Sunday, 2 June 2013

sarkaari naukari

ए बहूजी  तुम तो इत्ती जगह  जात होई  मेरे लाला के लिए नौकरी लगवाव  दो ' मेरी मनुहार कराती काम वालीबाई बोली
कितना पढ़ा  है क्या काम कर सकता है ,' किसी के लिए कुछ करने का जज्वा  तुरंत बोला  
 बाय दसई  को  सटिफिकेट बनबाय  दियो है  एक हजार लगे वैसे  स्कूल मैं सातवी तो पढो हतो  पास  कर ली  है
तब क्या  नौकरी  लगेगी पास मैं गोदाम है  लगवा दूं  मेहनत का काम  है  कार्टून  उठा उठा  कर रखने होते हैं' अरे  वापे  काम  ही तो ने होत कछु करे  न चाहत  जय लिए कह  रही कि  सरकारी लगवाय दो '
 ये  दसवीं के कागज़ कहाँ  से बनवाये '
चों बन जात हैं  हजार रूपया लगत है  सरकारी नौकरी मैं  दसवीं पास  चाहिए न
सरकारी सरकारी नौकरी  क्या इतनी आसानी  से लग जायेगी
खच  कर दूंगी  वाकी  चिंता मत करो  कई भी जगे  फिट करा दो  अब का करूँ  बिलकुल हर्रम्मा  है  बसे काम ही तो ने हॉत  पिरैवेट  मैं तो काम कारणों पड़ेगो  काम नाय करेगो  तो कल निकार देंगे सरकारी मैं तो एक बार  परमानेंट  है जय  फिर कोई  मई को लाल न  निकार सकत 'नहीं मालुम फिर उसका  क्या हुआ  क्योंकि मैंने मन कर दिया की मैं नहीं  कर पाउंगी तो वह काम छोड़  गई  फिर दिखी भी नहीं
सच है सरकार कई डिब्बे  वाली ट्रेन है  जिसके फर्स्ट सेकंड  थर्ड पर तो ऊपरी  तंत्र  टांग पसार कर सो रहा है  अगर एक भी सीट  खाली  तो मौजूदा व्यक्ति  के परिवार  का बच्चा  ही सही स्टेशन  से चढ़ जायेगा 'स्लीपर पर अफसर बैठे हैं  सो रहे हैं कुछ  डिब्बे जनता के इसमें  ठुस्सम ठुस्सा  हो रही है और सरक यार  सरक यार  दुसरे दरवाजे से गिर जाये  कोशिश करते हैं  और खुद लटक  कर ही सही चढ़  जाते हैं  फिर क्या बस  ठूसना  चाहिए  रेल तो अपने आप  चल रही है  चलती  जायेगी
आराम बड़ी चीज है  मुंह ढक के सोइये
किस किस को याद कीजिये किस किस को रॊयिये

अजगर करे न चाकरी  पंछी  करे न काम
दास  मलूका  कह गए सब के दाता  राम 

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