Wednesday, 6 August 2025

kailash mansarover yatra 20

 केवल दैवीय प्रतिभा प्राप्त कवि या कलाकार अपनी कविता या कूॅची से झील पर सूर्योदय  और सूर्यास्त के सौंदर्य का वर्णन कर सकते हैं  । मानसरोवर का जल मीठा है । पूर्णिमा पर मानसरोवर का सौंदर्य वर्णनातीत है । सूर्यास्त के समय पूरा कैलाष क्षेत्र अग्नि पुंज बन जाता है एक क्षण के लिये ऑंखें चाैंधिया जाती हैं दूसरे ही पल सामने केवल कैलाष का रजत षिखर होता है । रात्रि को चारों ओर नीलाभ आकाष होता है लेकिन धरती पर हिम के कण बरस रहे होते हैं 

इसीलिये कहा गया है ,

मान सरोवर कौन परसे

बिन बादल हिम बरसे  ।

         इसीलिये मानसरोवर हर व्यक्ति का ध्यान खींचता है कवि हो या चित्रकार,मनोवैज्ञानिक हो या जीवविज्ञानी,या पर्यावरण विद हो या भूगोलवैज्ञानिक इतिहासज्ञ षिकारी या खिलाड़ी स्केटर या स्कीइंग  करने वाला हो समाज वैज्ञानिक हो शरीर विज्ञानी खजाने की खोज में जाना हो या आत्मा की खोज में साधू  हो या संत ,बूढ़ा हो या जवान या महिला हर एक के लिये यह खोज की वस्तु है ।

        वैसे तो मान सरोवर के तट पर एक आश्रम बन गया है लेकिन उसमें यात्री दल रुका हुआ था । हमें टैन्टों में रुकना था । ष्शीघ्रता से ट्रक में से  सामान उतार कर ष्शेरपाओं ने टैन्ट खड़े कर दिये । चार बाई छः के इस टैन्ट में दो दो व्यक्ति के रुकने की व्यवस्था थी । एक बड़ा टैन्ट भोजन व्यवस्था के लिये ख़ड़ा कर दिया गया । शाम झुकने को आई स्नान की ष्शीघ्रता थी । हल्की हल्की हवा चल रही थी । दाहिनी ओर  कैलाष पूर्ण गरिमा से खड़ा बादलों से बात कर रहा था। टैन्ट में सामान रख स्नान के कपड़े लेकर हम मान सरोवर की ओर बढ़  लिये ।

     मान सरोवर विषाल सरोवर दूर दूर तक सुनहला और झुक आई शाम की बेला की ललाई लिये था कहीं हल्का नीला कहीं गहरा नीला ।इतनी  ऊॅंचाई पर स्वच्छ जल का इतना विषाल बहुरंगी आभा लिये सरोवर मुग्ध कर रहा था । पवित्र जल को स्पर्ष किया सोचा था बेहद ठंडा बर्फीला जल होगा लेकिन यह क्या जैसे सद् गुनगुना था । सूर्य की प्रखर किरणों ने  उसे गुनगुनाहट प्रदान कर दी थी । आनंद आ गया । सुना था जल इतना ठंडा होता है कि पैर सुन्न हो जाते हैं  लेकिन यहॉं तो स्नान योग्य जल था  ,षारीरिक तापमान का । बालू में जल में भी नुकीली कुष घास थी  जब घुटनों तक जल आया तब बैठकर  स्नान किया । देखते देखते तीव्र ठंडी हवाऐं चलने लगी सब एक एक कर बाहर निकल आये । जैसे जन्म जन्म की आकांक्षा परिपूर्ण हुई हो । एक तृप्ति का भाव । ज्योति ने भी स्नान लाभ लिया ।

     श्री निवासन दम्पत्ति उम्र संभवतः बत्तीस चौंतीस के आसपास बैंगलौर के थे पर दुबई रह रहे थे षिव के परम उपासक थे  उन्हें पूजा आराधना विधिवत् करने का विषेष ज्ञान था । सामान की लिस्ट में  हवन सामिग्री लाने का भी लिखा था  हमने एक पैकेट हवन सामिग्री रख ली थी । स्नान के बाद श्री निवासन दम्पत्ति ने हवनकुंड वहॉं पड़े गोल गोल पत्थरों को रखकर बनाया और हवन प्रारम्भ हुआ यात्रियों ने निष्चय किया  कि उस दिन तो हवन करेंगे और  दूसरे दिन प्रातः अभिषेक करेंगें क्योंकि हवन में समय लगना था हवन कुंड के सामने अपने अपने बैग लेकर यात्री बैठ गये । किसी के बैग से  आम की लकड़ी किसी के बैग से घी का डिब्बा  धूप  आदि निकलने लगे । और यज्ञ आरम्भ हुआ । ठंडी हवा पूर्ण वेग से चलने लगी  अंदर तक कंपकंपी हो रही थी अग्नि बहुत मुष्किल से प्रज्वलित हुई । बार बार कैलाष  हमारे हवन को देखने  सुनहरी आभा बिखराते बाहर आ जाता फिर बादलों की ओट में छिप जाता । मंत्रोच्चार के साथ जब ओम नमः 

षिवाय का जाप  प्रारम्भ हुआ लगा दिगदिगन्त से एक ही आवाज उठ रही है ओम । धीरे धीेरे सूर्य गुरला मांधाता के पीछे छिप गया पहले लाल फिर सुनहरी आभा और एकदम अंधकार। अभी चॉंद निकला नहीं था गहन अंधकार में यदि कुछ चमक रहा था तो श्वेत उज्वल हिम मंडित कैलाष । मान सरोवर के चारों ओर सभी षिखर हिम मंडित थे लेकिन 

अंधकार की कालिमा के साथ एक होगये थे लेकिन कैलाष ही था कि वह दमक रहा था जैसे उसके अंदर से प्रकाष फूट रहा हो । कहीं कुछ तो है वहॉं की बर्फ दमकती है या वहॉं ऐसी जड़ी बूटियॉं हैं जिनसे प्रकाष फूटता है या देवाधिदेव षिव,मॉं पार्वती, विनायक , कार्तिकेयके तन की आभा है । वराह पुराण में मान सरोवर के चारों ओर की पर्वत श्रंखलाओं केनाम वर्णित हैं । मानसरोवर के पूर्व में प्रसिध्द पर्वत श्रंखला है विकंग ,मणिश्रंग ,सुपात्र, महोपल ,महानील ,कुम्भ सुविन्दु ,मदन वेणुनद,सुमेदा निदााध और देव पर्वत पष्चिम  में राक्षस ताल और रावण हरदा , दक्षिण में त्रिषिखर,गिरिश्रेष्ठ षिषिर, कपि,षताक्ष,तुरग,सानुमान्,ताम्राक्ष,विषष्वेतोदन, समूल,सरल,रत्नकेतु,एकूमल,महाश्रंग, गजूमल, ष्शावक ,पंच शैल ,गुरला मांधाता और कैलाष । उत्तर में हंसकूट,बशहंस,कपि ळजल,गिरिराज ,इंद्रषैल,सानुमान् नील कनकश्रंग,षतश्रंग ,प्ष्श्कर एवम् भारुचि हैं।

       यज्ञ की समाप्ति के बाद खाना खाकर सब अपने अपने टैन्टों में घुस गये  इस निष्चय के साथ कि  दो बजे  उठकर सरोवर के किनारे बैठेंगे क्योंकि जो कुछ भी हमें बताया गया था उन पल का अब हमें इंतजार था । हमें बताया गया था पूर्णिमा की  रात मान सरोवर  पर अदभुत रात होती है चॉंद जमीन पर उतर आता है ष्श्वेत चॉंदनी में जब आगरा का ताजमहल मोती सा चमकने लगता है तो कैलाष की तो बात ही क्या होगी । सुना था दो ज्येतियॉं कैलाष से उतरकर मान सरोवर में स्नान कर वापस कैलाष पर जाती हैं । तीसरी बात जो हमें बताई गई थी तारों के रूप में ऋषि मुनि भोर में 

स्नान करने आते हैं ।


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