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ब्लॉग में यूनिकोड लगाये, कृतिदेव नहीं...
ReplyDeleteआजकल टीवी पर एक पंक्ति चल रही है जो बात हिन्दी में है किसी मै नही और सुप्रसिद्ध अंग्रजी चैनल ने एक नया चैनल हिंदी में सच यही है जो आभीभाषण वही हिंदी सबसे अच्छी है अगर अच्छी है तो केवल कुछ प्रदेशों के लिये स्वयं सरकारी क्षेत्र में तो अंग्रेजी बोलना अधिक पसंद करता है अंगे्रजी बोलने में गर्व उनके चेहरे पर झलकता है कि वे पढे़ लिखे है पर पर क्या मानसिकता से विपन्न है कि जो विदेशी भाषा अपनाने में उन्हें गर्व महसूस हो रहा है पर अपने देश की किसी भी भाषा में बोलने में उनका प्रादेशिक प्रेम झलकता है क्योंकि वे अन्य प्रदेश के है। इसलिये हिन्दी भाषा में नही बोलेगें वह भारत की भाषा में बोलना नापंसद करते है उनका राज्य प्रेम कम हो जायेगा। राष्ट्रप्रेम की आवश्यकता नही है यदि कुर्सी मिल गई है तो देश तो उनकी मुठ्ठी में है ही हिंदी भाषी प्रदेष के मंत्री बनने वाले भी अ्रग्रेजी में बोलना पसंद करते है। यह उजडी मानसिकता का द्योतक अभी आम जनता गाॅवों में बसती है जो अंग्रजी नही समझपाती जब नेता अपनी बात अंग्रजी में करते है तो वे किसको संबोधित करते है क्या आम जनता को नही! स्रकार या नेता को आम जनता से कोई मतलब नही है यहाॅं सरकारी तंत्र केवल उच्च वर्ग लिये है सारी योजनाएं यही सोचकर बनाई जाती है कि किस प्रकार बड़े उद्योगो को बढ़ावा मिले और आम जनता पर कितना बोझ डाला जा सकंे डालों वह तो नमक रोटी लायक है नमक भी छीनों कुछ नही बिगड़ेगा पर बड़े घरानों की संपŸिा बढ़नी चाहिये क्योकि सरकार को राजस्व उससे प्राप्त होगा आम जनता से क्या उससे तो मिल ही जायेगा इसलिये भाषाण भी अंग्रजी में बोले जाते है आम जनता समझकर क्या करेगी वह तो अंग्रेजी में बोलते सुनकर ही अभिभूत हो जायेगी कि हमारे नेता कितने पढ़े लिखे हैं। कैसी पटपट अंग्रेजी बोलते है। आज भी गोरी चमड़ी देखकर निछावर होने वाले अपने मेहनत से धुधलाये शरीर की चमड़ी को देखकर हीन भाव से घिर जाते हैं। यही नही सोचते यदि उनको भी ऐसा उच्च विलायती शिक्षा , ब्यूटी पार्लर में जाने का अवसर मिले तो उनकी त्वचा भी गोरी नाजुक हो जायेगी।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (16-07-2016) को "धरती पर हरियाली छाई" (चर्चा अंक-2405) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बिडम्बना है जो हिंदी की खाते हैं वे भी उससे कतराते हैं अंग्रेजी झाड़ते हैं ..
ReplyDeleteविचारशील प्रस्तुति
साहित्यिक समाचार
ReplyDelete---------------------
राष्ट्रीय ख्याति के अम्बिका प्रसाद दिव्य पुरस्कारों हेतु पुस्तकें आमंत्रित
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साहित्य सदन , भोपाल द्वारा राष्ट्रीय ख्याति के उन्नीसवे अम्बिका प्रसाद दिव्य स्मृति प्रतिष्ठा पुरस्कारों हेतु साहित्य की अनेक विधाओं में पुस्तकें आमंत्रित की गई हैं । उपन्यास, कहानी, कविता, व्यंग, निबन्ध एवं बाल साहित्य विधाओं पर , प्रत्येक के लिये इक्कीस सौ रुपये राशि के पुरस्कार प्रदान किये जायेंगे । दिव्य पुरस्कारों हेतु पुस्तकों की दो प्रतियाँ , लेखक के दो छाया चित्र एवं प्रत्येक विधा की प्रविष्टि के साथ दो सौ रुपये प्रवेश शुल्क भेजना होगा । हिन्दी में प्रकाशित पुस्तकों की मुद्रण अवधि 1जनवरी 2014 से लेकर 31 दिसम्बर 2015 के मध्य होना चाहिये । राष्ट्रीय ख्याति के इन प्रतिष्ठा पूर्ण चर्चित दिव्य पुरस्कारों हेतु प्राप्त पुस्तकों पर गुणवत्ता के क्रम में दूसरे स्थान पर आने वाली पुस्तकों को दिव्य प्रशस्ति -पत्रों से सम्मानित किया जायेगा । श्रेष्ठ साहित्यिक पत्रिकाओं के संपादकों को भी दिव्य प्रशस्ति - पत्र प्रदान किये जायेंगे ।अन्य जानकारी हेतु मोबाइल नं. 09977782777, दूरभाष - 0755-2494777एवं ईमेल - jagdishlinjalk@gmail.com पर सम्पर्क किया जा सकता है । पुस्तकें भेजने का पता है - श्रीमती राजो किंजल्क , साहित्य सदन , 145-ए, सांईनाथ नगर , सी - सेक्टर , कोलार रोड, भोपाल- 462042 । पुस्तकें प्राप्त होने की अंतिम तिथि है 30 दिसम्बर 2016 । कृपया प्रेषित पुस्तकों पर पेन से कोई भी शब्द न लिखें ।
( जगदीश किंजल्क )
संपादक : दिव्यालोक
साहित्य सदन 145-ए, सांईनाथ नगर , सी- सेक्टर
कोलार रोड , भोपाल ( मध्य प्रदेश ) -462042
मोबा : 09977782777
ईमेल: jagdishkinjalk@gmail.com
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( जगदीश किंजल्क )
संपादक : दिव्यालोक
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