बारिश तेज थी भाग-भाग कर एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाकर दुकानों को देखा बारिश बंद होने का इंतजार करने का अर्थ था समय की बर्बादी। समाधि स्थल के किनारे-किनारे पाँचफुट चौड़ी नहर थी यद्यपि पानी बिलकुल काला था उसमें छोटी-छोटी नौकाएँ थीं जो पर्यटकों को नाव की सैर करा रही थी। छोटा सा लकड़ी का पुल बना था उसे पार करके एतिहासिक संग्रहालय था।
वहीं चीनी व्यंजन भी थे। टोफू ;सोयाबीन के दूध से बने पनीरद्ध को तलकर मसाला मिलाकर दे रहे थे उसे चखा भी लेकिन तीव्र गंध थी किसी को भी पसंद नहीं आया। वहाँ कुछ चीनी पर्यटकों ने हमारे दल का फोटो भी खींचा ।
अर्चना जयधारा उस दिन अपने स्कूल के कार्यक्रम और भारतीय दल के स्वागत की तैयारियों में लगी थी।
8 जनू को डब्लू. एस. एफ. का कार्यक्रम रेमिंग रोड स्थित औडीटोरियम में होना था अर्चना जयधारा और दीपकजी ने स्वागत की भव्य तैयारियाँ की थी। प्रातः ग्यारह बजे हम लोग औडीटोरियम के लिये गये रास्ते में हमने शाउसिंग का बाजार देखा वह वहाँ का थोक बाजार था बाजार चौड़ा व डबल मार्ग था। वहाँ दुकानें बड़ी-बड़ी व सामानों से विशेष कर सजावटी सामान खिलौने स्टेशनरी आदि से भरी पड़ीं थीं समझ लीजिये दिल्ली के सदर बाजार को एकदम चौड़ा कर लीजिये। गैंगडू होटल से ओडीटोरियम हम लोग रिक्शों में गये । रिक्शे थे तो भारतीय रिक्शों जैसे लेकिन चौड़े व सुविधाजनक थे। तीन या चार युआन तक भाड़ा लगा। एक रिक्शे में हम तीन-तीन आराम से बैठ गये ।
दो बजे कार्यक्रम प्रारम्भ होना था शाउसिंग के ही एक ऐसे बाजार के विषय में अर्चना ने बताया जो बहुत कुछ मुंबई के लिंकन रोड और दिल्ली के जनपथ जैसा था वहाँ पर भी अधिकांश दुकानों पर महिलांए ही बिक्री कर रही थी वहाँ ा दुकानों पर बच्चों का सामान ही अधिक मिल रहा था बच्चों के कपड़े या टी शर्ट लेडीज टॉप मिल रहे थे। बहुत मुश्किल से एक दुकान पर वहां की प्रसि( सिल्क के नाइट सूट व सम्राट की पोशाक तीन साल तक के बच्चे के लिये मिली नहीं तो सब स्थान पर बच्चों की आम हौजरी की ड्रेस थीं कहीं-कहीं वहाँ की कारीगरी दिखी तो वे अच्छी लगी सबने कुछ-कुछ खरीदा। और ओडीटोरियम आ गये। बाद में सामान देखा तो सिल्क की राजसी पोशाक की थैली कहीं रह गई थी ।
ओडीटोरियम के बाहर काफी बड़ा आहता था वहाँ डॉ॰ सरोज भार्गव व डॉ॰ चित्ररेखा सिंह तथा वंदनी सकारिया ने अपनी चित्रों की प्रदर्शनी लगाई जिसे वहाँ के आने-जाने वाले लोगों ने बहुत पसंद किया। कुछ ने चित्र क्रय भी किये थे तथा कुछ ने आगे संपर्क हेतु पते आदि लिये।
स्टेज लाल पीले रंग से सजा था कुर्सियॉं सफेद कपड़े से ढकी थी उन्हें लाल कपड़े की पट्टी से बाँध कर फूल बनाया गया था। चारों ओर लाल बड़े-बड़े पर्दे थे चाइना का विशेष चिन्ह डैªगन भी दिखाई दे रहा था। फूलदानों में लिली के फूल पूरी गरिमा से खिल रहे थे कार्यक्रम पेश करने वाली दो चीनी लड़कियाँ हमारे पास आई और अपनी अटपटी हिंदी में पूछने लगी कि क्या हम साड़ी पहनने में मदद कर देंगे। मेैं और शैलबाला ने उन दोनों लड़कियों को तैयार किया। यद्यपि ब्लाउज उनके नाप के नहीं थे उन्हें पिन आदि से उनके पहनने लायक किया उनकी साड़ी सधी रहे इसलिये कई-कई पिन लगाये। अपने को भारतीय परिधान में देख बार-बार दर्पण निहार रही थीं और खुशी से बाओ-बाओ कर रही थी जब माथे पर विंदी लगाई तो बहुत ही खुश हो रही थी। उन्हीं दोनों ने कार्यक्रम का संचालन किया कभी हिंदी में कभी अंग्रेजी में यह सब देखकर भारतीय भाषा की व्यापकता देखकर बहुत गर्व हो रहा था क्यों कि वहाँ केवल भारतीय ही नहीं चीनी परिवार भी थे और वे भी हिंदी में सब सुन रहे थे। पता लगा चीन में बहुत लोग हिंदी जानने और समझने का प्रयास कर रहे हैं
उन दिनों चीन में बड़े इलाकों में भूकम्प आ रहा था और जन धन की बहुत हानि हो की चुकी थी कार्यक्रम का प्रारम्भ सिआचिन में हताहत एवम् मृत आत्माओं के लिये प्रार्थना की गई।
हम सबका पुष्प गुच्छ से स्वागत किया गया तथा सबका परिचय कराया गया। अरस्तू प्रभाकर विज्ञ ज्योतिषी है यह जानकर कार्यक्रम के बाद उनसे कई लोग मिले और उन्हें अपने घर आमंत्रित किया।
डॉ॰ मनोरमा शर्मा ने आचार्य कुल का परिचय देते हुए प्रेम का संदेश दिया तथा संस्था के उद्देश्यों पर प्रकाश डाला , भारत और चीन के प्राचीन सांस्कृतिक संबंधांे के विषय में बताया और कहा हमें संबंधों को सुधारने के सेतु के रूप में कार्य करना चाहिये।
ओडोटोरियम दो तिहाई भारतीयों से भरा था। जिसमें कई दंपत्ति आगरा के भी थे। अपने देश के व्यक्तियों को देखकर सब बहुत प्रसन्न हो रहे थे। हम सबसे मिलकर वतन की सॉंधी मिट्टी याद आ रही थी अपना गांव अपना देश जैसे हम में देख रहे थे। कार्यक्रम समाप्तिके बाद हमसे बार-बार भारत के विषय में पूछ रहे थे क्योंकि वहाँ का समाचार तंत्र कुछ ऐसा है जो अधिक जानकारी देश विदेश की नहीं देता है । एक एक बात हमसे जान लेना चाहते थे। पैसा जीवन में बहुत महत्व पूर्ण
है इस लिये कमाने की खातिर दूसरे देश चले तो जाते हैं पर अपनों से दूर एक वीरानापन ला देता है ।
सांस्कृतिक कार्यक्रम गीत संगीत पर आधारित था नृत्य नाटिका, एकांकी ,नाटक, परी नृत्य बेहद मोहक थे। साथ ही भारतीय गानों पर आधारित कई नृत्य प्रस्तुत किये गये। सत्यम् शिवम् सुंदरम् गाने का प्रस्तुतिकरण अद्भुत था श्वेत लाल बार्डर की साड़ी पहनाकर समूह नृत्य के रूप में इस गाने की प्रस्तुति की गई थी अन्य सब कार्यक्रम में भी अधिकतर वेषभूषा साज-सज्जा भारतीय ही थी। गीतों का चयन व निर्देशन बहुत खूबसूरती से किया गया था। सभी कार्यक्रम अर्चना की निगरानी में तैयार किये गये थे समवेत् स्वर में जब ‘ऐ मालिक तेरे वंदे हम’ गाया गया तो लग ही नहीं रहा था कि हम चीन में किसी कार्यक्रम में है। भारतीय सभ्यता संस्कृति उसकी पावन मंत्र शक्ति , शुचिता भरे वातावरण से आडीटोरियम अद्भुत हो उठा था। और हम मंत्र मुग्ध थे । अपना तो सब को सर्व श्रेष्ठ लगता ही है पर चारों ओर प्रतिक्रिया स्वरूप देखा तो सभी बहुत तन्मयता से देख रहे थे ।
कार्यक्रम के अंत में हम सभी प्रतिनिधि मंडल के सदस्यों द्वारा सभी प्रतिभागियों को पुरस्कृत कराया गया।
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