Sunday, 15 September 2013

beti dari hui hai

आजकल प्तातिदीन  लड़कियों के प्रति होते अपराध इतने बढ़ गए हैं की समझ नहीं आता की क्या मनुष्य हैवान हो गया है।  कभी लड़कियां इतनी असुरक्षित नहीं रहीं एक छोटी सी लड़की माँ से कह रही थी माँ क्या मैं भी ऐसे ही मर जाउंगी माँ तू बचा लेगी न मुझको
माँ नहीं छोड़ना मेरी ऊँगली हर पल डर लगता है
दुनिया रिश्तों को है भूली चलते चलते रुक जाती है
हर आहट पर डर जाती है जैसे जैसे बढती काया
घर भी अपना हुआ पराया  विश्वास किसी पर मत करना
हर पल साथ मुझे रखना  चाचा मेरे पिता समान
कभी कभी लगते शैतान छोटी झिरियो से झाकती
भाई की आँखे लेती पहचान
सोते सोते अनजाने हाथों से डरती हूँ ,हसना और खेलना भूली हर पल मैं मरती हूँ
मेरे हित क्यों आसमान ने अपने पंख समेटे
क्यों क्रूर काल  बन कर आते है  सूरज के ही बेटे
तेरी राजदुलारी बेटी को जीने की आशा
अपने पंखों में ताकत भर उड़ने की अभिलाषा
काँप रहे हैं पैर ह्रदय मैं बढती घोर निराशा
माँ नहीं छोडना मेरी ऊँगली

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