Sunday, 8 September 2013

braj ki mati

ब्रज की माटी  उठाई जो हाथों मैं अपने
लगा हाथ मैं राधा का तन महकने
नाची होंगी यहाँ  कृष्ण के साथ सखियाँ
माटी  बनके मिली होंगी  गोकुल की गलियां

सरयू के जल  ने तन को लिया  राम के
सींचा होगा धरा को उसी धार ने
बालू नदियों की सब राममय हो गई
सीता के त्याग से मुट्ठी नम  हो गई

बादलों ने लिया  द्वारका से जो जल
बूँद बन के मिली आके बरसात मैं
कान्हा की बांसुरी बज उठी हाथ मैं
ब्रज की आँखों के आंसू मिले साथ मैं

मीरा के प्रेम की उठ रही है गमक
जोहरों की जली राख  की है दहक
सूरा  गाँधी के तन की बसी गंध है
देश भक्ति भरा केसरी रंग है

ब्रज की माटी  मैं  आये थे कुछ अंग सती  के
मेरा यह तन भी उन ही मैं  मिल जायेगा
यमुना गंगा के जल संग बह जायेगा
त्रण सा यह तन भी ईश्वर  मैं मिल जायेगा

No comments:

Post a Comment