Friday, 1 August 2025

kailash mansarover yatra 17

 सागा में चीन का वर्चस्व है तिब्बती नहीं दिखाई दिये । होटल में भी सभी लड़कियॉं व पुरुष चीनी ही थे । बाजार में चीनी सामान की अनेक दुकानें सजी थीं  वहॉं पर  सामान में क्वालिटी से ज्यादा सुंदरता पर अधिक बल दिया जाता है हमें बताया गया उत्तम क्वालिटी का सामान भी उपलब्ध है पर बहुत मंहगा है  जो सस्ती होती है सुंदर होती है पर टिकाऊ नहीं होती । हर वस्तु की पैकिंग बहुत सुंदर थी । लड़कियों का पहनावा मुख्यतः पैन्ट ष्शर्ट कोट या स्कर्ट कोट ही दिखा । पुरुष भी कोट पैन्ट या स्वेटर और ढीले ढीले पाजामा में दिखे । होर्डिंग बैनर सभी पर केवल चीनी भाषा का  ही प्रयोग था कहीं कहीं  हिंदी लिखी देखकर आष्चर्य ही हुआ । रात्रि में कमरे में  तीन तीन लोगों की व्यवस्था थी हमारे कमरे का तीसरा  साथी  गाइड अवतार था पर वह रात में  वहीं बाहर ही सोता रहा । हमने कहा कि जिस कमरे में चुष हैं उस कमरे में चले जाओ या हम एक कमरे में महिलाऐं और एक कमरे में पुरुष सो जायेंगे ।

    प्रतिदिन की दिनचर्या के अनुसार प्रातः आठ बजे प्रयांग के लिये प्रस्थान करना था जल्दी जल्दी सब  समय से  तैयार थे । खाना बनाने वाले ष्शेरपा इतने मुस्तैद रहते थे कि आष्चर्य होता था। हर प्रदेष का खाना खिला रहे थे  छोटे छोटे उत्तपम, बड़ा सांभर अर्थात् दक्षिण भारतीय खाना तैयार था श्रीमती विजय लक्ष्मी गुप्ता एकदम प्रसन्न हो उठीं कि आज तो उनका मन पसंद खाना मिल रहा था । पूरे रास्ते ष्शेरपाओं ने इटैलियन पास्ता , उत्तर भारतीय पूड़ी बेड़वीं,राजस्थानी दाल वाटी, बिहार का लिट्टा चोखा आदि बनाया ।  पेय पदार्थ भी  सब प्रकार के रहते थे । सूप चाय कॉफी ,दूध बॉर्नविटा ष्शहद नीबू  आदि ।

         सागा से प्रयांग की दूरी 160 किलोमीटर तक है । अब कुछ उतरना था । प्रयांग 14750 फुट समुद्र तल से ऊॅंचाई पर स्थित है। प्रयांग का रास्ता भी  सूना है केवल कहीं कहीं चरागाह  दिख जाते हैं । प्रयांग में कहीं कहीं घोडे़ नजर आने लगे थे सड़क बन रही थी केवल दो तीन मजदूर दिखाई दिये वे निष्ठा से काम कर रहे थे ।  सागा से प्रयांग  के रास्ते में कई किलोमीटर तक हनुमान लेक चलती गई । इस लेक का जल देखने में सुनहरा लगता है कहा जाता है वहॉं के वासी हनुमान जी कभी कभी भक्तों को  अपनी उपस्थ्तिि का एहसास कराते हैं । हमसे पहले  आये ग्रुप के प्रमोद बाबू व ममता बंसल ने बताया था कि उन्होंने एक विषाल साये को  बराबर चलते और फिर झील में विलुप्त होते  देखा था  सुनकर एक  श्रध्दा का एहसास हुआ था परंतु हमें ऐसा कोई  अनुभव नहीं हुआ । जल बेहद शंात था । ढलते सूर्य ने  जैसे  उस पर स्वर्ण बिखरा दिया हो  । कहीं कहीं छोटे पक्षी तैरते नजर आये । लेक पूरे रास्ते हमारे साथ साथ चलती रही । इस रास्ते पर भी एक नदी  पार करनी पड़ी नदी  कुछ उफान पर थी तथा वेग भी तेज था ड्राइवर सभी इन परिस्थितियों के लिये तैयार थे  हमें रोमांच हो रहा था लग रहा था पानी गाड़ी में भर जायेगा मछलियॉं टकरा रही थीं । एक दो गाड़ियॉं जरा अटकीं पर सब निकल गई ।मनोहारी दृष्य था आगे चौडा़ रेतीला मैदान सब उतर कर  प्रकृति का आनंद लेने लगे ,ठंडे बहते पानी मेंपैर डालकर खड़ा होना नीचे से धरती सरकती महसूस होना,म नही नहीं कर रहा था वह स्थान छोड़ने का  लेकिन आगे की यात्रा जारी रखनी थी ‘ जल्दी करो के स्वर के साथ ही सब चढ़ कर चल दिये