Monday, 20 May 2013

lash bolti nahin

जवान  लड़की  चीखती रहती है  दस पंद्रह दुर्योधन सीत्कार लेते  चीरहरण  करते है और सब रस ले ले कर उसके शरीर पर हाथ फेरते हैं कोई कृष्ण तो क्या आता हजारों की भीड़ आँख फेर कर चली जाती है कान भी बंद नहीं करती  आवारा किस्म के लड़के अपनी विकृत मानसिकता को प्रदर्शित करते हैं और  भीड़ यह देखती है मानव कैसे बर्बर हो जाता है मानव जंगली था परन्तु शायद जंगल में ऐसी घटक मानवता देखने को नहीं  मिली होगी .मानवता मैं सडांध  फ़ैल  गई है पडौस  मैं पूरा परिवार चार पांच दिन सड़ता  रहता है मालुम तब पड़ता  हैजब खड़ा  होना मुश्किल हो जाता है  ये मानव शरीर नहीं सम्बन्ध सड़ते हैन.लद्कि सन्नाटे मैं बड़े अपार्टमेंट मे चीखती है चिल्लाती है पर किसी की आँख नहीं खुलती  या खुली आंख बंद कर लेते है कसकर  साथ ही कान भी
तड़प तड़प कर  वहां से टकराकर व्यक्ति दम तोड़ देता है पर सब जल्दी मैं हैं या कौन झंझट मोल ले निकल चलो जो बोले सो कुण्डी खोले यदि रुकता है  या अस्पताल ले जाता है तो रुकने वाला  जेल की हवा खाए या  कोर्ट कचहरी के चक्कर लगाए क्योकि पुलिस वाले उसी को धर लेंगे वो भी क्या करें करें उन्हें भी गूद्वार्क के लिए कोई चाहिए चल तू आया तू ही सही  इंसानियत क्या करेगी जब इंसानियत भगवान् समझे जाने वाले  के दर पर काम नहीं करती है तो पुलिसवालों  की तस्वीर तो वैसे ही धूमिल है .अस्पताल के गेट पर बुखार से बीमारी से  भर जाता है पर उसे एक गोली दवा  की डॉक्टर  नहीं देने को तैयार कौन दे अस्पताल मैं आता है  पैसे सब मिलकर खाते  हैं तो खर्च भी सब मिल कर करें  .इंसानियत तो मर चुकी है उसकी लाश  धो रहे हैं लाश पर कोई असर नहीं होता . 

No comments:

Post a Comment