Tuesday, 18 June 2013

bhartiya sanskrati

अगस्त क्रांति मथुरा से  पकडनी थी , जरा सा आगे बढ़ते ही जाम की स्थिति उतर कर देखा दूर दूर तक वाहनों की  लम्बी कतार  ड्राईवर  ने तुरंत मोड़ कर सर्विस लेन पर  गाड़ी उतार ली  जैसे जैसे गाड़ी बढती रहत की सांस आती जा रही थी  नहीं तो निश्चित था ट्रेन निकल जाएगी आगे एक ट्रक पलट गया था  ड्राईवर और क्लीनर  घायल थे उन्हें पटरी पर लेटा  दिया गया था ट्रक हटा कर रास्ता चालू करने का प्रयत्न  किया जा रहा था एक मिनट रुक कर स्थिति देखी  अरे  घायल    इन्हें  पहले कोई  हॉस्पिटल क्यों नहीं पहुंचा  रहा  चलो  आगे  हॉस्पिटल है इन्हें छोड़  देते हैं  कर्त्तव्य का भाव जग  उठा  . पागल हो अभी  अगर ट्रेन नहीं पकडनी है तो  पडो चक्कर मैं  पहले तो पुलिस मैं मामला दर्ज होगा  तुम लेकर गयी  तो तुम्हारा बयां होगा तुम्हे पुलिस इतनी आसानी से जाने नहीं देगी हो सकता है तुमने ही मारा  हो  पता लगा अम्बुलेंस के लिए फोन  कर दिया है पर वह भी जाम खुलेगा तब ही तो आएगी  और अस्पताल  वाले भी  भारती नहीं करेंगे  आसानी से  मैं और शायद सभी जल्दी मैं थे लाख लाख शुक्र है गाड़ी मिल गई  रस्ते मैं एक स्थान पर फालसे लिए  पता नहीं कौन जमाने का  ठेलेवाला  था  जो कागज मैं फालसे दे रहा था प्लास्टिक थैले नहीं थे  उस अखबार मैं एक पुरानी खबर और चित्र था एक ट्रेन दुर्घटना का  एक महिला सीट से दबी थी और एक आदमी  उसकी चूड़ी उतर रहा थाखबर मैं था  चूड़ी उतार कर वह भाग गया महिला को नहीं निकला . बस कांड तो हो कर ही चूका है  आधी दुनिया चीख कर रह गई कुछ  नहीं हुआ  रोज खबरें रहती है  बैखोफ हैं यौन  अपराधी  यह सब भारतीय संस्कृति का हिस्सा है जिसका गौरवमय अतीत है एक भब्य आयोजन से  बापस आते ही खबर मिली अमेरिका मैं बेटी दामाद  व् धेवती की कार  दुर्घटना ग्रस्त  हो गई  कार ने पांच  छ पलते खाए बेटी बेहोश दामाद ने गाड़ी से निकल कर देखा एक गाड़ी सहायता के लिए रुक गई  उन्होंने उससे प्रार्थना की एम्बुलेंस के लिए तो उस व्यक्ति ने बताया  मेरी पत्नी कर रही है तब तक गाड़ी के सेंसर  से भी आवाज आने लगी अम्बुलेंस  से डॉ  हिदायत दे रहे थे उन्हें क्या  उपचार करना है दो मिनट मैं  अम्बुलेस  वहां थी  पाच मिनट मैं पुलिस पहुच गई  अम्बुलेंस उन्हें लेकर हॉस्पिटल चली और पुलिस ने उनका एक एक सामान  बटोर कर यहाँ तक की चिल्लर भी उन तक सुरक्षित  पहुँच दिया  इश्वर  का बहुत बहुत धन्यबाद  जो इसी भीषण दुर्घटना से सब उबार गए  .किस सभ्यता संस्कृति को हम मानवीय  कहेंगे  हाँ धन्यबाद के समय भारतीय ईश्वर  ही मेरे सामने थे    

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