Tuesday, 17 November 2015

bhavnaon ka samman

अभिव्यक्ति  की स्वतंत्रता से तात्पर्य यह तो नहीं  कि  आप किसी की भावनाओं से खिलवाड़ करें। ध रम कोई भी हो उसका विरोध करना हो तो शालीनता से करना तो ठीक दयानंद सरस्वती  महान समाज सुधारक हुए थे  पर कभी  बेहूदे ढंग से विरोध नहीं किया 

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