Thursday 20 October 2016

नट बनाम नेता


 पहले नट के खेल बहुत हुआ करते थे  होते अब भी हैं पर वे नट के खेल गांवों में और शहर की बस्तियों में होते हैं‘ जमूरा उठ और जमूरा उठ कर बैठ जाता है और डुगडुगी बजा जमूरे से भभ्ड़ के लिये बामें पूछता जाता है भीड़ जुड़ती जाती है और लोग तमाशा देखते हैं पैसे देने के समय इघर उघर मुॅह कर बिखर जाते हैं । नेता रूपी नट तरह तरह की बातें बोलने के लिये भीड़ जोड़ते हैं और कुछ देर तमाषे का आनंद लेकर लोग बिखर जाते हैं । जमूरे जैसे दो चार पिछलग्गू लग जाते हैं कोई नही ंतो तू ही सही  और उन्हें समेट कर ही नट तमाशा दिखाने और ठिकाने तलाशने लगता है ।
अहुम हो गये हैं नेता हमारे देश में
अपने ताबूत में कील छोकते हैं नट के वेश में
उलझ जाती है सोते ही लट काले केश में
तमाशाइयों के लगजे हैं ठठ्ठ बदले वेश में ।
 पार्टियों के चेहरे पर से नकाब हटायेंगे तो उन पर बस केवल कुर्सी और घन की पोटली नजर आयेगी ।



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