महिला दिवस आया और बीत गया सयुक्त राष्ट्र संघ ने नारा दिया "महिला की बराबरी सबकी तरक्की "लेकिन महिला कि तरक्की कितनी। धीरे धीरे महिलाओं मैं बदलाव आ रहा है वह बदल रही है पर किस लिए क्या अपने अधिकारों के लिए या जागरूकता के लिए ,क्योंकि संयुक्त राष्ट्र संघ महिलाओं के लिए हर वर्ष कोई भी एक नारा दे देता है। लेकिन क्या नारा है यह तक एक से एक बोलने वाले वक्ता महिला के लिए काम करने वाले नहीं जानते हैं तव कैसे महिला सशक्तिकरण के लिए प्रचार प्रसार कर सकते हैं। वेसे देखा जाये तो बर्बरी किस बात की अगर महिला सशक्त है तो वह पुरुष से कहीं ज्यादा काम करती है तब बराबरी से अधिक मान मिलना चाहिए ,महिला दो घरों की नींव है वह पिता के घर कि नींव है तो पति के घर की भी नींव है क्यों महिला के विवाह के साथ दहेज़ समस्या जुडी हुई है ,वह दूसरे घर जाती है उसका घर संभालती है उस घर कोजीवन देती है घर को वंशबेल देकर गुलजार करती है तब फिर क्यों दहेज़ साथ लाये जब वह एक महिला को खाना नहीं खिला सकता उसे घर का दर्ज नहीं दे सकता इतना निकम्मा है तो विवाह का अधिकार नहीं है क्या यह क्रय विक्रय का खेल है अगर औरत को दासी मान रहे हो तो दास पैसे देखाएर खरीदा जाता है दहेज़ देकर स्त्री पुरुष को उसके घर को खरीदती है और उसे कोई अधकार नहीं कि वह अपने माँ बाप के पास रहे वह खरीदा गया है उसे ससुराल मैं रह कर काम करना चाहिए। दहेज़ लेकर विवाह करनेवाला निकृष्टतम व्यक्ति है पति पत्नी रथ के दो पहिये हैं फिर दहेज़ लेने देने का कोई काम ही नहीं।
No comments:
Post a Comment