मेरे जीवन की कथा लिख दी है ईश्वर ने ' इस दुनिया का पल पल बांधा है ईश्वर ने
हम ढूंढ़ रहे उसको है कहाँ चितेरा है किस द्वारे पर उसके पाएगा बसेरा है
मौन है बस भाषा अंतर मैं समाया है उसकी बोली को अन्दर ही पाया है
घने अँधेरे मैं मंजिल को ढून्ढ रहे रेतीले अंधड़ मैं कदमो को खोज रहे
ईश्वर यदि मिल जाये फिर कैसा ईश्वर है वह अनंत की छाया तब ही तो ईश्वर है
हम ढूंढ़ रहे उसको है कहाँ चितेरा है किस द्वारे पर उसके पाएगा बसेरा है
मौन है बस भाषा अंतर मैं समाया है उसकी बोली को अन्दर ही पाया है
घने अँधेरे मैं मंजिल को ढून्ढ रहे रेतीले अंधड़ मैं कदमो को खोज रहे
ईश्वर यदि मिल जाये फिर कैसा ईश्वर है वह अनंत की छाया तब ही तो ईश्वर है
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