Thursday, 27 June 2013

rain hui chahun des

हिमालय फिर क्रोध से कांप रहा है .उसकी धरती पर निरंतर वार .वह सहता रहा सहता रहा  जब सहन शक्ति ख़तम होगी तो उसने बस एक बार  पलक टेढ़ी की है  मात्र एक पलक  . न जाने कितनी झीलें हैं जो शीतल  थी उबलने लगी हैं  सूखने लगी है  इन्सान के लालच ने शिव के निवास को पिघला दिया  उसकी बदहाली  पर ही तो आसमान रोया .हिमालय भी तो पूरे देश का है लेकिन उसके  हिस्से कर इंसान  जुट गया उसे ही काटने  उसे ही बाँट लिया  ये तेरा हिस्सा ये मेरा हिस्सा  तेरे हिस्से में  मैं नहीं बोलूँगा मेरे हिस्से मैं तू पैर भी नहीं रखेगा  अब यदि अख़बार टीवी वाले न्यूज़ देना बंद कर दें  तो देश को पता भी नहीं चलेगा की क्या हो गया उसके परिजन कहाँ गायब हो गए  कोई हलचल नहीं  होगी और अपनों को रो कर चुप हो बैठ जायेंगे  पर मानवीय  संवेदनाये आम आदमी से नहीं जा सकती  पहले यदि किसी प्रदेश मैं विपत्ति  आती थी तो पूरा देश एक हो जाता था  ये धाम तो पूरे भारतवर्ष को संजोये हुए था  तब भी वह केवल उत्तराखंड का है और कोई  कुछ नही  करेगा जो करेगा उत्तराखंड की अनुमति से करेगा  अब यह तो है ही अगर मेरी पार्टी का है तो वह सब कर सकता है  चाहे राहत शिविर के भूखे प्यासे लोगों को कांपते हुए  बहार रात  बितानी पड़े  हाँ  दुसरे पार्टी का  देखे भी नहीं  कहीं लोग  उससे कुछ बुरे न कर दें या उनका पर्दा फाश न हो जाये  हम चाहे डूब जायेंगे और जनता को डुबो देंगे पर तुझे बचने नहीं देंगे . सैलाब की क्या है  अच्छा है लाखों की जनता कम हुई  सरकार के ह्रदय मैं कोई हलचल नहीं हुई  गाद केदारनाथ पर नहीं पड़ी  गाद पूरे देश पर स्वार्थ की पड  गई है  गृहमंत्री जिन के हा थो मैं पूरा देश सोंप दिया आठ दिन बाद गर्दन हिलाते कह रहे हैं  आपस मैं तालमेल मैं समय लग गया  केवल गर्दन हिल देना कितना आसन है पर अपनों को खोने से जो पत्थर पड़ता है उस बोझ को उठाना आसान नहीं है यह दर्द दिल वाला ही जनता है  हाँ इस बात पर ज्यादा परिचर्चा है  की लाश कौन उठाये  टांग तेरी सीमा मैं है धड दुसरे की सीमा मैं  पड़ा रहने दो  चार आंखे दूर आसमान से  सुरम्य हिमालय की कल कल बहती नदियों को देख गई कितना सुन्दर हिमाच्छादित स्थान है  रोद्र रूप तो उन्होंने झेल जो उसके साथ बह गए  समझ नहीं आया क्या बिगाड़ा नदी हैं पेड़ हैं पहाड़ है  इतनी ऊंचाई से जंगलो मैं झाड़ियों मैं चींटी की तरह दिखेंगी नहीं नहीं तो विपत्ति की भयावहता कहाँ समझ आएगी .चलो भी  सैर कर दुनिया  की  जानिब  दो चार बांध और बन जायेंगे  तो इन इलाकों पर भी कब्ज़ा  हो जायेगा .चल खुसरो घर आपने रेन (रैन नहीं )हुई चंहु देस अच्छी फसल होगी  

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