आज समाचारपत्र मैं पढ़ा गणपति तैयार किसी ने सजी १० फूट ऊँची प्रतिमा किसी ने पंद्रह फूट ऊँची १० लाख की प्रतिमा हर शहर मैं एक दुसरे को नीचा दिखाते गणपति को ऊँचा उठाते हैं अरबों रूपये की प्रतिमाये बनती हैं क्या पैन होता है रंग बिरंगे जहरीले रसायनों से गणपति चमकाए जाते हैं उनकी जोर शोर से पूजा की जाती है फिर उसे नदी समदर मैं बहा आते हैं पानी को जहरीला बनाते हुए पहले यह केवल महाराष्ट्र का उत्सव था वह भी मिटटी की मूर्ती का जो घुलनशील होती थी व् चूने से ओउती होती थी जो पानी साफ ही करता था एनी प्रदेशों मैं गणेश चतुर्थी मानते थे पर बहुत छोटी सी मिटटी की डली रखकर। लेकिन अब श्रद्धा का नहीं ये अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा दिखने का उत्सव हो गया है यह गणपति श्राद्ध हो गया है कैसे एक साधक अपने आराध्य को कह सकता है की अब घर से जाओ होगी पूजा
नेता भी जब विसर्जन करने वाली लाखों की मूर्ती के सामने हाथ जोड़ कर खडे होते हैं तब अपनी सोच पर दुःख होता है की मैं कैसे जो हथ्जोद रहा है उसे आराधक मान लूं वह तो वोट को हाथ जोड़ रहा है
नेता भी जब विसर्जन करने वाली लाखों की मूर्ती के सामने हाथ जोड़ कर खडे होते हैं तब अपनी सोच पर दुःख होता है की मैं कैसे जो हथ्जोद रहा है उसे आराधक मान लूं वह तो वोट को हाथ जोड़ रहा है
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