दरकी सी जिंदगी रिसती रहती है
जिंदगी भर सिल घिसती रहती है
जब टूटी जाकर के जमुना मैं सिराया है
तब कुछ भी किया सब कुछ पराया है
बचपन चंचल नटखट अन्दर बस जाता है
योवन अकार तेजी से सरक जाता है
पर वृधापन कैसे धीरे से चलता है
जब कुछ काम नहीं तब भी वह पलता है
फैन्के जाने का जब अह्सास बड़ा होता
काया मैं सूखा पण और कड़ा होता
जिंदगी भर सिल घिसती रहती है
जब टूटी जाकर के जमुना मैं सिराया है
तब कुछ भी किया सब कुछ पराया है
बचपन चंचल नटखट अन्दर बस जाता है
योवन अकार तेजी से सरक जाता है
पर वृधापन कैसे धीरे से चलता है
जब कुछ काम नहीं तब भी वह पलता है
फैन्के जाने का जब अह्सास बड़ा होता
काया मैं सूखा पण और कड़ा होता
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