Friday, 28 June 2013

desh ki ankhen nam thi

उस दिन सूर्य  पश्चिम  से निकला था
सूरज की आंख  झुकी  झुकी  सी थी
धूप भी ढली ढली सी थी
साथ लेकर जो जा रही थी  कांधे  पर
  किसी  की आंख का नूर किसी का श्रृंगार
एक हाथ  से छीना  था बचपन का  प्यार
दूजे हाथ में  थी  बहन की मनुहार
माँ के आँचल को भिगोया था उसने
इसलिए धुप की आंख जली जली सी थी
पूरब से ढले चाँद ने देखा
सारे शहर की आंख नाम थी
सूरज के कंधे पर इतना बोझ  था
 मौत को मिली थी इतनी बद दुआएं
जितनी उठा सके  वो कम थी
इसलिए उसकी बाहें गली गली सी थी
उस  दिन सूर्य 

No comments:

Post a Comment