बस मैं बलात्कार कांड मैं सांसद मैं महिलाओं का क्रोध धधक रहा था लेकिन पुरुष वर्ग निस्तेज बैठा था जैसे ऐसी क्या खास बात हो गई यह तो रोज की बात है औरते तो बस रोना रोती हैं निकली कही को किसने कहा था सिनेमा जाये घर मैं बैठे खाये पिएं और मौज मारे घर से निकल कर आजादी की साँस लेना है पटक दी बढ़िया करके चैन आगया फालतू मैं हल्ला गुल्ला १४ होय दो पढ़ने पढ़ने की जरूरत क्या है कौन रोटी थोपवे मैं पढाई चाहिए वो ही काम ठीक है अब १४ साल की छोकरी को अगर पढ़ा लिखा आदमी चाहिए तो उसकी उम्र २६ -२७ तो होगी तो क्या बात है आदमी की न जात न उम्रन रंग रूप चाहिए देखा जाये तो बस आदमी होना चाहिए देश के कर्ण धारों के चेहरे पर एस सकूं था कि बिल्ली मार् दी हो लोंडे लपाडे हैं जरा ऐश कर्ली ऐसा शोर मच रहे हैं की न जाने क्या प्रलय आ गई हो अरे बहन बेटी तो सबके घर मैं हैं पर पहले वो एक तजा गोश्त काहे की बहन कएय की बेटी जब अपनी बहन बीबी को भेजते हैं तो दस आगे सुरक्षा गार्ड दस पीछे रहते हैं आखिर हम देश के रखवाले हैं तुम्हारा बस चले तो तुम रख लो बीस गार्ड
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (20-05-2016) को "राजशाही से लोकतंत्र तक" (चर्चा अंक-2348) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'