्ष पुराने पालिश और चित्रकारी की गये चीनी मिट्टी के बर्तन थे। तेरह सौ वर्ष पुराने लकड़ी पर नक्काशी के चित्र थे। देखने मंे लग ही नहीं रहे थे कि ये लकड़ी के बने है पाटरी अधिकतर नीले रंग की या लाल रंग की महीन कारीगरी की थी।नषि( नगरी का यह हॉल ऑफ हारमनी सबसे ऊँचा हॉल है, यह विशिष्ट उत्सव में काम आता था सम्राट का जन्मदिन, ताजपोशी आदि।यह लकड़ी से निर्मित विश्व का सबसे बड़ा निर्माण है बाहर सूर्य घड़ी थी जो उस समय 2 बजा रही थी।

इस हॉल के पीछे एक कमरा था जो बंद था लेकिन उसमें रोशनी थी वहॉं दरारों में लोग ऑंख लगा रहे थे तो हम सब भी एक एक झिरी से झांकने लगे।दूसरा क्या देख रहा है यह उत्सुकता स्वाभाविक है और उस वजह से नया भी देख लिया जाता है । उस झिरी के पीछे सम्रट का शयन कक्ष था । विशाल लकड़ी का पलंग था उस पर लाल पीली जरी की चादर बिछी थी।पूरे कक्ष में पच्चीकारी हो रही थी पर अधिक दिख नहीं रही था ।यह कक्ष बंद ही रखा जाता है ।

निषि( नगरी में ही जिगशान गार्डन था। बगीचे का रास्ता छोटी-छोटी कलात्मक पटरियों से बना था। जिन पर तरह-तरह की कारीगरी थी।कहते हैं यह एक पत्थर से बना है। तरह-तरह के फल-फूल के वृक्ष थे। नक्काशीदार तेारण बने थे वहीं पर एक कृत्रिम पहाड़ी बनी थी पहाड़ी से झरना बह रहा था। वहाँ पर बैठने के लिए स्थान बना था नीचे गुफा थी उस पर दो शब्द लिखे थे ‘जिंग शान’। पहाड़ी पर लिखा था ‘हिल ऑफ एक्यूमुलेटेड एलीगेंस’।

दोनों तरफ सीढ़ियाँ थी आधे रास्ते पर गुफा थी। गुफा मेहराबदार तथा ड्रैगन के आकार में थी। आधे रास्ते से पहाड़ी पर तांबे का प्रयोग किया गया था,वहॉ तांबे से एक हॉद बनाया गया था।  उसमें पानी एकत्रित किया जाता था और यह पानी ड्रैगन के सिर से गिरता रहता था। यहाँ पर तीन महल थे। यहाँ का मुख्य वृक्ष स्कालर वृक्ष कहलाता था यह साइप्रस वृक्ष बहुत प्राचीन है उसे बचाने के लिये निरंतर प्रयास किये जा रहे हैं उसे तीन बड़े लोहे के पाइपों से बांध कर सहारा दिया गया है। यहाँ तो प्राचीन स्कॉलर वृक्ष को बांधा गया था। लेकिन रास्ते में मिले वृक्षों को सीधा रखने के लिए बांधा गया था। जिससे कि वे आगे-पीछे टेढ़े-मेढ़े न बढ़ें। सभी वृक्ष सीधे ही बढ़ रहे थे।

वहीं से हम आगे गये समर पैलेस के लिये। समर पैलेस छिंग डाइनेस्टी के समय निर्मित किया था। 1193 में सम्राट  ह्नांगच्यांग ने इस महल का निर्माण कराया इसका नाम चिन श्वेई यान अर्थात् सुनहरे पानी का बाग रखा लेकिन 

धीरे-धीरे नाम बदलकर ‘गार्डन ऑफ हारमनी’ हो गया। कन्प्यूशियस ने इसको ‘लॉंगेविटी ऑफ लाइफ ’ अर्थात् दीर्घजीवन बाग नाम दिया था इन में पश्चिमी हिस्सा यियान कहलाता था अर्थात् पुस्तकों का संग्रह ।1750 में सम्राट क्विऑन लॉंग के राज्य में पूर्व और पश्चिम दो भाग बनाये पूर्व को नाम दिया था, मैथेड कीपिंग रूम; पुस्तक लेखा कक्ष द्धऔर पश्चिम का नाम पुस्तक दीर्घा । सामने ही विशाल ड्रैगन पसरा हुआ था।ड्रैगन दीर्घायु का प्रतीक है फिनीक्स की मूर्तियॉं हैं ।फिनीक्स सुख सम्पत्ति का प्रतीक है। बड़े हॉल के दोनों ओर दोे पंख और पॉंच बांहें हैं । छिंग वंश के चौथे सम्राट ने इस बाग को बड़ा रूप दिया। सन् 1860 में अर्थात् यु( के समय ऐंग्लो ¦फ्रेंच  सैनिकों द्वारा यह बाग आग की भंेट चढ़ा दिया गया। इसका पुर्न निर्माण एम्प्रेस ने 1888 में मनोविनोद के लिये  किया लेकिन 1900 में एक बार फिर यह महल नष्ट हो गया था। साम्राज्ञी डाउजर ने तीन साल में इसका पुर्न निर्माण कराया। बार-बार मनोविनोद के लिये तैयार किये गये इस महल पर हुए खर्च को वसूला जनता से गया जिससे लोगों में विद्रोह की भावना घर करती गई ।10 अक्टूबर 1911 को सुनयात सेन के नेतृत्व में क्रांति हुई राजवंश का खात्मा हुआ।

समर पैलेस झील के किनारे है विशाल झील और उसके किनारे-किनारे बाग जिसमें तरह-तरह के वृक्ष, जड़ी-बूटियों के पौधे पुष्प आदि है समान चौड़ी सीढ़ियाँ कई भाग में थी उनके बीच की सीढ़ी से पहले झरने छोटे-छोटे पुल पार करने थे उसके बाद चौड़ी सीढ़ियाँ जो कई भागों में विभक्त थी बीच का रास्ता छोड़ कर दोनों इधर-उधर की सीढ़ियों पर क्रम से फूलों के छोटे-छोटे गमले सजे थे फूलों की जैसे चादर हो। लंबा लकड़ी का कारीडोर पार करके विशाल झील और मैदान एक विशाल बैल बैठी मुद्रा में था।बैल के लिये कहा जाता है वह बाढ़ को नियंत्रित करता है। लेक के पास ऐक लड़का ब्रश से दोनों हाथों से पट्टी पर चाइनीज लिख रहा था एक साथ दोनों हाथ तीव्र गति से चल रहे थे उसकी कला देख आश्चर्य हो रहा था यह भी नहीं कि एक से शब्द लिख रहा था यद्यपि हमारे लिये  चीनी लिपि चीलबिलाऊ बनाना ही थी लेकिन अलग अलग शब्द हैं यह तो समझ आ रहा था ।

 झीलके पास अनेकों छोटे-छोटे महल थे, शायद हर सम्राट के अपने समय के। चारों ओर कमरे बीच में अंागन ,हर मुख्य महल में और गैलरी में उस समय के सम्राट की यादगार वस्तुएँ रखी थी। पॉटरी, वस्त्र अन्य सजावटी सामान, खाने के बर्तन ताम्रपत्र आदि रखे थे। सब आलमारियों में सजे हुए थे। ।


Friday, 4 July 2025

cheen ke ve dus din 10

 चौक पार करके माओ त्से तुंग का स्मारक था विशाल लकड़ी का लाल रंग का द्वार था। उस पर बैंगनी और सुनहरे रंग से चित्रकारी थी । एक बड़ा बैनर उस स्मारक पर लगा था।उस पर लिखा था चेअरमैन माओ स्मृति हॉल’   उस पर माओ का चित्र था।माओ के चित्र के एक तरफ लिखा है ‘लांगलिव प्यूपिल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना’ और दूसरी तरफ लिखा है ‘लॉग लिव द ग्रेट यूनिटी ऑफ द वर्ल्डस प्यूपिल’ बड़े कक्ष के बीच में माओत्से तुंग की ममी संगमरमर के चबूतरे पर क्रिस्टल केस में रखी है। चारों ओर मोटी जंजीरों से जनता से दूरी बनाई हुई है।

इसका निर्माण माओ की मृत्यु ;दिसम्बर 1976द्ध के तुरंत बाद प्रारम्भ हो गया था। और 1 मई 1978 को इसे जनता के लिये खोल दिया गया। माओ का शव उनके चिरपिरचित वस्त्रों में था विशेष रसायन से चेहरे को जीवंत बनाया गया था लेकिन उस पर गुलाबी तैलीय आभा झलक रही थी। वहीं अन्य बड़े कक्षों में क्यू शाओ छी, चू , चाओ एन लाई और माओत्से तंुग की मूर्तिया लगी थी। दीवारों पर सूक्ति वाक्य लिखे थे जो हमारे लिये महज चित्रकारी थी।

एक विशाल हाल में समय-समय पर चीन द्वारा किये गये यु( उसके नायकों-शहीदों का इतिहास अंकित था तथा उसकी वीडिया क्लिपिंग लगातार चल रही थी।

यह स्थान निषि( नगरी ;फॉरबिडिन सिटीद्ध का ही दक्षिणी हिस्सा है यहाँ से निषि( नगरी के लिये जाने का मार्ग बंद कर दिया गया है। यह दरवाजा थ्येन आन मान गेट या शांति द्वार कहलाता है इस दरवाजे के ऊपर बनी छतरी पर ही से थ्येन आन मान चौक में एकत्रिक भीड़ को संबोधित कर लोकतांत्रिक चीन की घोषणा की गई थी।स्मृति हॉल के बाहर 5 पुल है बीच में बड़ा पुल सम्राट और साम्राज्ञी के लिये और छोटे पुल से सभी अधिकारी और मंत्रीगण के लिये, पुल से पहले द्वार पर दो विशाल शेर पहरा देते हुए हैं दो पुल के पास हैं। चाइनीज विश्वास करते हैं कि शेर बुरी आत्माओं से बचाता है।जिसे यह पता नगता यह पुल सम्राट साम्राज्ञी के लिये था तो उसी पुल से  पार जाना चाहा ,अब तो सब अपने राजा हैं अपने देश में होता तो उस पर  लिखा होता मंत्रियों के लिये केवल।

निषि( नगरी शहर का दिल है यह बीजिंग के केन्द्र में स्थित है इसे चाइनीज गू गौंग कहते हैं। क्योंकि कभी यह मिंग और ंिछंग वंश के सम्राटांे का निवास स्थान था।अब यह महलों का अजायबघर कहलाता है यह टिनामैन स्क्वायर के उत्तर में स्थित है यह विश्व का सबसे बड़ा महल समूह है। इसके चारों ओर छः मीटर गहरी खाई है और 10 मीटर ऊँचा परकोटा है इसमें 9,999 कमरे हैं। एक के बाद एक कई परकोटों से घिरे इन महलों में आम जनता का प्रवेश निषि( था। यह करीब सात लाख बीस हजार वर्गमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ था। इसके निर्माण में चौदह साल लगे थे। उससे पूर्व राजधानी नानचिंग थी इसके निर्माण के बाद राजधानी यहाँ बनी । 

तृतीय सम्राट युंग ले के समय इसका निर्माण सन् 1407 में प्रारम्भ हुआ। इसकी छतें टाइल्स की व फर्श संगमरमर के बने हैं।चारों कोनो पर चार मीनारें है। एक लाख कारीगरों, दस लाख मजदूरों के 14 वर्ष के अथक श्रम के बाद 1420 में इनका निर्माण पूरा हुआ।यांग वंश की पांचवी पीढ़ी का समय था। कहा जाता है पत्थर फैंगशान से लाया गया है हर पचास मीटर के बाद सड़क किनारे एक कुँआ खोदा गया था। जिससे सड़क पर वर्फ पर पानी डालकर उस पर पत्थर सरकाया जा सके। निषि( नगरी कारीगरी का अद्भुत नमूना है। इसकी बाहरी दीवाल नीचे 8.6 मीटर है और ऊपर 6.66 मीटर चौड़ी है। इसका तिरछा आकार चढ़ने वाले के लिये बेहद थकाने वाला है। इसकी ईंटे सफेद चूने और चावल के माड़ से बनी है। सीमेंट, चावल के माड़ और अंडे की सफेदी , इन अद्भुत सामानों ने दीवार को अभेद्य बना दिया।चारों कोनों पर चार मीनारें हैं ।  

इस महल में सर्वप्रथम मिंग सम्राट च्यांग चू ने सन् 1420 में रहना प्रारम्भ किया। इन महलों में 419 सालों तक एक के बाद एक कर चौबीस सम्राटों ने निवास किया।तब तक जब आखिरी सम्राट को भीतरी दरबार से खींच कर निकाला गया 


था।

इसके चारों ओर खाई बनी हुई है। इसके अंदर आठ सौ महल बने हैं और नौ हजार कमरे हैं। चारों ओर चार दरवाजे हैं। हर प्रवेश द्वार पर पीशू की बैठी मूर्तियाँ बनी हैं। चारों दरवाजों के नाम हैं।दरवाजों के ऊपर खूबसूरत बुर्जियाँ बनी हैं जिनसे शहर और महलों को देखा जा सकता है।

1. थ्येन आनमन ;दक्षिणी द्वार शान्ति द्वारद्ध

2. शान वूमन ;उत्तर द्वार स्वर्गदारद्ध

3. तुंग-हा-मन ;पूर्वी दरवाजाद्ध

4. शी हा मन ;पश्चिमी दरवाजाद्ध

तिरस्कृत महलों और बाग बगीचों का विशाल परिसर कभी शाही परिवार और उसकी सेवा करने वाले हिजड़ों के लिये आरक्षित क्षेत्र था नाम इसका फॉरबिडिन अवश्य है परन्तु यह आश्चर्यजनक रूप से देश की संस्कृति का चरमोत्कर्ष दिखाता लाोकप्रिय पर्यटन स्थल है इसका कारण इसकी भव्यता और सुंदरता है । इसकी कलात्मकता और शिल्प सौंदर्य अदभुत् है ।निषि( नगरी दो भाग में विभक्त है दक्षिणी हिस्सा जहाँ से सम्राट राज्य कार्य किया करते थे। भीतरी हिस्सा जहाँ वे रानियों के साथ रहा करते थे। यह हमेशा रहस्यों के घेरे में और खजाने से भरपूर था। 


Wednesday, 2 July 2025

cheen ke ve das din 9

 

डिनर के डिब्बे रास्ते में एक इंडियन होटल से पैक कराये थे हमें मिल गये पर खाना इतना अधिक था कि पूरा खाया नहीं गया। पूरे पूरे डिब्बे नीचे सरका दिये । नींद आंखो से कोसों दूर थी । मन कर राि था बाहर देखा जाये पर जैसा ए सी रेल गाड़ियों में होता है चीन भी अलग नहीं है महंगा टिकिट लेकर आदमी अपने को कोटर में बंद कर लेता है ।प्रातः 7.30 पर ट्रेन बीजिंग स्टेशन पर पहुँच गई। वहाँ हमारा स्वागत सैफरीना नामक लड़की ने किया आगे बीजिंग यात्रा की गाइड यही सैफरीना थी। 

रेलवे स्टेशन से बाहर आये। बाहर आते ही लगा जैसे फूलों की नगरी में आ गये हों।   सौंदर्य का अदभुत उदाहरण दिख रहा था। देखकर आश्चर्य लग रहा था। पूरा बीजिंग फूलों के गमलों से पटा पड़ा था। उनमें पानी देने की व्यवस्था हर सड़क पर थी सड़क के किनारे-किनारे पाइप जा रहे थे। बीच-बीच में नीचे ही नल थे वहाँ पाइप लगा कर गमलों में पानी पहुँचाया जा रहा था। मालियांे की डेªस पीले   रंग की थी उस पर बैंगनी पट्टी थी।सूखे पत्ते उठाने के लिये डंडे में खुलने वाला डिब्बा लगा था उसमें पंजे जैसे यंत्र से कूड़ा उठाते जाते थे। वे बराबर काम में लगे हुए थे।पूरा रास्ता कलात्मक ढंग से सजे हुए फूलों से पूर्ण था। जैसे फूलों की दुनिया में आ गये हैं। जो अनेक रूप लेकर सामने था।  कहीं भी पौधों में सूखा-मुरझाया फूल पत्ती नहीं दिख रहे थे। ये फूल छः इंच के छोटे-छोटे गमलों मेें थे पता नहीं एक माह बाद भी उनका वही रूप रहा होगा। इनकी दोनों ओर चादर सी बनाई गई थी बीच में डिवाइडर के दोनों तरफ पन्द्रह इंच के गमलों में बड़े संुदर फूल वाले पौधे लगाये गये थे।सड़क पर एक तरफ फूलों से संुदर चित्रकारी की गई थी। चित्रकारी से मतलब फूलों के छोटे-छोटे गमलों को सड़क के किनारे कलात्मक अलग-अलग आकृति से सजाये थे जैसे परी, झरना, थाल कमल, का फूल, गुलाब के फूल उनके आकार के सांचों में छोटे-छोटे गमलों को सैट किया गया था देखने पर लग ही नहीं रहा था कि छोटे गमले सैट कियेे गये हैं लग रहा था उसी ढंग से फूल उगाये गये हैं।इसके लिये चीन ने चार करोड़ पौधे आयातित किये थे, आयात करना अलग है उनका उपयोग दूसरी बात है। डिवाइडर के दोनों ओर पतले लोहे के पाइप लगे थे उनके द्वारा रबर पाइप लगाकर रात्रि में सड़कें धुलती हैं। फूलों की यह व्यवस्था हर जगह मिली चाहे स्वर्ण मंदिर हो या निषि( नगर या पूरा शहर। यहाँ तक कि सीढ़ियों को या शहर के किनारे को रंग बिरंगे फूलों से सजाकर भित्ति चित्र का सा आभास दिया गया था।

चीन में सौंदर्यबोध हर जगह दिखाई देता है यहाँ तक कि ट्रांसफारमर तक ऐसा लग रहा था कोई मीनार खड़ी है। अगर खाली दीवार है तो उस पर तैल चित्र बने हुए है। संभवतः आने वाले ओलम्पिक की तैयारी में बीजिंग दुल्हन सा सजा तैयार था।

होटल कम्युनिकेशन पहुँच कर वहाँ हम फ्रैश हुए  बीजिंग दर्शन के लिए फिर बस में सवार होकर निकल पड़े और थ्येन आन मान चौक पहुँचे। यह चौक बहुत बड़ा था। यहाँ पर सम्राट यु( में जाने के लिये तैयार सैनिकों को उत्साहित करने के लिये भाषण देते थे लेकिन अब वह सभा आदि के काम आता है। पूरा चौक छोटी-छोटी ग्लेज्ड टाइल्स से बना हुआ था। उसे जंजीरों से घेरा हुआ था कभी इसे लाल चौक के नाम से भी जाना जाता था।  चीन की लोक सभा भी वहीं थी। एक तरफ रिवोल्यूशनरी संग्रहालय बना था। इसकी दीवार पर लिखा था ‘ए मोर ओपन चाइना वेट्स टु थाउजैंड ओलम्पिक्स’ दीवारों पर हर तरफ किसी न किसी जानवर का चेहरा बना हुआ था। यहीं से 1 अक्टूबर 1949 को माओत्से तुंग ने चीन में लोकतंत्र की घोषणा की थी।यह करीब 50 हेक्टेयर जमीन में फैला हुआ है।जूते-चप्पल एक तरफ उतार कर वहाँ जा सकते थे। हजारों आदमी दिन भर वहाँ घूमता होगा लेकिन टाइल्स एक दम चमक रही थी।इसके सभी स्मारक और संग्रहालयों पर देशप्रेम झलकता है।साम्राज्य विरोधी संघर्षों का प्रभाव है ।1989 का संघर्ष स्कवायर में विशाल रैलियों के साथ पहुॅंचा और

नजदीकी सड़कों पर विद्यार्थियों और मजदूरों के जन संहार के साथ खत्म हुआ, ये युवा सरकार विरोधी संघर्ष कर रहे थे ।

थ्येन आन मन स्वर्गिक शांति द्वार, आवाम के चीन का प्रतीक, राष्ट्र का हृदय कहा जाता है, इसके चौक के इर्द-गिर्द चीन की संसद, चीन का संग्रहालय चीनी क्रांति का संग्रहालय है।पहले टिनहैन मैन केवल सम्राट के लिये था इस को स्वर्गिक शांति द्वार कहा जाता था टिनहैन मान तीन शब्दों का समूह है टिन हैवन ;स्वर्गद्ध हैन पीस ;शांतिद्ध मान गेट ;द्वारद्ध द गेट ऑफ हेवनली पीस।1987 में आम जनता इस चौक पर पैर रख पाई थी।

       ‘हम घेरते रहे घेरते रहे जब तक कि हमारे लोहे के जूते टूट नहीं गये और तब बिना देखे हमें वह मिल गया जिसे चाह रहे थे’                                                                                   वाटर मारीजन मिंग डायनेस्टी उपन्यास

वहीं पर ग्रेट हाल आफ चीन था यह थ्येन मान चौक या टिनहैनमान स्क्वायर के पश्चिम में है ग्रेट हॉल का निर्माण केवल दस माह में अक्टूबर 1958 और सितम्बर 1959 में हो गया था इस भवन का एरिया 171,800 स्क्वायर मीटर है अर्थात् निषि( नगरी से भी बड़ा यह विश्व का सबसे बड़ा हाल है और दस विशाल निर्माण में से एक है।चौक पर ही पर लांग मार्च 


के शहीदों का स्मारक मध्य में बना है। शहीद स्तम्भ 1 अगस्त 1952 को बनना प्रारम्भ हुआ और अप्रैल 1958 को तैयार हुआ इसमें 1700 ग्रेनाइट की टाइल लगी हैं। यह स्तम्भ सफेद संगमरमर से बना है। 3794 मीटर लंबा है 50.44 मीटर चौड़ी पूर्व से पश्चिम ओर 61.59 मीटर लंबी उत्तर से दक्षिण है यह चीन का सबसे ऊँचा मोनूमेंट है यहाँ पर शहीदों को सुबह-शाम गार्ड आफ आनर दिया जाता है।उस पर लिखा है चाउएन लाई उद्गार ,‘यह उन शहीदों की स्मृति में है जिन्होंने स्वतन्त्रता के लिये यु( में अपनी जान निछावर की।’

उसके दोनों ओर दो स्मारक स्तम्भ बने हैं। ये उन हजारों छात्रों ओैर नागरिकांे की स्मृति में बने हैं जिनकी हत्या 4 जून 1989 को थ्येन आन मान चौक में आंदोलन के दौरान हुई। 1966 में जो दमन का महादौर चला और महान सांस्कृतिक क्रांति में बदला उसकी परिणति थी आंदोलन।


Monday, 30 June 2025

cheen ke ve das din 8

 वहाँ से हम यू-आन गार्डन चले यूआन गार्डन के रास्ते में ऊँचाई पर फ्लाई ओवर मिला उसके एक तरफ बराबर नहर चल रही थी जिसमें लोग मछली पकड़ रहे थे।पुल के एक तरफ पुरानी शैली के कुछ घर बने थे उसमें रहने वाले उन्हें बेच नहीं सकते हैं शंघाई सरकार उसे धरोहर के रूप में सुरक्षित कर रही है। वहाँ तक पहुँचते-पहुँचते बारिश शुरू हो गई समय रुकने का था नहीं यूआन गार्डन के लिये उतरते ही बरसात ने धार का रूप ले लिये बस करीब आधा किलो मीटर दूर रूक गयी।उतरते-उतरते एक दम तेज बारिश होगई थी काफी चलना था।बारिश का रुकने का इंतजार करते तो ट्रेन भी पकड़नी थी बस रुकते ही छाता बेचने वाली चीनी स्त्रियाँ आ गई जो भी मूल्य मांगे उस समय देकर सबने छाते लिये और भागते हुए आगे बढ़े। बाजार से रास्ता लंबा पड़ता इसलिये एक दूसरे गार्डन में से होकर हम निकले चारों ओर बजरी का रास्ता सड़क की तरफ बड़े वृक्ष और झाड़ियां । रास्ते के दूसरी तरफ धार  दूर दूर तक गार्डन में जाने का मार्ग और हरियाली तालाब आदि 


दिख रहे थे पर हम उस समय भागते बस चले जा रहे थे। छतरी नाम के लिये थी,वह उस समय ऊपर उड़ और रही थी तो उसे रोकना और पड़ रहा था।।देखने का उत्साह था एक दूसरे को देखते भागते चले जा रहे थे गार्डन पार कर थोड़ा सा बाजार फिर भी पार करना पड़ा फिर आया यू गार्डन का छोटा सा लाल पत्थर का दरवाजा।

    यूआन   गार्डन अवश्य कहलाता है लेकिन  मिग व छिंग वंश के राजाओं का निवास स्थान था। उन्हीं के शासनकाल में इसका निर्माण हुआ। उस समय की कलात्मक शैली की छाप सब जगह है, गार्डन में जाने का मार्ग मेहराबदार लाल पत्थर का बना था। संभवतः यह शाही मार्ग था इधर-उधर बरामदे होंगे लेकिन अब यह बाजार में बदल गया है इसके दोनों ओर दुकानें थी। रास्ता करीब पाँच फुट चौड़ा था। रास्ता पार करके गार्डन का दरवाजा था। उस पर एक विशाल ड्रैगन बना था। चीन में डैªगन शुभ व शक्ति का प्रतीक माना जाात है।ड्रेगन लौकिक और अलौकिक शक्तियों का मालिक होता है वह स्वर्ग जाकर बादलों को और नमी को एकत्रित करता है और वर्षा को जीवन देता है।  गार्डन में 9 कक्ष बने थे षटकोण्ीय थे । हर कक्ष पुल द्वारा एक दूसरे से जुड़े थे ।छोटे छोटे  पुल, ये पुल लकड़ी के बने हुए थे। क्योंकि हर कक्ष के चारों ओर झील थी, झील करीब पाँच  फुट गहरी थी उसमें कमल खिले थे उनका रंग अधिकतर पीला, नांरगी था। तरह-तरह की छोटी-बड़ी मछलियाँ स्वच्छ पानी में घूमती नजर आ रही थीं।विशेष रूप से नारंगी रंग की मछलियॉं । एक भी कागज आदि का टुकड़ा नजर नहीं आ रहा था हर कक्ष के बाहर हरियाली ही हरियाली नजर आ रही थी। गार्डन जिग जैग स्थिति में बना था , 1400 वर्ष पुराने इस गार्डन में सिदूरी रंग का अधिक प्रयोग किया गया है।लौटकर आये तो डा॰ सरोज भार्गव बस में  बैठी नजर आईं बहुत क्रोध में थीं । एकदम किधर गायब हो गये सब के सब,  कम से कम  सब आ गये हैं यह तो देखना चाहिये ।    बरसात से भीगे तरबतर पर चहकते चेहरे अपराध बोध से ग्रस्त चुपचाप बैठ गये ।

   लौटते में ई-गार्डन पर रूके। ई गार्डन अर्थात् ‘खुशियों का बाग’ ई-गार्डन में सड़क किनारे ही दो बड़े-बड़े बाग थे बड़ा-सा जीना दोनों तरफ से चढकर छत थी। वहाँ से शंघाई का दोनों ओर का दृश्य दिख रहा था। वहाँ हांग पू नदी का विहंगम दृश्य दिखाई दिया उसमें छोटे जहाज चल रहे थै। शंघाई ईस्ट और वेस्ट दो भागों में बटा है पूर्व में पुराना शंघाई और पश्चिम में नया शंघाई है। नये शंघाई में टीवी टॉवर है नीचे दो विशाल ग्लोब बने थे ओरियंटल पर्ल टॉवर में यहाँ शंघाई कन्वेशन सेंटर बना हुआ है।ग्लोब तीन खंभों पर खड़े हैं अंदर इसके ऐतिहासिक संग्रहालय के साथ-साथ विभिन्न मनोरंजन के साधन हैं।यह सुना हुआ था देखने की इच्छाा थी पर  हांग पू नदी का  पाट चौड़ा था वहॉं से पर्ल टावर पहुॅंचने के लिये पूरा समय चाहिये था साढे़ पॉंच बज गये थे बादल पानी की वजह से लग रहा था शीघ्र निकलें । साढ़े छः बजे स्टेशन पहुॅंचना था        बीजिंग चीन की राजधानी है इसका अर्थ है उत्तरीय राजधानी। प्राचीन चीन की 9 बड़ी राजधानियों में से एक है इसकी आबादी 17 करोड़ है इसमें 16 नगर कस्बे हैं तथा 2 ग्रामीण क्षेत्रों में विभाजित है। शंघाई के बाद दूसरा सबसे बड़ा नगर है बीजिंग से पूर्व इसके कई नाम रहे झोगडू, डायड, बेईपिंग, पेनजिंग । 400 साल पहले फ्रांसीसी मिशनरीज ने पीकिंग शब्द का प्रयोग प्रारम्भ किया अब यह बीजिंग नाम से जाना जाता है।इसके आसपास देखने लायक कई आकर्षक दर्शनीय और ऐतिहासिक स्थल हैं ।

बीजिंग की यात्रा हमने चीन की सुपर फास्ट टेªन से की। बारह घंटे का सफर था। यहाँ पर भी कुली नहीं थे। अपना

सामान स्टेशन पर ले जाना था । बस ने बाहर ही छोड़ दिया। काफी दूर तक समान ले जाना था। एक साथ दोनों अदद ले जाना मुश्किल था बैग अटैची साथ में हैंडबैग इतना समय था नहीं कि एक-एक करके ले जाय किसी तरह अटैची पर रखकर ही बैग खिसकाया पर बैलेंस नहीं बन पा रहा था। जैसे तैसे सामान खिसकाया और स्टेशन के गेट तक पहुॅंचे । पर ऊॅंचा नीचा रास्ता जीना आदि देखकर और यह जानकर कि प्लेटफार्म करीब आधा किलो मीटर तो और अंदर है दम निकल गई , पर जब पता लगा कि स्टेशन के दरवाजे पर आपका सामान ले जाने के लिये खुली गाड़ी मिल जाती है,दो डालर नग के हिसाब से तो चैन आया । सफर कैसा भी हो सामान कम से कम और उठा सकने वाला ले जाना चाहिये ।हल्के और मजबूत ब्रीफकेस होना चाहिये ।

10-10 युआन में हर एक का सामान टेªन के प्लेटफार्म तक पहुँच दिया गया। ठीक डिब्बे के गेट के सामने हमारे सामान की गाड़ी रूकी। गाड़ी में से सामान टेªेन में पहुँचा के अपनी सीटों का नंबर देखा। टेªन का हर डिब्बा कूपे जैसा था एक तरफ पूरी गैलरी थी जिस पर कालीन बिछा था। एक तरफ डिब्बे थे चार-चार सीट का डिब्बा था। अरामदेह सीट थी। सबसे पहले अपना-अपना सामान जमाया। उसके बाद चाय की फिक्र हुई वहाँ अटैडेंट से पानी मांगा तो थर्मस में एकदम उबला पानी दे गई और हो गया चाय का जुगाड़। डिसपोजेबल ग्लास चाय दूध के पैकेट थे ही वहीं चाय पी जैसे एक दम थकान चढ़ गई हो चाय से फ्रैश-फ्रैश महसूस करने लगे।


Sunday, 29 June 2025

cheen ke ve das din 7


शाम के सात बजे तक हम होटल लौटकर आ गये। दोपहर तो पूरियाँ खाली थी लेकिन इस समय भारतीय कच्चा खाना याद आ रहा था। दीपक जी ने बताया कि यहाँ से 10 किलोमीटर दूर एक पंजाबी रेस्टोरेंट है वहाँ बहुत अच्छा खाना मिलता है। कुछ ने वहीं सामने के बाजार से कुछ-कुछ मंगाकर खा लिया। लेकिन हम सात-आठ लोग एक जीप में भरकर इंडियन क्यूपाइन पंजाबी रैस्ट्रोरंेट चल दिये। रास्ते में हमने रात्रि में रोशन शंघाई शहर देखा। रात्रि में शंघाई ऐसा लग रहा था जैसे दीवाली की रात हो कई बड़ी-बड़ी इमारतों पर दीपावली की सी बल्बों की सजावट हो रही थी। साथ ही सभी इमारत 


रोशनी से भरपूर थी। दुकानें देर तक खुली रहती हैं इसलिये चहल-पहल भी रात में अच्छी थी। 

पहली मंजिल पर बने इस रेस्टोरेंट की साज-सज्जा राजस्थानी ढंग की थी  वेटर राजस्थानी पोशाक में थे। राजस्थानी लोकगीत का टेप चल रहा था। हमें वहाँ पहुँचते रात्रि 10 से ऊपर समय  हो गया था। रैस्टोरेंट 10 बजे तक चलता था। पर यह जानकर कि हम भारत से आये हैं और मात्र खाना खाने इतनी दूर से आये है सुनकर उन्होंने फिर से खाना बनाने का 

निश्चय किया जो कुछ बनाया जा सकता था बनाया ।

वेटर हिमाचल प्रदेश के नूरपुर का रहने वाला था। हम लोगों से बात कर बहुत खुश हुआ। वह चार साल से वहाँ काम कर रहा था। उस रैस्टोरेंट में भारतीय तो आते ही थे पर अन्य देश के लोग भी भारतीय व्यंजनों का स्वाद लेने आते थे। दीपक जी जब भी श्ंाघाई आते थे इसी रेस्टोरंेट में आते थे उसी रैस्टोरंेट में खाते थे गरम हल्का खाना बहुत अच्छा लग रहा था।

प्रातःकाल आठ बजे हमने अपना-अपना सामान पैक किया। होटल में तरह-तरह के नाश्ते लगे थे एक तरफ सब अमिष खाना और पीछे की तरफ सामिष खाना था। आमिष खाने में फ्रूट कटे हुए सजा रखे थे साथ ही साबुत भी रखे थे। कार्नफ्लैक्स की विभिन्न वैरायटी, वीन्स, बर्गर ,बन आदि थे फ्रूट कस्टर्ड, आइसक्रीम जूस काफी, चाय आदि सबने एक-एक सेब अपने -अपने बैग में रखे जिससे आगे की यात्रा में उसका उपयोग किया जा सके।साथ ही यह भी देखा हम ही नहीं अन्य देशों के  नागरिकों ने भी समान रखा यहॉं तक कि बन बर्गर आदि भी ।कितना मिलता है इंसान इंसान से । आखिरकार पैसा दिया है वसूलने में कुछ आनंद तो उठा लें ।

उस दिन हमें शंघाई घूमकर शाम 7.30 की टेªन से बीजिंग रवाना होना था इसलिये सारा सामान बस में ही रख लिया।

शंघाई जैसा कि पहले ही बताया यह समुद्र से घिरा है लेकिन हमने ऊॅंची ऊॅंची इमारतें ही देखीं ।यहाँ का मुख्य 

धंधा मत्स्य पालन और उन्हें देश-विदेश में भेजना है वहाँ के समुद्र को ‘ओम के सी कू’ कहते है। ओम समुद्र को कहते    ैैंहैंऔर कू गहरा के लिये प्रयुक्त होता है ।शंघाई हाउस की कीमत करीब 100 हजार स्क्वायर मीटर के हिसाब से है।

   एंजला चाऊ हमारी गाइड थी बहुत हँसमुख लड़की थी वह हमें वहॉं की इमारतों की विशेषता बताती जा रही थी साथ ही चीन की सभ्यता संस्कृति व सामाजिक व्यवस्थाओं के बिषय में बताती जा रही थी ।उसने कहा यहाँ महिलाऐं भाग्यवान है वे बाहर काम करती है और पुरुष घर पर काम करते है। पुरुष घर पर बैठे ताश आदि खेलते हैं।

ताओवाद यहाँ कई मंदिरों के रूप में है । सिटी गोल्ड टॅम्पल नगर का हृदय स्थल है ये तीन राजधानियों के जनरल गुआन यू को समर्पित है।  वेनमिआओ मंदिर कन्फ्यूसियस को समर्पित है। लागुहा, लिंगन मंदिर, जैड बु( मंदिर बौ( को समर्पित है। शंघाई में एवजयूजीअइुई में ईसाई धर्म के महत्वपूर्ण केन्द्र का चर्च है यह बड़ी चर्चाे में से एक है। शी शान वैसेलिका चीन का एक मात्र ईसाई तीर्थस्थल है।हम वहाँ से जेड बु( मंदिर गये। इसका निर्माण 1882 में हुआ इसे ‘यूफोशी’कहते हैं वैसे चीनी भाषा में ‘थान’ मंदिर को कहते है पर शंघाई में ‘शी’ मंदिर के लिये प्रयुक्त होता है।

मंदिर में बु( की विशाल जैड पत्थर से बनी मूर्ति थी 31“99 मीटर सफेद रंग की मूर्ति को एक ही पत्थर से काटकर बनाया गया था।दरवाजा यद्यपि बड़ा था पर फिर भी इतना बड़ा नहीं था ।हम मूर्ति को देख रहे थे और दरवाजे को देख रहे थे पहले मूर्ति रखी और फिर मंदिर बनाया क्या ? 1882 में इस मूर्ति को बर्मा से यहाँ लाकर स्थापित किया गया उसक सामनेे एक छोटी लाल चंदन की बु( मूर्ति लेटी अवस्था में थी बु( मूर्ति का चेहरा चाइनीज था। उनके सामने एक चौकी पर एक रूई की गद्दी थी उस पर सिर रखकर लोग बु( को प्रणाम कर रहे थे। बु( वहाँ अवलोकितेश्वर नाम से ,कुयिन या कुन शिहयिन नाम से जानेे जाते हैं जिनका मूल सि(ान्त दया और सहनशक्ति है।पूरे मंदिर की दीवारों पर फूल-पत्तियों की चित्रकारी थी।

दूसरे मंदिर में नौ विशाल मूर्तियाँ  मंदिर के दोनों ओर थीं।उन पर सोने की पर्त थी या पालिश,लेकिन चमक सोने की दे रहीं थी । एक तरफ भविष्य बु( उनके सामने फसल के बु( ,भोजन के बु( उनके सामने बुरी आत्माऐं सबके चेहरे पर भाव भंगिमाऐं परिलक्षित हो रही थी। वर्तमान बोधिसत्व के सामने सीधे हाथ पर सुख स्वास्थ्य के लिये बु(, बायें हाथ पर

 ध्यान बु(ा थे। वर्तमान बु(ा के सामने अखंड ज्योति जल रही थी। उनके दोनों ओर दो उड़ती हुई परियॉं थी।एक ही हॉल में इतनी सारी मूर्तियॉं थी कि दुकान सी लग रही थी ।

एक विशाल घंटा था। विश्वास किया जाता था 108 बार बजा कर मनौती की जाती है पूर्ण होती है उक व्यक्ति घंटा बजा भी रहा था यदि समय होता तो शायद सब अपनी मनोकामना पूरी करने में लग जाते । उसके नीचे दस-दस पहरेदार थे। बैल्ट बु(ा व क्लाथ आफ क्वाइंडूग इनका नाम लेने से आत्मा शु( होती है इनका चेहरा स्त्री रूप में है पर है पुरुष । दो शिष्ट प्रभु और गुरु। अठारह अरिहन्त चारों ओर 20 शिष्य थे।सभी मूर्तियॉं कम से कम  तीस फुट ऊॅंची ऊॅंची और स्वर्णमंडित थी ं

एक संुदर-सा सफेद फूलों का वृक्ष था उस पर मान्यता का धागा या रिबन बंाधते हैं।सफेद ही धागों से बंधा पड़ा  था वह वृक्ष । एक विशाल स्तम्भ था उसके आगे आत्म शोधन किया जाता है। जेड के बु( के लिये कहा जाता है जेड हमारा जीवन बचाता है।सामने दो बड़े दीप स्तम्भ थे, वहाँ दीपक, अगरबत्ती जलाई जाती है। तरह-तरह के बोनासाई मंदिर परिसर में गमलों में सजे थे। सफेद पुष्प का छोटा पेड़ फूलों से लदा था।

दूसरी मंजिल पर रास्ते की दीवारों पर चित्रकारी हो रही थी एक पेटिंग में आत्म-शोधन प्रक्रिया दर्शित हो रही थी। छत पर 600 सिक्के जड़े थे वे चक्राधार रूप में थे कहा जाता है ये सिक्के बुरी नजर से बचाते हैं। चढ़ते हुए कानों में जैन धर्म का णमोकार मंत्र पड़ा ‘ऊँ नमो अरिहंताणम्’ सुनकर अचम्भा हुआ। वहाँ हमने पुराने चित्र कास्य और मिट्टी से बनी कलाकृतियाँ पांडुलिपियों आदि का संग्रह देखा। बौ( धर्म ग्रथों का संग्रह देखा।यह सब देखते जा रहे थे और सोच रहे थे कहां हैं हम  अलग ।

लिंगेन बु( मंदिर में हजार हाथ वाले बु( की विशाल प्रतिमा थी। इन्हें फ्लाइंग बु(ा कहा जाता है। वे पदमासन पर

विराजमान थे। जीवन में उपयोग में आने वाली सभी वस्तुऐं जैसे कमल, कलश, घंटा, शंख, चक्र तरह-तरह की जड़ी-बूटियाँ उनके हाथ में थी। इस मंदिर के मुख्य द्वार के दोनों तरफ बृहद पत्थर की चौकी थीं जिन पर गुलाब और कमल के फूल खुदे थे। सामने बड़े-बड़े सुंदर काले पत्थर के दीप स्तम्भ थे।

वहाँ से अगले दर्शनीय स्थल से पहले हमारी बस शैसे पर्ल सिटी अर्थात् मोतियों  के विशाल शो रूम के सामने थी। बाहर से नहीं लग रहा था कि यह इतना बड़ा होगा। तसलों में बंद सीपिया पानी में पड़ी थी मुख्य द्वार के सामने झरना बना था उसके पानी में अनेकों सीपियॉं पड़ी थीं । एक लड़की ने हमें सीपी खोलकर मोती बनने की प्रक्रिया दिखाई छोटा सा मोती घोंघे के किनारे पड़ा था। उसने चिम्टी से घोंघा हटाकर मोती दिखाया हम देख तो उत्सुकता से रहे थे मानो विश्वास है कि मोती वहीं बना हक् पर बाद में आगे जाकर मुड़कर देखा उसने वैसे ही घोघे का बंद किया और फिर पानी में डाल  दिया ।अंदर मोतियो की ज्वैलरी, माला,गुच्छों का विशाल शोरूम था मोतियों को अलग-अलग नगीनों के साथ भी लगाया गया था मोती की आभा वाली क्रीम भी मिल रही थी जो लड़कियॉं क्रीम बेच रही थीं उनके चेहरे चमक रहे थे उससे प्रभावित सबने  क्रीम खरीदी पर इतने दिन बाद भी मैंने अभी तक किसी के चेहरे पर वह आभा देखी नहीं है ,उस समय तो यह लग रहा था कि सबके चेहरे ऐसे ही चमक उठेंगे।जल्दी-जल्दी सबने देखा कुछ लेना था लिया लेकिन समय हमारे पास कम था हमें अन्य दर्शनीय स्थलों पर जाना था बीच में भोजन के लिये रूकना था।  हम सब आगे बढ़े। वहीं पर हमारा लंच था।      

      रेस्टोरेंट बहुत साफ सुथरा था। दोनों तरफ खाने का सामान रखा था। वैज और नॉन वैज दोनों तरह के व्यंजन थे। लेकिन भारतीय व्यंजन से अलग। अधिकतर चीजें ब्लांच की हुई सब्जियॉं थी। पीली गाजर, फ्रेंचबीन्स, पत्तागोभी, नूडल्स आदि इनमें नमक भी नहीं था। एक वस्तु ऐसी थी देखने में छोटे हरे कमल के  फूल सी लग रही थी। रखी भी वैज खाने के साथ थी,लेकिन कोई भी अपरिचित वस्तु छूने में भी डर लग रहा था ।हमने वेटर से पूछा यह क्या है? उसने पूछा आप वैज है। या नॉन वैज। हमने कहा ‘वैज’ तो वह बोला यह आपके मतलब का नहीं है। क्या है? यह उसने नहीं बताया बहुत गौर से देखा देखने में बहुत सुंदर लग रहा था। पर समझ नहीं आया विश्वास ही नहीं हो रहा था कि वह नॉन वैज डिश है।अरे बाप रे कितना अच्छाा हुआ पूछ लिया  कहा  फिर वैज खाने के साथ क्यों रखी है , जो कुछ भी खाने में था सब खा नहीं रहे थे निगल रहे थे वहाँ का प्रिय पेय चाय अवश्य सबने शौक से पी क्योंकि उसे पीकर बहुत अच्छा लग रहा  था। कहावत हेै ‘खान क्या खा रहा हैं ‘पैसा खा रहा हूँ’ भूख में किवाड़ भी पापड़ होते है वही  हाल था। बाकी कमी जूस पीकर की।। मनोरमा जी ने हाथ नहीं लगाया  हमारे पास अभी कुछ पूरियॉं थीं उन्हें देखते ही  खुश हो गईं उन्होंने उससे काम चलाया। वास्तव में भारतीय खाने का जबाव नहीं है ।


Saturday, 28 June 2025

cheen ke ve das din 6

 प्रातःकाल हमें शंघाई के लिये निकलना था। रात्रि को ही अर्चना के रसोई घर में हमने शंघाई के लिये पूरी-सब्जी तैयार की क्योंकि एक दो को छोड़कर सभी पूर्ण शाकाहारी थे। यहाँ तक कि प्याज भी नहीं खाते थे। उनके लिये चीन के होटल, रैस्त्रंा में खाना बहुत मुश्किल था। खाने के पैकेट बना बना  कर रखे गये और सबको देदिये गये। वहॉं हिन्दुस्तानी खाना बनाने के लिये यद्यपि मिलता सब है पर बहुत मुश्किल से। अर्चना की दो प्राणी की गृहस्थी थी इसलिये आवश्यक

सामान सब अपने साथ ले गये थे । इतना एहसास तो था ही कि संभवतःउतना राशन वहॉं न मिल सके विशेष आटा ।और वास्तव में आटे के स्थान पर वहॉं मैदे का उपयोग होता है ।

प्रातःकाल बस से हम शंघाई के लिये रवाना हुए शाउसिंग के लिये शंघाई से आये तब अंधेरा था। लेकिन लौटने में दिन का उजाला था। दूर-दूर तक खुला और हरियाली। पर कहीं ऐसा नहीं लगा कि बहुत व्यस्त शहर है उनकी भाषा में गाँव है। सड़कें एकदम साफ थीं दोनों तरफ विलो वृक्ष तो थे ही अन्य भी बहुत प्रकार के वृक्ष थे। झील, पहाड़ी, फव्वारें आदि सब मार्ग का सौंदर्य बढ़ा रहे थे।

शंघाई पुलों के नीचे बसा है। एक के ऊपर एक फ्लाई ओवर थे जैसे हवा में झूल रहे हों। सात-सात फ्लाई ओवर एक के ऊपर एक थे। नीचे सड़क इधर-उधर बड़ी-बड़ी इमारतें हम उन इमारतों की ऊँचाइयों को देख पा रहे थे। मैट्रो अलग चल रही थी एक तरफ रेलवे  स्टेशन था। रेलवे स्टेशन पर लगा हम चीन में है। दूर तक केवल सिर ही सिर दिखाई दे रहे थे । किनारे किनारे दोनों तरफ चम्पा के फूल थे। सफेद हलकी पीली आभा लिये खिल रहे थे। स्टेशन से निकल कर एक तरफ सुंदर फूल दूसरी तरफ नदी उस पर छोटे छोटे पुल जिस पर होकर पार जाना था।पतली गलियों को दीवार से घेर दिया गया था ।अंदर पुराने ढंग के घर है। बहुत-सी इमारतों पर सुनहरे शीशे लगे थे। जो सूर्य की रोशनी में सुनहरी आभा बिखेर रहे थे।

शंघाई में लिंगन  होटल में करीब ग्यारह बजे हमारी बस रूकी। होटल की मुख्य इमारत के बाहर अहाते में कृत्रिम पहाड़ी-झरने के रूप में प्राकृतिक दृश्य बनाया गया था परी की मूर्ति से उसे सुंदरता प्रदान की गई थी रिसैप्शन हॉल में बड़े-बड़े पीतल के गमलों में बॉंस के पौधे लगे थे उनकी टहनियों को विभिन्न आकृतियों का रूप दिया गया था। उनसे जाली सी बनाकर बोतल आदि की आकृति दी गई थी। हर गमले में उगे पौधे की कलात्मकता देखकर उनके धैर्य की प्रशंसा करनी पड़ेगी क्यांेकि उन्हें प्रारम्भ से ही आकृति देकर बढ़ाया गया होगा अब वे करीब पाँच-पाँच फुट हो गये थे। 

बड़े-बड़े मछलीघर लगे थे जिनमें रखी करीब दस इंच लंबी लाल मछलियाँ तैर रहीं थीं लाल मछली वहाँ समृ(ि का प्रतीक मानी जाती है इन्हें वहाँ रैड फोर्ड फिश कहा जाता है। चटक लाल रंग की ये मछलियाँ बहुत सुंदर लग रही थी एक-एक दो-दो काली मछलियाँ भी उसमें तैर रही थी। दरवाजे पर चीनी मिट्टी के बड़े-बड़े नीली चित्रकारी के जार रखे थे।

होटल शाउसिंग में भी देखा और लिंगेन में भी समान स्वयं हमें ही उठाना था। उठा-उठाकर लिफ्ट में रखना कमरे में

पहुँचाना सब हम सबने किया। चीन में कहीं भी कोई वेटर यह काम नहीं करता है पूरी यात्रा में सारा सामान स्वयं ही उठाना पड़ा था बस वाला भी बस से नीचे उतार देता था । अंदर होटल में ले जाना या होटल से बस तक भी लाने का काम स्वयं ही करना पड़ता था। वहाँ पर सामान रखने के लिये बस की सीट के नीचे तलघर बना था वहाँ बस की छत पर सामान नहीं रखा जाता  बस में बने छोटे-छोटे केबिन में केवल हैंड बैग रखे जाते थे।ड्रइवर सामान निकाल तो देता था पर जरा सा खिसकाता भी नहीं था ।

सब सामान तीसरी मंजिल पर बने कमरों में पहुँचाया। कमरे सुरुचिपूर्ण सज्जित व सुविधाजनक थे वहाँ पर भी गर्म पानी के थर्मस चाय-काफी के पैकेट आदि रखे थे। चाय बनाने का काम हम चार सहयात्रियों का हर जगह श्रीमती किरन महाजन ने ही किया । हम चारों मैं श्रीमती शैलबाला, डॉ॰ राजकुमारी शर्मा व श्रीमती किरन महाजन का सारा समय एक कमरे में बीतता था केवल सोने के समय अलग होते थे पूरे दिन की प्रक्रिया पर हँसी-मजाक चलता रहता था। समय बहुत ही सुखद बीता। मन चाय का करता था तो हर हालत में श्रीमती किरन महाजन को पकड़कर लाते थे कि चलो चाय बनाने का समय हो गया है। इसी प्रकार यात्रा के दस दिन बहुत ही सुखद और यादगार रहे।

शंघाई की यात्रा में दीपक जी हमारे साथ थे। दोपहर तो हो ही गई थी उस समय अधिक दूरी का कार्यक्रम तो बनाया नहीं जा सकता था इसलिये शहर घूमने की सोची गई एक टैक्सी में वहाँ पाँच लोग बैठ सकते थे हमने तीन टैक्सियॉं की  और शंघाई घूमने के लिये चल पड़े।

शंघाई शहर की स्थापना 5-9 वीं शताब्दी में हुई है। शंघाई दो शब्दों से मिलकर बना है शघ-ऊपर तथा हाई-सागर यह नाम सांग राजवंश शासन काल 11वीं शताब्दी में पहली बार सामने आया तब वहाँ एक नदी तथा एक गाँव इस नाम का था इसका अधिकारिक नाम है समुद्र के ऊपर या समुद्र तट पर बसा।  इसकी भाषा शंघाई ही है । यह चीन का विशालतम नगर है इनका क्षेत्रफल 7037 किमी. है इसकी जनसंख्या 14 करोड़ है। शंघाई कभी स्वतंत्र प्रशासकीय क्षेत्र था। शंघाई ने तरह-तरह की सभ्यता और प्रशासन झेले हैं इस पर अंग्रेज, जापानी आदि काबिज हुए। 1292 में युगं वंश के समय यह नगर बना। 1554 में जापानी आक्रमणकारियों से सुरक्षा हेतु चारदीवारी बनी। सांग कालीन यह शहर जुलाई 1921 में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के प्रभुत्व में आया। और उसका मुख्यालय भी यही था। 1937-1945 के यु( के समय जापानियों ने 

इस पर कब्जा कर लिया था। सन् 1949 में चीनियों ने पुनः इसे कब्जे में कर लिया और सुनयात सेने के नेतृत्व में पीपल्स आर्मी ने वहाँ राष्ट्रीय सरकार का गठन किया। यह शहर सूती वस्त्र निर्माण के लिये विख्यात था अब यहाँ विश्व का सबसे बड़ा बदंरगाह है। बायी ओर हांगफु नदी जिसे पीली नदी या चीन का शोक भी कहा जाता है व दक्षिण के कुछ ओर यांगत्सी नदी के किनारे ,पूर्व में चीनी सागर है। है समुद्र से घिरा, पर समुद्र से बहुत दूर है।

आज ये विश्व का यह सबसे बड़ा व्यावसायिक केंद्र बना हुआ है। इसके बीच हांग यू नदी व वू सुग नदी का संगम है उसने इसे दो भागों में बाँट दिया है यहाँ सरकारी गैर सरकारी सभी कंपनियों के बड़े-बड़े दफ्तर हैं। पूरा शहर झील नदी झरनों आदि से आच्छादित है।शंघाई में पहुँचकर हमें लगा यहाँ जन सैलाब है परंतु सैलाब कारों का अधिक था छोटी-बड़ी कारें, बसें, ट्रक भाग रहे थे। दोनों तरफ बड़े-बड़े शो रूम थे। रंगीन शीशे का अधिक उपयोग हुआ था। वहाँ की सबसे पाश और भव्य शोरूमों से सज्जित नानंिकंग रोड देखी। वहाँ हर ब्रान्ड के शोरूम थे। बहुमंजलीय शोरूम देशी-विदेशी सभी प्रसि( ब्रान्ड थे वहाँ स्वयं चीन का कुछ नहीं दिख रहा था। वस्त्र ज्वैलरी एक्सेसरीज घड़ी आदि सभी नामी-गिरामी नाम वहाँ पर थे। कहा जाता है वह स्थान विश्व के सबसे मंहगे स्थानों में से एक है इसकी तुलना पेरिस से की जाती है वह सड़क पाँच किलोमीटर लंबी है। एक एक कर हम दुकानें देखते जा रहे थे और कह रहे थे  यह सामान हमारे यहॉं बहुत कम में मिल जाती है यहॉं से यह क्यों खरीदें ।

  हमने दीपक जी से कहा,‘भई,यह तो रहा यहॉं आने वाले अरबपतियों की खरीदारी का स्थान अब हमें हमारी जेब वाली जगह ले चलिये । कभी कभी स्थिति अजीब सी हो जाती है दीपक तो हमें वहॉं की सबसे अच्छी शॅपिंग की जगह दिखा रहे थे और हम जेब देख रहे थे साथ ही सोच रहे थे यही ब्रांड भारत में इससे आधे दाम पर मिलता है तो यहॉं से क्यों ख्रीदें और उस देश की बनी वस्तु देखें । एक मोड़ के पश्चात् ही एक ऐसे बाजार में आ गये जहॉं छोटी छोटी दुकानें थी,छोटे दरवाजों में होकर पतली सीढ़ियॉं ,सीढ़ियों  के हर मोड़ पर छोटी सी दुकान वहॉं पर कीमती से कीमती सामान मैाजूद था,डुप्लीकेट भी था,पैन की दुकान जूते चप्पल की दुकान,जरा लंबाई ठीक है तो सिर झुकाये रहना पड़ेगा । नानकिंग रोड पर जो वस्तु हजार रुपये की थी वहॉं दो सौ की थी। जो डुप्लीकेट बताया वह सामान भी बिलकुल फरक नहीं लग रहा था ।कपड़े भी हाथ में लेने पर वही एहसास दे रहे थे । डुप्लीकेट हो या कुछ पर वहॉं सबने जम कर खरीदारी की ।


Friday, 27 June 2025

cheen ke ve dus din5

 बारिश तेज थी भाग-भाग कर एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाकर दुकानों को देखा बारिश बंद होने का इंतजार करने का अर्थ था समय की बर्बादी। समाधि स्थल के किनारे-किनारे पाँचफुट चौड़ी नहर थी यद्यपि पानी बिलकुल काला था उसमें छोटी-छोटी नौकाएँ थीं जो पर्यटकों को नाव की सैर करा रही थी। छोटा सा लकड़ी का पुल बना था उसे पार करके एतिहासिक संग्रहालय था। 

वहीं चीनी व्यंजन भी थे। टोफू ;सोयाबीन के दूध से बने पनीरद्ध को तलकर मसाला मिलाकर दे रहे थे उसे चखा भी लेकिन तीव्र गंध थी किसी को भी पसंद नहीं आया।  वहाँ कुछ चीनी पर्यटकों ने हमारे दल का फोटो भी खींचा ।

अर्चना जयधारा उस दिन अपने स्कूल के कार्यक्रम और भारतीय दल के स्वागत की तैयारियों में लगी थी।

8 जनू को डब्लू. एस. एफ. का कार्यक्रम रेमिंग रोड स्थित औडीटोरियम में होना था अर्चना जयधारा और दीपकजी ने स्वागत की भव्य तैयारियाँ की थी। प्रातः ग्यारह बजे हम लोग औडीटोरियम के लिये गये रास्ते में हमने शाउसिंग का बाजार देखा वह वहाँ का थोक बाजार था बाजार चौड़ा व डबल मार्ग था। वहाँ दुकानें बड़ी-बड़ी व सामानों से विशेष कर सजावटी सामान खिलौने स्टेशनरी आदि से भरी पड़ीं थीं समझ लीजिये दिल्ली के सदर बाजार को एकदम चौड़ा कर लीजिये। गैंगडू होटल से ओडीटोरियम हम लोग रिक्शों में गये । रिक्शे थे तो भारतीय रिक्शों जैसे लेकिन चौड़े व सुविधाजनक थे। तीन या चार युआन तक भाड़ा लगा। एक रिक्शे में हम तीन-तीन आराम से बैठ गये ।

   दो बजे कार्यक्रम प्रारम्भ होना था शाउसिंग के ही एक ऐसे बाजार के विषय में अर्चना ने बताया जो बहुत कुछ मुंबई के लिंकन रोड और दिल्ली के जनपथ जैसा था वहाँ पर भी अधिकांश दुकानों पर महिलांए ही बिक्री कर रही थी वहाँ ा दुकानों पर बच्चों का सामान ही अधिक मिल रहा था बच्चों के कपड़े या टी शर्ट लेडीज टॉप मिल रहे थे। बहुत मुश्किल से एक दुकान पर वहां की प्रसि( सिल्क के नाइट सूट व सम्राट की पोशाक तीन साल तक के बच्चे के लिये मिली नहीं तो सब स्थान पर बच्चों की आम हौजरी की ड्रेस थीं कहीं-कहीं वहाँ की कारीगरी दिखी तो वे अच्छी लगी सबने कुछ-कुछ खरीदा। और ओडीटोरियम आ गये। बाद में सामान देखा तो सिल्क की राजसी पोशाक की थैली कहीं रह गई थी ।

ओडीटोरियम के बाहर काफी बड़ा आहता था वहाँ डॉ॰ सरोज भार्गव व डॉ॰ चित्ररेखा सिंह तथा वंदनी सकारिया ने अपनी चित्रों की प्रदर्शनी लगाई जिसे वहाँ के आने-जाने वाले लोगों ने बहुत पसंद किया। कुछ ने चित्र क्रय भी किये थे तथा कुछ ने आगे संपर्क हेतु पते आदि लिये।

स्टेज लाल पीले रंग से सजा था कुर्सियॉं सफेद कपड़े से ढकी थी उन्हें लाल कपड़े की पट्टी से बाँध कर फूल बनाया गया था। चारों ओर लाल बड़े-बड़े पर्दे थे चाइना का विशेष चिन्ह डैªगन भी दिखाई दे रहा था। फूलदानों में लिली के फूल पूरी गरिमा से खिल रहे थे  कार्यक्रम पेश करने वाली दो चीनी लड़कियाँ हमारे पास आई और अपनी अटपटी हिंदी में पूछने लगी कि क्या हम साड़ी पहनने में मदद कर देंगे। मेैं और शैलबाला ने उन दोनों लड़कियों को तैयार किया। यद्यपि ब्लाउज उनके नाप के नहीं थे उन्हें पिन आदि से उनके पहनने लायक किया उनकी साड़ी सधी रहे इसलिये कई-कई पिन लगाये। अपने को भारतीय परिधान में देख बार-बार दर्पण निहार रही थीं और खुशी से बाओ-बाओ कर रही थी जब माथे पर विंदी लगाई तो बहुत ही खुश हो रही थी। उन्हीं दोनों ने कार्यक्रम का संचालन किया कभी हिंदी में कभी अंग्रेजी में यह सब देखकर भारतीय भाषा की व्यापकता देखकर बहुत गर्व हो रहा था क्यों कि वहाँ केवल भारतीय ही नहीं चीनी परिवार भी थे और वे भी हिंदी में सब सुन रहे थे। पता लगा चीन में बहुत लोग हिंदी जानने और समझने का प्रयास कर रहे हैं

उन दिनों चीन में बड़े इलाकों में भूकम्प आ रहा था और जन  धन की बहुत हानि हो की चुकी थी कार्यक्रम का प्रारम्भ सिआचिन में हताहत एवम् मृत आत्माओं के लिये प्रार्थना की गई।

हम सबका पुष्प गुच्छ से स्वागत किया गया तथा सबका परिचय कराया गया। अरस्तू प्रभाकर विज्ञ ज्योतिषी है यह जानकर कार्यक्रम के बाद उनसे कई लोग मिले और उन्हें अपने घर आमंत्रित किया।

डॉ॰ मनोरमा शर्मा ने आचार्य कुल का परिचय देते हुए प्रेम का संदेश दिया तथा संस्था के उद्देश्यों पर प्रकाश डाला , भारत और चीन के प्राचीन सांस्कृतिक संबंधांे के विषय में बताया और कहा हमें संबंधों को सुधारने के सेतु के रूप में कार्य करना चाहिये।

ओडोटोरियम दो तिहाई भारतीयों से भरा था। जिसमें कई दंपत्ति आगरा के भी थे। अपने देश के व्यक्तियों को देखकर सब बहुत प्रसन्न हो रहे थे। हम सबसे मिलकर वतन की सॉंधी मिट्टी याद आ रही थी अपना गांव अपना देश जैसे हम में देख रहे थे। कार्यक्रम समाप्तिके बाद हमसे बार-बार भारत के विषय में पूछ रहे थे क्योंकि वहाँ का समाचार तंत्र कुछ ऐसा है जो अधिक जानकारी देश विदेश की नहीं देता है । एक एक बात हमसे जान लेना चाहते थे। पैसा जीवन में बहुत महत्व पूर्ण


है इस लिये कमाने की खातिर दूसरे देश चले तो जाते हैं पर अपनों से दूर एक वीरानापन ला देता है ।

   सांस्कृतिक कार्यक्रम गीत संगीत पर आधारित था नृत्य नाटिका, एकांकी ,नाटक, परी नृत्य बेहद मोहक थे। साथ ही भारतीय गानों पर आधारित कई नृत्य प्रस्तुत किये गये। सत्यम् शिवम् सुंदरम् गाने का प्रस्तुतिकरण अद्भुत था श्वेत लाल बार्डर की साड़ी पहनाकर समूह नृत्य के रूप में इस गाने की प्रस्तुति की गई थी अन्य सब कार्यक्रम में भी अधिकतर वेषभूषा साज-सज्जा भारतीय ही थी। गीतों का चयन व निर्देशन बहुत खूबसूरती से किया गया था। सभी कार्यक्रम अर्चना की निगरानी में तैयार किये गये थे समवेत् स्वर में जब ‘ऐ मालिक तेरे वंदे हम’ गाया गया तो लग ही नहीं रहा था कि हम चीन में किसी कार्यक्रम में है। भारतीय सभ्यता संस्कृति उसकी पावन मंत्र शक्ति , शुचिता भरे वातावरण से आडीटोरियम अद्भुत हो उठा था। और हम मंत्र मुग्ध थे । अपना तो सब को सर्व श्रेष्ठ लगता ही है पर चारों ओर प्रतिक्रिया स्वरूप देखा तो सभी बहुत तन्मयता से देख रहे थे ।

कार्यक्रम के अंत में हम सभी प्रतिनिधि मंडल के सदस्यों द्वारा सभी प्रतिभागियों को पुरस्कृत कराया गया।


Wednesday, 25 June 2025

cheen ke ve das din 4

 हांगकांग की फ्लाइट में यद्यपि खाने का समय था पर प्रावधान नहीं था कारण हमारी फ्लाइट  पहले पहुँचनी थी इसलिए हांगकांग एअरपोर्ट पर टिकिट के साथ हमें नाश्ते के कूपन प्राप्त हुए थे पाँच डालर तक का नाश्ता हम ले सकते थे। एक ही दुकान थी उस पर दो चीनी लड़कियाँ खड़ी थी वे केवल चीनी भाषा जानती थीं बहुत मुश्किल से उन्हें हाथ के इशारे से समझा कर पेस्ट्री और काफी प्राप्त की।काफी पेस्ट्री के बाद भी कूपन बच गये तो यह सोच कर कि पैसे क्यों बरबाद किये जायें चॉकलेट लेलीं और बच्चों के लिये रख लीं पर अंत मंे वे सब पिघल गईं ।

शंघाई के लिये हमने 2.30 पर यात्रा प्रारम्भ की और पाँच बजे शंघाई एअरपोर्ट पहँुचे। शंघाई पर चार टर्मिनल हैं हम तीसरे टर्मिनल से  साढ़े पाँच बजे बाहर आये अर्चना जयधारा फूलों के साथ हमारा इंतजार कर रही थी। बेहद जहीन साहसी उत्साही जनहित की भावना रखने वाली प्यारी सी लड़की। सी वी इंगलिश मीडियम स्कूल की पिं्रसपल अर्चना जयधारा दिखने में स्टूडेंट।

संभवतः फ्लाइट की देरी ने उसे भी परेशान कर दिया था क्योंकि वहाँ से लंबी यात्रा थी फिर भी हम सबका स्वागत बहुत उत्साह से किया।सब अपना-अपना सामान ट्राली में रखकर एअरपोर्ट से बाहर आये हमारा परिचय हमारी गाइड वैंडी से कराया, पतली दुबली सी बीस बाईस साल की लड़की ,जिसने हमारे कार्यक्रम निर्धारित किये थे। वैंडी हमें बीजिंग में मिलने वाली थी उसे हिंदी में बोलते सुनकर अच्छा लगा, यद्यपि हल्का सा लहजा विदेशी था फिर भी बहुत साफ और स्पष्ट हिंदी थी।

खूबसूरत सी छोटी सी वैन में हम सब पन्द्रह लोग, अब अर्चना भी हमारे साथ थी, अपने गन्तव्य शाअसिंग के लिये रवाना हो गये। शंघाई एअरपोर्ट से बाहर बिलकुल अलग ही दुनिया हमारे सामने थी। घुमावदार विशाल फ्लाई ओवर पार करते हम मुख्य मार्ग पर आये। फ्लाई ओवर पर दोनों तरफ पास-पास गोल-गोल सफेद लैंप लगे थे जैसे हजारों हजार दीपक जल रहे हों।

शंघाई जियांग जिन की राजधानी है । सड़कें छः लेन व आठ लेन की हैं। दोनों तरफ मार्ग में विलो वृक्ष थे रोशनी बाहर थी ही अंधेरा घिर चुका था। दूर-दूर तक सड़क पर केवल रोशनी दिखाई दे रही थी। शंघाई से शाउसिंग की 300 किलोमीटर लंबी यात्रा में हमें सिवाय एक दो ट्रक के और कुछ नहीं दिखा। हैरानी हो रही थी इतना सुनसान रास्ता कैसे? क्या है शंघाई में कर्फ्यू है क्या? या जनता नहीं है। चीन सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश लेकिन दूर-दूर तक कोई नहीं दिख रहा था। हमारी वैन सरपट भागती चली जा रही थी और 300 किलामीटर की यात्रा 5 घंटे में पूरी कर ली। हर तरह के वाहन की अलग लाइन थी। इमर्जैसी लाइन अलग थी। अलग-अलग स्पीड के लिये अलग-अलग लाइन थी यदि वाहन चालीस की स्पीड का है तो उसे अलग लाइन में चलना होगा। साइकिल वालों के लिए सबसे किनारे पर लाइन थी। केवल एक ट्रक रास्ते में दिखाई दिया था। रास्ते में एक स्थान पर तेजी से मैगनेटिक टेªन जा रही थी। जैसे तेजी से दीपमालिका हवा में उड़ती चली जा रही हो क्योंकि वह ऊँचाई पर जा रही थी।

रात्रि के करीब ग्यारह बजे हम अर्चना जयधारा के निवास पर पहुँचे। विशाल द्वार बना हुआ था उसके अंदर जाकर कॉलोनी में दोनों तरफ बिलकुल एक से फ्लैट बने थे रंग भी एक सा हरा था। चीन में घर सरकार बनवाती है। उसके 

अधिकार सरकार के ही पास रहते हैं। अंदर से आप कैसा भी सजायंे पर बाहर से समरूपता रखनी होगी। कहने के लिये शाउसिंग एक विलेज कहलाता है वह शंघाई का विलेज है लेकिन मैट्रो सिटी से कहीं कम नहीं लगा। यह शहर कपड़ा शहर कहलाता है अधिकांश कपड़े की मिलें वहीं है।अर्चना ने वहाँ हम सबके लिये खाने का इंतजाम कर रखा था थकान उतारने

के लिये चाय से सबका स्वागत किया फिर दाल, चावल आदि सुस्वादु भारतीय खाना खिलाया।

अर्चना की ग्यारह वर्षीय बिटिया हम सबको देखकर बहुत खुश हो रही थी इतनी सारी दादी नानी आंटी देखकर उसे बहुत अच्छा लग रहा था। आगे यात्रा में भी जब-जब हम उससे मिले वह हम लोगों के साथ घुलमिल कर रही तरह-तरह के डांस आदि दिखाये हम लोगों के साथ खेल-खेले। उसका बस चलता तो हम लोगों को घर से हिलने नहीं देती।

रात्रि विश्राम के लिये हमारी व्यवस्था होटल गैंगडू में थी होटल पास ही था वहाँ परेशानी यह थी कि रिसैप्शनिष्ट वेटर आदि कोई भी हिंदी या इंगलिश नहीं जानता था। हमारे साथ अर्चना ने एक ऐसा व्यक्ति कर दिया था जो चाइनीज व हिंदी इंगलिश जानता था उसने हमारी व्यवस्थाऐं होटल में करवाई ।हम तो पानी मांगना चाह रहे थे वह भी नहीं मांग पा रहे थे कुछ प्रतीक सार्वभौमिक हैं यदि कहीं भी आप पानी मांगेगे तो हाथ की ओक बनाकर  मुॅह से लगायें गे पर उनके समझ में किसी प्रकार का कोई एक्शन नहीं आ रहा था।

सुबह स्नान आदि करके हम अर्चना के निवास पर पहुँचे जो बिलकुल नजदीक ही था पैदल ही हम सब पहुँच गये नाश्ते के बाद अर्चना के पति दीपक जी हमें वहाँ का स्थानीय बाजार दिखाने ले गये। पैदल ही घूम-घूम कर हमने वहाँ का बाजार देखा एक दम चौड़ा बाजार था दुकानें यद्यपि साधारण थी, लेकिन सब्जी फल आदि काफी बड़े-बड़े  और स्वस्थ थे। कुछ फल अलग थे लेकिन अब भारत में भी  विवाहों में फलों के स्टाल पर दिखने लगे हैं जैसे कॉटेदार लीची देखने में पीला

लाल कांटे दार फल होता है मोटा छिलका हटाकर उसके अंदर लीची के से स्वाद का फल निकलता है ऐसे ही दो तीन अन्य फल नजर आये।

अर्चना का निवास लू शेन रोड पर स्थित था। करीब 2 किलोमीटर दूर पर विचारक लू शेन का स्मृति स्थान है लू शेन चीन के बहुत बड़े प्रगतिवादी साहित्यकार व विचारक थे उन्होंने अनेक पुस्तकें लिखी, उनके निवास को उनकी याद में संग्रहालय में परिवर्तित कर दिया गया है अर्थात् उनके जीवन से संब( रखने वाली सब सामिग्री उनके ग्रन्थ उनके चित्र उनकी हस्तलिखित पांडुलिपियाँ सारा प्रकाशित साहित्य पत्र-पत्रिकाएं जिनमें उनका साहित्य छपा, अंग्रेजी में अनूदित सभी सामिग्री वहाँ सुरक्षित थी। यह देखकर बहुत अच्छा लगा कि एक साहित्यकार को इतना मान सम्मान चीन सरकार ने दिया था उसे अमर बना दिया था।उसे नाम दिया गया है ‘लू शेन नेटिव पैलेस’ सामने प्रवेश द्वारा पर ही प्रबु( प्रगतिवादी विचारक लू शेन की प्रतिमा लगी है वह काले पत्थर से निर्मित है उस पर चाऊ एन लाई के हाथ का लिखा वाक्य लिखा है।

बड़े से काले रंग के द्वार से सामने ही उनके समय का सामान यथावत् रखे दिख रहे थे अधिकांश वस्तुऐं मेज कुर्सी पलंग सब लकड़ी के थे लेकिन आकार में छोटे थे उनपर कलात्मक नक्काशी थी उस समय का पानी गरम करने का गरमा पानी भरने के कुंडे वाले बड़े-बड़े बर्तन रखे थे। उनका स्नान घर। पूजा घर वहाँ बु( की प्रतिमाएँ व चित्र आदि थे। जिस स्थान पर अपने पूर्वजों को श्रृ(ांजलि देते थे वह कमरा इनसेंस कक्ष कहलाता है पूर्वजों को फल आदि अर्पण किये जाते थे इसलिए प्रतीक रूप में कलात्मक टोकरियों में फलों के प्रतिरूप रखे थे। ध्यान कक्ष पढ़ने का कमरा, सोने का कमरा एक विचार विमर्श कक्ष था जहाँ उनकी आध्यात्यिक यात्रा भी चलती थी। इन कमरों में वंदनवार आदि लगे थे जिन पर हाथ की कढ़ाई थी। बच्चों का कक्ष, जिनमें बच्चों  के पलंग आदि  थे ,संगीत कक्ष में सीप के प्यालों से बनी जलतरंग, सितार आदि रखे थे। परिवारिक बैठक थी जिसकी दीवारों पर सुनहरी चित्रकारी थी। चारों ओर गुलाब के फूलों की तस्वीरें थीं। सुनहरे अक्षरों में लिपिब( उनके विचार थे । सबसे अधिक आनंद यह देखकर आया रसोईघर की दीवार आलमारियों तक पर चित्रकारी थी । विशेष ढंग से बने मिट्टी के चूल्हे थे। खाना गर्म रखने के लिये दो पर्तो वाले डोगे थे अर्थात्  आजकल के कैसेरोल जैसे। भंडारण करने के लिये बांस की तीलियों से बने बड़े-बड़े बर्तन थे।

उनके विषय में जानकारी पुस्तक, पेपर में मिल रही थी। लेकिन सब चीनी भाषा में थी। हमारे लिये वे केवल चित्रांकन मात्र था जो कुछ भी था साम्यवाद को अधिक जोर दिया जा रहा था।

चीन की भाषा एक है लेकिन लिपि अलग-अलग है वे चार प्रकार की हैं पूरे देश में हान जाति की भाषा है,यह मेनड्रेन कहलाती है। चीनी लिपि चित्रमय सांकेतिक भाषा है इसलिये बहुत अधिक फर्क नहीं है लेकिन एक दीवार पर बड़े-बड़े चीनी अक्षरों में कुछ लिखा था स्थानीय लोगों से पूछा वे बता नहीं पाये।संभवतः लू शेन स्मारक लिखा होगा ।

दो चौक के इस मकान के दूसरे भाग में बरामदे के एक कोने में सिसला नामक एक विकालांग लड़का  पैर के अंगूठे और उंगली से पकड़ कर चित्रकारी कर रहा था। उसके बनाये चित्र किसी भी हाथ वाले चित्रकार से कम नहीं थे।

लू शेन प्रतिदिन डायरी लिखते थे वे डायरी जिल्द में बंधी उनके सामाधि स्थल पर क्रमब( रखी थीं।

मुख्य इमारत से बाहर बाजार सजा था वहाँ हर प्रकार की चीनी वस्तुएँ मिल रही थी इसे लूशेन विलेज कहा जाता है। 


laghu katha

मनुष्य कृतध्न क्यों?



एक बार एक आदमी और एक कुत्ता पृथ्वाी पर गिर पड़े। एक देवता उधर से गुजरे उन्होंने मनुष्य का दिल देखा तो वह गायब था फिर उन्होने कुत्ते का दिल देखा तो वो अपनी जगह मौजूद था। उन्होंने कुत्ते का दिल मनुष्य के लगा दिया और पृथ्वी पर से मिट्टी का दिल बनाकर कुत्ते के लगा दिया और अमृत  छिड़कर उन्हें जीवन प्रदान कर दिया पहले कुत्ता उठा उसने पूंछ हिला देवदूत का धन्यवाद किया और चरण चाटने लगा। मनुष्य उठा एक क्रोध भरी निगाह देवदूत पर डाली और कोसता हुआ एक ओर चल दिया।

 

Monday, 23 June 2025

cheen ke ve das din 3

 डॉ॰ सरोज भार्गव इंतजार कर रही थी उन्होंने रजनी जी का परिचय कराया । पहली बार उनसे परिचय हुआ पर बहुत

अपनापन लगा। गर्मागर्म खाना तैयार था। हाथ, मुँह धोकर सबने गर्म-गर्म पूड़ी सब्जी खाई। तब तक दस बज चुके थे और हम सब एअरपोर्ट के लिये रवाना हुए। जून माह में अभी बारिश बहुत दूर  थी लेकिन बारिश बार-बार आकर हमारी यात्रा को खुशगवार बना रही थी।

साढ़े दस बजे हम एअरपोर्ट के बाहर पहुँच चुके थे और बाकी के सहयोगियों का इंतजार करने लगे। पौने ग्यारह बज गये अभी तक कोई भी नहीं दिखाई दिया था 12 बजे हमें रिपोर्ट करना था यद्यपि फ्लाइट 3.30 की थी लेकिन चीन की यात्रा कुछ संदेहास्पद व कठिन मानी जाती है इसलिये सघन चैकिंग होती है।इसलिये समय भी अधिक लगता है । हम गलत जगह तो नहीं खड़े हो गये हैं कहीं वे दूसरे दरवाजे से अंदर चले गये हों फिर फोन लगाया जाता ।

सबसे पहले डॉ॰ राजकुमारी शर्मा के दर्शन हुए तो जरा राहत हुई। हम छः तो थे ही सातवीं साथी डॉ॰ राजकुमारी शर्मा के रूप में हमारे सामने आ गयीं अब इंतजार था मुख्य सहयोगियों का श्रीमती नन्दनी गुप्ता ग्वालियर से आने वाली थीं। वहाँ एक कॉलेज में योग प्रशिक्षक हैं। डॉ॰ चित्ररेखा सिंह चित्रकार हैं व मंगलायतन विश्वविद्यालय अलीगढ़ में चित्रकला विभाग की विभागाध्यक्षा हैं। वन्दनी सकारिया ललित कला संस्थान आगरा में चित्रकला की प्रोफेसर हैं ये सभी अलीगढ़ से आने वाले थे। साढ़े बारह बजे डॉ॰ मनोरमा शर्मा आदि की जीप रुकी तब हमारी जान में जान आई क्योंकि जब तक वे नहीं आतीं हमारी यात्रा एक इंच भी आगे नहीं बढ़ सकती थी।

तुरंत ही हम सबने ट्राली में सामान लादा और अंदर प्रवेश की पंक्ति में लग गये। एक-एक कर सभी प्रक्रियाऐं पूरी होते-होेते दो बजे गये। उड़ान से पूर्व हमारे बैग भी चैक हुए उसमें से वह वस्तुऐं जैसेµछोटा सा चाकू, नेलकटर, आदि एअरपोर्ट कर्मियों ने निकालकर पास रखे कंटेनर में डाल दिये। यहाँ तक कि शैम्पू तक निकाल कर डाल दिए।

रात्रि के दो बजे थे लेकिन यात्रा के उत्साह में जरा भी नींद थकान या शरीर में शिथिलता नहीं थीं हांॅ मन कर रहा था कुछ गर्म-गर्म पीया जाय।पहले घूम घूम कर पूरे लाउंज को देखा कि कहॉं क्या मिल रहा है?काफी अच्छी सी लग रही थी इसलिए कुछ ने गर्म कॉफी तो कुछ ने ठंडा पेय लिया।

     दो आमने-सामने की बैंचो पर बैठ कर उड़ान का इंतजार करने लगे। सुई का कांटा अनवरत् सरक रहा था लेकिन 

हमारी उड़ान का कहीं पता नहीं था। तीन  का समय पार हो गया। हांगकांग की फ्लाइट फ्लैश ही नहीं हो रही थी। उसके बाद की उड़ानंे आ रही थी जा रही थी। पर बोर्ड पर फ्लैश हुआ हांगकांग की फ्लाइट आधा घंटा लेट है यह आधा घंटा धीरे-धीरे दो घंटे में खिंच गया पता लगा विमान में तकनीकी खराबी आ गई है उसे ठीक किया जा रहा है।दूसरा प्लेन नहीं लिया जायेगा अगर आकाश में खराब हो गया तो ? वाई वाई न जाने कहॉं टूटे बिखरे पड़े होंगे ।हो सकता है दूसरे दिन के अखबार की सुर्खी बन जायें ।

      5.30 पर हांगकांग के लिये हम सबने कैथे पैसीफिक एअर लाइन्स के हवाई जहाज में प्रवेश लिया। विशाल हवाई जहाज में बहुत पास-पास सीट थी छः बीच में और दो-दो इधर-उधर।जिन्हें किनारे की सीट मिली वे प्रसन्न थे हमारे चेहरे लटक गये  बिलकुल बीच में एकदम घिच पिच । लगा थर्ड क्लास के ट्रेन के डिब्बे में बैठे हैं ।हमें एक-एक मुलायम फर का कंबल व तकिया दिया गया लेकिन पीछे की सीट पर एक लड़की छोटे बच्चे के साथ थी । बच्चा बहुत बेचैन था और बहुत रो रहा था वह लड़की संभवतः प्रथम बार माँ बनी थी बार-बार परेशान सी अग्रिम पंक्ति में बैठे अपने पति के पास सहायता के लिये जा रही थी इसलिये सीट लंबा करना संभव नहीं हो पा रहा था। हमारी उड़ान साढ़े आठ घंटे की थी यात्रा का मार्ग हमारे सामने की सीट के पीछे छोटी सी स्क्रीन पर आ रहा था। हमारे पायलट थे कैप्टन डोमिल मैक्डोनेल , सीट बैल्ट लगाने की प्रार्थना की गई । चाइनीज एअर होस्टेस ने यात्रा के निर्देश दिये  विमान थरथराया रन वे पर दौड़ा और रुक गया,असपास सीटें तो थी हीं सबकी ऑंखें मिली और हॅंस पड़े। सब एक सा ही सोच रहे थे । कुछ देर तक हिलने के बाद हवाईजहाज ने आकाश की ओर पंख फैलाये तो अधिंकाश ने अपनी आँखें बंद कर लीं अभी नीचे दिल्ली धुंधली सी दिख रही थी बिजली की रोशनी और भोर की हलकी दस्तक ने दिल्ली को पलक झपझपाने को मजबूर कर दिया था , हम सबने 


ऑंख बंद करनी चाही ।धीरे-धीरे हवाई जहाज ने आसमान की ऊँचाईयाँ नापना प्रारम्भ कर दिया था।

        अभी ऑंख हमने बंद भी नहीं की थी बाहर सूर्य की लालिमा झांकने लगी , प्रातः काल की दस्तक के साथ ही खूबसूरत एअर होस्टेस ट्रे, में गर्मगर्म लिपटे टॉवल लेकर हाजिर हुई। एक-एक टॉवल हमें पकड़ाती जा रही थी। हमने चेहरा साफ किया और गर्म-गर्म चाय पी। कुछ ही देर में छोटी-छोटी गाड़ियोँ में नाश्ता लेकर उपस्थित हुई उसमें सामिष और आमिष दोनों प्रकार के नाश्ते के व्यंजन थे वो पूछ-पूछ कर हमें ट्रे देती जा रही थी हमारी ट्रे में कटलेट,बन ,जैम व कटा हुआ आम था।आकाश से हम विशाल बंदरगाह और पहाड़ों का दृश्य देख रहे थे । विशाल जहाज कागज की नाव से दिख रहे थे ।नाश्ते के साथ ही चाय ली  चास आदि पीकर चुके ळी थे कि हॉंगकॉंग दिखने लगा। हांगकांग के ऊपर जब जहाज ने चक्कर लगाया, सांस जैसे थम गई एक खूबसूरत दृश्य ,एक विशाल विकसित देश हमारे सामने था दूर से ही ऊँची-ऊँची  शीशे की इमारतें जैसे एक सजा-सजाया प्रेक्षागृह हो और सागर शांत वहाँ से उसमें चल रहे नाटक को देख रहा हो। हमारा हवाई जहाज हांगकांग डेढ़ बजे पहुँचा क्योंकि हमने दो घंटे देर से यात्रा प्रारम्भ की थी हमारा प्रतीक्षित विमान जा चुका था।


Saturday, 21 June 2025

cheen ke ve das din 2

संभवतः युवा पीढ़ी हर प्रकार के धर्मों से अप्रभावित रही। अब का चीनी किसी धर्म को नहीं मानता। अब यथाथर््ा उनका मुख्य लक्ष्य है उसमें तकनीकी ज्ञान, भौतिक ज्ञान, वैज्ञानिक ज्ञान के लिये अधिक स्थान है।

चीन अलग  सा है अगर दूसरे शब्दों में कहा जाय तो चीन के चेहरे अलग अलग हैं,वह कई संस्कृतियों के विरोधाभास भरे जीवन से गुजरा है । उसने विश्व स्तर पर सहयोग और संघर्ष ,देशप्रेम के साथ साथ उग्र राष्ट्रवाद भी देखा है। वह विश्व के लिये एक चेलैंज है। उसने डालर की शक्ति को मेहनत से दबा दिया। विश्व शक्ति, में चीन का अब एक महत्त्वपूर्ण स्थान बन चुका है विश्व के लिये उठाये जाने वाले कदम बिना चीन की सलाह के उठाना मुश्किल होगा क्योंकि चीन विश्व के लिये उदाहरण बन चुका है।

    शांति सेना का स्वास्थ शिविर चल रहा था ,मरीज देखे जा चुके थे,और सब सदस्य बैठे थे कि डा॰ मनोरमा शर्मा ने कहा  ‘हम लोब चीन चल रहे हैं ,कौन कौन चलना चाहेगा?’

चीन! चीन क्या चलने की जगह है । चीन के विषय में मन में सदा असमंजस रहा है कारण उसके विषय में कहा जाता रहा है कि चीन विदेशियों के प्रति नम्र नहीं है । उसके नियमों के खिलाफ कुछ भी हो जाये तो सीधे जेल,व्यक्ति सूरज भी नहीं देख पाता । पर यह सब संभवतः सन् 1962 के  युð के बाद प्रचारित बातों से है। कुछ देर असमंजस की स्थिति रही । एक बार घर में भी पूछना पड़ेगा क्योंकि अभी तक अकेले और वह भी सीधे विदेश यात्रा पर नहीं गई थी। कुछ ने तो अपना नाम लिखा दिया पर मनोरमा दीदी के यह कहने पर कि क्यों शशि तुम क्यों चुप हो ... चलना है.... बस ’ मुझे कुछ भी कहने से रोक दिया। 

धर में आकर मैंने पूछा नहीं एलान कर दिया,‘ मैं चीन जा रही हॅंू’

‘चीन ... वह कोई जाने की जगह है वहॉं क्या है?

‘है तो कहीं कुछ भी नहीं जाने का मौका मिल रहा है तो चले जाते हैं यह निश्चय है कि घर से कोई चीन केवल घूमने के लिये नहीं जायेगा ।’

      और इस प्रकार स्व॰ मनोरमा शर्मा के नेतृत्व में हम चौदह लोग चाइना के लिये उत्साह से चले एक संदेश लेकर, मैत्री संदेश, हिन्दी चीनी भाई-भाई का संदेश। आगरा की बेटी अर्चना जयधारा डब्लू. एस. एफ. की सदस्या जिसने डब्लू. एस. एफ. के संदेश चाइना में भी प्रचारित किये उसने शाउसिन में एक स्कूल खोला है। विशेष रूप से बच्चों के लिये, ऐसे बच्चे जिनके माँ-बाप चीन में कार्य करते हैं। जब वे लौटकर भारत आयेेंगे अपने वतन, तब बच्चों की शिक्षा यहाँ से बिलकुल अलग होगी तब किस प्रकार वे अपने को यहॉं मिला पायेंगे। स्वयं अपनी बेटी की पढ़ाई की उसे चिन्ता थी। उसने साहस किया। वहाँ चीन के अधिकारियों एवम् भारतीय अधिकारियों से मिलकर एक स्कूल खोलने का प्रयास प्रारम्भ किया और वह सफल भी हुई। चंद वर्षों में उसका स्कूल भारतीय लोगों के साथ-साथ चीनी लोगों में भी लोकप्रिय होता गया और एक प्रतिष्ठित स्कूल बन गया। 

    डब्लू.एस. एफ द्वारा आमंत्रित भारतीय दल के स्वागत का कार्यक्रम अर्चना जयधारा ने अपने स्कूल के वार्षिकोत्सव में रखा। हम चौदह सदस्य थे स्व. डॉ॰ मनोरमा शर्मा, डॉ॰ राजकुमारी शर्मा, डॉ॰ चित्ररेखा सिंह, डॉ॰ सरोज भार्गव, श्रीमती किरन महाजन, डा॰ शैलबाला अग्रवाल, श्रीमती रजनी भार्गव, श्रीमती नंदनी, कु॰ वंदनी, श्रीमती सरोज गौड़, श्री अरस्तू प्रभाकर, श्री शशांक प्रभाकर, मास्टर ओशो प्रभाकर व स्वयं मैं । दोपहर दो बजे तक हमारे हाथ में टिकिट नहीं थे। यद्यपि हमारे ट्रेवल ऐजेंट श्री प्रशांत हमें बार-बार कह रहे थे ‘ मैं आपको रात्रि की फ्लाइट में बैठा दूँगा। हमारा आदमी आप तक पहुँचता ही होगा।’ एक-एक कर हम टिकिट और रुपये एक्सचेंज के लिये श्रीमती किरण महाजन के यहाँ एकत्रित हो गये। दिल्ली के लिये टैक्सी में सामान लद चुका था। 4 बजे एक व्यक्ति प्रगट हुआ औेर हम आठ लोगों की टिकिट और रुपये एक्सचेंज किये लेकिन अभी मनोरमाजी सपरिवार घर पर इंतजार कर रही थी। गुड़गाँव में डॉ॰ सरोज भार्गव व रजनी भार्गव हमारा इंतजार कर रही थीं। हमें उनके घर पहुँचकर उन्हें लेकर एअरपोर्ट जाना था।हमारी बेचैनी समझी जा सकती है । घर से विदा ले ली थी सामान लदा था पर हाथ में टिकिट ही नहीं ,अ्रगर लौट कर घर जाना पड़ा तो बहुत मजाक बनेगा।न जा पाने से अधिक इस बात की फिक्र थी कि सब खिल्ली उड़ायेंगे ।

मैं श्रीमती शैलबाला, डा॰सरोज भार्गव श्रीमती सरोज गौड़ व श्रीमती किरन महाजन हम सब एक इनोवा गाड़ी में बैठकर दिल्ली के लिये रवाना हो गये। रास्ते में पलवल ढाबे पर चाय व पकौड़े खाये पर साथ-साथ अन्य सबका हाल-चाल ले रहे थे अभी तक मनोरमा जी की टिकिट नहीं आई थी अगर समय पर उनकी ही टिकिट नहीं हुई तो क्या होगा।उस समय एक यक्ष प्रश्न बनकर हमारे सामने खड़ा था।हम सबके फोन उस समय या तो बज रहे थे या हम बजा रहे थे वैसे बजा हम   ही रहे थे  क्योंकि हम ही दिल्ली के लिये रवाना हो चुके थे सबसे अधिक नाजानकारी हमें ही थी । डॉ॰ राजकुमारी शर्मा पहले दिन ही नोएडा पहुँच चुकी थी वहॉं उनके पुत्र हैं । उनकी टिकिट भी मनोरमा जी के साथ आनी थी। लेकिन साढ़े छः बजे मनोरमाजी को भी टिकिट मिल गई वे तुंरत दिल्ली के लिये रवाना हो गईं। मोबाइल की उपयोगिता उस दिन अच्छी तरह समझ में आ गई थी ।पल पल की खबर थी हमारे पास । उस दिन पुराने वे दिन याद आये जब एक एक कॉल के लिये सारा 


दिन टेलीफोन पर बैठे ही बीत जाता था । आठ बजे हम रजनी जी के घर गुड़गाँव पहुँच गये जैसे ही उतरे बड़ी बड़ी बूंदों ने हमारा स्वागत किया ‘ अरे! मारे गये ’ मुॅह से निकला क्योंकि स्थान पर तो पहुॅंच गये थे पर कोठी ढूंढना बाकी था,ऐक गलत मोड़ दिशा बदल देता है,अंधेरे में ढूंढना अधिक मुश्किल है। खैर मोबाइल निर्देश ने मार्ग सही करा दिया और ठीक स्थान पर पहुॅंच गये। रजनी जी डॉ॰ सरोज भार्गव की बहन हैं। सुंदर सुव्यवस्थित घर। अंदर आने का मार्ग हरियाली से घिरा दोनों तरफ सुंदर फूलों के गमले सजे थे।


Friday, 20 June 2025

cheen ke ve das din yatra 1

 चीन के वे दस दिन





     ‘अगर शेर की मॉंद में घुसोगेे नहीं तो उसके बच्चों को पकड़ोगे कैसे?’

                                                                                लोकाक्ति हॉन डायनेस्टी ईसापूर्व 220 एडी

     पीले आदमियों का देश, ठिगने आदमियों का देश, एक उत्साह एक उत्सुकता ऐसे देश में जाने की जिसने मात्र कुछ सालों में अपना वर्चस्व कायम किया है। सबसे महत्वपूर्ण था ऐसे समय चीन जाना जब चीन दुनिया भर के सामने अपने आपको स्थापित करना चाहता था। ‘2008 का ओलंपिक का मेजबान चाइना।’

नैपालियन ने कहा था ”चाइना सो रहा है तो सोने दो यदि जाग जायेगा तो वह विश्व पर कब्जा कर लेगा।“

जगने लगा है चाइना और एवरेस्ट की चोटी तक पहुँच रहा है वहाँ तक सड़क बना रहा है।

एक प्रसि( चीनी लोक कथा है कि एक वृ( व्यक्ति को प्रतिदिन अपने काम के लिए पहाड़ लांघकर जाना पड़ता था। कभी-कभी वह घायल भी हो जाता था और थक भी जाता था । वह पहाड़ पर से जब जाता पत्थर उठा कर नीचे फेंक देता। गाँव वालों को बड़ा अजीब लगा उन्होंने पूछा‘ भई! यह क्या करते हो? रोज पत्थर नीचे क्यों फंेक देते हो’?, वह वृ( बोला ‘हर पीढ़ी के साथ पूर्वज बढ़ते जायेंगे और हर पीढ़ी यदि पत्थर फेंकती जायेगी तो एक दिन इस पर्वत को समतल कर देंगे।’

चीनी लोगों की यही मानसिकता है उनमें काम की लगन है यह नहीं कि कौन लाभ उठायेगा।

सन् 1949 में चीन की जनसंख्या 540 लाख थी। तीन दशक में यह जनसंख्या 800 लाख पहुँच गई हर दशक में जनसंख्या बढ़ती गई और 1.23 अरब तक पहुँच गई । चीन की जनसंख्या विश्व की जनसंख्या का पाँचवा हिस्सा है। चीन का इतिहास 4000 साल पुराना है। अर्थात् सभ्यता के आरम्भिक चिन्ह। चीन द्वारा बहुत-सी वस्तुओं का प्रथम बार निर्माण किया गया। चीनी लिपि भी संभवत् प्राचीन लिपि है जो वैज्ञानिक ढंग से लिखी गई।

चीन मध्य एशिया एवम् पूर्व एशिया में स्थित है।चीनी और भारत दोनों की सभ्यता और संस्कृति प्राचीन है। चीन प्रगति को कटिब( है वह जनता के हृदय में यह भर रहा है कि वह सर्वोत्तम है और आज मेहनत करेगा व आगे भविष्य में राज्य करेगा विश्व विजयी होगा। अपने विचारों के खिलाफ वहाँ की सरकार आलोचना नहीं सुन सकती इसलिये वहाँ के सभी अखबार सरकार के अधीन हैं वहाँ पर सरकार के खिलाफ बोलना गम्भीर अपराध है। 

धरने, प्रदर्शन, किसान आन्दोलन वहाँ भी मिलता है लेकिन अखबारों में उन्हें स्थान नहीं मिलता। बहुत से ऐसे स्थान हैं जहाँ हर किसी को विशेष रूप से विदेशियों को प्रवेश नहीं मिलता। चीन सालों तक रहस्य के घेरे में रहा था उसकी खबरें देश-दुनिया को नहीं मिलती थी । यहाँ तक 1949 की क्रान्ति के बाद लाखों चीनियों को मृत्युदण्ड दिया गया था। चीन के भूकम्प में लाखों करोड़ों चीनी काल कलवित हुए पर बाहरी दुनिया को ये खबरंे सालों बाद मिली।

चीन की संस्कृति और धर्म भारत से मिलता-जुलता है। चीनी पूर्व में अपने पूर्वजों की और प्रकृति की पूजा करते थे। पूर्वजों को देवता मानते थे लेकिन अब चीनी स्पष्ट कहते हैं वे किसी धर्म में किसी देवता में विश्वास नहीं करते, वे स्वयं अपनी पूजा करते हैं। कर्म उनकी पूजा है जो कुछ करते हैं अपने लिये करते हैं।

चीन में विभिन्न धर्मों का प्रभाव रहा है उनका अपना कोई धर्म नहीं था। ईसा से 604 वर्ष पूर्व ताओत्से उनके धर्म के प्रवर्तक रहे और ताओइज्म नाम से एक दार्शनिक धर्म का प्रारम्भ हुआ लेकिन कालांतर में इसमें जादू-टोने का सम्मिश्रण होने लगा। कन्फ्यूशियस ने ताओइज्म की विकृतियों पर प्रहार किया और उन्होंने जीवन प्रणाली को नीतियों में बांधा। इसके बाद वहाँ बौ( धर्म का प्रभाव पड़ा। पहले हीनयान फिर महायान का प्रभाव पड़ा और धीरे-धीरे बौ( धर्म ने वहाँ पैर पसार लिये और बौ( मूर्तियॉं चट्टानों ,पत्थरों पर अंकित की जाने लगी। यद्यपि ईसाई धर्म और इस्लाम धर्म ने भी वहाँ पैर घुसाने का प्रयत्न किया। पर बहुत अधिक स्थान नहीं बना सके।