Tuesday, 8 April 2014

kaliyan kam hai

सूर्य धुंधला धुंधला  सा है
चाँद कि रौशनी नम है
तारों का  नूर भी कहीं ज्यादा
और कहीं कम है।
टूट कर रोया था चाँद रात को
फूलों पर आंसू कि बूँद शबनम है।
लड़े थे कांटे भी खरोंचा था बहुत
तब भी गुलाब पर कलियाँ कम हैं।
धोकर डाले थे वस्त्र अपने तन के
अमावस के अँधेरे मैं कुछ तो दम है

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