मुडिया पूनो पर गिर्राजजी जैसे महाजन समूह से घिर जाते हैं जिसे देखो वह गिर्राजजी की परिक्रमा लगाने भागते हैं उस दिन गोवर्धन की जमीन कम पड़ जाती है ट्रेन बस सड़क मार्ग कम पड़ जाता है . हर वर्ग हर जाति व्यक्ति वहां परिक्रमा लगा रहा होता है तन से तन छूते जाते हैं सांसे तक टकराती हैं नगे पैर के नीचे धुल सब एक सी है पनि पद जाये तो मिटटी लिपटती जाती है छूटती जाती है फिर किस के पैर पर लिपट रही है मिटटी नहीं जानती। क्या जाती वर्ग का भेद भाव रह जाता है तब सब एक गडमड हो जाता है तब गोवर्धन महाराज की शीला पर हर व्यक्ति के हाथ फिरते हैं दूध की धार मिल कर बहती है जब उसका आचमन हर वर्ग करता तब क्या बूँदों को अलग कर पता है तब क्या दलित क्या ब्राह्मण सब एक हो जाता है माथा टिकने पर लगा पसीना शीला पर से न जाने किस के लगेगा किसके हाथ का चढ़ा प्रसाद हम श्रद्धा से लेकर माथे लगा खा लेते हैं बहुत स्वादिष्ट है पुजारी सबसे लेकर एक ही थल मैं तो डालता हैं उसे हम अमृत बताते है क्या प्रसाद इसीलिये अमृत हो जाता है कि उसमें भेद भाव नहीं है तब दलित और गैर दलित सब भूल जाते है और यह खली गोवर्धन की बात है यह हर धार्मिक स्थल की बात है ये तो उदाहरण है कोई भी धर्म हो सब की एक ही कहानी है मत्था टेकते हैं सब ही जगह हैं
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