ब्रज की माटी उठाई जो हाथों मैं अपने
लगा हाथ मैं राधा का तन महकने
नाची होंगी यहाँ कृष्ण के साथ सखियाँ
माटी बनके मिली होंगी गोकुल की गलियां
सरयू के जल ने तन को लिया राम के
सींचा होगा धरा को उसी धार ने
बालू नदियों की सब राममय हो गई
सीता के त्याग से मुट्ठी नम हो गई
बादलों ने लिया द्वारका से जो जल
बूँद बन के मिली आके बरसात मैं
कान्हा की बांसुरी बज उठी हाथ मैं
ब्रज की आँखों के आंसू मिले साथ मैं
मीरा के प्रेम की उठ रही है गमक
जोहरों की जली राख की है दहक
सूरा गाँधी के तन की बसी गंध है
देश भक्ति भरा केसरी रंग है
ब्रज की माटी मैं आये थे कुछ अंग सती के
मेरा यह तन भी उन ही मैं मिल जायेगा
यमुना गंगा के जल संग बह जायेगा
त्रण सा यह तन भी ईश्वर मैं मिल जायेगा
लगा हाथ मैं राधा का तन महकने
नाची होंगी यहाँ कृष्ण के साथ सखियाँ
माटी बनके मिली होंगी गोकुल की गलियां
सरयू के जल ने तन को लिया राम के
सींचा होगा धरा को उसी धार ने
बालू नदियों की सब राममय हो गई
सीता के त्याग से मुट्ठी नम हो गई
बादलों ने लिया द्वारका से जो जल
बूँद बन के मिली आके बरसात मैं
कान्हा की बांसुरी बज उठी हाथ मैं
ब्रज की आँखों के आंसू मिले साथ मैं
मीरा के प्रेम की उठ रही है गमक
जोहरों की जली राख की है दहक
सूरा गाँधी के तन की बसी गंध है
देश भक्ति भरा केसरी रंग है
ब्रज की माटी मैं आये थे कुछ अंग सती के
मेरा यह तन भी उन ही मैं मिल जायेगा
यमुना गंगा के जल संग बह जायेगा
त्रण सा यह तन भी ईश्वर मैं मिल जायेगा
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