Monday, 30 June 2025

cheen ke ve das din 8

 वहाँ से हम यू-आन गार्डन चले यूआन गार्डन के रास्ते में ऊँचाई पर फ्लाई ओवर मिला उसके एक तरफ बराबर नहर चल रही थी जिसमें लोग मछली पकड़ रहे थे।पुल के एक तरफ पुरानी शैली के कुछ घर बने थे उसमें रहने वाले उन्हें बेच नहीं सकते हैं शंघाई सरकार उसे धरोहर के रूप में सुरक्षित कर रही है। वहाँ तक पहुँचते-पहुँचते बारिश शुरू हो गई समय रुकने का था नहीं यूआन गार्डन के लिये उतरते ही बरसात ने धार का रूप ले लिये बस करीब आधा किलो मीटर दूर रूक गयी।उतरते-उतरते एक दम तेज बारिश होगई थी काफी चलना था।बारिश का रुकने का इंतजार करते तो ट्रेन भी पकड़नी थी बस रुकते ही छाता बेचने वाली चीनी स्त्रियाँ आ गई जो भी मूल्य मांगे उस समय देकर सबने छाते लिये और भागते हुए आगे बढ़े। बाजार से रास्ता लंबा पड़ता इसलिये एक दूसरे गार्डन में से होकर हम निकले चारों ओर बजरी का रास्ता सड़क की तरफ बड़े वृक्ष और झाड़ियां । रास्ते के दूसरी तरफ धार  दूर दूर तक गार्डन में जाने का मार्ग और हरियाली तालाब आदि 


दिख रहे थे पर हम उस समय भागते बस चले जा रहे थे। छतरी नाम के लिये थी,वह उस समय ऊपर उड़ और रही थी तो उसे रोकना और पड़ रहा था।।देखने का उत्साह था एक दूसरे को देखते भागते चले जा रहे थे गार्डन पार कर थोड़ा सा बाजार फिर भी पार करना पड़ा फिर आया यू गार्डन का छोटा सा लाल पत्थर का दरवाजा।

    यूआन   गार्डन अवश्य कहलाता है लेकिन  मिग व छिंग वंश के राजाओं का निवास स्थान था। उन्हीं के शासनकाल में इसका निर्माण हुआ। उस समय की कलात्मक शैली की छाप सब जगह है, गार्डन में जाने का मार्ग मेहराबदार लाल पत्थर का बना था। संभवतः यह शाही मार्ग था इधर-उधर बरामदे होंगे लेकिन अब यह बाजार में बदल गया है इसके दोनों ओर दुकानें थी। रास्ता करीब पाँच फुट चौड़ा था। रास्ता पार करके गार्डन का दरवाजा था। उस पर एक विशाल ड्रैगन बना था। चीन में डैªगन शुभ व शक्ति का प्रतीक माना जाात है।ड्रेगन लौकिक और अलौकिक शक्तियों का मालिक होता है वह स्वर्ग जाकर बादलों को और नमी को एकत्रित करता है और वर्षा को जीवन देता है।  गार्डन में 9 कक्ष बने थे षटकोण्ीय थे । हर कक्ष पुल द्वारा एक दूसरे से जुड़े थे ।छोटे छोटे  पुल, ये पुल लकड़ी के बने हुए थे। क्योंकि हर कक्ष के चारों ओर झील थी, झील करीब पाँच  फुट गहरी थी उसमें कमल खिले थे उनका रंग अधिकतर पीला, नांरगी था। तरह-तरह की छोटी-बड़ी मछलियाँ स्वच्छ पानी में घूमती नजर आ रही थीं।विशेष रूप से नारंगी रंग की मछलियॉं । एक भी कागज आदि का टुकड़ा नजर नहीं आ रहा था हर कक्ष के बाहर हरियाली ही हरियाली नजर आ रही थी। गार्डन जिग जैग स्थिति में बना था , 1400 वर्ष पुराने इस गार्डन में सिदूरी रंग का अधिक प्रयोग किया गया है।लौटकर आये तो डा॰ सरोज भार्गव बस में  बैठी नजर आईं बहुत क्रोध में थीं । एकदम किधर गायब हो गये सब के सब,  कम से कम  सब आ गये हैं यह तो देखना चाहिये ।    बरसात से भीगे तरबतर पर चहकते चेहरे अपराध बोध से ग्रस्त चुपचाप बैठ गये ।

   लौटते में ई-गार्डन पर रूके। ई गार्डन अर्थात् ‘खुशियों का बाग’ ई-गार्डन में सड़क किनारे ही दो बड़े-बड़े बाग थे बड़ा-सा जीना दोनों तरफ से चढकर छत थी। वहाँ से शंघाई का दोनों ओर का दृश्य दिख रहा था। वहाँ हांग पू नदी का विहंगम दृश्य दिखाई दिया उसमें छोटे जहाज चल रहे थै। शंघाई ईस्ट और वेस्ट दो भागों में बटा है पूर्व में पुराना शंघाई और पश्चिम में नया शंघाई है। नये शंघाई में टीवी टॉवर है नीचे दो विशाल ग्लोब बने थे ओरियंटल पर्ल टॉवर में यहाँ शंघाई कन्वेशन सेंटर बना हुआ है।ग्लोब तीन खंभों पर खड़े हैं अंदर इसके ऐतिहासिक संग्रहालय के साथ-साथ विभिन्न मनोरंजन के साधन हैं।यह सुना हुआ था देखने की इच्छाा थी पर  हांग पू नदी का  पाट चौड़ा था वहॉं से पर्ल टावर पहुॅंचने के लिये पूरा समय चाहिये था साढे़ पॉंच बज गये थे बादल पानी की वजह से लग रहा था शीघ्र निकलें । साढ़े छः बजे स्टेशन पहुॅंचना था        बीजिंग चीन की राजधानी है इसका अर्थ है उत्तरीय राजधानी। प्राचीन चीन की 9 बड़ी राजधानियों में से एक है इसकी आबादी 17 करोड़ है इसमें 16 नगर कस्बे हैं तथा 2 ग्रामीण क्षेत्रों में विभाजित है। शंघाई के बाद दूसरा सबसे बड़ा नगर है बीजिंग से पूर्व इसके कई नाम रहे झोगडू, डायड, बेईपिंग, पेनजिंग । 400 साल पहले फ्रांसीसी मिशनरीज ने पीकिंग शब्द का प्रयोग प्रारम्भ किया अब यह बीजिंग नाम से जाना जाता है।इसके आसपास देखने लायक कई आकर्षक दर्शनीय और ऐतिहासिक स्थल हैं ।

बीजिंग की यात्रा हमने चीन की सुपर फास्ट टेªन से की। बारह घंटे का सफर था। यहाँ पर भी कुली नहीं थे। अपना

सामान स्टेशन पर ले जाना था । बस ने बाहर ही छोड़ दिया। काफी दूर तक समान ले जाना था। एक साथ दोनों अदद ले जाना मुश्किल था बैग अटैची साथ में हैंडबैग इतना समय था नहीं कि एक-एक करके ले जाय किसी तरह अटैची पर रखकर ही बैग खिसकाया पर बैलेंस नहीं बन पा रहा था। जैसे तैसे सामान खिसकाया और स्टेशन के गेट तक पहुॅंचे । पर ऊॅंचा नीचा रास्ता जीना आदि देखकर और यह जानकर कि प्लेटफार्म करीब आधा किलो मीटर तो और अंदर है दम निकल गई , पर जब पता लगा कि स्टेशन के दरवाजे पर आपका सामान ले जाने के लिये खुली गाड़ी मिल जाती है,दो डालर नग के हिसाब से तो चैन आया । सफर कैसा भी हो सामान कम से कम और उठा सकने वाला ले जाना चाहिये ।हल्के और मजबूत ब्रीफकेस होना चाहिये ।

10-10 युआन में हर एक का सामान टेªन के प्लेटफार्म तक पहुँच दिया गया। ठीक डिब्बे के गेट के सामने हमारे सामान की गाड़ी रूकी। गाड़ी में से सामान टेªेन में पहुँचा के अपनी सीटों का नंबर देखा। टेªन का हर डिब्बा कूपे जैसा था एक तरफ पूरी गैलरी थी जिस पर कालीन बिछा था। एक तरफ डिब्बे थे चार-चार सीट का डिब्बा था। अरामदेह सीट थी। सबसे पहले अपना-अपना सामान जमाया। उसके बाद चाय की फिक्र हुई वहाँ अटैडेंट से पानी मांगा तो थर्मस में एकदम उबला पानी दे गई और हो गया चाय का जुगाड़। डिसपोजेबल ग्लास चाय दूध के पैकेट थे ही वहीं चाय पी जैसे एक दम थकान चढ़ गई हो चाय से फ्रैश-फ्रैश महसूस करने लगे।


Sunday, 29 June 2025

cheen ke ve das din 7


शाम के सात बजे तक हम होटल लौटकर आ गये। दोपहर तो पूरियाँ खाली थी लेकिन इस समय भारतीय कच्चा खाना याद आ रहा था। दीपक जी ने बताया कि यहाँ से 10 किलोमीटर दूर एक पंजाबी रेस्टोरेंट है वहाँ बहुत अच्छा खाना मिलता है। कुछ ने वहीं सामने के बाजार से कुछ-कुछ मंगाकर खा लिया। लेकिन हम सात-आठ लोग एक जीप में भरकर इंडियन क्यूपाइन पंजाबी रैस्ट्रोरंेट चल दिये। रास्ते में हमने रात्रि में रोशन शंघाई शहर देखा। रात्रि में शंघाई ऐसा लग रहा था जैसे दीवाली की रात हो कई बड़ी-बड़ी इमारतों पर दीपावली की सी बल्बों की सजावट हो रही थी। साथ ही सभी इमारत 


रोशनी से भरपूर थी। दुकानें देर तक खुली रहती हैं इसलिये चहल-पहल भी रात में अच्छी थी। 

पहली मंजिल पर बने इस रेस्टोरेंट की साज-सज्जा राजस्थानी ढंग की थी  वेटर राजस्थानी पोशाक में थे। राजस्थानी लोकगीत का टेप चल रहा था। हमें वहाँ पहुँचते रात्रि 10 से ऊपर समय  हो गया था। रैस्टोरेंट 10 बजे तक चलता था। पर यह जानकर कि हम भारत से आये हैं और मात्र खाना खाने इतनी दूर से आये है सुनकर उन्होंने फिर से खाना बनाने का 

निश्चय किया जो कुछ बनाया जा सकता था बनाया ।

वेटर हिमाचल प्रदेश के नूरपुर का रहने वाला था। हम लोगों से बात कर बहुत खुश हुआ। वह चार साल से वहाँ काम कर रहा था। उस रैस्टोरेंट में भारतीय तो आते ही थे पर अन्य देश के लोग भी भारतीय व्यंजनों का स्वाद लेने आते थे। दीपक जी जब भी श्ंाघाई आते थे इसी रेस्टोरंेट में आते थे उसी रैस्टोरंेट में खाते थे गरम हल्का खाना बहुत अच्छा लग रहा था।

प्रातःकाल आठ बजे हमने अपना-अपना सामान पैक किया। होटल में तरह-तरह के नाश्ते लगे थे एक तरफ सब अमिष खाना और पीछे की तरफ सामिष खाना था। आमिष खाने में फ्रूट कटे हुए सजा रखे थे साथ ही साबुत भी रखे थे। कार्नफ्लैक्स की विभिन्न वैरायटी, वीन्स, बर्गर ,बन आदि थे फ्रूट कस्टर्ड, आइसक्रीम जूस काफी, चाय आदि सबने एक-एक सेब अपने -अपने बैग में रखे जिससे आगे की यात्रा में उसका उपयोग किया जा सके।साथ ही यह भी देखा हम ही नहीं अन्य देशों के  नागरिकों ने भी समान रखा यहॉं तक कि बन बर्गर आदि भी ।कितना मिलता है इंसान इंसान से । आखिरकार पैसा दिया है वसूलने में कुछ आनंद तो उठा लें ।

उस दिन हमें शंघाई घूमकर शाम 7.30 की टेªन से बीजिंग रवाना होना था इसलिये सारा सामान बस में ही रख लिया।

शंघाई जैसा कि पहले ही बताया यह समुद्र से घिरा है लेकिन हमने ऊॅंची ऊॅंची इमारतें ही देखीं ।यहाँ का मुख्य 

धंधा मत्स्य पालन और उन्हें देश-विदेश में भेजना है वहाँ के समुद्र को ‘ओम के सी कू’ कहते है। ओम समुद्र को कहते    ैैंहैंऔर कू गहरा के लिये प्रयुक्त होता है ।शंघाई हाउस की कीमत करीब 100 हजार स्क्वायर मीटर के हिसाब से है।

   एंजला चाऊ हमारी गाइड थी बहुत हँसमुख लड़की थी वह हमें वहॉं की इमारतों की विशेषता बताती जा रही थी साथ ही चीन की सभ्यता संस्कृति व सामाजिक व्यवस्थाओं के बिषय में बताती जा रही थी ।उसने कहा यहाँ महिलाऐं भाग्यवान है वे बाहर काम करती है और पुरुष घर पर काम करते है। पुरुष घर पर बैठे ताश आदि खेलते हैं।

ताओवाद यहाँ कई मंदिरों के रूप में है । सिटी गोल्ड टॅम्पल नगर का हृदय स्थल है ये तीन राजधानियों के जनरल गुआन यू को समर्पित है।  वेनमिआओ मंदिर कन्फ्यूसियस को समर्पित है। लागुहा, लिंगन मंदिर, जैड बु( मंदिर बौ( को समर्पित है। शंघाई में एवजयूजीअइुई में ईसाई धर्म के महत्वपूर्ण केन्द्र का चर्च है यह बड़ी चर्चाे में से एक है। शी शान वैसेलिका चीन का एक मात्र ईसाई तीर्थस्थल है।हम वहाँ से जेड बु( मंदिर गये। इसका निर्माण 1882 में हुआ इसे ‘यूफोशी’कहते हैं वैसे चीनी भाषा में ‘थान’ मंदिर को कहते है पर शंघाई में ‘शी’ मंदिर के लिये प्रयुक्त होता है।

मंदिर में बु( की विशाल जैड पत्थर से बनी मूर्ति थी 31“99 मीटर सफेद रंग की मूर्ति को एक ही पत्थर से काटकर बनाया गया था।दरवाजा यद्यपि बड़ा था पर फिर भी इतना बड़ा नहीं था ।हम मूर्ति को देख रहे थे और दरवाजे को देख रहे थे पहले मूर्ति रखी और फिर मंदिर बनाया क्या ? 1882 में इस मूर्ति को बर्मा से यहाँ लाकर स्थापित किया गया उसक सामनेे एक छोटी लाल चंदन की बु( मूर्ति लेटी अवस्था में थी बु( मूर्ति का चेहरा चाइनीज था। उनके सामने एक चौकी पर एक रूई की गद्दी थी उस पर सिर रखकर लोग बु( को प्रणाम कर रहे थे। बु( वहाँ अवलोकितेश्वर नाम से ,कुयिन या कुन शिहयिन नाम से जानेे जाते हैं जिनका मूल सि(ान्त दया और सहनशक्ति है।पूरे मंदिर की दीवारों पर फूल-पत्तियों की चित्रकारी थी।

दूसरे मंदिर में नौ विशाल मूर्तियाँ  मंदिर के दोनों ओर थीं।उन पर सोने की पर्त थी या पालिश,लेकिन चमक सोने की दे रहीं थी । एक तरफ भविष्य बु( उनके सामने फसल के बु( ,भोजन के बु( उनके सामने बुरी आत्माऐं सबके चेहरे पर भाव भंगिमाऐं परिलक्षित हो रही थी। वर्तमान बोधिसत्व के सामने सीधे हाथ पर सुख स्वास्थ्य के लिये बु(, बायें हाथ पर

 ध्यान बु(ा थे। वर्तमान बु(ा के सामने अखंड ज्योति जल रही थी। उनके दोनों ओर दो उड़ती हुई परियॉं थी।एक ही हॉल में इतनी सारी मूर्तियॉं थी कि दुकान सी लग रही थी ।

एक विशाल घंटा था। विश्वास किया जाता था 108 बार बजा कर मनौती की जाती है पूर्ण होती है उक व्यक्ति घंटा बजा भी रहा था यदि समय होता तो शायद सब अपनी मनोकामना पूरी करने में लग जाते । उसके नीचे दस-दस पहरेदार थे। बैल्ट बु(ा व क्लाथ आफ क्वाइंडूग इनका नाम लेने से आत्मा शु( होती है इनका चेहरा स्त्री रूप में है पर है पुरुष । दो शिष्ट प्रभु और गुरु। अठारह अरिहन्त चारों ओर 20 शिष्य थे।सभी मूर्तियॉं कम से कम  तीस फुट ऊॅंची ऊॅंची और स्वर्णमंडित थी ं

एक संुदर-सा सफेद फूलों का वृक्ष था उस पर मान्यता का धागा या रिबन बंाधते हैं।सफेद ही धागों से बंधा पड़ा  था वह वृक्ष । एक विशाल स्तम्भ था उसके आगे आत्म शोधन किया जाता है। जेड के बु( के लिये कहा जाता है जेड हमारा जीवन बचाता है।सामने दो बड़े दीप स्तम्भ थे, वहाँ दीपक, अगरबत्ती जलाई जाती है। तरह-तरह के बोनासाई मंदिर परिसर में गमलों में सजे थे। सफेद पुष्प का छोटा पेड़ फूलों से लदा था।

दूसरी मंजिल पर रास्ते की दीवारों पर चित्रकारी हो रही थी एक पेटिंग में आत्म-शोधन प्रक्रिया दर्शित हो रही थी। छत पर 600 सिक्के जड़े थे वे चक्राधार रूप में थे कहा जाता है ये सिक्के बुरी नजर से बचाते हैं। चढ़ते हुए कानों में जैन धर्म का णमोकार मंत्र पड़ा ‘ऊँ नमो अरिहंताणम्’ सुनकर अचम्भा हुआ। वहाँ हमने पुराने चित्र कास्य और मिट्टी से बनी कलाकृतियाँ पांडुलिपियों आदि का संग्रह देखा। बौ( धर्म ग्रथों का संग्रह देखा।यह सब देखते जा रहे थे और सोच रहे थे कहां हैं हम  अलग ।

लिंगेन बु( मंदिर में हजार हाथ वाले बु( की विशाल प्रतिमा थी। इन्हें फ्लाइंग बु(ा कहा जाता है। वे पदमासन पर

विराजमान थे। जीवन में उपयोग में आने वाली सभी वस्तुऐं जैसे कमल, कलश, घंटा, शंख, चक्र तरह-तरह की जड़ी-बूटियाँ उनके हाथ में थी। इस मंदिर के मुख्य द्वार के दोनों तरफ बृहद पत्थर की चौकी थीं जिन पर गुलाब और कमल के फूल खुदे थे। सामने बड़े-बड़े सुंदर काले पत्थर के दीप स्तम्भ थे।

वहाँ से अगले दर्शनीय स्थल से पहले हमारी बस शैसे पर्ल सिटी अर्थात् मोतियों  के विशाल शो रूम के सामने थी। बाहर से नहीं लग रहा था कि यह इतना बड़ा होगा। तसलों में बंद सीपिया पानी में पड़ी थी मुख्य द्वार के सामने झरना बना था उसके पानी में अनेकों सीपियॉं पड़ी थीं । एक लड़की ने हमें सीपी खोलकर मोती बनने की प्रक्रिया दिखाई छोटा सा मोती घोंघे के किनारे पड़ा था। उसने चिम्टी से घोंघा हटाकर मोती दिखाया हम देख तो उत्सुकता से रहे थे मानो विश्वास है कि मोती वहीं बना हक् पर बाद में आगे जाकर मुड़कर देखा उसने वैसे ही घोघे का बंद किया और फिर पानी में डाल  दिया ।अंदर मोतियो की ज्वैलरी, माला,गुच्छों का विशाल शोरूम था मोतियों को अलग-अलग नगीनों के साथ भी लगाया गया था मोती की आभा वाली क्रीम भी मिल रही थी जो लड़कियॉं क्रीम बेच रही थीं उनके चेहरे चमक रहे थे उससे प्रभावित सबने  क्रीम खरीदी पर इतने दिन बाद भी मैंने अभी तक किसी के चेहरे पर वह आभा देखी नहीं है ,उस समय तो यह लग रहा था कि सबके चेहरे ऐसे ही चमक उठेंगे।जल्दी-जल्दी सबने देखा कुछ लेना था लिया लेकिन समय हमारे पास कम था हमें अन्य दर्शनीय स्थलों पर जाना था बीच में भोजन के लिये रूकना था।  हम सब आगे बढ़े। वहीं पर हमारा लंच था।      

      रेस्टोरेंट बहुत साफ सुथरा था। दोनों तरफ खाने का सामान रखा था। वैज और नॉन वैज दोनों तरह के व्यंजन थे। लेकिन भारतीय व्यंजन से अलग। अधिकतर चीजें ब्लांच की हुई सब्जियॉं थी। पीली गाजर, फ्रेंचबीन्स, पत्तागोभी, नूडल्स आदि इनमें नमक भी नहीं था। एक वस्तु ऐसी थी देखने में छोटे हरे कमल के  फूल सी लग रही थी। रखी भी वैज खाने के साथ थी,लेकिन कोई भी अपरिचित वस्तु छूने में भी डर लग रहा था ।हमने वेटर से पूछा यह क्या है? उसने पूछा आप वैज है। या नॉन वैज। हमने कहा ‘वैज’ तो वह बोला यह आपके मतलब का नहीं है। क्या है? यह उसने नहीं बताया बहुत गौर से देखा देखने में बहुत सुंदर लग रहा था। पर समझ नहीं आया विश्वास ही नहीं हो रहा था कि वह नॉन वैज डिश है।अरे बाप रे कितना अच्छाा हुआ पूछ लिया  कहा  फिर वैज खाने के साथ क्यों रखी है , जो कुछ भी खाने में था सब खा नहीं रहे थे निगल रहे थे वहाँ का प्रिय पेय चाय अवश्य सबने शौक से पी क्योंकि उसे पीकर बहुत अच्छा लग रहा  था। कहावत हेै ‘खान क्या खा रहा हैं ‘पैसा खा रहा हूँ’ भूख में किवाड़ भी पापड़ होते है वही  हाल था। बाकी कमी जूस पीकर की।। मनोरमा जी ने हाथ नहीं लगाया  हमारे पास अभी कुछ पूरियॉं थीं उन्हें देखते ही  खुश हो गईं उन्होंने उससे काम चलाया। वास्तव में भारतीय खाने का जबाव नहीं है ।


Saturday, 28 June 2025

cheen ke ve das din 6

 प्रातःकाल हमें शंघाई के लिये निकलना था। रात्रि को ही अर्चना के रसोई घर में हमने शंघाई के लिये पूरी-सब्जी तैयार की क्योंकि एक दो को छोड़कर सभी पूर्ण शाकाहारी थे। यहाँ तक कि प्याज भी नहीं खाते थे। उनके लिये चीन के होटल, रैस्त्रंा में खाना बहुत मुश्किल था। खाने के पैकेट बना बना  कर रखे गये और सबको देदिये गये। वहॉं हिन्दुस्तानी खाना बनाने के लिये यद्यपि मिलता सब है पर बहुत मुश्किल से। अर्चना की दो प्राणी की गृहस्थी थी इसलिये आवश्यक

सामान सब अपने साथ ले गये थे । इतना एहसास तो था ही कि संभवतःउतना राशन वहॉं न मिल सके विशेष आटा ।और वास्तव में आटे के स्थान पर वहॉं मैदे का उपयोग होता है ।

प्रातःकाल बस से हम शंघाई के लिये रवाना हुए शाउसिंग के लिये शंघाई से आये तब अंधेरा था। लेकिन लौटने में दिन का उजाला था। दूर-दूर तक खुला और हरियाली। पर कहीं ऐसा नहीं लगा कि बहुत व्यस्त शहर है उनकी भाषा में गाँव है। सड़कें एकदम साफ थीं दोनों तरफ विलो वृक्ष तो थे ही अन्य भी बहुत प्रकार के वृक्ष थे। झील, पहाड़ी, फव्वारें आदि सब मार्ग का सौंदर्य बढ़ा रहे थे।

शंघाई पुलों के नीचे बसा है। एक के ऊपर एक फ्लाई ओवर थे जैसे हवा में झूल रहे हों। सात-सात फ्लाई ओवर एक के ऊपर एक थे। नीचे सड़क इधर-उधर बड़ी-बड़ी इमारतें हम उन इमारतों की ऊँचाइयों को देख पा रहे थे। मैट्रो अलग चल रही थी एक तरफ रेलवे  स्टेशन था। रेलवे स्टेशन पर लगा हम चीन में है। दूर तक केवल सिर ही सिर दिखाई दे रहे थे । किनारे किनारे दोनों तरफ चम्पा के फूल थे। सफेद हलकी पीली आभा लिये खिल रहे थे। स्टेशन से निकल कर एक तरफ सुंदर फूल दूसरी तरफ नदी उस पर छोटे छोटे पुल जिस पर होकर पार जाना था।पतली गलियों को दीवार से घेर दिया गया था ।अंदर पुराने ढंग के घर है। बहुत-सी इमारतों पर सुनहरे शीशे लगे थे। जो सूर्य की रोशनी में सुनहरी आभा बिखेर रहे थे।

शंघाई में लिंगन  होटल में करीब ग्यारह बजे हमारी बस रूकी। होटल की मुख्य इमारत के बाहर अहाते में कृत्रिम पहाड़ी-झरने के रूप में प्राकृतिक दृश्य बनाया गया था परी की मूर्ति से उसे सुंदरता प्रदान की गई थी रिसैप्शन हॉल में बड़े-बड़े पीतल के गमलों में बॉंस के पौधे लगे थे उनकी टहनियों को विभिन्न आकृतियों का रूप दिया गया था। उनसे जाली सी बनाकर बोतल आदि की आकृति दी गई थी। हर गमले में उगे पौधे की कलात्मकता देखकर उनके धैर्य की प्रशंसा करनी पड़ेगी क्यांेकि उन्हें प्रारम्भ से ही आकृति देकर बढ़ाया गया होगा अब वे करीब पाँच-पाँच फुट हो गये थे। 

बड़े-बड़े मछलीघर लगे थे जिनमें रखी करीब दस इंच लंबी लाल मछलियाँ तैर रहीं थीं लाल मछली वहाँ समृ(ि का प्रतीक मानी जाती है इन्हें वहाँ रैड फोर्ड फिश कहा जाता है। चटक लाल रंग की ये मछलियाँ बहुत सुंदर लग रही थी एक-एक दो-दो काली मछलियाँ भी उसमें तैर रही थी। दरवाजे पर चीनी मिट्टी के बड़े-बड़े नीली चित्रकारी के जार रखे थे।

होटल शाउसिंग में भी देखा और लिंगेन में भी समान स्वयं हमें ही उठाना था। उठा-उठाकर लिफ्ट में रखना कमरे में

पहुँचाना सब हम सबने किया। चीन में कहीं भी कोई वेटर यह काम नहीं करता है पूरी यात्रा में सारा सामान स्वयं ही उठाना पड़ा था बस वाला भी बस से नीचे उतार देता था । अंदर होटल में ले जाना या होटल से बस तक भी लाने का काम स्वयं ही करना पड़ता था। वहाँ पर सामान रखने के लिये बस की सीट के नीचे तलघर बना था वहाँ बस की छत पर सामान नहीं रखा जाता  बस में बने छोटे-छोटे केबिन में केवल हैंड बैग रखे जाते थे।ड्रइवर सामान निकाल तो देता था पर जरा सा खिसकाता भी नहीं था ।

सब सामान तीसरी मंजिल पर बने कमरों में पहुँचाया। कमरे सुरुचिपूर्ण सज्जित व सुविधाजनक थे वहाँ पर भी गर्म पानी के थर्मस चाय-काफी के पैकेट आदि रखे थे। चाय बनाने का काम हम चार सहयात्रियों का हर जगह श्रीमती किरन महाजन ने ही किया । हम चारों मैं श्रीमती शैलबाला, डॉ॰ राजकुमारी शर्मा व श्रीमती किरन महाजन का सारा समय एक कमरे में बीतता था केवल सोने के समय अलग होते थे पूरे दिन की प्रक्रिया पर हँसी-मजाक चलता रहता था। समय बहुत ही सुखद बीता। मन चाय का करता था तो हर हालत में श्रीमती किरन महाजन को पकड़कर लाते थे कि चलो चाय बनाने का समय हो गया है। इसी प्रकार यात्रा के दस दिन बहुत ही सुखद और यादगार रहे।

शंघाई की यात्रा में दीपक जी हमारे साथ थे। दोपहर तो हो ही गई थी उस समय अधिक दूरी का कार्यक्रम तो बनाया नहीं जा सकता था इसलिये शहर घूमने की सोची गई एक टैक्सी में वहाँ पाँच लोग बैठ सकते थे हमने तीन टैक्सियॉं की  और शंघाई घूमने के लिये चल पड़े।

शंघाई शहर की स्थापना 5-9 वीं शताब्दी में हुई है। शंघाई दो शब्दों से मिलकर बना है शघ-ऊपर तथा हाई-सागर यह नाम सांग राजवंश शासन काल 11वीं शताब्दी में पहली बार सामने आया तब वहाँ एक नदी तथा एक गाँव इस नाम का था इसका अधिकारिक नाम है समुद्र के ऊपर या समुद्र तट पर बसा।  इसकी भाषा शंघाई ही है । यह चीन का विशालतम नगर है इनका क्षेत्रफल 7037 किमी. है इसकी जनसंख्या 14 करोड़ है। शंघाई कभी स्वतंत्र प्रशासकीय क्षेत्र था। शंघाई ने तरह-तरह की सभ्यता और प्रशासन झेले हैं इस पर अंग्रेज, जापानी आदि काबिज हुए। 1292 में युगं वंश के समय यह नगर बना। 1554 में जापानी आक्रमणकारियों से सुरक्षा हेतु चारदीवारी बनी। सांग कालीन यह शहर जुलाई 1921 में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के प्रभुत्व में आया। और उसका मुख्यालय भी यही था। 1937-1945 के यु( के समय जापानियों ने 

इस पर कब्जा कर लिया था। सन् 1949 में चीनियों ने पुनः इसे कब्जे में कर लिया और सुनयात सेने के नेतृत्व में पीपल्स आर्मी ने वहाँ राष्ट्रीय सरकार का गठन किया। यह शहर सूती वस्त्र निर्माण के लिये विख्यात था अब यहाँ विश्व का सबसे बड़ा बदंरगाह है। बायी ओर हांगफु नदी जिसे पीली नदी या चीन का शोक भी कहा जाता है व दक्षिण के कुछ ओर यांगत्सी नदी के किनारे ,पूर्व में चीनी सागर है। है समुद्र से घिरा, पर समुद्र से बहुत दूर है।

आज ये विश्व का यह सबसे बड़ा व्यावसायिक केंद्र बना हुआ है। इसके बीच हांग यू नदी व वू सुग नदी का संगम है उसने इसे दो भागों में बाँट दिया है यहाँ सरकारी गैर सरकारी सभी कंपनियों के बड़े-बड़े दफ्तर हैं। पूरा शहर झील नदी झरनों आदि से आच्छादित है।शंघाई में पहुँचकर हमें लगा यहाँ जन सैलाब है परंतु सैलाब कारों का अधिक था छोटी-बड़ी कारें, बसें, ट्रक भाग रहे थे। दोनों तरफ बड़े-बड़े शो रूम थे। रंगीन शीशे का अधिक उपयोग हुआ था। वहाँ की सबसे पाश और भव्य शोरूमों से सज्जित नानंिकंग रोड देखी। वहाँ हर ब्रान्ड के शोरूम थे। बहुमंजलीय शोरूम देशी-विदेशी सभी प्रसि( ब्रान्ड थे वहाँ स्वयं चीन का कुछ नहीं दिख रहा था। वस्त्र ज्वैलरी एक्सेसरीज घड़ी आदि सभी नामी-गिरामी नाम वहाँ पर थे। कहा जाता है वह स्थान विश्व के सबसे मंहगे स्थानों में से एक है इसकी तुलना पेरिस से की जाती है वह सड़क पाँच किलोमीटर लंबी है। एक एक कर हम दुकानें देखते जा रहे थे और कह रहे थे  यह सामान हमारे यहॉं बहुत कम में मिल जाती है यहॉं से यह क्यों खरीदें ।

  हमने दीपक जी से कहा,‘भई,यह तो रहा यहॉं आने वाले अरबपतियों की खरीदारी का स्थान अब हमें हमारी जेब वाली जगह ले चलिये । कभी कभी स्थिति अजीब सी हो जाती है दीपक तो हमें वहॉं की सबसे अच्छी शॅपिंग की जगह दिखा रहे थे और हम जेब देख रहे थे साथ ही सोच रहे थे यही ब्रांड भारत में इससे आधे दाम पर मिलता है तो यहॉं से क्यों ख्रीदें और उस देश की बनी वस्तु देखें । एक मोड़ के पश्चात् ही एक ऐसे बाजार में आ गये जहॉं छोटी छोटी दुकानें थी,छोटे दरवाजों में होकर पतली सीढ़ियॉं ,सीढ़ियों  के हर मोड़ पर छोटी सी दुकान वहॉं पर कीमती से कीमती सामान मैाजूद था,डुप्लीकेट भी था,पैन की दुकान जूते चप्पल की दुकान,जरा लंबाई ठीक है तो सिर झुकाये रहना पड़ेगा । नानकिंग रोड पर जो वस्तु हजार रुपये की थी वहॉं दो सौ की थी। जो डुप्लीकेट बताया वह सामान भी बिलकुल फरक नहीं लग रहा था ।कपड़े भी हाथ में लेने पर वही एहसास दे रहे थे । डुप्लीकेट हो या कुछ पर वहॉं सबने जम कर खरीदारी की ।


Friday, 27 June 2025

cheen ke ve dus din5

 बारिश तेज थी भाग-भाग कर एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाकर दुकानों को देखा बारिश बंद होने का इंतजार करने का अर्थ था समय की बर्बादी। समाधि स्थल के किनारे-किनारे पाँचफुट चौड़ी नहर थी यद्यपि पानी बिलकुल काला था उसमें छोटी-छोटी नौकाएँ थीं जो पर्यटकों को नाव की सैर करा रही थी। छोटा सा लकड़ी का पुल बना था उसे पार करके एतिहासिक संग्रहालय था। 

वहीं चीनी व्यंजन भी थे। टोफू ;सोयाबीन के दूध से बने पनीरद्ध को तलकर मसाला मिलाकर दे रहे थे उसे चखा भी लेकिन तीव्र गंध थी किसी को भी पसंद नहीं आया।  वहाँ कुछ चीनी पर्यटकों ने हमारे दल का फोटो भी खींचा ।

अर्चना जयधारा उस दिन अपने स्कूल के कार्यक्रम और भारतीय दल के स्वागत की तैयारियों में लगी थी।

8 जनू को डब्लू. एस. एफ. का कार्यक्रम रेमिंग रोड स्थित औडीटोरियम में होना था अर्चना जयधारा और दीपकजी ने स्वागत की भव्य तैयारियाँ की थी। प्रातः ग्यारह बजे हम लोग औडीटोरियम के लिये गये रास्ते में हमने शाउसिंग का बाजार देखा वह वहाँ का थोक बाजार था बाजार चौड़ा व डबल मार्ग था। वहाँ दुकानें बड़ी-बड़ी व सामानों से विशेष कर सजावटी सामान खिलौने स्टेशनरी आदि से भरी पड़ीं थीं समझ लीजिये दिल्ली के सदर बाजार को एकदम चौड़ा कर लीजिये। गैंगडू होटल से ओडीटोरियम हम लोग रिक्शों में गये । रिक्शे थे तो भारतीय रिक्शों जैसे लेकिन चौड़े व सुविधाजनक थे। तीन या चार युआन तक भाड़ा लगा। एक रिक्शे में हम तीन-तीन आराम से बैठ गये ।

   दो बजे कार्यक्रम प्रारम्भ होना था शाउसिंग के ही एक ऐसे बाजार के विषय में अर्चना ने बताया जो बहुत कुछ मुंबई के लिंकन रोड और दिल्ली के जनपथ जैसा था वहाँ पर भी अधिकांश दुकानों पर महिलांए ही बिक्री कर रही थी वहाँ ा दुकानों पर बच्चों का सामान ही अधिक मिल रहा था बच्चों के कपड़े या टी शर्ट लेडीज टॉप मिल रहे थे। बहुत मुश्किल से एक दुकान पर वहां की प्रसि( सिल्क के नाइट सूट व सम्राट की पोशाक तीन साल तक के बच्चे के लिये मिली नहीं तो सब स्थान पर बच्चों की आम हौजरी की ड्रेस थीं कहीं-कहीं वहाँ की कारीगरी दिखी तो वे अच्छी लगी सबने कुछ-कुछ खरीदा। और ओडीटोरियम आ गये। बाद में सामान देखा तो सिल्क की राजसी पोशाक की थैली कहीं रह गई थी ।

ओडीटोरियम के बाहर काफी बड़ा आहता था वहाँ डॉ॰ सरोज भार्गव व डॉ॰ चित्ररेखा सिंह तथा वंदनी सकारिया ने अपनी चित्रों की प्रदर्शनी लगाई जिसे वहाँ के आने-जाने वाले लोगों ने बहुत पसंद किया। कुछ ने चित्र क्रय भी किये थे तथा कुछ ने आगे संपर्क हेतु पते आदि लिये।

स्टेज लाल पीले रंग से सजा था कुर्सियॉं सफेद कपड़े से ढकी थी उन्हें लाल कपड़े की पट्टी से बाँध कर फूल बनाया गया था। चारों ओर लाल बड़े-बड़े पर्दे थे चाइना का विशेष चिन्ह डैªगन भी दिखाई दे रहा था। फूलदानों में लिली के फूल पूरी गरिमा से खिल रहे थे  कार्यक्रम पेश करने वाली दो चीनी लड़कियाँ हमारे पास आई और अपनी अटपटी हिंदी में पूछने लगी कि क्या हम साड़ी पहनने में मदद कर देंगे। मेैं और शैलबाला ने उन दोनों लड़कियों को तैयार किया। यद्यपि ब्लाउज उनके नाप के नहीं थे उन्हें पिन आदि से उनके पहनने लायक किया उनकी साड़ी सधी रहे इसलिये कई-कई पिन लगाये। अपने को भारतीय परिधान में देख बार-बार दर्पण निहार रही थीं और खुशी से बाओ-बाओ कर रही थी जब माथे पर विंदी लगाई तो बहुत ही खुश हो रही थी। उन्हीं दोनों ने कार्यक्रम का संचालन किया कभी हिंदी में कभी अंग्रेजी में यह सब देखकर भारतीय भाषा की व्यापकता देखकर बहुत गर्व हो रहा था क्यों कि वहाँ केवल भारतीय ही नहीं चीनी परिवार भी थे और वे भी हिंदी में सब सुन रहे थे। पता लगा चीन में बहुत लोग हिंदी जानने और समझने का प्रयास कर रहे हैं

उन दिनों चीन में बड़े इलाकों में भूकम्प आ रहा था और जन  धन की बहुत हानि हो की चुकी थी कार्यक्रम का प्रारम्भ सिआचिन में हताहत एवम् मृत आत्माओं के लिये प्रार्थना की गई।

हम सबका पुष्प गुच्छ से स्वागत किया गया तथा सबका परिचय कराया गया। अरस्तू प्रभाकर विज्ञ ज्योतिषी है यह जानकर कार्यक्रम के बाद उनसे कई लोग मिले और उन्हें अपने घर आमंत्रित किया।

डॉ॰ मनोरमा शर्मा ने आचार्य कुल का परिचय देते हुए प्रेम का संदेश दिया तथा संस्था के उद्देश्यों पर प्रकाश डाला , भारत और चीन के प्राचीन सांस्कृतिक संबंधांे के विषय में बताया और कहा हमें संबंधों को सुधारने के सेतु के रूप में कार्य करना चाहिये।

ओडोटोरियम दो तिहाई भारतीयों से भरा था। जिसमें कई दंपत्ति आगरा के भी थे। अपने देश के व्यक्तियों को देखकर सब बहुत प्रसन्न हो रहे थे। हम सबसे मिलकर वतन की सॉंधी मिट्टी याद आ रही थी अपना गांव अपना देश जैसे हम में देख रहे थे। कार्यक्रम समाप्तिके बाद हमसे बार-बार भारत के विषय में पूछ रहे थे क्योंकि वहाँ का समाचार तंत्र कुछ ऐसा है जो अधिक जानकारी देश विदेश की नहीं देता है । एक एक बात हमसे जान लेना चाहते थे। पैसा जीवन में बहुत महत्व पूर्ण


है इस लिये कमाने की खातिर दूसरे देश चले तो जाते हैं पर अपनों से दूर एक वीरानापन ला देता है ।

   सांस्कृतिक कार्यक्रम गीत संगीत पर आधारित था नृत्य नाटिका, एकांकी ,नाटक, परी नृत्य बेहद मोहक थे। साथ ही भारतीय गानों पर आधारित कई नृत्य प्रस्तुत किये गये। सत्यम् शिवम् सुंदरम् गाने का प्रस्तुतिकरण अद्भुत था श्वेत लाल बार्डर की साड़ी पहनाकर समूह नृत्य के रूप में इस गाने की प्रस्तुति की गई थी अन्य सब कार्यक्रम में भी अधिकतर वेषभूषा साज-सज्जा भारतीय ही थी। गीतों का चयन व निर्देशन बहुत खूबसूरती से किया गया था। सभी कार्यक्रम अर्चना की निगरानी में तैयार किये गये थे समवेत् स्वर में जब ‘ऐ मालिक तेरे वंदे हम’ गाया गया तो लग ही नहीं रहा था कि हम चीन में किसी कार्यक्रम में है। भारतीय सभ्यता संस्कृति उसकी पावन मंत्र शक्ति , शुचिता भरे वातावरण से आडीटोरियम अद्भुत हो उठा था। और हम मंत्र मुग्ध थे । अपना तो सब को सर्व श्रेष्ठ लगता ही है पर चारों ओर प्रतिक्रिया स्वरूप देखा तो सभी बहुत तन्मयता से देख रहे थे ।

कार्यक्रम के अंत में हम सभी प्रतिनिधि मंडल के सदस्यों द्वारा सभी प्रतिभागियों को पुरस्कृत कराया गया।


Wednesday, 25 June 2025

cheen ke ve das din 4

 हांगकांग की फ्लाइट में यद्यपि खाने का समय था पर प्रावधान नहीं था कारण हमारी फ्लाइट  पहले पहुँचनी थी इसलिए हांगकांग एअरपोर्ट पर टिकिट के साथ हमें नाश्ते के कूपन प्राप्त हुए थे पाँच डालर तक का नाश्ता हम ले सकते थे। एक ही दुकान थी उस पर दो चीनी लड़कियाँ खड़ी थी वे केवल चीनी भाषा जानती थीं बहुत मुश्किल से उन्हें हाथ के इशारे से समझा कर पेस्ट्री और काफी प्राप्त की।काफी पेस्ट्री के बाद भी कूपन बच गये तो यह सोच कर कि पैसे क्यों बरबाद किये जायें चॉकलेट लेलीं और बच्चों के लिये रख लीं पर अंत मंे वे सब पिघल गईं ।

शंघाई के लिये हमने 2.30 पर यात्रा प्रारम्भ की और पाँच बजे शंघाई एअरपोर्ट पहँुचे। शंघाई पर चार टर्मिनल हैं हम तीसरे टर्मिनल से  साढ़े पाँच बजे बाहर आये अर्चना जयधारा फूलों के साथ हमारा इंतजार कर रही थी। बेहद जहीन साहसी उत्साही जनहित की भावना रखने वाली प्यारी सी लड़की। सी वी इंगलिश मीडियम स्कूल की पिं्रसपल अर्चना जयधारा दिखने में स्टूडेंट।

संभवतः फ्लाइट की देरी ने उसे भी परेशान कर दिया था क्योंकि वहाँ से लंबी यात्रा थी फिर भी हम सबका स्वागत बहुत उत्साह से किया।सब अपना-अपना सामान ट्राली में रखकर एअरपोर्ट से बाहर आये हमारा परिचय हमारी गाइड वैंडी से कराया, पतली दुबली सी बीस बाईस साल की लड़की ,जिसने हमारे कार्यक्रम निर्धारित किये थे। वैंडी हमें बीजिंग में मिलने वाली थी उसे हिंदी में बोलते सुनकर अच्छा लगा, यद्यपि हल्का सा लहजा विदेशी था फिर भी बहुत साफ और स्पष्ट हिंदी थी।

खूबसूरत सी छोटी सी वैन में हम सब पन्द्रह लोग, अब अर्चना भी हमारे साथ थी, अपने गन्तव्य शाअसिंग के लिये रवाना हो गये। शंघाई एअरपोर्ट से बाहर बिलकुल अलग ही दुनिया हमारे सामने थी। घुमावदार विशाल फ्लाई ओवर पार करते हम मुख्य मार्ग पर आये। फ्लाई ओवर पर दोनों तरफ पास-पास गोल-गोल सफेद लैंप लगे थे जैसे हजारों हजार दीपक जल रहे हों।

शंघाई जियांग जिन की राजधानी है । सड़कें छः लेन व आठ लेन की हैं। दोनों तरफ मार्ग में विलो वृक्ष थे रोशनी बाहर थी ही अंधेरा घिर चुका था। दूर-दूर तक सड़क पर केवल रोशनी दिखाई दे रही थी। शंघाई से शाउसिंग की 300 किलोमीटर लंबी यात्रा में हमें सिवाय एक दो ट्रक के और कुछ नहीं दिखा। हैरानी हो रही थी इतना सुनसान रास्ता कैसे? क्या है शंघाई में कर्फ्यू है क्या? या जनता नहीं है। चीन सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश लेकिन दूर-दूर तक कोई नहीं दिख रहा था। हमारी वैन सरपट भागती चली जा रही थी और 300 किलामीटर की यात्रा 5 घंटे में पूरी कर ली। हर तरह के वाहन की अलग लाइन थी। इमर्जैसी लाइन अलग थी। अलग-अलग स्पीड के लिये अलग-अलग लाइन थी यदि वाहन चालीस की स्पीड का है तो उसे अलग लाइन में चलना होगा। साइकिल वालों के लिए सबसे किनारे पर लाइन थी। केवल एक ट्रक रास्ते में दिखाई दिया था। रास्ते में एक स्थान पर तेजी से मैगनेटिक टेªन जा रही थी। जैसे तेजी से दीपमालिका हवा में उड़ती चली जा रही हो क्योंकि वह ऊँचाई पर जा रही थी।

रात्रि के करीब ग्यारह बजे हम अर्चना जयधारा के निवास पर पहुँचे। विशाल द्वार बना हुआ था उसके अंदर जाकर कॉलोनी में दोनों तरफ बिलकुल एक से फ्लैट बने थे रंग भी एक सा हरा था। चीन में घर सरकार बनवाती है। उसके 

अधिकार सरकार के ही पास रहते हैं। अंदर से आप कैसा भी सजायंे पर बाहर से समरूपता रखनी होगी। कहने के लिये शाउसिंग एक विलेज कहलाता है वह शंघाई का विलेज है लेकिन मैट्रो सिटी से कहीं कम नहीं लगा। यह शहर कपड़ा शहर कहलाता है अधिकांश कपड़े की मिलें वहीं है।अर्चना ने वहाँ हम सबके लिये खाने का इंतजाम कर रखा था थकान उतारने

के लिये चाय से सबका स्वागत किया फिर दाल, चावल आदि सुस्वादु भारतीय खाना खिलाया।

अर्चना की ग्यारह वर्षीय बिटिया हम सबको देखकर बहुत खुश हो रही थी इतनी सारी दादी नानी आंटी देखकर उसे बहुत अच्छा लग रहा था। आगे यात्रा में भी जब-जब हम उससे मिले वह हम लोगों के साथ घुलमिल कर रही तरह-तरह के डांस आदि दिखाये हम लोगों के साथ खेल-खेले। उसका बस चलता तो हम लोगों को घर से हिलने नहीं देती।

रात्रि विश्राम के लिये हमारी व्यवस्था होटल गैंगडू में थी होटल पास ही था वहाँ परेशानी यह थी कि रिसैप्शनिष्ट वेटर आदि कोई भी हिंदी या इंगलिश नहीं जानता था। हमारे साथ अर्चना ने एक ऐसा व्यक्ति कर दिया था जो चाइनीज व हिंदी इंगलिश जानता था उसने हमारी व्यवस्थाऐं होटल में करवाई ।हम तो पानी मांगना चाह रहे थे वह भी नहीं मांग पा रहे थे कुछ प्रतीक सार्वभौमिक हैं यदि कहीं भी आप पानी मांगेगे तो हाथ की ओक बनाकर  मुॅह से लगायें गे पर उनके समझ में किसी प्रकार का कोई एक्शन नहीं आ रहा था।

सुबह स्नान आदि करके हम अर्चना के निवास पर पहुँचे जो बिलकुल नजदीक ही था पैदल ही हम सब पहुँच गये नाश्ते के बाद अर्चना के पति दीपक जी हमें वहाँ का स्थानीय बाजार दिखाने ले गये। पैदल ही घूम-घूम कर हमने वहाँ का बाजार देखा एक दम चौड़ा बाजार था दुकानें यद्यपि साधारण थी, लेकिन सब्जी फल आदि काफी बड़े-बड़े  और स्वस्थ थे। कुछ फल अलग थे लेकिन अब भारत में भी  विवाहों में फलों के स्टाल पर दिखने लगे हैं जैसे कॉटेदार लीची देखने में पीला

लाल कांटे दार फल होता है मोटा छिलका हटाकर उसके अंदर लीची के से स्वाद का फल निकलता है ऐसे ही दो तीन अन्य फल नजर आये।

अर्चना का निवास लू शेन रोड पर स्थित था। करीब 2 किलोमीटर दूर पर विचारक लू शेन का स्मृति स्थान है लू शेन चीन के बहुत बड़े प्रगतिवादी साहित्यकार व विचारक थे उन्होंने अनेक पुस्तकें लिखी, उनके निवास को उनकी याद में संग्रहालय में परिवर्तित कर दिया गया है अर्थात् उनके जीवन से संब( रखने वाली सब सामिग्री उनके ग्रन्थ उनके चित्र उनकी हस्तलिखित पांडुलिपियाँ सारा प्रकाशित साहित्य पत्र-पत्रिकाएं जिनमें उनका साहित्य छपा, अंग्रेजी में अनूदित सभी सामिग्री वहाँ सुरक्षित थी। यह देखकर बहुत अच्छा लगा कि एक साहित्यकार को इतना मान सम्मान चीन सरकार ने दिया था उसे अमर बना दिया था।उसे नाम दिया गया है ‘लू शेन नेटिव पैलेस’ सामने प्रवेश द्वारा पर ही प्रबु( प्रगतिवादी विचारक लू शेन की प्रतिमा लगी है वह काले पत्थर से निर्मित है उस पर चाऊ एन लाई के हाथ का लिखा वाक्य लिखा है।

बड़े से काले रंग के द्वार से सामने ही उनके समय का सामान यथावत् रखे दिख रहे थे अधिकांश वस्तुऐं मेज कुर्सी पलंग सब लकड़ी के थे लेकिन आकार में छोटे थे उनपर कलात्मक नक्काशी थी उस समय का पानी गरम करने का गरमा पानी भरने के कुंडे वाले बड़े-बड़े बर्तन रखे थे। उनका स्नान घर। पूजा घर वहाँ बु( की प्रतिमाएँ व चित्र आदि थे। जिस स्थान पर अपने पूर्वजों को श्रृ(ांजलि देते थे वह कमरा इनसेंस कक्ष कहलाता है पूर्वजों को फल आदि अर्पण किये जाते थे इसलिए प्रतीक रूप में कलात्मक टोकरियों में फलों के प्रतिरूप रखे थे। ध्यान कक्ष पढ़ने का कमरा, सोने का कमरा एक विचार विमर्श कक्ष था जहाँ उनकी आध्यात्यिक यात्रा भी चलती थी। इन कमरों में वंदनवार आदि लगे थे जिन पर हाथ की कढ़ाई थी। बच्चों का कक्ष, जिनमें बच्चों  के पलंग आदि  थे ,संगीत कक्ष में सीप के प्यालों से बनी जलतरंग, सितार आदि रखे थे। परिवारिक बैठक थी जिसकी दीवारों पर सुनहरी चित्रकारी थी। चारों ओर गुलाब के फूलों की तस्वीरें थीं। सुनहरे अक्षरों में लिपिब( उनके विचार थे । सबसे अधिक आनंद यह देखकर आया रसोईघर की दीवार आलमारियों तक पर चित्रकारी थी । विशेष ढंग से बने मिट्टी के चूल्हे थे। खाना गर्म रखने के लिये दो पर्तो वाले डोगे थे अर्थात्  आजकल के कैसेरोल जैसे। भंडारण करने के लिये बांस की तीलियों से बने बड़े-बड़े बर्तन थे।

उनके विषय में जानकारी पुस्तक, पेपर में मिल रही थी। लेकिन सब चीनी भाषा में थी। हमारे लिये वे केवल चित्रांकन मात्र था जो कुछ भी था साम्यवाद को अधिक जोर दिया जा रहा था।

चीन की भाषा एक है लेकिन लिपि अलग-अलग है वे चार प्रकार की हैं पूरे देश में हान जाति की भाषा है,यह मेनड्रेन कहलाती है। चीनी लिपि चित्रमय सांकेतिक भाषा है इसलिये बहुत अधिक फर्क नहीं है लेकिन एक दीवार पर बड़े-बड़े चीनी अक्षरों में कुछ लिखा था स्थानीय लोगों से पूछा वे बता नहीं पाये।संभवतः लू शेन स्मारक लिखा होगा ।

दो चौक के इस मकान के दूसरे भाग में बरामदे के एक कोने में सिसला नामक एक विकालांग लड़का  पैर के अंगूठे और उंगली से पकड़ कर चित्रकारी कर रहा था। उसके बनाये चित्र किसी भी हाथ वाले चित्रकार से कम नहीं थे।

लू शेन प्रतिदिन डायरी लिखते थे वे डायरी जिल्द में बंधी उनके सामाधि स्थल पर क्रमब( रखी थीं।

मुख्य इमारत से बाहर बाजार सजा था वहाँ हर प्रकार की चीनी वस्तुएँ मिल रही थी इसे लूशेन विलेज कहा जाता है। 


laghu katha

मनुष्य कृतध्न क्यों?



एक बार एक आदमी और एक कुत्ता पृथ्वाी पर गिर पड़े। एक देवता उधर से गुजरे उन्होंने मनुष्य का दिल देखा तो वह गायब था फिर उन्होने कुत्ते का दिल देखा तो वो अपनी जगह मौजूद था। उन्होंने कुत्ते का दिल मनुष्य के लगा दिया और पृथ्वी पर से मिट्टी का दिल बनाकर कुत्ते के लगा दिया और अमृत  छिड़कर उन्हें जीवन प्रदान कर दिया पहले कुत्ता उठा उसने पूंछ हिला देवदूत का धन्यवाद किया और चरण चाटने लगा। मनुष्य उठा एक क्रोध भरी निगाह देवदूत पर डाली और कोसता हुआ एक ओर चल दिया।

 

Monday, 23 June 2025

cheen ke ve das din 3

 डॉ॰ सरोज भार्गव इंतजार कर रही थी उन्होंने रजनी जी का परिचय कराया । पहली बार उनसे परिचय हुआ पर बहुत

अपनापन लगा। गर्मागर्म खाना तैयार था। हाथ, मुँह धोकर सबने गर्म-गर्म पूड़ी सब्जी खाई। तब तक दस बज चुके थे और हम सब एअरपोर्ट के लिये रवाना हुए। जून माह में अभी बारिश बहुत दूर  थी लेकिन बारिश बार-बार आकर हमारी यात्रा को खुशगवार बना रही थी।

साढ़े दस बजे हम एअरपोर्ट के बाहर पहुँच चुके थे और बाकी के सहयोगियों का इंतजार करने लगे। पौने ग्यारह बज गये अभी तक कोई भी नहीं दिखाई दिया था 12 बजे हमें रिपोर्ट करना था यद्यपि फ्लाइट 3.30 की थी लेकिन चीन की यात्रा कुछ संदेहास्पद व कठिन मानी जाती है इसलिये सघन चैकिंग होती है।इसलिये समय भी अधिक लगता है । हम गलत जगह तो नहीं खड़े हो गये हैं कहीं वे दूसरे दरवाजे से अंदर चले गये हों फिर फोन लगाया जाता ।

सबसे पहले डॉ॰ राजकुमारी शर्मा के दर्शन हुए तो जरा राहत हुई। हम छः तो थे ही सातवीं साथी डॉ॰ राजकुमारी शर्मा के रूप में हमारे सामने आ गयीं अब इंतजार था मुख्य सहयोगियों का श्रीमती नन्दनी गुप्ता ग्वालियर से आने वाली थीं। वहाँ एक कॉलेज में योग प्रशिक्षक हैं। डॉ॰ चित्ररेखा सिंह चित्रकार हैं व मंगलायतन विश्वविद्यालय अलीगढ़ में चित्रकला विभाग की विभागाध्यक्षा हैं। वन्दनी सकारिया ललित कला संस्थान आगरा में चित्रकला की प्रोफेसर हैं ये सभी अलीगढ़ से आने वाले थे। साढ़े बारह बजे डॉ॰ मनोरमा शर्मा आदि की जीप रुकी तब हमारी जान में जान आई क्योंकि जब तक वे नहीं आतीं हमारी यात्रा एक इंच भी आगे नहीं बढ़ सकती थी।

तुरंत ही हम सबने ट्राली में सामान लादा और अंदर प्रवेश की पंक्ति में लग गये। एक-एक कर सभी प्रक्रियाऐं पूरी होते-होेते दो बजे गये। उड़ान से पूर्व हमारे बैग भी चैक हुए उसमें से वह वस्तुऐं जैसेµछोटा सा चाकू, नेलकटर, आदि एअरपोर्ट कर्मियों ने निकालकर पास रखे कंटेनर में डाल दिये। यहाँ तक कि शैम्पू तक निकाल कर डाल दिए।

रात्रि के दो बजे थे लेकिन यात्रा के उत्साह में जरा भी नींद थकान या शरीर में शिथिलता नहीं थीं हांॅ मन कर रहा था कुछ गर्म-गर्म पीया जाय।पहले घूम घूम कर पूरे लाउंज को देखा कि कहॉं क्या मिल रहा है?काफी अच्छी सी लग रही थी इसलिए कुछ ने गर्म कॉफी तो कुछ ने ठंडा पेय लिया।

     दो आमने-सामने की बैंचो पर बैठ कर उड़ान का इंतजार करने लगे। सुई का कांटा अनवरत् सरक रहा था लेकिन 

हमारी उड़ान का कहीं पता नहीं था। तीन  का समय पार हो गया। हांगकांग की फ्लाइट फ्लैश ही नहीं हो रही थी। उसके बाद की उड़ानंे आ रही थी जा रही थी। पर बोर्ड पर फ्लैश हुआ हांगकांग की फ्लाइट आधा घंटा लेट है यह आधा घंटा धीरे-धीरे दो घंटे में खिंच गया पता लगा विमान में तकनीकी खराबी आ गई है उसे ठीक किया जा रहा है।दूसरा प्लेन नहीं लिया जायेगा अगर आकाश में खराब हो गया तो ? वाई वाई न जाने कहॉं टूटे बिखरे पड़े होंगे ।हो सकता है दूसरे दिन के अखबार की सुर्खी बन जायें ।

      5.30 पर हांगकांग के लिये हम सबने कैथे पैसीफिक एअर लाइन्स के हवाई जहाज में प्रवेश लिया। विशाल हवाई जहाज में बहुत पास-पास सीट थी छः बीच में और दो-दो इधर-उधर।जिन्हें किनारे की सीट मिली वे प्रसन्न थे हमारे चेहरे लटक गये  बिलकुल बीच में एकदम घिच पिच । लगा थर्ड क्लास के ट्रेन के डिब्बे में बैठे हैं ।हमें एक-एक मुलायम फर का कंबल व तकिया दिया गया लेकिन पीछे की सीट पर एक लड़की छोटे बच्चे के साथ थी । बच्चा बहुत बेचैन था और बहुत रो रहा था वह लड़की संभवतः प्रथम बार माँ बनी थी बार-बार परेशान सी अग्रिम पंक्ति में बैठे अपने पति के पास सहायता के लिये जा रही थी इसलिये सीट लंबा करना संभव नहीं हो पा रहा था। हमारी उड़ान साढ़े आठ घंटे की थी यात्रा का मार्ग हमारे सामने की सीट के पीछे छोटी सी स्क्रीन पर आ रहा था। हमारे पायलट थे कैप्टन डोमिल मैक्डोनेल , सीट बैल्ट लगाने की प्रार्थना की गई । चाइनीज एअर होस्टेस ने यात्रा के निर्देश दिये  विमान थरथराया रन वे पर दौड़ा और रुक गया,असपास सीटें तो थी हीं सबकी ऑंखें मिली और हॅंस पड़े। सब एक सा ही सोच रहे थे । कुछ देर तक हिलने के बाद हवाईजहाज ने आकाश की ओर पंख फैलाये तो अधिंकाश ने अपनी आँखें बंद कर लीं अभी नीचे दिल्ली धुंधली सी दिख रही थी बिजली की रोशनी और भोर की हलकी दस्तक ने दिल्ली को पलक झपझपाने को मजबूर कर दिया था , हम सबने 


ऑंख बंद करनी चाही ।धीरे-धीरे हवाई जहाज ने आसमान की ऊँचाईयाँ नापना प्रारम्भ कर दिया था।

        अभी ऑंख हमने बंद भी नहीं की थी बाहर सूर्य की लालिमा झांकने लगी , प्रातः काल की दस्तक के साथ ही खूबसूरत एअर होस्टेस ट्रे, में गर्मगर्म लिपटे टॉवल लेकर हाजिर हुई। एक-एक टॉवल हमें पकड़ाती जा रही थी। हमने चेहरा साफ किया और गर्म-गर्म चाय पी। कुछ ही देर में छोटी-छोटी गाड़ियोँ में नाश्ता लेकर उपस्थित हुई उसमें सामिष और आमिष दोनों प्रकार के नाश्ते के व्यंजन थे वो पूछ-पूछ कर हमें ट्रे देती जा रही थी हमारी ट्रे में कटलेट,बन ,जैम व कटा हुआ आम था।आकाश से हम विशाल बंदरगाह और पहाड़ों का दृश्य देख रहे थे । विशाल जहाज कागज की नाव से दिख रहे थे ।नाश्ते के साथ ही चाय ली  चास आदि पीकर चुके ळी थे कि हॉंगकॉंग दिखने लगा। हांगकांग के ऊपर जब जहाज ने चक्कर लगाया, सांस जैसे थम गई एक खूबसूरत दृश्य ,एक विशाल विकसित देश हमारे सामने था दूर से ही ऊँची-ऊँची  शीशे की इमारतें जैसे एक सजा-सजाया प्रेक्षागृह हो और सागर शांत वहाँ से उसमें चल रहे नाटक को देख रहा हो। हमारा हवाई जहाज हांगकांग डेढ़ बजे पहुँचा क्योंकि हमने दो घंटे देर से यात्रा प्रारम्भ की थी हमारा प्रतीक्षित विमान जा चुका था।


Saturday, 21 June 2025

cheen ke ve das din 2

संभवतः युवा पीढ़ी हर प्रकार के धर्मों से अप्रभावित रही। अब का चीनी किसी धर्म को नहीं मानता। अब यथाथर््ा उनका मुख्य लक्ष्य है उसमें तकनीकी ज्ञान, भौतिक ज्ञान, वैज्ञानिक ज्ञान के लिये अधिक स्थान है।

चीन अलग  सा है अगर दूसरे शब्दों में कहा जाय तो चीन के चेहरे अलग अलग हैं,वह कई संस्कृतियों के विरोधाभास भरे जीवन से गुजरा है । उसने विश्व स्तर पर सहयोग और संघर्ष ,देशप्रेम के साथ साथ उग्र राष्ट्रवाद भी देखा है। वह विश्व के लिये एक चेलैंज है। उसने डालर की शक्ति को मेहनत से दबा दिया। विश्व शक्ति, में चीन का अब एक महत्त्वपूर्ण स्थान बन चुका है विश्व के लिये उठाये जाने वाले कदम बिना चीन की सलाह के उठाना मुश्किल होगा क्योंकि चीन विश्व के लिये उदाहरण बन चुका है।

    शांति सेना का स्वास्थ शिविर चल रहा था ,मरीज देखे जा चुके थे,और सब सदस्य बैठे थे कि डा॰ मनोरमा शर्मा ने कहा  ‘हम लोब चीन चल रहे हैं ,कौन कौन चलना चाहेगा?’

चीन! चीन क्या चलने की जगह है । चीन के विषय में मन में सदा असमंजस रहा है कारण उसके विषय में कहा जाता रहा है कि चीन विदेशियों के प्रति नम्र नहीं है । उसके नियमों के खिलाफ कुछ भी हो जाये तो सीधे जेल,व्यक्ति सूरज भी नहीं देख पाता । पर यह सब संभवतः सन् 1962 के  युð के बाद प्रचारित बातों से है। कुछ देर असमंजस की स्थिति रही । एक बार घर में भी पूछना पड़ेगा क्योंकि अभी तक अकेले और वह भी सीधे विदेश यात्रा पर नहीं गई थी। कुछ ने तो अपना नाम लिखा दिया पर मनोरमा दीदी के यह कहने पर कि क्यों शशि तुम क्यों चुप हो ... चलना है.... बस ’ मुझे कुछ भी कहने से रोक दिया। 

धर में आकर मैंने पूछा नहीं एलान कर दिया,‘ मैं चीन जा रही हॅंू’

‘चीन ... वह कोई जाने की जगह है वहॉं क्या है?

‘है तो कहीं कुछ भी नहीं जाने का मौका मिल रहा है तो चले जाते हैं यह निश्चय है कि घर से कोई चीन केवल घूमने के लिये नहीं जायेगा ।’

      और इस प्रकार स्व॰ मनोरमा शर्मा के नेतृत्व में हम चौदह लोग चाइना के लिये उत्साह से चले एक संदेश लेकर, मैत्री संदेश, हिन्दी चीनी भाई-भाई का संदेश। आगरा की बेटी अर्चना जयधारा डब्लू. एस. एफ. की सदस्या जिसने डब्लू. एस. एफ. के संदेश चाइना में भी प्रचारित किये उसने शाउसिन में एक स्कूल खोला है। विशेष रूप से बच्चों के लिये, ऐसे बच्चे जिनके माँ-बाप चीन में कार्य करते हैं। जब वे लौटकर भारत आयेेंगे अपने वतन, तब बच्चों की शिक्षा यहाँ से बिलकुल अलग होगी तब किस प्रकार वे अपने को यहॉं मिला पायेंगे। स्वयं अपनी बेटी की पढ़ाई की उसे चिन्ता थी। उसने साहस किया। वहाँ चीन के अधिकारियों एवम् भारतीय अधिकारियों से मिलकर एक स्कूल खोलने का प्रयास प्रारम्भ किया और वह सफल भी हुई। चंद वर्षों में उसका स्कूल भारतीय लोगों के साथ-साथ चीनी लोगों में भी लोकप्रिय होता गया और एक प्रतिष्ठित स्कूल बन गया। 

    डब्लू.एस. एफ द्वारा आमंत्रित भारतीय दल के स्वागत का कार्यक्रम अर्चना जयधारा ने अपने स्कूल के वार्षिकोत्सव में रखा। हम चौदह सदस्य थे स्व. डॉ॰ मनोरमा शर्मा, डॉ॰ राजकुमारी शर्मा, डॉ॰ चित्ररेखा सिंह, डॉ॰ सरोज भार्गव, श्रीमती किरन महाजन, डा॰ शैलबाला अग्रवाल, श्रीमती रजनी भार्गव, श्रीमती नंदनी, कु॰ वंदनी, श्रीमती सरोज गौड़, श्री अरस्तू प्रभाकर, श्री शशांक प्रभाकर, मास्टर ओशो प्रभाकर व स्वयं मैं । दोपहर दो बजे तक हमारे हाथ में टिकिट नहीं थे। यद्यपि हमारे ट्रेवल ऐजेंट श्री प्रशांत हमें बार-बार कह रहे थे ‘ मैं आपको रात्रि की फ्लाइट में बैठा दूँगा। हमारा आदमी आप तक पहुँचता ही होगा।’ एक-एक कर हम टिकिट और रुपये एक्सचेंज के लिये श्रीमती किरण महाजन के यहाँ एकत्रित हो गये। दिल्ली के लिये टैक्सी में सामान लद चुका था। 4 बजे एक व्यक्ति प्रगट हुआ औेर हम आठ लोगों की टिकिट और रुपये एक्सचेंज किये लेकिन अभी मनोरमाजी सपरिवार घर पर इंतजार कर रही थी। गुड़गाँव में डॉ॰ सरोज भार्गव व रजनी भार्गव हमारा इंतजार कर रही थीं। हमें उनके घर पहुँचकर उन्हें लेकर एअरपोर्ट जाना था।हमारी बेचैनी समझी जा सकती है । घर से विदा ले ली थी सामान लदा था पर हाथ में टिकिट ही नहीं ,अ्रगर लौट कर घर जाना पड़ा तो बहुत मजाक बनेगा।न जा पाने से अधिक इस बात की फिक्र थी कि सब खिल्ली उड़ायेंगे ।

मैं श्रीमती शैलबाला, डा॰सरोज भार्गव श्रीमती सरोज गौड़ व श्रीमती किरन महाजन हम सब एक इनोवा गाड़ी में बैठकर दिल्ली के लिये रवाना हो गये। रास्ते में पलवल ढाबे पर चाय व पकौड़े खाये पर साथ-साथ अन्य सबका हाल-चाल ले रहे थे अभी तक मनोरमा जी की टिकिट नहीं आई थी अगर समय पर उनकी ही टिकिट नहीं हुई तो क्या होगा।उस समय एक यक्ष प्रश्न बनकर हमारे सामने खड़ा था।हम सबके फोन उस समय या तो बज रहे थे या हम बजा रहे थे वैसे बजा हम   ही रहे थे  क्योंकि हम ही दिल्ली के लिये रवाना हो चुके थे सबसे अधिक नाजानकारी हमें ही थी । डॉ॰ राजकुमारी शर्मा पहले दिन ही नोएडा पहुँच चुकी थी वहॉं उनके पुत्र हैं । उनकी टिकिट भी मनोरमा जी के साथ आनी थी। लेकिन साढ़े छः बजे मनोरमाजी को भी टिकिट मिल गई वे तुंरत दिल्ली के लिये रवाना हो गईं। मोबाइल की उपयोगिता उस दिन अच्छी तरह समझ में आ गई थी ।पल पल की खबर थी हमारे पास । उस दिन पुराने वे दिन याद आये जब एक एक कॉल के लिये सारा 


दिन टेलीफोन पर बैठे ही बीत जाता था । आठ बजे हम रजनी जी के घर गुड़गाँव पहुँच गये जैसे ही उतरे बड़ी बड़ी बूंदों ने हमारा स्वागत किया ‘ अरे! मारे गये ’ मुॅह से निकला क्योंकि स्थान पर तो पहुॅंच गये थे पर कोठी ढूंढना बाकी था,ऐक गलत मोड़ दिशा बदल देता है,अंधेरे में ढूंढना अधिक मुश्किल है। खैर मोबाइल निर्देश ने मार्ग सही करा दिया और ठीक स्थान पर पहुॅंच गये। रजनी जी डॉ॰ सरोज भार्गव की बहन हैं। सुंदर सुव्यवस्थित घर। अंदर आने का मार्ग हरियाली से घिरा दोनों तरफ सुंदर फूलों के गमले सजे थे।


Friday, 20 June 2025

cheen ke ve das din yatra 1

 चीन के वे दस दिन





     ‘अगर शेर की मॉंद में घुसोगेे नहीं तो उसके बच्चों को पकड़ोगे कैसे?’

                                                                                लोकाक्ति हॉन डायनेस्टी ईसापूर्व 220 एडी

     पीले आदमियों का देश, ठिगने आदमियों का देश, एक उत्साह एक उत्सुकता ऐसे देश में जाने की जिसने मात्र कुछ सालों में अपना वर्चस्व कायम किया है। सबसे महत्वपूर्ण था ऐसे समय चीन जाना जब चीन दुनिया भर के सामने अपने आपको स्थापित करना चाहता था। ‘2008 का ओलंपिक का मेजबान चाइना।’

नैपालियन ने कहा था ”चाइना सो रहा है तो सोने दो यदि जाग जायेगा तो वह विश्व पर कब्जा कर लेगा।“

जगने लगा है चाइना और एवरेस्ट की चोटी तक पहुँच रहा है वहाँ तक सड़क बना रहा है।

एक प्रसि( चीनी लोक कथा है कि एक वृ( व्यक्ति को प्रतिदिन अपने काम के लिए पहाड़ लांघकर जाना पड़ता था। कभी-कभी वह घायल भी हो जाता था और थक भी जाता था । वह पहाड़ पर से जब जाता पत्थर उठा कर नीचे फेंक देता। गाँव वालों को बड़ा अजीब लगा उन्होंने पूछा‘ भई! यह क्या करते हो? रोज पत्थर नीचे क्यों फंेक देते हो’?, वह वृ( बोला ‘हर पीढ़ी के साथ पूर्वज बढ़ते जायेंगे और हर पीढ़ी यदि पत्थर फेंकती जायेगी तो एक दिन इस पर्वत को समतल कर देंगे।’

चीनी लोगों की यही मानसिकता है उनमें काम की लगन है यह नहीं कि कौन लाभ उठायेगा।

सन् 1949 में चीन की जनसंख्या 540 लाख थी। तीन दशक में यह जनसंख्या 800 लाख पहुँच गई हर दशक में जनसंख्या बढ़ती गई और 1.23 अरब तक पहुँच गई । चीन की जनसंख्या विश्व की जनसंख्या का पाँचवा हिस्सा है। चीन का इतिहास 4000 साल पुराना है। अर्थात् सभ्यता के आरम्भिक चिन्ह। चीन द्वारा बहुत-सी वस्तुओं का प्रथम बार निर्माण किया गया। चीनी लिपि भी संभवत् प्राचीन लिपि है जो वैज्ञानिक ढंग से लिखी गई।

चीन मध्य एशिया एवम् पूर्व एशिया में स्थित है।चीनी और भारत दोनों की सभ्यता और संस्कृति प्राचीन है। चीन प्रगति को कटिब( है वह जनता के हृदय में यह भर रहा है कि वह सर्वोत्तम है और आज मेहनत करेगा व आगे भविष्य में राज्य करेगा विश्व विजयी होगा। अपने विचारों के खिलाफ वहाँ की सरकार आलोचना नहीं सुन सकती इसलिये वहाँ के सभी अखबार सरकार के अधीन हैं वहाँ पर सरकार के खिलाफ बोलना गम्भीर अपराध है। 

धरने, प्रदर्शन, किसान आन्दोलन वहाँ भी मिलता है लेकिन अखबारों में उन्हें स्थान नहीं मिलता। बहुत से ऐसे स्थान हैं जहाँ हर किसी को विशेष रूप से विदेशियों को प्रवेश नहीं मिलता। चीन सालों तक रहस्य के घेरे में रहा था उसकी खबरें देश-दुनिया को नहीं मिलती थी । यहाँ तक 1949 की क्रान्ति के बाद लाखों चीनियों को मृत्युदण्ड दिया गया था। चीन के भूकम्प में लाखों करोड़ों चीनी काल कलवित हुए पर बाहरी दुनिया को ये खबरंे सालों बाद मिली।

चीन की संस्कृति और धर्म भारत से मिलता-जुलता है। चीनी पूर्व में अपने पूर्वजों की और प्रकृति की पूजा करते थे। पूर्वजों को देवता मानते थे लेकिन अब चीनी स्पष्ट कहते हैं वे किसी धर्म में किसी देवता में विश्वास नहीं करते, वे स्वयं अपनी पूजा करते हैं। कर्म उनकी पूजा है जो कुछ करते हैं अपने लिये करते हैं।

चीन में विभिन्न धर्मों का प्रभाव रहा है उनका अपना कोई धर्म नहीं था। ईसा से 604 वर्ष पूर्व ताओत्से उनके धर्म के प्रवर्तक रहे और ताओइज्म नाम से एक दार्शनिक धर्म का प्रारम्भ हुआ लेकिन कालांतर में इसमें जादू-टोने का सम्मिश्रण होने लगा। कन्फ्यूशियस ने ताओइज्म की विकृतियों पर प्रहार किया और उन्होंने जीवन प्रणाली को नीतियों में बांधा। इसके बाद वहाँ बौ( धर्म का प्रभाव पड़ा। पहले हीनयान फिर महायान का प्रभाव पड़ा और धीरे-धीरे बौ( धर्म ने वहाँ पैर पसार लिये और बौ( मूर्तियॉं चट्टानों ,पत्थरों पर अंकित की जाने लगी। यद्यपि ईसाई धर्म और इस्लाम धर्म ने भी वहाँ पैर घुसाने का प्रयत्न किया। पर बहुत अधिक स्थान नहीं बना सके।