उस दिन सूर्य पश्चिम से निकला था
सूरज की आंख झुकी झुकी सी थी
धूप भी ढली ढली सी थी
साथ लेकर जो जा रही थी कांधे पर
किसी की आंख का नूर किसी का श्रृंगार
एक हाथ से छीना था बचपन का प्यार
दूजे हाथ में थी बहन की मनुहार
माँ के आँचल को भिगोया था उसने
इसलिए धुप की आंख जली जली सी थी
पूरब से ढले चाँद ने देखा
सारे शहर की आंख नाम थी
सूरज के कंधे पर इतना बोझ था
मौत को मिली थी इतनी बद दुआएं
जितनी उठा सके वो कम थी
इसलिए उसकी बाहें गली गली सी थी
उस दिन सूर्य
सूरज की आंख झुकी झुकी सी थी
धूप भी ढली ढली सी थी
साथ लेकर जो जा रही थी कांधे पर
किसी की आंख का नूर किसी का श्रृंगार
एक हाथ से छीना था बचपन का प्यार
दूजे हाथ में थी बहन की मनुहार
माँ के आँचल को भिगोया था उसने
इसलिए धुप की आंख जली जली सी थी
पूरब से ढले चाँद ने देखा
सारे शहर की आंख नाम थी
सूरज के कंधे पर इतना बोझ था
मौत को मिली थी इतनी बद दुआएं
जितनी उठा सके वो कम थी
इसलिए उसकी बाहें गली गली सी थी
उस दिन सूर्य
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