Monday, 21 October 2013

safai

दीपावली की सफाई हो रही है सब अपने अपने घरों  से कूड़ा निकाल रहे हैं पूरे साल भर का एकत्रित कूड़ा  जो कुछ जमा किया था अब निष्प्रयोजन लग रहा है  वह कूड़े मैं फिक रहा है  रद्दी वाले ठेल भरकर ले जा रहे हैं  उनमें  सबसे ज्यादा होती हैं किताबें  जिनके लिए घर मैं न स्थान है न जरूरत  फिर बढ़ रहा है कूड़े का अम्बार  जरा भी चौड़ी  सड़क है वाही रखा है नगर पालिका का कूड़ेदान जोखाली है और सड़क पर हथठेला  आता है कूड़े की ढेरी  लगा जाता है  कूड़े पर नहीं उसके पास इस प्रकार सड़क घिरती जाती है है और उन मैं दिख रही हैं विगतवर्ष की टूटी हत्री  गुजरिया आदि  साथ ही पिछली दीपावली के ग्रीटिंग कार्ड्स शादी के कार्ड्स  सब पर छपे हैं लक्ष्मी गणेश  या गणपति जो अब कूड़े के ढेर पर थे वैसे यदि किसी हिन्दू से जमीन पर भगवन की तस्वीर रखने या उस पर पैर रखने के लिए कह तो दो आपके पुरखे टार जायेंगे  पर अब गाय आकर हटा हटा कर  मुह मार कर खाने  योग्य अयोग्य चीज ढूढ़ रही थी कुत्ते भी बार बार आकर  टांग उठा रहे  थे  शायद हमारी आस्था केवल पूजा घर तक सीमित है  यही दुर्दशा नवदेवी  पर देखी  मंदिर मैं अष्टमी नवमी  के दिन हलुआ पूरी चने देवी के आगे ढेर लगे थे  उन पर फूल  सिन्दूर अगरबत्ती की राख  सब गिर रहा था पुजारी सबकी  ढेरी  कोने मैं लगा रहा था पुजारी के लिए तो अलग थाल था जो  बड़े बड़े भगोने भर रहे थे  अकेले देवीजी को कैसे  खिल दे हर मंदिर मैं सभी देवी देवता रहते हैं अच्छा दूकानदार हर वैराइटी  का माल रखता है  जिसे कोई दिन कोई पर्व खाली न जाये लिहाजा हलुआ पूरी उनके लिए भी है इतने अन्न की बर्बादी  जहाँ जिस देश मैं भूख के लिए चूहे खाने पडें  उसी देश मैं असली घी की पूरी हलुआ  कूड़े पर हो क्योंकि प्रातकाल  सब को  बोरी मैं भरार कर जमुना मैं विसर्जन के लिए भेज दिया  इसे कहते हैं अन्न  धन और आस्था का कूड़ा होना।

No comments:

Post a Comment