Monday, 7 January 2013

क्या आज  का युवा  विद्रोही  हो गया  है   ?

आज  का युवा  विद्रोही  नहीं यथार्थ  के धरातल  पर है  पुरातन पीढ़ी  समाज  और  परिवार से बंधी है  वह जो  कुछ भी  करती है परिवार और समाज के  लिए  करती है  उसकी नजर मैं परिवार  सर्वोपरि है  लेकिन अब  सीमित परिवार  और व्यापक वैश्विकता  ने मानदंड  बदल  दिये  हैं .एक तरह से परिवार  खत्म  हो गए  हैं  ज्यों  ज्यों  विश्व स्तरीय  नोकरियाँ  बढती  जा रहीं  है  आर्थिक  सम्पन्नता  भी उसी मैं  युवा पीढ़ी  को दिखाई 
देती है  और है भी  क्योंकि  या तो कॉर्पोरेट  घराने  संपन्न हैं या नेता  या फिर विश्वस्तरीय  नोकरियां  पंख  पसारने  के लिए खुला  आसमान  देती हैं . इसे विद्रोह  नहीं युग की मांग  कहेंगे  जो  प्रोढ़  पीढ़ी  ने दिया हैं  उसी  का देय है  यह .
मध्यवर्गीय परिवार जहाँ आज भी सबसे  अधिक पिस रहा है  पहले  भी परेशान था  उसे समाज के साथ  चलना है  जबकि चलने मैं समर्थ नहीं  होता .अब मध्यवर्गीय परिवार का  बच्चा  कुए  से बाहर  कूद  गया  है  उसने सारे दरिद्र  काट  दिए हैं  युवा  पीढी  अब एक एक  पैसा  नहीं  एकदम सौ  पैसा  चाहती है  तो बुरा क्या  है परिवार  के  प्रति कर्त्तव्य  अब यही है कि  वह आर्थिक  सहायता  कर पाता   है . अब युवा पीढ़ी  जीने मैं विश्वाश  करती है  जोड़ने  मैं नहीं ,'पूत कपूत  तो  का धन संचै ,पूत सपूत तो का धन  संचे ' वाली उक्ति चरितार्थ  करती है  और यही  प्रौढ़  पीढ़ी  को विद्रोह लगता है  कि  युवा अपने मैं सीमित  हो गया है . यह युग क़ी  मांग है  युग परिवर्तन  है .

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