बार बार यह बात उठ रही थी कि नेताओं की पेंशन क्यों? विधायक सांसद बनते हैं तब कहते हें कि हम तो जनता की सेवा करने के लिये अपना समय दे रहे हैं। सब जानते हैं कि उस समय को देने के नाम पर वो जनहित के स्थान पर अपना हित ही कर ते हैं। पूरा पूरा वेतन ओर सुविधाऐ ंतो लेते ही हैं साथ ही महत्वपूण्र व्यक्तित्व सारा दिन मुख्य अतिथि बनना और फीते काटना ,उद्घाटन करना उनका प्रमुख काम होता है। और यह वे अच्छी तरह जानते कि जन सेवा केनाम पर क्या क्या लाभ लेते हैंइसलिये तो लाखों रुपये खर्च कर चुनाव लड़े जाते हैं। अब एक पंक्ति पड़ी नेताओं की पेंशन बंद होगी ।पर क्या नेता बंद होने देंगे? यह मध्यमवर्ग के लिये बहुत राहत हे। जन ज न जानता है जो कुछ देश चलता है और नेता लोग खाते हैं वह मध्यमवर्ग द्यारा अपनी दिन रात की मेहनत का पैसा अनेकों प्रकार से कर रूप् में देते हैं तब यह सब खच्र चलता है तब कर दाताओं की आँख में क्रोध आना स्वाभाविक ही है कि उनकी दिन रात की मेहनत को नेता लोग पर न्यौछावर कर दिया जाता है । अब जब यह पंकित पढ़ी कि पेंशन बंद होगी तो लगा शायद कुछ कर दाताओं के ह्मदय पर मलहम लगेगी
Shashi Goyal
Sunday 22 September 2024
Tuesday 17 September 2024
kullu ka dashahra (hamari asthayen)
कुल्लू का दषहरा
देवताओं की घाटी कुल्लू ,लगता है धरती का सारा सौंदर्य सिमट कर वहीं आ गया है । आकाष से बातें करती वर्फ से ढकी पहाड़ियां,धैलाधार, पीरपांजाल जैसी ऊंची पर्वत श्रंखलाऐं,व्यास नदी। किन्नरियों और देवी देवताओं की धरती में धार्मिक उत्सव भी उतने ही उत्साह और धूमधाम से मनाया जाता है जैसे स्वर्ग का आयोजन हो ।
दषहरा कुल्लू घाटी में संभवतः सात सौ साल से मनाया जा रहा है। इस दिन सारी घाटी से करीब 360 देवी देवता रघुनाथ जी की वंदना करने आते हैं।
लोक श्रुति के अनुसार 700 साल पहले कुल्लू के राजा जगत सिंह ने एक ब्राह्मण से मोती छीन लिये। ब्राह्मण ने राजमहल में आग लगा दी और स्वयं भी अग्नि के सामने बैठकर तेजधार के चाकू से षरीर को अंगुल अंगुल काटता अग्नि में फेंकता कहता जाता ,‘ ले राजा मोती ले ’
षापग्रस्त राजा इधर उधर भटकता घूमता खाना खाने बैठता तो थाल रक्त मांस से भरा नजर आता। अंत में वह नगर के एक संत के पास पहुंचा। संत ने उसकी व्यथा सुनी तो कहा,‘ तुम अपने पापों का प्रायष्चित करने के लिये वैश्णव धर्म अपनाओ और अयोध्या से राम जी की मूर्ति यहां लाओ और उसे स्थापित करो। जुलाई 1651 में राजा वैरागी के षिश्यों के साथ अयोध्या से मूर्ति लाया और उसे कुल्लू में राजा की गद्दी पर आसीन कर दिया।
इस प्रकार रघुनाथ जी कुल्लू के मुख्य देवता बन गये। दषहरा के दिन उन्हें मंदिर से बाहर लाया जाता है और कुल्लू के अन्य देवता उनकी अभ्यर्थना करते हैं। यद्यपि रामजी की मूर्ति अंगूठे भर की है उनके चरणों में हनुमान जी की मूर्ति भी है। साज श्रंगार से सजी उस मूर्ति की मंत्रोच्चारण के साथ उपासना होती है । रामनामी छापा तिलक लगाये रंग बिरंगे डोले में झालर आदि से सजे स्थानीय अन्य देवी देवता लिये उत्साह से भरे भक्त गाते बजाते रामजी के सामने अपासना करने आते हैं।
कुललू का दषहरा देष मेंअन्य मनाये जाने वाले दषहरे से सर्वथा भिन्न तरह से मनाया जाता है । पूरे देष में दषहरा वाले दिन रामलीला का अंत होता है और कुल्लू में उस दिन से दषहरा पर्व षुरू होता है और पूर्णिमा के दूसरे दिन तक मनाया जाता है। लेकिन न राम लीला होती है न रावण जलाया जाता है लेकिन पूरा कुल्लू राम मय होता है ।
देवी देवताओं का आगमन ढप करताल बजाते नाचते भक्तों के साथ प्रारम्भ होता है ।सबसे पहले देवी हिडम्बा पधारती हैं।इनका मंदिर मनाली में देवी धंूगरी में है। हिडिम्बा देवी की मान्यता महाभारत काल से है । वनवास के दौरान दानवी हिडम्बा को भीम ने देखा और मुग्ध हो गया। हिडिम्बा के भाई दानव हिडिम्ब को मारकर भीम ने हिडिम्बा से षादी करली। भीम से षादी के बाद अपनी बीती हुई जिन्दगी के प्रायष्चित के लिये हिडिम्बा ने षिव की घनघोर तपस्या की और देवी का पद प्राप्त किया। इस प्रकार घाटी में षैव और वैश्णव दोनों मतों की मान्यता है । इसके बाद अन्य देवी देवता पधारते हैंऔर रघुनाथ जी की उपासना करने के बाद कहीं तम्बू में विश्राम करते हैं ।
पूर्णिमा के दिन सभी देवी देवता अपने विश्राम स्थल से बाहर लाये जाते हैं। उस दिन सब सामूहिक रूप से रघुनाथजी की वन्दना करते हैं क्योंकि दूसरे दिन सबको वापस अपने अपने गांव लौटना होता है । एक एक कर देवी देवता रघुनाथ जी के सामने से निकलते हैं और तीन बार झुक कर रघुनाथ जी को प्रणाम करते हैं ।
कहा जाता है देवता के स्वरूप में उन दिनों उनकी आत्मा आ जाती है। अंतिम दिन जब सब देवी देवताओं की विदाई का समय आता है रधुनाथ जी का रथ फिर तैयार किया जाता है और रस्सियों से खींचते हुए मैदान में चक्कर लगाते हुए,पहाड़ी के किनारे तक लाया जाता है। वहां से व्यास नदी के दर्षन किये जाते हैं। विजयघोश के नारों के संग नदी के दूसरे किनारे पर लंका दहन होता है और भैंसा ,बकरी ,मेढ़ा मछली , और कंेकड़े की बलि दी जाती है। बुराई के दहन के बाद विजयघोश के साथ रथ यात्रा प्रारम्भ होती है और कुल्लू षहर में घुमाते हुए भक्त भक्ति रस में सराबोर उन्हें डनके सुल्तानपुर मंदिर की ओर ले जाते हैं । और सभी देवता अपने स्थानों को वापस लौट जाते हैं ।
Wednesday 11 September 2024
adh kachra gyan
अधकचरा ज्ञान बहुत खतरनाक होता है,और यह जब ज्ञान बघारने वाला अपने को देश में सबसे ऊपर समझता है और यदि वह बेहद लचर बात करता है तो दुःख होता है यदि एक में पक्ष रखने का माद्दा नहीं है तो उसके पीछे चलने वाले तो और भी बेवकूफ हैं जो ऐसे व्यक्ति को मेन्टोर मान रहे हैं जिसमें न बोलने की अकल है न कुछ करने की और उसके पीछे लोग क्या सोच कर चल रहे हैं यह समझ नहीं आता है ।
नये नये आविष्कार हमें निरंतर प्रगति के मार्ग पर ले जारहे हैं। मानव मस्तिष्क नई नई खोजों में लगा रहता है साथ ही धन अधिक से अधिक किस प्रकार से कमाया जा सकता है लागत कम करके बचत अधिक होसकती है,अब हर चीज की मशीन का आविष्कार हो रहा हैजैसे गोलगप्पेकी मशीन रोटियों की मशीन, फूलबत्ती बनाने तक की मशीन अ गई्र है । ये मशीनें कई आदमियों का काम कर रही हैं तब मानव सहयोग की कम आवश्यकता रह गई है ,जब कि जन संख्या बढ़ रही है,काम बढ़ रहे हैं,तकनीकी ज्ञान बढ़ रहा है और आविष्कार बढ़ रहे हैं , इन मशीनों को कोई भड़काकर काम बंद नहीं करा सकता,यूनियन बाजी नहीं करा सकता । काम करने के लिये के लिये कम हाथों की आवश्यकता रहेगी,।साथ ही अब महिलाऐं भी काम करना चाहती हैं, वे केवल घर में रहकर गृहस्थी में समय नहीं व्यतीत करना चाहती है,ं वे भी रोजगार की लाइन में हैं । यह भी बेराजगारी का एक कारण है कि रोजगार अब दुगने चाहिये तब बेरोजगारी का बढ़ना तो तय है। बेकारी का मापदंड हर विपक्ष के पास सरकारी नौकरी का होता है। जो भी सत्ता में आयेगा क्या हर काम सरकार करेगी। देश के लिये अगर युवाओं को नौकरी चाहिये तो नौकरी देने वाला भी चाकहये नौकरी करने वाने से देने वाला अधिक बड़ा होता है ं अगर किसी देश को कमजोर करना हो तो उसके बड़े मिलमालिक या काम देने वालों को गाली देना प्रारंम्भ कर दो ,देश की अर्थव्यवस्था ठप्प हो जायेगी सब नौकरी करेंगे पर किसकी नौकरी करेंगे मिल वालों को तो गाली देदो उन्हें काम मत करने दो ,अगर अैक्स का पैसा नहीं आयेगा तो सरकार पैसा कहाँ से देगी । कितनी जरा सी बात भी किसी की अक्ल में नहीं आती ,यह एक हृदय की जलन मात्र है कि सारा देश को हम खाजायें ।
Friday 23 August 2024
ek hi ishwar Manavta ke par pul
यहां तक कि पश्चिमी एकेश्वरवादी धर्मों के भगवान भी एक प्रतिनिधित्व तक सीमित नहीं हैं। हिब्रू बाइबिल में,
भगवान ने मूसा से कहा कि 'तुम मेरा चेहरा नहीं देख सकते, क्योंकि मनुष्य मुझे देखकर जीवित नहीं रह सकता।'9 इस कारण से, भगवान को उन चीजों का रूप धारण करना होगा जो मनुष्यों से अधिक परिचित हैं: एक जलती हुई झाड़ी , आग का खंभा, बादल का खंभा, तेज़ आवाज़ या फुसफुसाहट। इसके अलावा, यहूदी साहित्य के अन्य कार्यों के अंश भी हैं जो ईश्वर को कई रूपों में देखने की हिंदू अवधारणा को बारीकी से प्रतिबिंबित करते हैं, जैसे यहूदी
8 ' द हाइमन टू द एटॉन' द एंशिएंट नियर ईस्ट - खंड 1: ग्रंथों और चित्रों का एक संकलन, संस्करण। जेम्स बी. प्रिचर्ड, ट्रांस. जॉन ए. विल्सन (न्यू जर्सी: प्रिंसटन यूनिवर्सिटी प्रेस, 1958),तल्मूडिक opuksa से:
'[टी] उन्होंने पवित्र व्यक्ति ने कहा: क्योंकि आप मुझे कई रूपों में देखते हैं , यह कल्पना न करें कि कई भगवान हैं।'10 इसलिए शास्त्रों में भी, भगवान को इस तथ्य को पहचानने के लिए कहा जाता है कि मनुष्य संभवतः अप्रत्यक्ष प्रतिनिधित्व के माध्यम से, या रूपों की बहुलता के अलावा अपने वास्तविक स्वरूप को नहीं समझ सकता है। धर्मग्रंथों, पैगंबरों और ईश्वर के अन्य दूतों के शब्द हमें याद दिलाते हैं कि धर्म अपने स्वयं के रूपक स्वभाव से अवगत हैं। फिर भी, ईश्वर को एक ही समझा जाता है, जैसा कि सबसे महत्वपूर्ण यहूदी प्रार्थना, 'शमा यिसरेल अडोनाई एलोहिनु अडोनाई एहद' में परिलक्षित होता है। जिसका अनुवाद इस प्रकार है 'हे इस्राएल, सुनो, यहोवा हमारा परमेश्वर है। यहोवा एक है।'11
इसी प्रकार,
मुसलमानों के लिए पूजा का सबसे केंद्रीय घटक वाक्यांश के पाठ के माध्यम से ईश्वर की एकता ('तौहीद' के रूप में जाना जाता है) की लगातार पुष्टि है , 'ला इलाहा इल्लल्लाह' (अल्लाह के अलावा कोई भगवान नहीं)। यह कुरान में भी स्पष्ट रूप से व्यक्त किया गया है: 'और तुम्हारा ईश्वर एक ईश्वर है; उसके अलावा कोई भगवान नहीं है, सबसे je.kh; सबसे दयालु'12। और फिर भी, मुसलमान भी ईश्वर को कई रूपों में प्रस्तुत करते हैं - दृश्य रूप से नहीं, बल्कि कुरान में ईश्वर के लिए निन्यानबे नामों के माध्यम से, जो एक बार फिर एक ही ईश्वर के विभिन्न गुणों का प्रतिनिधित्व करते हैं। तीन इब्राहीम धर्मों को मिलाकर, सभी ईसाई मानते हैं कि ईश्वर एक है, लेकिन कई संप्रदाय पवित्र त्रिमूर्ति के सिद्धांत में भी विश्वास करते हैं: कि यह एक ईश्वर पिता, पुत्र (यीशु मसीह) और पवित्र आत्मा के रूप में प्रकट होता है।
लेकिन कन्फ्यूशीवाद, दाओवाद और बौद्ध धर्म जैसी तथाकथित 'गैर-आस्तिक' धार्मिक परंपराओं के बारे में क्या? दरअसल, यहां भी एक ईश्वर की मान्यता के लिए मामले बनाए जाने हैं। इन धर्मों में ईश्वर की अवधारणा अनुपस्थित प्रतीत होने का मुख्य कारण ईश्वर पर दिए गए जोर की मात्रा से है। पश्चिमी एकेश्वरवाद के विपरीत, जिसमें रोजमर्रा की पूजा ईश्वर के इर्द-गिर्द केंद्रित होती है, वास्तविक जीवित धर्म (जैसा कि ऊपर नामित धर्मों में है) का सीधे तौर पर ईश्वर से बहुत कम लेना-देना है। ईश्वर को स्पष्ट संबंध को बढ़ावा देने के लिए बहुत ही उत्कृष्ट माना जाता है, और इसलिए, पूजा आत्माओं, पूर्वजों और कारण और प्रभाव की ब्रह्मांडीय शक्तियों पर अधिक ध्यान केंद्रित करती है।
जैसा कि धर्म के विद्वान टॉड ट्रेमलिन कहते हैं,
'उन धर्मों में जो किसी परम शक्ति या अवैयक्तिक देवत्व के अस्तित्व की शिक्षा देते हैं - ताओ,
ब्राह्मण और बुद्ध-प्रकृति की शक्तियां,
कई अफ्रीकी जनजातियों के निर्माता देवता और प्रारंभिक अमेरिकी देवताओं - ऐसे विचार अधिक व्यक्तिगत और व्यावहारिक देवताओं के पक्ष में लगभग पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया गया है'13 उदाहरण के लिए, स्वर्ग ('तियान', जिसका शाब्दिक अनुवाद 'आकाश' होता है) चीनी धार्मिक परंपराओं में एक अमूर्त और अवैयक्तिक शक्ति के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द है जिसे कभी-कभी भगवान के समान माना जाता है। कन्फ्यूशियस के एनालेक्ट्स में, उनके एक साथी ने टिप्पणी की है कि 'जीवन और मृत्यु नियति का मामला है; धन और सम्मान स्वर्ग के पास है'।14 स्वर्ग का प्रतिनिधित्व मानवरूपी रूप से, नहीं किया गया है और इसलिए यह पूजा करना दिन-प्रतिदिन का एक लोकप्रिय लक्ष्य नहीं है । हालाँकि,
यह अभी भी मानव जीवन के संबंध में बहुत शक्तिशाली और प्रभावशाली माना जाता है।
कन्फ्यूशियस के समय में भगवान का एक करीबी सादृश्य मानवरूपी भगवान हो सकता है जिसे 'शांग-दी' कहा जाता है, या बस, 'दी', एक सर्वोच्च भगवान जो अन्य मानवरूपी देवताओं के एक समूह पर शासन करता है, जिनके बारे में माना जाता है कि वे लोगों के कल्याण को सीधे प्रभावित करते हैं। लेकिन न तो तियान और न ही nh* - जितने शक्तिशाली और महत्वपूर्ण हैं - चीन की मुख्यधारा की धार्मिकता में प्रमुखता से ,
तब या अब अपना रास्ता खोज पाते हैं । दाओवाद और कन्फ्यूशीवाद के उद्भव के दौरान प्राचीन चीन के मामले में,
विद्वान रूथ एच. चांग ने एक ईश्वर के बजाय स्थानीय देवताओं पर ध्यान केंद्रित करने की घटना का वर्णन किया है:
जबकि आधिकारिक धर्म सर्वोच्च स्वर्ग पर केंद्रित था,
शासक न्यायालय के बाहर के लोग,
हालाँकि, वे मुख्य रूप से स्थानीय पंथों और देवताओं की पूजा करते थे, वे देवत्व की व्यावहारिक क्षमताओं के बारे में अधिक चिंतित थे,
और देवताओं और आत्माओं के बारे में उनकी अवधारणा उन चीजों पर केंद्रित थी जो लोगों के कल्याण को प्रभावित करती थीं। प्रायश्चित्त करना यह समझने से अधिक महत्वपूर्ण था कि शक्तियाँ कहाँ से आईं,
या शक्तियाँ अस्तित्व में क्यों थीं।15
व्यक्तिगत अनुभव से,
मैं विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि यह विवरण भारत के धार्मिक परिदृश्य पर भी लागू हो सकता है।
अंत में,
बौद्ध धर्म को आम तौर पर पूरी तरह से नास्तिक के रूप में देखा जाता है,
जो ईश्वर के अस्तित्व को अस्वीकार करता है। हालाँकि,
विशेष रूप से,
बुद्ध ने एक निर्माता ईश्वर के विचार को खारिज कर दिया। इसलिए बौद्ध एक व्यक्तिगत या चेतन ईश्वर के अस्तित्व को अस्वीकार करते हैं जिसने ब्रह्मांड का निर्माण किया,
लेकिन, जैसा कि लोकप्रिय लेखक और बौद्ध भिक्षु नयनापोनिका थेरा बताते हैं, वे अभी भी उन अनुभवों की सच्चाई को पहचानते हैं जिन्हें लोग ईश्वर के साथ जोड़ते हैं।