शाम के सात बजे तक हम होटल लौटकर आ गये। दोपहर तो पूरियाँ खाली थी लेकिन इस समय भारतीय कच्चा खाना याद आ रहा था। दीपक जी ने बताया कि यहाँ से 10 किलोमीटर दूर एक पंजाबी रेस्टोरेंट है वहाँ बहुत अच्छा खाना मिलता है। कुछ ने वहीं सामने के बाजार से कुछ-कुछ मंगाकर खा लिया। लेकिन हम सात-आठ लोग एक जीप में भरकर इंडियन क्यूपाइन पंजाबी रैस्ट्रोरंेट चल दिये। रास्ते में हमने रात्रि में रोशन शंघाई शहर देखा। रात्रि में शंघाई ऐसा लग रहा था जैसे दीवाली की रात हो कई बड़ी-बड़ी इमारतों पर दीपावली की सी बल्बों की सजावट हो रही थी। साथ ही सभी इमारत
रोशनी से भरपूर थी। दुकानें देर तक खुली रहती हैं इसलिये चहल-पहल भी रात में अच्छी थी।
पहली मंजिल पर बने इस रेस्टोरेंट की साज-सज्जा राजस्थानी ढंग की थी वेटर राजस्थानी पोशाक में थे। राजस्थानी लोकगीत का टेप चल रहा था। हमें वहाँ पहुँचते रात्रि 10 से ऊपर समय हो गया था। रैस्टोरेंट 10 बजे तक चलता था। पर यह जानकर कि हम भारत से आये हैं और मात्र खाना खाने इतनी दूर से आये है सुनकर उन्होंने फिर से खाना बनाने का
निश्चय किया जो कुछ बनाया जा सकता था बनाया ।
वेटर हिमाचल प्रदेश के नूरपुर का रहने वाला था। हम लोगों से बात कर बहुत खुश हुआ। वह चार साल से वहाँ काम कर रहा था। उस रैस्टोरेंट में भारतीय तो आते ही थे पर अन्य देश के लोग भी भारतीय व्यंजनों का स्वाद लेने आते थे। दीपक जी जब भी श्ंाघाई आते थे इसी रेस्टोरंेट में आते थे उसी रैस्टोरंेट में खाते थे गरम हल्का खाना बहुत अच्छा लग रहा था।
प्रातःकाल आठ बजे हमने अपना-अपना सामान पैक किया। होटल में तरह-तरह के नाश्ते लगे थे एक तरफ सब अमिष खाना और पीछे की तरफ सामिष खाना था। आमिष खाने में फ्रूट कटे हुए सजा रखे थे साथ ही साबुत भी रखे थे। कार्नफ्लैक्स की विभिन्न वैरायटी, वीन्स, बर्गर ,बन आदि थे फ्रूट कस्टर्ड, आइसक्रीम जूस काफी, चाय आदि सबने एक-एक सेब अपने -अपने बैग में रखे जिससे आगे की यात्रा में उसका उपयोग किया जा सके।साथ ही यह भी देखा हम ही नहीं अन्य देशों के नागरिकों ने भी समान रखा यहॉं तक कि बन बर्गर आदि भी ।कितना मिलता है इंसान इंसान से । आखिरकार पैसा दिया है वसूलने में कुछ आनंद तो उठा लें ।
उस दिन हमें शंघाई घूमकर शाम 7.30 की टेªन से बीजिंग रवाना होना था इसलिये सारा सामान बस में ही रख लिया।
शंघाई जैसा कि पहले ही बताया यह समुद्र से घिरा है लेकिन हमने ऊॅंची ऊॅंची इमारतें ही देखीं ।यहाँ का मुख्य
धंधा मत्स्य पालन और उन्हें देश-विदेश में भेजना है वहाँ के समुद्र को ‘ओम के सी कू’ कहते है। ओम समुद्र को कहते ैैंहैंऔर कू गहरा के लिये प्रयुक्त होता है ।शंघाई हाउस की कीमत करीब 100 हजार स्क्वायर मीटर के हिसाब से है।
एंजला चाऊ हमारी गाइड थी बहुत हँसमुख लड़की थी वह हमें वहॉं की इमारतों की विशेषता बताती जा रही थी साथ ही चीन की सभ्यता संस्कृति व सामाजिक व्यवस्थाओं के बिषय में बताती जा रही थी ।उसने कहा यहाँ महिलाऐं भाग्यवान है वे बाहर काम करती है और पुरुष घर पर काम करते है। पुरुष घर पर बैठे ताश आदि खेलते हैं।
ताओवाद यहाँ कई मंदिरों के रूप में है । सिटी गोल्ड टॅम्पल नगर का हृदय स्थल है ये तीन राजधानियों के जनरल गुआन यू को समर्पित है। वेनमिआओ मंदिर कन्फ्यूसियस को समर्पित है। लागुहा, लिंगन मंदिर, जैड बु( मंदिर बौ( को समर्पित है। शंघाई में एवजयूजीअइुई में ईसाई धर्म के महत्वपूर्ण केन्द्र का चर्च है यह बड़ी चर्चाे में से एक है। शी शान वैसेलिका चीन का एक मात्र ईसाई तीर्थस्थल है।हम वहाँ से जेड बु( मंदिर गये। इसका निर्माण 1882 में हुआ इसे ‘यूफोशी’कहते हैं वैसे चीनी भाषा में ‘थान’ मंदिर को कहते है पर शंघाई में ‘शी’ मंदिर के लिये प्रयुक्त होता है।
मंदिर में बु( की विशाल जैड पत्थर से बनी मूर्ति थी 31“99 मीटर सफेद रंग की मूर्ति को एक ही पत्थर से काटकर बनाया गया था।दरवाजा यद्यपि बड़ा था पर फिर भी इतना बड़ा नहीं था ।हम मूर्ति को देख रहे थे और दरवाजे को देख रहे थे पहले मूर्ति रखी और फिर मंदिर बनाया क्या ? 1882 में इस मूर्ति को बर्मा से यहाँ लाकर स्थापित किया गया उसक सामनेे एक छोटी लाल चंदन की बु( मूर्ति लेटी अवस्था में थी बु( मूर्ति का चेहरा चाइनीज था। उनके सामने एक चौकी पर एक रूई की गद्दी थी उस पर सिर रखकर लोग बु( को प्रणाम कर रहे थे। बु( वहाँ अवलोकितेश्वर नाम से ,कुयिन या कुन शिहयिन नाम से जानेे जाते हैं जिनका मूल सि(ान्त दया और सहनशक्ति है।पूरे मंदिर की दीवारों पर फूल-पत्तियों की चित्रकारी थी।
दूसरे मंदिर में नौ विशाल मूर्तियाँ मंदिर के दोनों ओर थीं।उन पर सोने की पर्त थी या पालिश,लेकिन चमक सोने की दे रहीं थी । एक तरफ भविष्य बु( उनके सामने फसल के बु( ,भोजन के बु( उनके सामने बुरी आत्माऐं सबके चेहरे पर भाव भंगिमाऐं परिलक्षित हो रही थी। वर्तमान बोधिसत्व के सामने सीधे हाथ पर सुख स्वास्थ्य के लिये बु(, बायें हाथ पर
ध्यान बु(ा थे। वर्तमान बु(ा के सामने अखंड ज्योति जल रही थी। उनके दोनों ओर दो उड़ती हुई परियॉं थी।एक ही हॉल में इतनी सारी मूर्तियॉं थी कि दुकान सी लग रही थी ।
एक विशाल घंटा था। विश्वास किया जाता था 108 बार बजा कर मनौती की जाती है पूर्ण होती है उक व्यक्ति घंटा बजा भी रहा था यदि समय होता तो शायद सब अपनी मनोकामना पूरी करने में लग जाते । उसके नीचे दस-दस पहरेदार थे। बैल्ट बु(ा व क्लाथ आफ क्वाइंडूग इनका नाम लेने से आत्मा शु( होती है इनका चेहरा स्त्री रूप में है पर है पुरुष । दो शिष्ट प्रभु और गुरु। अठारह अरिहन्त चारों ओर 20 शिष्य थे।सभी मूर्तियॉं कम से कम तीस फुट ऊॅंची ऊॅंची और स्वर्णमंडित थी ं
एक संुदर-सा सफेद फूलों का वृक्ष था उस पर मान्यता का धागा या रिबन बंाधते हैं।सफेद ही धागों से बंधा पड़ा था वह वृक्ष । एक विशाल स्तम्भ था उसके आगे आत्म शोधन किया जाता है। जेड के बु( के लिये कहा जाता है जेड हमारा जीवन बचाता है।सामने दो बड़े दीप स्तम्भ थे, वहाँ दीपक, अगरबत्ती जलाई जाती है। तरह-तरह के बोनासाई मंदिर परिसर में गमलों में सजे थे। सफेद पुष्प का छोटा पेड़ फूलों से लदा था।
दूसरी मंजिल पर रास्ते की दीवारों पर चित्रकारी हो रही थी एक पेटिंग में आत्म-शोधन प्रक्रिया दर्शित हो रही थी। छत पर 600 सिक्के जड़े थे वे चक्राधार रूप में थे कहा जाता है ये सिक्के बुरी नजर से बचाते हैं। चढ़ते हुए कानों में जैन धर्म का णमोकार मंत्र पड़ा ‘ऊँ नमो अरिहंताणम्’ सुनकर अचम्भा हुआ। वहाँ हमने पुराने चित्र कास्य और मिट्टी से बनी कलाकृतियाँ पांडुलिपियों आदि का संग्रह देखा। बौ( धर्म ग्रथों का संग्रह देखा।यह सब देखते जा रहे थे और सोच रहे थे कहां हैं हम अलग ।
लिंगेन बु( मंदिर में हजार हाथ वाले बु( की विशाल प्रतिमा थी। इन्हें फ्लाइंग बु(ा कहा जाता है। वे पदमासन पर
विराजमान थे। जीवन में उपयोग में आने वाली सभी वस्तुऐं जैसे कमल, कलश, घंटा, शंख, चक्र तरह-तरह की जड़ी-बूटियाँ उनके हाथ में थी। इस मंदिर के मुख्य द्वार के दोनों तरफ बृहद पत्थर की चौकी थीं जिन पर गुलाब और कमल के फूल खुदे थे। सामने बड़े-बड़े सुंदर काले पत्थर के दीप स्तम्भ थे।
वहाँ से अगले दर्शनीय स्थल से पहले हमारी बस शैसे पर्ल सिटी अर्थात् मोतियों के विशाल शो रूम के सामने थी। बाहर से नहीं लग रहा था कि यह इतना बड़ा होगा। तसलों में बंद सीपिया पानी में पड़ी थी मुख्य द्वार के सामने झरना बना था उसके पानी में अनेकों सीपियॉं पड़ी थीं । एक लड़की ने हमें सीपी खोलकर मोती बनने की प्रक्रिया दिखाई छोटा सा मोती घोंघे के किनारे पड़ा था। उसने चिम्टी से घोंघा हटाकर मोती दिखाया हम देख तो उत्सुकता से रहे थे मानो विश्वास है कि मोती वहीं बना हक् पर बाद में आगे जाकर मुड़कर देखा उसने वैसे ही घोघे का बंद किया और फिर पानी में डाल दिया ।अंदर मोतियो की ज्वैलरी, माला,गुच्छों का विशाल शोरूम था मोतियों को अलग-अलग नगीनों के साथ भी लगाया गया था मोती की आभा वाली क्रीम भी मिल रही थी जो लड़कियॉं क्रीम बेच रही थीं उनके चेहरे चमक रहे थे उससे प्रभावित सबने क्रीम खरीदी पर इतने दिन बाद भी मैंने अभी तक किसी के चेहरे पर वह आभा देखी नहीं है ,उस समय तो यह लग रहा था कि सबके चेहरे ऐसे ही चमक उठेंगे।जल्दी-जल्दी सबने देखा कुछ लेना था लिया लेकिन समय हमारे पास कम था हमें अन्य दर्शनीय स्थलों पर जाना था बीच में भोजन के लिये रूकना था। हम सब आगे बढ़े। वहीं पर हमारा लंच था।
रेस्टोरेंट बहुत साफ सुथरा था। दोनों तरफ खाने का सामान रखा था। वैज और नॉन वैज दोनों तरह के व्यंजन थे। लेकिन भारतीय व्यंजन से अलग। अधिकतर चीजें ब्लांच की हुई सब्जियॉं थी। पीली गाजर, फ्रेंचबीन्स, पत्तागोभी, नूडल्स आदि इनमें नमक भी नहीं था। एक वस्तु ऐसी थी देखने में छोटे हरे कमल के फूल सी लग रही थी। रखी भी वैज खाने के साथ थी,लेकिन कोई भी अपरिचित वस्तु छूने में भी डर लग रहा था ।हमने वेटर से पूछा यह क्या है? उसने पूछा आप वैज है। या नॉन वैज। हमने कहा ‘वैज’ तो वह बोला यह आपके मतलब का नहीं है। क्या है? यह उसने नहीं बताया बहुत गौर से देखा देखने में बहुत सुंदर लग रहा था। पर समझ नहीं आया विश्वास ही नहीं हो रहा था कि वह नॉन वैज डिश है।अरे बाप रे कितना अच्छाा हुआ पूछ लिया कहा फिर वैज खाने के साथ क्यों रखी है , जो कुछ भी खाने में था सब खा नहीं रहे थे निगल रहे थे वहाँ का प्रिय पेय चाय अवश्य सबने शौक से पी क्योंकि उसे पीकर बहुत अच्छा लग रहा था। कहावत हेै ‘खान क्या खा रहा हैं ‘पैसा खा रहा हूँ’ भूख में किवाड़ भी पापड़ होते है वही हाल था। बाकी कमी जूस पीकर की।। मनोरमा जी ने हाथ नहीं लगाया हमारे पास अभी कुछ पूरियॉं थीं उन्हें देखते ही खुश हो गईं उन्होंने उससे काम चलाया। वास्तव में भारतीय खाने का जबाव नहीं है ।
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