Monday, 26 October 2015



मेरे घर की ऊँची दीवारों के बीच
 खिड़की से झांकता है जीवन
आ जाता है पंख फड़फड़ता पखेरू
 कोई  तितली आ बैठती है शीशे पर
 दिख जाता है बालक
मुस्कराने लगती है जिदगी
धूप का टुकड़ा आता  है अंदर
हवा दस्तक देती है खिडकी  पर
 तब कुछ पल को लहराता है जीवन
पेड़ की डाल पर गाता है पंछी
झूम उठती है डाली,
संग संग आता है जीवन। 

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