Tuesday, 8 April 2014

pyar

चार लकीरें चिंता की
जब गहरी होती जातीं  हैं
इच्छा कि बनती तस्वीरें
धुंधली पड़ती जाती हैं
मुस्कानों के बीज जरा से
बोकर तो देखो
होंठों पर मुस्कान किसी के
 दे कर तो देखो .
हर मिलने वाले कि चिंता
कुछ कुछ कम हो जाये
दुःख कि आग रही तो जग की
धरती जलती जाए
प्रीत प्रेम की  बारिश  बस
बरसा  कर तो देखो

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