स्त्रिया कब तक अपना अपमान खुद कराती रहेंगी अपने को समर्थ कहती हैं फिर पुरुषों से सहायता मांगती हैं आरक्षण मांगती हैं क्या वे स्वयं नहीं ले सकती इसलिए पुरुषों से मांगती हैं कि आप हमें आरक्षण दो कि हम बढ़ सके आप हम पर कृपा करेंगे तभी हम कुछ कर पाएंगे नहीं तो हम बेबस हैं
अपने लिए घरेलू कामों का मूल्य मांगती है स्वयं अपने को दोयम दर्जे का कर्मचारी मान लिया कि हम घर मैं खरीद कर गुलाम बन कर लाए गए हैं काम करने के लिए इसलिए हमारी तनखाह सुनिश्चित कर दो और हम तभी अपनी सेवाएं देंगे जैसे किसी एजेंसी के द्वारा नौकरानी बुलाई गई हो क्यों नहीं मालकिन बन कर रह सकते यदि स्वयं महिलाएं यह निश्चित कर लेँ।
अपने लिए घरेलू कामों का मूल्य मांगती है स्वयं अपने को दोयम दर्जे का कर्मचारी मान लिया कि हम घर मैं खरीद कर गुलाम बन कर लाए गए हैं काम करने के लिए इसलिए हमारी तनखाह सुनिश्चित कर दो और हम तभी अपनी सेवाएं देंगे जैसे किसी एजेंसी के द्वारा नौकरानी बुलाई गई हो क्यों नहीं मालकिन बन कर रह सकते यदि स्वयं महिलाएं यह निश्चित कर लेँ।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (18-06-2016) को "वाह री ज़िन्दगी" (चर्चा अंक-2377) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'