ष्शान्त नदी की कलकल में एक संगीत था गोल पत्थरों पर लुढ़कती फिसलती वह बढ़ रही थी कुछ पत्थर चमकीले थे ।
नंदी पर्वत पर कहीं वर्फ नहीं थी । अष्ठपाद पर कहीं कहीं जमी वर्फ थी । लेकिन कैलाष पूर्ण रूप से वर्फ से ढका था वर्फ भी एकदम सफेद दूरतक दिखने वाले अन्य वर्फीले हिमषिखरों में सबसे सफेद सबसे उज्वल ।मन नहीं हो रहा था ऐसे मनोरम स्थान से हटने का लेकिन वापस आना पड़ा । दारचेन के गैस्ट हाउस में लाइन से कमरे बने थे सामने बड़ा सा मैदान एक ओर पुरानी परिपाटी का ष्शौचालय । पानी की व्यवस्था के लिये कहीं झरने या नदी से सीधा पाइप लाकर वहॉं खुले मैदान में डाल दिया गया था । पानी ठंडा वर्फीला था सभी महिला यात्री वस्त्र धोने में लग गई वहीं मैदान में डोरी बांध कर वस़् त्र सुखा दिये गये । बार बार मोटी मोटी बूॅंदे पड़ जाती । सषंकित महिलाऐं अपने
वस्त्रों को देखने लगतीं एक क्षण तीव्र हवा चली और कुछ कपड़ों ने उड़ान भरनी प्रारम्भ करदी तो सबको पकड़ा गया ।
ष्शाम झुकने के साथ ही बादलों ने आकाष में तरह तरह की रंग बिरंगी तस्वीरें बनानी प्रारम्भ करदीं । सूर्य ने अन्य स्थानों की अपेक्षा अधिक विषाल रूप ले लिया लाल पीला और बादल भी उन्हीं रंगों में रंग गये पहले सातों रंग अपना सौंदर्य बिखेर रहे थे कुछ देर तक आकाष लाल पीला रहा फिर एक दम अंधेरा एकदम कालिमा छा गई जैसे एक दम यवनिका गिरा दी हो सूर्य अस्त होगया एक अमिट छाप छोड़कर ।
यहॉं एक एक कमरे में चार चार लोग थे । प्रातः दस बजे परिक्रमार्थियों को प्रस्थान करना था उनका सामान अलग बैग मेंनिकाला गया। छाता , टार्च, बरसाती ,जूते इनर एक जोड़ी कपड़े, एक जोडी जूते और, खाने पीने का छोटा छोटा सामान छोटी छोटी थैलियों में मेवा चूरन टाफी आदि रख ली थी । प्रातः दस बजे सभीयात्री होडेचू गॉंव की ओर रवाना हुए यह दारचेन से आठ किलो मीटर की दूरी पर है । करीब पॉंच किलोमीटर की दूरी पर एक विषाल पीतल का स्तम्भ मिला याक के सींगों पर बंधा चारों ओर पॉच रंग की झंडिया कहा जाता है जो कैलाष की परिक्रमा न लगा पाये तो इस स्थान की
तीन परिक्रमा लगा ले उतना ही पुण्य लाभ होता है । कुछ ने उतरकर परिक्रमा लगाई कुछ ने गाड़ियों से लगाई कुछ केवलहाथ जोड़कर नमन कर चले हमारी गाड़ी कुछ पीछे रह गई थी इसलिये हम उतर नहीं पाये सोचा लौट कर परिक्रमा देंगे । सभी गाड़ियॉं एक विषाल मैदान में जाकर रुकीं पर न वहॉं घोड़ा न ठेकेदार था न पिट्ठू का ठेकेदार । हॉं एक बीस बाइस साल का नौजवान आया वह परिक्रमार्थियों का गाइड था। एक तरफ कुछ घोड़े व याक थे लेकिन वह दूसरे यात्री दल के थे । यात्री दलों का कैलाष की ओर जाने का क्रम चालू हो गया पर हमारे दल की बेचैनी बढ़ती जा रही थी बार बारबॅूंदे आजाती सब गाड़ियों में चढ़ जाते बंद होती फिर घोड़ों की राह देखने लगते । गाइड बार बार कह रहा था घोड़े आ रह हैं । दूर एक घोडा़ें का दल आता दिखाई दिया लेकिन वह भी दूर ही रुक गया । वह भी हमारे दल के लिये नहीं था ।
घोड़े वहॉं डेढ़सौ मात्र हैं याक भी कम पड़ने लगे हैं क्योंकि अब यात्री अधिक जाने लगा है । याक सामान ढ़ोने के काम आता है इस पर खाने पीने का सामान तंबू आदि ले जाये जाते हैं ।
घेाड़े किस किस को चाहिये यह मान सरोवर पर ही तय हो गया था । यात्रियों की संख्या बढ़ रही थी इस वजह से घोड़ों के दाम भी बढ़ गये थे अगर दूसरा आदमी तयषुदा रेट से अधिक दे देता है तो धोड़े वाले ठेकेदार मुकर भी जाते हैं इसीलिये दलाल के माध्यम से धोड़े तय किये गये थे । जैसे जैसे घोड़े आने में समय लग रहा था परेषानी बढ़ रही थी ।पहले दिन की दस किलोमीटर की यात्रा थी एक बज गया था । अभी घोड़े नहीं दिख रहे थे जो सहयात्रियों को छोड़ने आये थे एक एक गाड़ी करके वापस चल दी । गोयल साहब और महेन्द्र भाई साहब परिक्रमा पर जा रहे थे बारिष का
रुख बढ़ता जा रहा था अब बूॅंदें फुहारों में परिवर्तित हो गईं थीं । मन अनजानी आषंकाओं से धिर रहा था कठिन यात्रा है पानी निरंतर पड़ रहा है । भोले बाबा आपकी शरण में आ रहे हैं आप ही रक्षा करना
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